धर्म एवं ज्योतिष
भगवान अयप्पा को समर्पित है सबरीमाला मंदिर
13 Feb, 2025 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
दक्षिण भारत का विश्वप्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर भगवान अयप्पा को समर्पित है। भगवान अयप्पा शिवजी और विष्णु जी के पुत्र माने जाते हैं। इनके जन्म और पालन की कथा बहुत रोचक है।
इनके पुत्र हैं भगवान अयप्पा
भगवान अयप्पा जगपालनकर्ता भगवान विष्णु और शिवजी के पुत्र हैं। दरअसल, मोहिनी रूप में भगवान विष्णु जब प्रकट हुए, तब शिवजी उनपर मोहित हो गए और उनका वीर्यपात हो गया। इससे भगवान अयप्पा का जन्म हुआ। भगवान अयप्पा की पूजा सबसे अधिक दक्षिण भारत में होती है हालांकि इनके मंदिर देश के कई स्थानों पर हैं जो दक्षिण भारतीय शैली में ही निर्मित होते हैं।
इसलिए अयप्पा कहलाते हैं हरिहरन
भगवान अयप्पा को ‘हरिहरन’ नाम से भी जाना जाता है। हरि अर्थात भगवान विष्णु और हरन अर्थात शिव। हरि और हरन के पुत्र अर्थात हरिहरन। इन्हें मणिकंदन भी कहा जाता है। यहां मणि का अर्थ सोने की घंटी से है और कंदन का अर्थ होता है गर्दन। अर्थात गले में मणि धारण करनेवाले भगवान। इन्हें इस नाम से इसलिए पुकारा जाता है क्योंकि इनके माता-पिता शिव और मोहिनी ने इनके गले में एक सोने की घंटी बांधी थी।
इन्होंने किया अयप्पा स्वामी का पालन
पौराणिक कथाओं के अनुसार, अयप्पा के जन्म के बाद मोहिनी बने भगवान विष्णु और शिवजी ने इनके गले में स्वर्ण कंठिका पहनाकर इन्हें पंपा नदी के किनारे पर रख दिया था। तब पंडालम के राजा राजशेखर ने इन्हें अपना लिया और पुत्र की तरह इनका लालन-पालन किया। राजा राजशेखर संतानहीन थे। वर्तमान समय में पंडालम केरल राज्य का एक शहर है।
तब माता का मोह हो गया खत्म
जब अयप्पा राजा के महल में रहने लगे, उसके कुछ समय बाद रानी ने भी एक पुत्र को जन्म दिया। अपना पुत्र हो जाने के बाद रानी का व्यवहार दत्तक पुत्र अयप्पा के लिए बदल गया। राजा राजशेखर, अयप्पा के प्रति अपनी रानी के दुर्व्यवहार को समझते थे। इसके लिए उन्होंने अयप्पा से माफी मांगी।
रानी ने रचा ढोंग
रानी को इस बात का डर था कि राजा अपने दत्तक पुत्र को बहुत स्नेह करते हैं, कहीं वे अपनी राजगद्दी उसे ही न दे दें। ऐसे में रानी ने बीमारी का नाटक किया और अयप्पा तक सूचना पहुंचाई कि वह बाघिन का दूध पीकर ही ठीक हो सकती हैं। उनकी चाल वन में रह रही राक्षसी महिषी द्वारा अयप्पा की हत्या कराने की थी। अयप्पा अपनी माता के लिए बाघिन का दूध लेने वन में गए। जब वहां महिषी ने उन्हें मारना चाहा तो अयप्पा ने उसका वध कर दिया और बाघिन का दूध नहीं लाए बल्कि बाघिन की सवारी करते हुए,मां के लिए बाघिन ही ले आए।
बाघिन की सवारी करते हुए आए बाहर
जब अयप्पा बाघिन की सवारी करते हुए वन से बाहर आए तो राज्य के सभी लोग उन्हें जीवित और बाघिन की सवारी करते देखकर हैरान रह गए। सभी ने अयप्पा के जयकारे लगाए। तब राजा समझ गए कि उनका पुत्र कोई साधारण मनुष्य नहीं है। इस पर उन्होंने रानी के बुरे बर्ताव के लिए उनसे क्षमा मांगी। पिता को परेशान देखकर अयप्पा ने राज्य छोड़ने का निर्णय लिया और पिता से सबरी (पहाड़ियों) में मंदिर बनवाने की बात कहकर स्वर्ग चले गए। मंदिर बनवाने के पीछे उनका उद्देश्य पिता के अनुरोध पर पृथ्वी पर अपनी यादें छोड़ना था।
ऐसे हुआ सबरी में मंदिर का निर्माण
पुत्र की इच्छानुसार राजा राजशेखर ने सबरी में मंदिर का निर्माण कराया। मंदिर निर्माण के बाद भगवान परशुराम ने अयप्पा की मूरत का निर्माण किया और मकर संक्रांति के पावन पर्व पर उस मूरत को मंदिर में स्थापित किया। इस तरह भगवान अयप्पा का मंदिर बनकर तैयार हुआ और तब से भगवान के इस रूप की पूजा हो रही है और मंदिर भक्तों की आस्था का केंद्र है।
इसलिए शिव और विष्णु ने रची लीला
मां दुर्गा द्वारा महिषासुर के वध के बाद जीवित बची उसकी बहन महिषी ने ब्रह्माजी की कठोर तपस्या की। इस तपस्या से प्रसन्न होकर जब ब्रह्मदेव ने उससे वरदान मांगने के लिए कहा तो उसने वर मांगा कि उसकी मृत्यु केवल शिव और विष्णु भगवान के पुत्र के द्वारा ही हो, ब्रह्मांड में और कोई उसकी मृत्यु न कर सके। ऐसा वर उसने इसलिए मांगा क्योंकि ब्रह्माजी ने उसे अमरता का वरदान देने से मना कर दिया था। शिव और विष्णु का पुत्र परिकल्ना से परे था, इसलिए राक्षसी ने यह इच्छा रखी। वरदान मिलते ही उसने उत्पात मचाना शुरू कर दिया। तब भगवान विष्णु को मोहिनी रूप धारण करना पड़ा। ताकि भक्तों का संकट मिटा सकें।
ग्रहों का जीवन के साथ ही व्यवहार पर भी पड़ता है प्रभाव
13 Feb, 2025 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
ग्रहों का व्यक्ति के जीवन के साथ-साथ व्यवहार पर भी सीधा प्रभाव पड़ता है। हमारा व्यवहार हमारे ग्रहों की स्थितियों से संबंध रखता है या हमारे व्यवहार से हमारे ग्रहों की स्थितियां प्रभावित होती हैं। अच्छा या बुरा व्यवहार सीधा हमारे ग्रहों को प्रभावित करता है। ग्रहों के कारण हमारे भाग्य पर भी इसका असर पड़ता है। कभी-कभी हमारे व्यवहार से हमारी किस्मत पूरी बदल सकती है।
वाणी-
वाणी का संबंध हमारे पारिवारिक जीवन और आर्थिक समृद्धि से होता है।
