धर्म एवं ज्योतिष
जलाभिषेक करते समय इन मंत्रों का करें जाप, भोलेनाथ की जल्द मिलेगी कृपा, पूरे होंगे सारे काम
22 Feb, 2025 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
भगवान शिव जिन्हें महादेव, भोलेनाथ और नीलकंठ जैसे नामों से भी जाना जाता है, हिन्दू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक हैं. वे त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) में संहारक के रूप में पूजे जाते हैं. शिव भक्तों के लिए जलाभिषेक एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है जिसमें शिवलिंग पर जल अर्पित किया जाता है. माना जाता है कि जलाभिषेक से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं.
पंडित अनंत झा बताते हैं जलाभिषेक के समय कुछ विशेष मंत्रों का जाप अत्यंत फलदायी माना जाता है. इनमें से दो प्रभावशाली मंत्र इस प्रकार हैं.
ॐ नमः शिवाय: यह शिव का पंचाक्षरी मंत्र है और सबसे प्रसिद्ध मंत्रों में से एक है. इसका अर्थ है “मैं शिव को नमन करता हूं”. इस मंत्र का जाप करने से मन को शांति मिलती है और आत्मा शुद्ध होती है.
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥: यह महामृत्युंजय मंत्र है जो मृत्यु पर विजय प्राप्त करने वाला माना जाता है. इसका जाप करने से रोगों से मुक्ति मिलती है और आयु में वृद्धि होती है.
इन मंत्रों के जाप के साथ-साथ जलाभिषेक करते समय कुछ बातों का ध्यान रखना भी आवश्यक है क्योंकि कुछ गलतियों से भगवान शिव नाराज हो सकते हैं.
गलत दिशा में मुख: जलाभिषेक करते समय आपका मुख पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए. दक्षिण दिशा की ओर मुख करके जलाभिषेक नहीं करना चाहिए.
अशुद्ध जल का प्रयोग: जलाभिषेक के लिए हमेशा स्वच्छ और पवित्र जल का ही प्रयोग करना चाहिए. गंदा या अशुद्ध जल अर्पित करने से भगवान शिव अप्रसन्न हो सकते हैं.
गलत तरीके से जल अर्पित करना: शिवलिंग पर जल धीरे-धीरे और धारा के रूप में अर्पित करना चाहिए. जल को छिड़कना या फेंकना उचित नहीं माना जाता है.
मन में बुरे विचार: जलाभिषेक करते समय मन में किसी भी प्रकार के बुरे विचार नहीं लाने चाहिए. पूर्ण श्रद्धा और भक्ति भाव से ही जलाभिषेक करना चाहिए.
महाशिवरात्रि पर भद्रा का काला साया, कब और कैसे करें पूजा? यहां मिलेगी व्रत से जुड़ी हर जानकारी
22 Feb, 2025 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हर साल महाशिवरात्रि का पर्व महादेव और माता पार्वती के विवाह की वर्षगांठ के रूप में मनाया जाता है. इसे शिव-पार्वती के मिलन का दिन भी कहा जाता है. मान्यता है कि इस तिथि पर शंकर जी और देवी पार्वती की पूजा करने से वह प्रसन्न होते हैं और सभी कष्टों का निवारण करते हैं. वहीं महिलाएं वैवाहिक जीवन सुखमय के लिए महाशिवरात्रि पर निर्जला उपवास रखती हैं. पंचांग के अनुसार इस साल महाशिवरात्रि 26 फरवरी 2025 को मनाई जाएगी. हालांकि इस बार महाशिवरात्रि पर भद्रा का साया बना हुआ है.
महाशिवरात्रि पर भद्रा काल का समय: पंचांग के अनुसार 26 फरवरी 2025 को महाशिवरात्रि मनाई जाएगी. इस दिन प्रातः 11 बजकर 08 मिनट से रात्रि 10 बजकर 5 मिनट तक भद्रा का साया बना रहेगा. शास्त्रों के अनुसार शिव कालों के काल महाकाल हैं इसलिए भद्रा का उनकी पूजा पर कोई प्रभाव नहीं होगा और पूरे दिन भोलेनाथ की पूजा की जा सकती है.
महाशिवरात्रि शुभ योग: 26 फरवरी 2025 को महाशिवरात्रि के दिन श्रवण नक्षत्र बन रहा है जो शाम 5 बजकर 08 मिनट तक रहेगा. इस दौरान परिध योग का संयोग भी रहेगा.