ख़राब वाणी से हमें जीवन में आर्थिक नुक्सान उठाना पड़ता है।
कभी-कभी आकस्मिक दुर्घटनाएं घट जाती हैं।
कभी-कभी कम उम्र में ही बड़ी बीमारी हो जाती है।
वाणी को अच्छा रखने के लिए सूर्य को जल देना लाभकारी होता है।
गायत्री मंत्र के जाप से भी शीघ्र फायदा होता है।
आचरण-कर्म
हमारे आचरण और कर्मों का संबंध हमारे रोजगार से है।
अगर कर्म और आचरण शुद्ध न हों तो रोजगार में समस्या होती है।
व्यक्ति जीवन भर भटकता रहता है।
साथ ही कभी भी स्थिर नहीं हो पाता।
आचरण जैसे-जैसे सुधरने लगता है, वैसे-वैसे रोजगार की समस्या दूर होती जाती है।
आचरण की शुद्धि के लिए प्रातः और सायंकाल ध्यान करें।
इसमें भी शिव जी की उपासना से अद्भुत लाभ होता है।
जिम्मेदारियों की अवहेलना
जिम्मेदारियों से हमारे जीवन की बाधाओं का संबंध होता है।
जो लोग अपनी जिम्मेदारियां ठीक से नहीं उठाते हैं उन्हें जीवन में बड़े संकटों, जैसे मुक़दमे और कर्ज का सामना करना पड़ता है।
व्यक्ति फिर अपनी समस्याओं में ही उलझ कर रह जाता है।
अपनी जिम्मेदारियों को निभाने में कोताही न करें।
एकादशी का व्रत रखने से यह भाव बेहतर होता है।
साथ ही पौधों में जल देने से भी लाभ होता है।
सहायता न करना-
अगर सक्षम होने के बावजूद आप किसी की सहायता नहीं करते हैं तो आपको जीवन में मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
कभी न कभी आप जीवन में अकेलेपन के शिकार हो सकते हैं।
जितना लोगों की सहायता करेंगे, उतना ही आपको ईश्वर की कृपा का अनुभव होगा।
आप कभी भी मन से कमजोर नहीं होंगे।
दिन भर में कुछ समय ईमानदारी से ईश्वर के लिए जरूर निकालें।
इससे करुणा भाव प्रबल होगा, भाग्य चमक उठेगा।
हनुमान जी की तस्वीर दक्षिण दिशा की ओर लगायें
13 Feb, 2025 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म वास्तु और ज्योतिष की मानी जाए तो किसी भी प्रकार की तस्वीर या मूर्ति को घर में रखने से पहले कुछ बातों का जानना बहुत ज़रूरी है।वास्तु और ज्योतिष के साथ-साथ हिंदू धर्म के पौराणिक ग्रंथों में भी देवी-देवताओं की प्रतिमाएं को रखने से चमत्कारी प्रभाव देती हैं। इसलिए शास्त्रों में इनकी प्रतिमाओं और तस्वीरों को रखने के बहुत से महत्वपूर्ण नियम बताए गए हैं। वास्तुशास्त्र के अनुसार घर में देवी-देवताओं की तस्वीरें लगाने से सभी परेशानियां दूर होती हैं और घर में सुख-शांति बनी रहती है।हनुमान जी की तस्वीर का महत्व और उससे जुड़े कुछ वास्तु नियम-
शास्त्रों के अनुसार हनुमान जी बाल ब्रह्मचारी हैं और इसी वजह से उनकी तस्वीर बेडरूम में न रखकर घर के मंदिर में या किसी अन्य पवित्र स्थान पर रखना शुभ रहता है।
वास्तु वैज्ञानिकों के अनुसार हनुमान जी का चित्र दक्षिण दिशा की ओर देखते हुए लगाना चाहिए क्योंकि हनुमान जी ने अपना प्रभाव अत्यधिक इसी दिशा में दिखाया है जैसे लंका दक्षिण में है, सीता माता की खोज दक्षिण से आरंभ हुई, लंका दहन और राम-रावण का युद्ध भी इसी दिशा में हुआ। दक्षिण दिशा में हनुमान जी विशेष बलशाली हैं।
इसी प्रकार से उत्तर दिशा में हनुमान जी की तस्वीर लगाने पर दक्षिण दिशा से आने वाली हर नकारात्मक शक्ति को हनुमान जी रोक देते हैं। वास्तु अनुसार इससे घर में सुख और समृद्धि का समावेश होता है और दक्षिण दिशा से आने वाली हर बुरी ताकत को हनुमान जी रोक देते हैं।
जिस रूप में हनुमान जी अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर रहे हों ऐसी तस्वीर को घर में लगाने से किसी भी तरह की बुरी शक्ति प्रवेश असंभव है।
सूर्यदेव की लकड़ी की प्रतिमा होती है शुभ
13 Feb, 2025 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मान्यता है कि भगवान गणेश के साथ-साथ सूर्य देव की उपासना करना बहुत फलदायी माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य देव को सभी ग्रहों का राजा माना जाता है। इसीलिए इसकी शुभ-अशुभ स्थिति व्यक्ति के जीवन पर बहुत गहरा प्रभाव डालती है। वास्तु शास्त्र के अनुसार सूर्य देव की अलग-अलग प्रतिमाएं रखना शुभ माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अपनी इच्छानुसार घर में सूर्य देव की प्रतिमाएं रखी जा सकती हैं। तो आइए आज जानते हैं कि सूर्य देव की कौन सी प्रतिमा को घर में रखा जा सकता है।
लकड़ी की प्रतिमा
ज्योतिष और वास्तु के अनुसार सूर्यदेव की लकड़ी की प्रतिमा घर रखना बहुत अच्छा माना जाता है। मान्यता है कि इसके निरंतर पूजा-पाठ करने से घर के लोगों का समाज में मान-सम्मान बढ़ता है। इसके साथ ही उन्हें भाग्य का साथ मिल जाता है।
मिट्टी की प्रतिमा
जिस जातक की कुंडली में सूर्य दोष हो और उसके सभी कामों में बार-बार बाधाएं आ रही हो तो वो इंसान घर में पत्थर या मिट्टी की सूर्य प्रतिमा रख सकता है। कहा जाता है कि इसकी पूजा करने से हर कार्य में सफलता मिलती है।
तांबे की प्रतिमा
कहते हैं कि घर में सकारात्मकता बनाए रखने के लिए हर किसी को तांबे से बनी प्रतिमा रखनी चाहिए। इसके शुभ असर से सभी परेशानियों से छुटकारा मिल सकता है।
चांदी की प्रतिमा
कार्य क्षेत्र में अधिकार बनाए रखने के लिए चांदी की सूर्य प्रतिमा रख सकते हैं।
सोने की प्रतिमा
सोने से बनी सूर्य प्रतिमा घर में रखने और उसकी पूजा करने से घर में धन-धान्य बढ़ता है, सुख-समृद्धि बनी रहती है।
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
13 Feb, 2025 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- बेचैनी, उद्विघ्नता से बचिये, सोचे कार्य समय पर पूर्ण होंगे, समय स्थिति का ध्यान अवश्य रखें।
वृष राशि :- सफलता के साधन जुटायें, व्यवसायिक क्षमता में वृद्धि अवश्य होगी, कार्य पर ध्यान दें।
मिथुन राशि :- चिन्तायें कम होंगी, सफलता के साधन जुटायें, व्यवसायिक क्षमता में वृद्धि होगी।
कर्क राशि :- धन का व्यर्थ व्यय, समय व शक्ति नष्ट होगी तथा कार्य विघटन अवश्य होगा।
सिंह राशि :- भोग-ऐश्वर्य में समय बीतेगा, विरोधियों से व्यर्थ टकराव होगा, समय का ध्यान रखें।
कन्या राशि :- धन व समय नष्ट होगा, क्लशे व अशांति बनेगी तथा यात्रा से कष्ट होगा।
तुला राशि :- परिश्रम से सफलता के साधन अवश्य जुटायें, कार्यगति में बाधा बनेगी ध्यान दें।
वृश्चिक राशि :- चोटादि से बचिये, क्लेश व अशांति से बचिये, कष्ट अवश्य होगा।
धनु राशि :- भाग्य का सितारा बुलन्द होगा, मेहनत कर रुके कार्य बना लें अन्यथा हानि होगी।
मकर राशि :- परिश्रम विफल होगा, चिन्ता व यात्रा, व्यवधान तथा समस्या का निदान अवश्य ढूंढ लें।
कुंभ राशि :- आकस्मिक घटना से चोटादि का भय होगा, रुके कार्य अवश्य बना लें।
मीन राशि :- अधिकारियों से कष्ट, मित्र सहायक होंगे, समय स्थिति का ध्यान रखकर कार्य करें।
माघ पूर्णिमा पर करें पीले कपड़े और काली हल्दी का ये उपाय... खत्म होगी पैसों की टेंशन!
12 Feb, 2025 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म में माघ का महीना बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है. इसी महीने में कुंभ मेले का भी आयोजन होता है. इस महीने में पवित्र नदियों में स्नान और दान का विशेष महत्व है. धार्मिक मान्यता है कि माघ महीने में गंगा स्तोत्र का जाप और गंगा स्तुति करने से व्यक्ति को शुभ फल की प्राप्ति होती है. साथ ही उस व्यक्ति को भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और वह व्यक्ति जीवन-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है. धार्मिक मान्यता के अनुसार माघ पूर्णिमा के दिन गंगा जैसे पवित्र नदियों में स्नान का भी विधान है. इस दिन स्नान करने के बाद दान पुण्य भी करना चाहिए. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार माघ पूर्णिमा के दिन कुछ खास उपाय करने से सालों साल धन की कोई कमी नहीं रहती. साथ ही भगवान विष्णु के और माता लक्ष्मी की भी विशेष कृपा प्राप्त होती है. तो चलिए इस रिपोर्ट में विस्तार से समझते हैं .
दरअसल, अयोध्या के ज्योतिषी पंडित कल्कि राम बताते हैं कि हिंदू पंचांग के अनुसार माघ पूर्णिमा की तिथि की शुरुआत आज यानि 11 फरवरी को शाम 06. 55 बजे से हो रही है और तिथि का समापन 12 फरवरी को शाम 07. 22 पर होगा. ऐसे में उदया तिथि के अनुसार माघ पूर्णिमा का पर्व 12 फरवरी यानि कल मनाया जाएगा. इस दिन कुछ खास उपाय करने से माता लक्ष्मी की विशेष कृपा भी प्राप्त होती है .
माघ पूर्णिमा के उपाय
माघ पूर्णिमा के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करना चाहिए. माता लक्ष्मी की प्रतिमा को गंगाजल से स्नान करना चाहिए फिर माता लक्ष्मी को कमल फूल और नारियल अर्पित करना चाहिए. इसके बाद महालक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करना चाहिए. धार्मिक मान्यता के अनुसार ऐसा करने से आर्थिक तंगी से मुक्ति मिलती है.
माघ पूर्णिमा के दिन सुबह उठकर स्नान करें. इसके बाद पीले रंग के कपड़े में काली हल्दी की 7 गाठें बांध लें. फिर उसे पूजा घर में रख दें और पूजा-अर्चना करें. इसके साथ ही मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु के वैदिक मंत्रों का जाप करें. अगले दिन उस हल्दी की गांठ को तिजोरी में रख दें. ऐसा करने से घर में कभी पैसों की कमी नहीं होगी.
माघ पूर्णिमा के दिन गंगाजल में दूध डालकर पीपल के पेड़ पर अर्पित करना चाहिए. धार्मिक मान्यता है कि पीपल के पेड़ में त्रिदेव का वास होता है. ऐसे में शाम के समय पीपल के पेड़ के नीचे घी का दीपक जलाना चाहिए. ऐसा करने से त्रिदेव की विशेष कृपा प्राप्त होती है.
माघ पूर्णिमा के दिन श्री हरी और माता लक्ष्मी की विधि विधान पूर्वक पूजा आराधना करें. 11 पीले रंग की कौड़ियों को लाल रंग के कपड़े में लपेटकर माता लक्ष्मी के पास रख दें. उसके बाद फिर उसे उठाकर घर की तिजोरी में रखना चाहिए. ऐसा करने से धन संबंधित परेशानियां दूर होगी और धन की वर्षा होगी.
क्या भगवान ही होते हैं देव या दोनों में कुछ अंतर? आइए इस रहस्य से उठाते हैं पर्दा
12 Feb, 2025 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
देव और भगवान एक हैं या इनमें कुछ अंतर है. कुछ लोग देव और भगवान को एक ही मानते हैं, लेकिन यह सही नहीं है. देव और भगवान दोनों ही हिंदू धर्म में पूजनीय हैं और दोनों की अपनी-अपनी भूमिका और महत्व है. इनमें कुछ महत्वपूर्ण अंतर हैं. इस बारे में ज्यादा जानकारी दे रहे हैं पंडित अशोक कुमार शास्त्री.