चार प्रहर की पूजा का समय: महाशिवरात्रि में चार प्रहर की पूजा का विशेष महत्व होता है. इन चारों प्रहर में भगवान शिव की अलग-अलग रूप में पूजा की जाती है.
प्रथम प्रहर: शाम 06:29 से रात 09 बजकर 34 मिनट तक.
द्वितीय प्रहर: रात 09:34 से 27 फरवरी सुबह 12 बजकर 39 मिनट तक
तृतीय प्रहर: 27 फरवरी को रात 12:39 से सुबह 03 बजकर 45 मिनट तक
चतुर्थ प्रहर: 27 फरवरी को सुबह 03:45 से 06 बजकर 50 मिनट तक
शिव पूजा का निशिता काल मुहूर्त: 26 फरवरी 2025 मध्यरात्रि 12:09 बजे से 12:59 बजे तक. निशिता काल पूजा की कुल अवधि 50 मिनट.
महाशिवरात्रि व्रत पारण समय: ज्योतिषियों के अनुसार महाशिवरात्रि व्रत पारण का समय 27 फरवरी को प्रातः 06 बजकर 48 मिनट से 08:54 मिनट तक है.
चार प्रहर की पूजा में मंत्र जाप
प्रथम प्रहर का मंत्र: ‘ह्रीं ईशानाय नमः’
दूसरे प्रहर मंत्र: ‘ह्रीं अघोराय नम:’
तीसरे प्रहर मंत्र: ‘ह्रीं वामदेवाय नमः’
चौथे प्रहर मंत्र: ‘ह्रीं सद्योजाताय नमः
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
22 Feb, 2025 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- स्त्री वर्ग से हर्ष-उल्लास एवं कार्य कुशलता से निश्चय ही संतोष होगा।
वृष राशि :- योजनायें फलीभूत होंगी तथा स्वभाव में बेचैनी, कष्टप्रद स्थिति बनेगी।
मिथुन राशि :- कार्यक्षमता अनुकूल, कार्यवृत्ति में सुधार होगा तथा संघर्ष बना रहेगा।
कर्क राशि :- आर्थिक हानि, योजना बनकर बिगड़े, कार्य-व्यवसाय रुक कर बनेंगे।
सिंह राशि :- झगड़े के कारण व्यय होगा तथा आप आरोपित होने से बचिये।
कन्या राशि :- कार्य कुशलता से संतोष, इष्ट मित्र सुखवर्धक होंगे, ध्यान से कार्य करें।
तुला राशि :- योजनायें फलीभूत होंगी, इष्ट मित्र सुखवर्धक होंगे, समय का ध्यान अवश्य रखें।
वृश्चिक राशि :- मानसिक विभ्रम से हानि, समय स्थिति को ध्यान में रखते हुये कार्य अवश्य बना लें।
धनु राशि :- मानसिक विभ्रम, उपद्रव, असमंजस की स्थिति बनेगी तथा कार्य रुकेंगे।
मकर राशि :- दैनिक कार्यगति में सुधार, आर्थिक योजना अवश्य ही सुधरेगी ध्यान दें।
कुंभ राशि :- चिन्तायें कम होंगी, कुटुम्ब के कार्य में समय बीतेगा, कार्य अवरोध होगा।
मीन राशि :- स्त्री वर्ग से सुख-भोग, ऐश्वर्य की प्राप्ति, दैनिक कार्यगति अनुकूल होगी।
पापों का होता है नाश! हिमाचल की इस मंदिर की महिमा है बहुत खास, दर्शन करते ही पूरी होती है मनोकामना
21 Feb, 2025 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
जिला कांगड़ा में ऐसे कई स्थल, जहां लोगों की धार्मिक आस्था उसी में जुड़ी है. उसी में से एक है कांगड़ा में मां जयंती का मंदिर एक पहाड़ी पर स्थित है. पंचभीष्म मेलों में दूर-दूर से लोग माता के दर्शन करने आते हैं. इस दौरान माता के जयकारों से सारा क्षेत्र गूंज उठता है. इन मेलों के दौरान पांच दीये मां के दरबार में पांच दिन तक अखंड जलाए जाते हैं. कांगड़ा के साथ लगती पहाड़ी पर स्थित जयंती माता का मंदिर काफी प्राचीन है.