देव: देव वे दिव्य प्राणी हैं जो प्रकृति की शक्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं. वे विभिन्न तत्वों, जैसे अग्नि, जल, वायु, आदि के अधिपति हैं. वे भगवान के सेवक भी हैं और उनकी आज्ञा का पालन करते हैं.
भगवान: भगवान सर्वोच्च शक्ति हैं, जो सभी चीजों के निर्माता और नियंत्रक हैं. वे सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी हैं. वे प्रेम और करुणा के सागर हैं.
देव सीमित शक्तियों वाले होते हैं जबकि भगवान अनंत शक्तियों वाले होते हैं.
देव भगवान के सेवक होते हैं, जबकि भगवान सभी के स्वामी होते हैं.
देव प्रकृति की शक्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जबकि भगवान सभी चीजों के निर्माता और नियंत्रक होते हैं
देव को प्रसन्न करने के लिए विशेष पूजा-अर्चना की आवश्यकता होती है जबकि भगवान को केवल प्रेम और भक्ति से प्राप्त किया जा सकता है.
इंद्र देव वर्षा के देवता हैं.
अग्नि देव अग्नि के देवता हैं.
वरुण देव जल के देवता हैं.
विष्णु भगवान सृष्टि के पालनहार हैं,
शिव भगवान संहार के देवता हैं.
ब्रह्मा भगवान सृष्टि के निर्माता हैं.
कुछ लोग देव और भगवान को एक ही मानते हैं लेकिन यह सही नहीं है. देव भगवान के सेवक हैं और उनकी आज्ञा का पालन करते हैं. भगवान सर्वोच्च शक्ति हैं और सभी चीजों के निर्माता और नियंत्रक हैं.
देव और भगवान दोनों ही हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण हैं. देव प्रकृति की शक्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जबकि भगवान सर्वोच्च शक्ति हैं. दोनों की अपनी-अपनी भूमिका और महत्व है.
रामायण कथा: ब्रह्मचारी हनुमान के बेटे मकरध्वज ने कैसे लिया जन्म, विचित्र है कहानी
12 Feb, 2025 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हनुमान जी ने अपना पूरा जीवन भगवान श्रीराम की सेवा में बिताया और हर कदम पर उनकी रक्षा के लिए तत्पर रहे. हनुमान जी बाल ब्रह्मचारी थे, लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि उनका एक पुत्र भी था. वाल्मीकि रामायण में ब्रह्मचारी हनुमान जी के पुत्र मकरध्वज के जन्म का वर्णन मिलता है. मकरध्वज के जन्म को लेकर सवाल उठता है कि जब हनुमान जी बाल ब्रह्मचारी हैं तो वे पिता कैसे बने? या दूसरे शब्दों में कहें तो हनुमान जी का पुत्र कैसे उत्पन्न हुआ.
मकरध्वज न केवल हनुमान जी की तरह दिखता था, बल्कि वह शक्ति, बल, पराक्रम में हनुमान जी के ही समान था. आइए जानते हैं हनुमान जी के पुत्र की उत्पत्ति कैसे हुई. पौराणिक कथाओं के मुताबिक, ब्रह्मचारी हनुमान जी के बेटे मकरध्वज का जन्म, हनुमान जी के पसीने की बूंद से हुआ था. यह बूंद समुद्र में गिरी थी और इसे एक मकर यानी मछली ने पी लिया था. उसी पसीने की बूंद से मछली गर्भवती हुई और उससे मकरध्वज का जन्म हुआ.
क्या है मकरध्वज के जन्म की कहानी
हनुमान जी ने लंका जलाने के बाद समुद्र में कूदकर अपनी पूंछ में लगी आग बुझाई थी. समुद्र में कूदने के समय हनुमान जी के शरीर का तापमान बहुत ज्यादा था. इसी दौरान उनके शरीर से पसीने की एक बूंद समुद्र में गिरी. पसीने की उस बूंद को एक विशाल मछली ने आहार समझकर मुख में ले लिया. पसीने की उन बूंदों से मछली के भीतर एक शरीर का निर्माण हो गया. उस विशाल मछली को अहिरावण के मछुआरों ने पकड़ लिया. उस मछली को अहिरावण के रसोईघर में लाकर काटा गया तो उसके पेट से एक वानर आकृति का मनुष्य निकला. अहिरावण ने उसका पालन पोषण करवाया और उसे पातालपुरी का द्वार रक्षक बना दिया. उसे मकरध्वज नाम अहिरावण ने ही दिया. पौराणिक कथाओं के अनुसार मछली से जन्म लेने के कारण ही हनुमान जी के पुत्र का नाम मकरध्वज पड़ा.
जब राम-लक्ष्मण को अहिरावण ने बनाया बंदी
जब रावण ने सीता का अपहरण कर उन्हें अशोक वाटिका में बंदी बनाकर रख लिया तो उन्हें छुड़ाने के लिए राम और रावण के बीच युद्ध हुआ. एक पौराणिक कथा के अनुसार युद्ध के दौरान रावण की आज्ञा से अहिरावण ने राम-लक्ष्मण का हरण कर लिया और पाताल मार्ग से नागलोक में स्थित अपनी पुरी में ले जाकर बंदी बना लिया. राम-लक्ष्मण के अचानक गायब हो जाने से वानर सेना में शोक छा गया. तब विभीषण ने इसका भेद जानकर हनुमान जी को पाताल लोक जाने के लिए प्रेरित किया. तब हनुमान जी प्रभु राम और लक्ष्मण को खोजते हुए पाताल लोक पहुंच गए. जब हनुमान जी पाताल लोक पहुंचे तो उन्होंने देखा कि वहां सात द्वार थे और हर द्वार पर एक पहरेदार था. हनुमान जी ने सभी पहरेदारों को हरा दिया, लेकिन अंतिम द्वार पर उन्हीं के समान बलशाली एक वानर पहरा दे रहा था.
मकरध्वज ने बताई हनुमान जी को पूरी कहानी
वहां द्वार पर अपने ही समान रूप आकार के बलवान वानर को देखकर उन्हें घोर आश्चर्य हुआ. हनुमान जी ने उससे पूछा कि तुम कौन हो? तब मकरध्वज ने कहा कि मैं परम पराक्रमी पवनपुत्र हनुमान का पुत्र मकरध्वज हूं. हनुमान ने उसे डांटते हुए कहा कि क्या बोलते हो? मैं बाल ब्रह्मचारी हूं. तुम मेरे पुत्र कैसे हो गए? यह सुनते ही मकरध्वज अपने पिता हनुमान के चरणों में गिर गया. फिर उसने हनुमान जी को अपने जन्म की कथा सुनाई. हनुमान जी को मकरध्वज की बातों में सच्चाई नजर आई. उन्होंने मान लिया कि वह उनका पुत्र है. हनुमान जी ने कहा कि मुझे भीतर जाने दो अहिरावण मेरे आराध्य श्रीराम और उनके भ्राता लक्ष्मण को बंदी बनाकर ले आया है. मैं उन्हें मुक्त करवाने आया हूं
पिता ने मल्लयुद्ध में बेटे को पराजित किया
मकरध्वज ने हनुमान जी से कहा कि आप मेरे पिता हैं, लेकिन जिन्होंने मेरा पालन पोषण किया है उन्होंने मुझे द्वार रक्षक नियुक्त किया है और किसी को भी भीतर जाने की अनुमति नहीं है. मकरध्वज ने कहा कि यदि आपको भीतर जाना है तो मुझसे युद्ध करना होगा. तब पिता-पुत्र में मल्लयुद्ध प्रारंभ हो गया. हनुमान जी ने मकरध्वज को उसी की पूंछ में लपेटकर बांध दिया और भीतर प्रवेश किया
श्रीराम ने बनाया पातालपुरी का अधीश्वर
अंदर जाकर हनुमान जी ने अहिरावण का वध करके राम-लक्ष्मण को मुक्त करवाया और अपने कंधे पर बैठाकर जाने लगे. द्वार पर भगवान श्रीराम ने हनुमान जी की तरह ही दिखाई देने वाले मकरध्वज के संबंध में पूछताछ की. तब हनुमान ने भगवान श्रीराम को सारा किस्सा सुनाया. उसके बाद भगवान श्रीराम ने मकरध्वज को मुक्त करने का आदेश दिया. भगवान श्रीराम ने मकरध्वज को आशीर्वाद दिया और उसे पातालपुरी का अधीश्वर नियुक्त किया.
गौतम ऋषि का श्राप और पत्थर की अहिल्या! जानें कैसे किया श्रीराम ने उद्धार
12 Feb, 2025 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
प्राचीन काल से ही दुनिया में महिलाओं को तरह-तरह की अग्नि परीक्षाओं से गुजरना पड़ा है. माता सीता हूं या सती सावित्री या फिर ऋषि पत्नी अहिल्या सदैव ही महिलाओं को जीवन में तरह-तरह की सामाजिक कुरीतियों का सामना करना पड़ा है आज हम आपको गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या के बारे में बताएंगे कि किस तरह उन्हें श्राप दिया गया था जिसके बाद प्रभु श्री राम ने उनका उद्धार किया.
अहिल्या की कथा : एकबार प्रातःकाल जब राम और लक्ष्मण ऋषि विश्वामित्र के साथ मिथिलापुरी के वन उपवन आदि देखने के लिये निकले तो उन्होंने एक उपवन में एक निर्जन स्थान देखा. राम बोले, “भगवन्! यह स्थान देखने में तो आश्रम जैसा दिखाई देता है किन्तु क्या कारण है कि यहां कोई ऋषि या मुनि दिखाई नहीं देते?” विश्वामित्र जी ने बताया, “यह स्थान कभी महात्मा गौतम का आश्रम था. वे अपनी पत्नी अहिल्या के साथ यहां रह कर तपस्या करते थे. एक दिन जब गौतम ऋषि आश्रम के बाहर गये हुये थे तो उनकी अनुपस्थिति में इन्द्र ने गौतम के वेश में आकर अहिल्या से प्रणय याचना की. यद्यपि अहिल्या ने इन्द्र को पहचान लिया था तो भी यह विचार करके कि मैं इतनी सुन्दर हूं कि देवराज इन्द्र स्वयं मुझ से प्रणय याचना कर रहे हैं, अपनी स्वीकृति दे दी. जब इन्द्र अपने लोक लौट रहे थे तभी अपने आश्रम को वापस आते हुये गौतम ऋषि की दृष्टि इन्द्र पर पड़ी जो उन्हीं का वेश धारण किये हुये था. वे सब कुछ समझ गये और उन्होंने इन्द्र को शाप दे दिया. इसके बाद उन्होंने अपनी पत्नी को शाप दिया कि रे दुराचारिणी! तू हजारों वर्ष तक केवल हवा पीकर कष्ट उठाती हुई यहां राख में पड़ी रहे. जब राम इस वन में प्रवेश करेंगे तभी उनकी कृपा से तेरा उद्धार होगा. तभी तू अपना पूर्व शरीर धारण करके मेरे पास आ सकेगी. यह कह कर गौतम ऋषि इस आश्रम को छोड़कर हिमालय पर जाकर तपस्या करने लगे. इसलिये हे राम! अब तुम आश्रम के अन्दर जाकर अहिल्या का उद्धार करो.”
अहिल्या के तारणहार प्रभू श्रीराम : विश्वामित्र जी की बात सुनकर वे दोनों भाई आश्रम के भीतर प्रविष्ट हुये. वहां तपस्या में निरत अहिल्या कहीं दिखाई नहीं दे रही थी, केवल उसका तेज सम्पूर्ण वातावरण में व्याप्त हो रहा था. जब अहिल्या की दृष्टि राम पर पड़ी तो उनके पवित्र दर्शन पाकर एक बार फिर सुन्दर नारी के रूप में दिखाई देने लगी. नारी रूप में अहिल्या को सम्मुख पाकर राम और लक्ष्मण ने श्रद्धापूर्वक उनके चरण स्पर्श किये. उससे उचित आदर सत्कार ग्रहण कर वे मुनराज के साथ पुनः मिथिला पुरी को लौट आये..