यहां लगते हैं पंचभीष्म मेले
जयंती माता मंदिर में हर वर्ष पंचभीष्म मेले लगते हैं. ये मेले हर साल कार्तिक मास की एकादशी से शुरू होते हैं. इस दौरान तुलसी को गमले में लगाकर उसे घर के भीतर रखा जाता है और चारों ओर केले के पत्र लगाकर दीपक जलाया जाता है. कांगड़ा किला के बिलकुल सामने 500 फुट की ऊंची पहाड़ी पर स्थित जयंती मां दुर्गा की छठी भुजा का एक रूप है. द्वापर युग में यह मंदिर यहां पर निर्मित हुआ था. जयंती मां, जहां जीत की प्रतीक हैं, तो वहीं पाप नाशिनी भी हैं.
पांडवों से जुड़ा है इतिहास
शक्तिपीठ माता बज्रेश्वरी देवी मंदिर से करीब छः किलोमीटर दूर पहाड़ी पर स्थित जयंती माता का मंदिर भक्तों के लिए महत्त्वपूर्ण आस्था स्थल है. कांगड़ा के आसपास के क्षेत्रों के साथ अन्य प्रदेशों के लोगों में भी जयंती माता के प्रति काफी आस्था है. बताया जाता है कि मंदिर के इतिहास से कांगड़ा का भी इतिहास जुड़ा है.पौराणिक कथाओं के अनुसार यहां पर पांडवों का भी वास कुछ समय तक रहा है. पंचभीष्म मेलों के दौरान इस क्षेत्र का नजारा ही कुछ और होता है. मंदिर में पांच दिनों तक चलने वाले इन मेलों में कांगड़ा ही नहीं, बल्कि दूरदराज के क्षेत्रों से भी लाखों की संख्या में लोग यहां पर मां के दर्शनों के लिए उमड़ते हैं.
बनाया जा रहा है मंदिर के लिए बेहतर रास्ता
बीते वक्त के साथ-साथ यहां पर बेहतर रास्ते का निर्माण भी करवाया गया है और अन्य सुविधाएं भी लोगों को उपलब्ध करवाई जाती हैं. कार्तिक मास की एकादशी में पंचभीष्म का पर्व विशेषकर महिलाओं के लिए खास है. महिलाएं पांच दिन तक व्रत रखती हैं और मात्र फलाहार पर ही निर्भर रहती हैं. तुलसी को गमले में लगाकर उसे घर के भीतर रखा जाता है और चारों ओर केले के पत्र लगाकर दीपक जलाया जाता है. उसके बाद पांचवें दिन पूजे हुए दीपक को बुझा दिया जाता है. इसी दीपक को पंचभीष्म के दिन सात साल तक जलाया जाता है.
क्या कहता है पौराणिक इतिहास
जयंती माता को पंच भीष्म के साथ-साथ मनोकामना पूर्ण करने वाली माता के नाम भी जाना जाता है. एक अन्य कथा के अनुसार जब इंद्र को राक्षस ने युद्ध में घेर लिया था तो तब मां जयंती ने मां चामुंडा का रूप धारण करके इंद्र की सहायता भी की थी. यह विख्यात है कि कोई पापी भी यहां पर जाता है, तो मां के दरबार की यात्रा करके उसके पाप नष्ट होते हैं.
महाशिवरात्रि पर 11 घंटे भद्रा का साया... कब और कैसी होगी भगवान शिव की पूजा?
21 Feb, 2025 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म में फाल्गुन माह का विशेष महत्व है. इस महीने भगवान शंकर की पूजा आराधना करने का विधान है. धार्मिक मान्यता है कि फाल्गुन माह में भगवान शिव की उपासना करने से भाग्य में वृद्धि और जीवन में सुख समृद्धि आती है. वैदिक पंचांग के अनुसार हर साल फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है. पौराणिक कथा के अनुसार, फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर भगवान शिव और मां पार्वती का विवाह हुआ था. ज्योतिष गणना के अनुसार इस साल महाशिवरात्रि पर भद्रा का साया भी रहेगा. भद्रा के दौरान पूजा, मुंडन संस्कार और गृह प्रवेश समेत शुभ अथवा मांगलिक कार्यों से परहेज करना चाहिए. ऐसी स्थिति में चलिए इस रिपोर्ट में जानते हैं कि महाशिवरात्रि पर भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा का क्या शुभ मुहूर्त है और कब भद्रा लग रहा है.
दरअसल, अयोध्या के ज्योतिषी पंडित कल्कि राम बताते हैं कि वैदिक पंचांग के अनुसार फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि की शुरुआत 26 फरवरी को सुबह 11. 08 बजे से होगी और इस तिथि का समापन अगले दिन यानी 27 फरवरी को सुबह 08. 54 पर होगा. ऐसे में 26 फरवरी को देशभर में महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाएगा. ज्योतिषीय गणना के अनुसार, इस बार महाशिवरात्रि पर कई शुभ संयोग बन रहे हैं. वहीं, इस बार महाशिवरात्रि पर 11 घंटे का भद्रा का साया रहेगा. गौरतलब है कि भद्रा के दौरान कोई भी शुभ काम नहीं किया जाता.
पूजा का शुभ मुहूर्त
महाशिवरात्रि पर भद्रा का साया 26 फरवरी को सुबह 11. 08 बजे से लेकर रात 10. 05 बजे तक रहेगा. महाशिवरात्रि के दिन चतुर्दशी तिथि आरंभ होने के साथ ही भद्रा का साया भी शुरू हो जाएगा. यानी महाशिवरात्रि पर करीब 11 घंटे तक भद्रा का साया रहेगा. शास्त्रों के अनुसार भद्रा के दौरान मांगलिक कार्य नहीं किए जाते. महाशिवरात्रि के दिन भद्रा का वास पाताल लोक में होगा. ऐसे में महाशिवरात्रि के दिन किसी भी समय महादेव की पूजा की जा सकती है लेकिन पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 6:19 से लेकर रात्रि 9:26 तक रहेगा.
क्यों मनाई जाती है महाशिवरात्रि? हरिद्वार के ज्योतिषी ने बताया आंखें खोल देने वाला सच
21 Feb, 2025 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्म में साल भर धार्मिक पर्व होते रहते हैं. उन्हें विधि विधान से पूर्ण करने पर चमत्कारी लाभ होते हैं. हिंदू धर्म में महाशिवरात्रि पर्व का खास महत्त्व है. महाशिवरात्रि पर भोलेनाथ की पूजा अर्चना, स्तोत्र आदि के पाठ का विधान है. इस दिन भोले का अभिषेक करने से चमत्कारी लाभ होते हैं. महाशिवरात्रि का पर्व फाल्गुन मास कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को होता है. हरिद्वार के पंडित श्रीधर शास्त्री बताते हैं कि महाशिवरात्रि का पर्व भोलेनाथ और माता पार्वती को समर्पित है. महाशिवरात्रि का सामान्य शब्दों में अर्थ महा शिव रात्रि है. भगवान शिव का पूजा-पाठ प्रदोष काल यानी रात्रि में किया जाता है. इस दिन भोलेनाथ के भक्त व्रत, पूजा और स्तोत्र आदि का पाठ करते हैं.
हजारों साल तपस्या
ज्योतिषी पंडित श्रीधर शास्त्री बताते हैं कि महाशिवरात्रि के दिन ही भोलेनाथ और माता पार्वती का विवाह हुआ था. माता पार्वती ने भोलेनाथ को पति रूप में प्राप्त करने के लिए हजारों साल तक कठिन तपस्या की थी. फाल्गुन मास कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन भोलेनाथ और पार्वती का विवाह हुआ था. इस पर्व के दिन भोलेनाथ और माता पार्वती के निमित्त व्रत पूजा पाठ करने का विशेष महत्त्व है
शिवलिंग से कनेक्शन
महाशिवरात्रि के दिन ही भगवान भोले ने खुद को पहली बार शिवलिंग के रूप में प्रकट किया था. भक्तों की मनोकामना पूर्ण हो सके इसके लिए भोलेनाथ ने खुद को शिवलिंग के रूप में बदला था. महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर दूध, जल, शहद, तिल, जौ, बेलपत्र आदि से भोलेनाथ का अभिषेक करने पर सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं.