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
12 Feb, 2025 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- व्यापार में बाधा, स्वभाव में खिन्नता तथा दु:ख, अपवाद, कष्ट अवश्य होगा।
वृष राशि :- किसी आरोप से बचें, कार्यगति मंद रहेगी, क्लेश व अशांति का वातावरण रहेगा।
मिथुन राशि :- कार्य योजना पूर्ण होगी, धन का लाभ होगा, आशानुकूल सफलता का हर्ष अवश्य होगा।
कर्क राशि :- इष्ट मित्र सुखवर्धक होंगे, कार्यगति में सुधार होगा, कार्य व्यवस्था बनी रहेगी।
सिंह राशि :- मनोबल उत्साहवर्धक होगा, कार्यगति में सुधार होगा, चिन्तायें अवश्य कम होंगी।
कन्या राशि :- मान-प्रतिष्ठा में व्यथा बनेगी, स्त्री से तथा स्त्री वर्ग से सुख-समृद्धि की स्थिति बनेगी।
तुला राशि :- अग्नि-चोटादि का भय, व्यर्थ भ्रमण, धन का व्यय, कार्य होगा, बने कार्य रुकेंगे।
वृश्चिक राशि :- तनाव, क्लेश व अशांति, मान-प्रतिष्ठा, चिन्ता, उद्विघ्नता तथा भय बना ही रहेगा।
धनु राशि :- विवादग्रस्त होने से बचिये, तनाव, क्लेश से मानसिक अशांति का वातावरण बनेगा।
मकर राशि :- धन लाभ, आशानुकूल सफलता का हर्ष होगा, घर में सुख-शांति बनेगी।
कुंभ राशि :- भोग-ऐश्वर्य की प्राप्ति होगी, समय उत्साहवर्धक होगा, मानसिक शांति रहेगी।
मीन राशि :- व्यवसाय में बाधा कारक स्थिति बनेगी, मन में उद्विघ्नता रहेगी, धन हानि होगी।
कुंभ में विदाई से पहले अखाड़े के संतों के लिए कौन बनाता है कढ़ी - पकौड़ी, क्यों निभाते हैं ये परंपरा
11 Feb, 2025 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
कुंभ में अखाड़ों और संतों की विदाई हो गई है. इस बार तीसरे शाही स्नान के साथ ही प्रयागराज 2025 महाकुंभ अखाड़ों और नागा साधुओं का जाना शुरू हो गया है. नागा साधु कुंभ में मुख्य रूप से तीन अमृत स्नानों में भाग लेने के लिए आते हैं. बसंत पंचमी में ये आखिरी स्नान हुआ. इसके बाद नागा साधु अपने-अपने अखाड़ों, हिमालय या अन्य स्थानों पर तपस्या के लिए लौटना शुरू कर देते हैं. बेशक इसके बाद भी कुंभ चलता रहता है लेकिन अखाड़ों, संतों और नागा बाबाओं की वापसी के साथ ही औपचारिक तौर पर इसे अंत मान लिया जाता है. विदाई से पहले साधु-संत कढ़ी चावल चखते हैं. क्या आपको मालूम है कि उनके लिए ये खाना कौन बनाता है.
दरअसल कुंभ मेले में अखाड़ों के संतों की विदाई से पहले कढ़ी पकौड़ी बनाने की परंपरा बहुत पुरानी है. इसे विशेष रूप से नाई (बार्बर) और उनके परिवार के लोग बनाते हैं. नाई अखाड़े के संतों की सेवा में पूरे कुंभ मेले के दौरान रहते हैं. जब संतों की विदाई होती है, तो उनकी ओर से कढ़ी पकौड़ी बनाकर विदाई दी जाती है.
संतगण अपने नाई सेवकों को इस सेवा के लिए आशीर्वाद और उपहार देते हैं. यह परंपरा गुरु-शिष्य और सेवक-स्वामी के रिश्ते की आत्मीयता को भी दिखाती है. कुंभ मेले में हर अखाड़े में यह परंपरा निभाई जाती है. इसे श्रद्धा व भक्ति से पूरा किया जाता है.
कुंभ मेले में अखाड़ों के संतों की विदाई से पहले बनने वाली कढ़ी पकौड़ी बहुत बड़े स्तर पर तैयार की जाती है. इसकी मात्रा मुख्य तौर पर अखाड़े के आकार, उसमें रहने वाले संतों और उनके सेवकों की संख्या पर निर्भर करती है.
(file photo)
कितनी कढ़ी बनाई जाती है
छोटे अखाड़ों में – लगभग 50-100 लीटर कढ़ी बनाई जाती है.
बड़े अखाड़ों में – 200-500 लीटर तक कढ़ी तैयार होती है.
अति विशाल अखाड़ों में – यह मात्रा 1000 लीटर (1 टन) तक भी पहुंच सकती है.
– हर अखाड़े में मौजूद संतों और श्रद्धालुओं की संख्या को देखते हुए भोजन की मात्रा तय की जाती है.
– कुंभ मेले में लाखों श्रद्धालु आते हैं, इसलिए यह आयोजन कई बार हजारों लोगों के लिए भी किया जाता है.
– इस प्रकार, यह केवल एक व्यंजन नहीं बल्कि संतों की विदाई का शुभ संस्कार माना जाता है.
कढ़ी पकौड़ी की तैयारी कैसे होती है?
इसे बड़े कड़ाहों (भोजन बनाने के बड़े बर्तन) में लकड़ी या उपलों की आग पर विशुद्ध देसी अंदाज में ही बनाया जाता है.पकौड़ियों के लिए कई क्विंटल बेसन गूंथा जाता है. सैकड़ों किलो तेल में तलकर पकौड़ियां तैयार की जाती हैं. इसमें दही, मसाले, और अन्य पारंपरिक सामग्री डाली जाती है ताकि स्वाद प्राचीन विधि के अनुसार बना रहे. इसे संतों और श्रद्धालुओं को प्रसाद के रूप में परोसा जाता है.
भारत में कढ़ी पकौड़ी की शुरुआत कब हुई
कढ़ी पकौड़ी भारत के सबसे पुराने और लोकप्रिय व्यंजनों में एक है. इसका उल्लेख कई प्राचीन ग्रंथों और आयुर्वेदिक ग्रंथों में भी मिलता है. यह उत्तर भारत, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र और पंजाब जैसे कई राज्यों में अलग-अलग तरीकों से बनाई जाती है. माना जाता है कि वैदिक काल (1500-500 ईसा पूर्व) से कढ़ी भारत में बनती रही है.
प्राचीन ग्रंथ क्या कहते है
प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों, जैसे चरक संहिता और सुश्रुत संहिता, में बेसन और दही से बने भोजन का उल्लेख मिलता है. उस समय खट्टे दही और जड़ी-बूटियों का उपयोग पाचन को ठीक रखने के लिए किया जाता था, जो कढ़ी के मूल तत्व हैं.
हर दौर में कैसी होती थी कढ़ी
बौद्ध और मौर्य काल (500 ईसा पूर्व – 200 ईस्वी) में संन्यासी और भिक्षु सरल और पौष्टिक भोजन करते थे, जिसमें दही और बेसन का मिश्रण प्रचलित था.शायद इस काल में कढ़ी जैसा कोई व्यंजन मौजूद रहा होगा. इसके बाद मध्यकालीन भारत (700-1700 ईस्वी) में कढ़ी हिट व्यंजन रही. राजस्थानी और गुजराती भोजन परंपरा में कढ़ी का विशेष महत्व बढ़ा. राजस्थान में पानी की कमी के कारण दही और बेसन आधारित व्यंजन अधिक प्रचलित हुए. मुगल काल में भी कढ़ी पकौड़ी जैसे व्यंजनों को मसालों के साथ अधिक स्वादिष्ट बनाया गया.
अब कढ़ी किस तरह से खाई जाती है
समय के साथ कढ़ी अलग-अलग राज्यों में विभिन्न रूपों में विकसित हुई. राजस्थानी कढ़ी तीखी होती है और बिना प्याज-लहसुन की बनती है. पंजाबी कढ़ी पकौड़ी गाढ़ी, प्याज-लहसुन और मसालों के साथ बनती है. गुजराती कढ़ी हल्की मीठी होती है. महाराष्ट्रीयन कढ़ी हल्दी और नारियल का स्वाद लिए होती है.
ये व्यंजन भारत में कम से कम 2000-3000 साल पुराना माना जा सकता है. आज भी भारतीय खाने में ये सबसे लोकप्रिय व्यंजन है.
सिर्फ उज्जैन में ही क्यों मनाई जाती है शिव नवरात्रि? दूल्हे की तरह सजते हैं महाकाल
11 Feb, 2025 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्म में नवरात्रि सबसे पवित्र पर्वों में से एक है. ऐसे तो भारत वर्ष में चार बार नवरात्रि का पर्व बनाया जाता है. लेकिन धार्मिक नगरी उज्जैन मे यह उत्सव पांच बार बनाया जाता है. बता दें कि विश्व प्रशिद्ध महाकाल ज्योतिर्लिंग भारत के 12 ज्योतिर्लिंग में से एक है जो तीसरे नम्बर पर आता है. यहां की परम्परा बाकि जगहों से अलग है. महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के उज्जैन में शिप्रा नदी के तट पर स्थित है. यहां पर कुंभ मेले का आयोजन भी होता है. 12 ज्योतिर्लिंगों में से महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का एक विशेष महत्व है. महाकाल के बारे में कहा जाता है कि यह पृथ्वी का एक मात्र मान्य शिवलिंग है. यह दक्षिणमूखी होने के कारण इसकी मान्यता और बढ़ जाती है. यहां शिवरात्रि नहीं शिव नवरात्रि मनाई जाती है, जानिए ऐसा क्या है खास?
महाकाल मंदिर के पुजारी पं. महेश शर्मा ने कहा कि महाशिवरात्रि पर्व को लेकर मान्यता है कि इस दिन शिवजी का देवी पार्वती से विवाह हुआ था. शिव नवरात्रि इसी विवाह के पहले का उत्सव है. ये उत्सव सिर्फ उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में ही मनाया जाता है, जो महाशिवरात्रि से नौ दिन पहले शुरू होता है. इन नौ दिनों में भगवान महाकाल को चंदन का लेप और मेहंदी लगाई जाती है. इसके साथ ही नौ दिनों तक भगवान महाकाल का मोहक शृंगार के साथ ही पूजन, अभिषेक और अनुष्ठान भी किया जाता है.
दुहले के रूप में सजते हैं महाकाल
जिस तरह शादी विवाह में परिवार मे लोग उत्सव बनाते हैं. वैसे ही महाकल की नगरी मे भी शिव के विवाह पर उत्सव बनाया जाता है. यह एक परम्परा है. यहां अवंतिका क्षेत्र का महत्व भी है. इसलिए अवंतिका नगरी को धार्मिक नगरी भी कहा जाता है. नौ दिन अपने भक्तो को अलग अलग स्वरूप मे महाकाल दर्शन देते है और आखरी दिन बाबा का सेहरा सजा कर दुहला बनाया जाता है.
पांच बार क्यों मनाई जाती है अवंतिका मे नवरात्रि
अवंतिका नगरी माता हरसिद्धि का मंदिर भी है जो 51 शक्ति पीठो मे से एक है इसलिए यहा की मान्यता और बढ़ जाती है क्युकि अवंतिका मे शिव के साथ शक्ति विराजमान है. इसलिए भी यहा का महत्व बढ़ जाता है. इसलिए यहा माता की नवरात्रि का पर्व भी बड़े धूम धाम से मनाया जाता है. उसी के साथ साथ यहा शिवनवरात्री होती है. यहा महाकाल मंदिर मे शिवरात्रि तो बनती ही है लेकिन यहा नौ दिन की नवरात्री बनाने की परम्परा है जिसे हम शिवनवरात्रि कहते है. जो पुरे देश मे उज्जैन मे ही मानी जाती है.
शिव नवरात्रि में दर्शन का है विशेष महत्त्व
जो भी भक्त इस 9 दिन के अंदर बाबा महाकाल के दर्शन के लिए आते है. पूजन के लिए आते है साथ ही अपनी कई मनोकामना लेकर भी आते है. बहुत सारे लोग शिवरात्रि पर व्रत रखते हैं या शिव का विशेष पूजन आदि करते है. वो अगर शिवनवरात्रि में आकर भगवान महाकाल का दर्शन पूजन करले तो उस भक्त को शिवरात्रि के महत्व के बराबर बाबा का दर्शन का आशिवाद मिलता है.इसलिए यहा शिवनवरात्रि बनाई जाती है.
महाभारत युद्ध के 15 साल बाद जब एक रात के लिए पुनर्जीवित हुए थे योद्धा, जानें क्या थी वो अद्भुत घटना
11 Feb, 2025 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
महाभारत का युद्ध एक ऐसा संग्राम जिसने इतिहास के पन्नों को रक्तरंजित कर दिया जिसमें अपनों ने अपनों के लहू से धरती को सींचा. इस युद्ध के 15 साल बाद एक अद्भुत घटना घटी. महर्षि वेदव्यास ने अपनी दिव्य शक्ति से कुरुक्षेत्र की रणभूमि को एक रात के लिए पुनर्जीवित कर दिया. बिछड़े योद्धा जो काल के गाल में समा चुके थे एक बार फिर अपने प्रियजनों से मिलने के लिए लौट आए.
महाभारत की वो एक रात
यह एक अद्भुत रात थी जिसमें प्रेम और करुणा का सागर उमड़ आया. माताएं अपने पुत्रों से लिपटकर रोईं पत्नियां अपने पतियों के चरणों में गिर पड़ीं, भाई-भाई के गले मिलकर लिपट गए. हर आंख में आंसू थे हर हृदय में प्रेम की ज्वाला धधक रही थी.
दुर्योधन भी अपने किए पर हुआ शर्मिंदा
इस पुनर्मिलन के अवसर पर दुर्योधन भी अपनी अंतरात्मा से साक्षात्कार करने के लिए उपस्थित हुआ. उसने द्रौपदी से मिलकर अपने कुकर्मों के लिए क्षमा मांगी. दुर्योधन ने कहा, “हे देवी. मैंने अपने जीवन में तुम्हारे साथ बहुत बुरा व्यवहार किया. तुम्हारा अपमान करने के लिए मैं अभी तक लज्जित हूं लेकिन यह द्वेष, ईर्ष्या सब जीवन तक ही थी. मैं जीवन के उस पार जाकर देखता हूं तो मुझे सब व्यर्थ ही नजर आता है.”
दुर्योधन के यह शब्द हर मनुष्य के जीवन का अंतिम सत्य हैं. जब हम मृत्यु के द्वार पर पहुंचते हैं, तो हमें अपने जीवन की सारी व्यर्थता का ज्ञान होता है. धन, दौलत, पद, प्रतिष्ठा सब कुछ यहीं रह जाता है केवल हमारे कर्म ही हमारे साथ जाते हैं. इसलिए हमें अपने जीवन में अच्छे कर्म करने चाहिए. प्रेम और करुणा का मार्ग अपनाना चाहिए.
यह महाभारत की एक रात हमें सिखाती है कि जीवन कितना अनमोल है. हमें इसे प्रेम, सद्भाव और भाईचारे के साथ जीना चाहिए. हमें अपने अहंकार और द्वेष को त्यागकर दूसरों के साथ मिलकर रहना चाहिए. यही जीवन का सच्चा सार है.
महाभारत की ये घटना हमें जीवन के कई महत्वपूर्ण सबक सिखाती है. यह हमें बताती है कि हमें अपने जीवन में हमेशा सत्य और धर्म के मार्ग पर चलना चाहिए साथ ही कभी भी अहंकार और द्वेष में नहीं पड़ना चाहिए. हमें हमेशा दूसरों के साथ प्रेम और करुणा का व्यवहार करना चाहिए. यह कहानी हमें यह भी याद दिलाती है कि मृत्यु अटल है. इसलिए हमें अपने जीवन को सार्थक बनाने के लिए हर पल का उपयोग करना चाहिए.
चमत्कारी है चकचकवा पहाड़ का हनुमान मंदिर, साल भर में सभी मन्नतें होगी पूरी, जयंती पर विशाल मेला का आयोजन
11 Feb, 2025 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
कोरबा जिले के कटघोरा में स्थित चकचकवा पहाड़ हनुमान भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण आस्था का केंद्र है. कोरबा जिला मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर दूर, कटघोरा-अंबिकापुर नेशनल हाईवे पर स्थित यह पहाड़ न केवल सुंदर दृश्य प्रस्तुत करता है, बल्कि हनुमानजी के प्रति लोगों की गहरी श्रद्धा का भी प्रतीक है.
मौजूद है हनुमान जी के पैरों के निशान
स्थानीय लोगों का मानना है कि माता सीता की खोज में हनुमान जी यहीं आए थे और कुछ समय के लिए इस पहाड़ पर ठहरे थे. इस दौरान, उनके पैरों के निशान पहाड़ पर बन गए थे, जो आज भी मौजूद हैं और भक्तों के लिए श्रद्धा का विषय बने हुए हैं.
साल भर के भीतर पूरी होगी मनोकामना
पहाड़ पर हनुमान और भगवान राम का एक मंदिर है, जहां हजारों श्रद्धालु अपनी मनोकामनाएं लेकर आते हैं. मंदिर के मुख्य पुजारी संदीप उपाध्याय बताते हैं कि भगवान हनुमान के पदचिह्नों के पास एक विशेष पेड़ है, जिस पर लोग अपनी मन्नतें पूरी करने के लिए नारियल बांधते हैं. मान्यता है कि यहां विश्वास के साथ मांगी गई मन्नतें भगवान हनुमान एक वर्ष के भीतर ही पूरी कर देते हैं. 70 के दशक में वीरान पहाड़ी पर हनुमान मंदिर की स्थापना की गई थी. पदचिह्न एक गड्ढेनुमा आकृति में हैं, जिसमें बारह महीने पानी भरा रहता है.
भक्तों की भीड़ के कारण बन गया पर्यटन स्थल
श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या को देखते हुए, तत्कालीन कलेक्टर अशोक अग्रवाल ने चकचकवा पहाड़ को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित कराया था. यहां आने वाले श्रद्धालु भगवान राम और हनुमान के दर्शन मात्र से अपने आप को सौभाग्यशाली मानते हैं.
हनुमान जयंती पर विशेष अनुष्ठान का आयोजन
हनुमान जयंती के अवसर पर यहां विशेष अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं और विशाल मेला लगता है. कोरबा ही नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश से हनुमान भक्त अपनी मनोकामनाएं लेकर यहां पहुंचते हैं. पौराणिक मान्यताओं के कारण, इस पहाड़ी का ऐतिहासिक महत्व है और यह आस्था और पर्यटन का एक अनूठा संगम है. चकचकवा पहाड़, कोरबा जिले की एक ऐसी धरोहर है जो हर साल हजारों भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करती है.
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
11 Feb, 2025 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- तनाव पूर्ण वातावरण से बचिये, स्त्री शरीर कष्ट, मानसिक बेचैनी अवश्य बनेगी।
वृष राशि :- भोग-ऐश्वर्य प्राप्ति के बाद तनाव व क्लेश होगा, तनाव से बचकर चलें।
मिथुन राशि :- भोग-ऐश्वर्य, तनाव व क्लेश की स्थिति का वातावरण बनेगा, धैर्य पूर्वक कार्य करें।
कर्क राशि :- अधिकारियों का समर्थन फलप्रद होगा, भाग्य साथ देगा, बिगड़े कार्य अवश्य ही बनेंगे।
सिंह राशि :- परिश्रम सफल होगा, व्यवसायिक गति मंद होगी, आर्थिक योजना पूर्ण अवश्य ही होगी।
कन्या राशि :- कार्य व्यवसाय गति उत्तम, व्यर्थ परिश्रम तथा कार्यगति पर ध्यान अवश्य दें।
तुला राशि :- किसी दुर्घटना से बचें, चोट-चपेटादि कम हो, रुके कार्य-व्यवसाय अवश्य ही होंगे।
वृश्चिक राशि :- कार्यगति अनुकूल रहेगी, लाभांवित कार्य योजना बनेगी, बाधा आदि से बच कर चलें।
धनु राशि :- प्रतिष्ठा के साधन बनेंगे किन्तु लाभ की स्थिति कम, कार्य अवरोध होगा।
मकर राशि :- अधिकारी वर्ग से तनाव, क्लेश होगा, मानसिक अशांति, कार्य बनेंगे ध्यान दें।
कुंभ राशि :- मनोबल बनाये रखें, नया कार्य विचार होगा, समय स्थिति को ध्यान में रखकर कार्य अवश्य करें।
मीन राशि :- दैनिक कार्यगति उत्तम होगी, कुटुम्ब में सुख समय उत्तम बनेगा, समय का ध्यान रखें।