इसलिए करते हैं जलाभिषेक
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, महाशिवरात्रि के दिन ही भोलेनाथ ने संपूर्ण सृष्टि का कल्याण करने के लिए समुद्र मंथन से निकाला कालकुट विष अपने कंठ में धारण किया था. कहा जाता है कि जब भोलेनाथ ने इस विष को पिया था तो उनका तापमान अधिक बढ़ गया था, जिसके बाद सभी देवताओं ने उन पर जल डाला था. इससे भोलेनाथ अत्यधिक प्रसन्न हुए थे. महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर जल, दूध आदि अर्पित करने से भोलेनाथ प्रसन्न होकर सभी मनोकामनाएं पूर्ण कर देते हैं.
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
21 Feb, 2025 02:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- इष्ट मित्रों से कार्य में बेचैनी व रुकावट होगी, असमर्थता का वातावरण रहेगा।
वृष राशि :- आशानुकूल सफलता से कार्य बनेंगे, रुके कार्य बनने के योग हैं ध्यान अवश्य दें।
मिथुन राशि :- परिश्रम से सफलता, कार्य बनेंगे, रुके कार्य एक-एक करके बनेंगे।
कर्क राशि :- कुटुम्ब की समस्यायें कुछ सुलझें, व्यवसायिक क्षमता अवश्य बढ़ेगी।
सिंह राशि :- विशेष कार्य स्थिगित रखें, किसी विवाद या झगड़े से निश्चय हानि होगी।
कन्या राशि :- सोचे कार्य परिश्रम से पूर्ण होंगे, समय स्थिति का ध्यान रखकर कार्य अवश्य करें।
तुला राशि :- आशानुकूल सफलता से हर्ष, दैनिक कार्य में सुधार होगा, धैर्यपूर्वक कार्य करें।
वृश्चिक राशि :- तनाव, क्लेश व अशांति, मानसिक विभ्रम, उत्तेजना से बचने का प्रयास करें।
धनु राशि :- धन लाभ, बिगड़े हुये कार्य बनेंगे, इष्ट मित्र सुखवर्धक होंगे, समय का ध्यान रखें।
मकर राशि :- विशेष कार्य बिगड़ेंगे, विवाद झगड़े का कारण बनेगा, विवादास्पद स्थिति से बचें।
कुंभ राशि :- कुटुम्ब के कार्य में समय बीतेगा, स्त्री वर्ग से तनाव अवश्य ही होगा।
मीन राशि :- तनाव, क्लेश व अशांति, व्यर्थ विभ्रम, धन का व्यय तथा अवरोध होगा।
बिजली मीटर आग्नेय कोण में लगवाएं
20 Feb, 2025 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
घरों के बाहर गलत दिशा में बिजली मीटर जीवन में कई समस्याएं भी उत्पन्न हो सकती हैं। वास्तु शास्त्र के अनुसार, घर में किसी भी विद्युत उपकरण की दिशा बहुत महत्वपूर्ण होती है। यदि मीटर गलत दिशा में लगा हो तो इससे परिवार को आर्थिक परेशानियों, स्वास्थ्य समस्याओं और घरेलू कलह का सामना करना पड़ सकता है।
वास्तु विशेषज्ञों का मानना है कि घर के विद्युत उपकरणों को अग्नि तत्व की दिशाओं में रखना चाहिए। अग्नि तत्व की प्रमुख दिशाएं उत्तर-पूर्व (ईशान कोण) और दक्षिण-पूर्व (आग्नेय कोण) मानी जाती हैं। उत्तर-पूर्व दिशा घर की समृद्धि और आर्थिक स्थिति को प्रभावित करती है, जबकि दक्षिण-पूर्व दिशा अग्नि तत्व से जुड़ी होती है और स्वास्थ्य तथा ऊर्जा संतुलन बनाए रखने में सहायक होती है। यदि विद्युत मीटर इन दिशाओं में लगा हो तो यह घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है, जबकि गलत दिशा में लगे होने पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
यदि घर का विद्युत मीटर गलत दिशा में स्थापित किया गया है, तो परिवार को कई समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। आर्थिक तंगी, कर्ज बढ़ना, घरेलू अशांति और स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। इसके अलावा, कई बार घर के सदस्यों को मानसिक तनाव और अनिद्रा जैसी समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है। वास्तु दोष के कारण घर में बार-बार बिजली की समस्याएं, फ्यूज उड़ना या मीटर में खराबी आना आम हो सकता है।
ऐसी स्थिति में यदि मीटर की दिशा बदलना संभव न हो, तो वास्तु उपायों द्वारा इसके नकारात्मक प्रभाव को कम किया जा सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार, दक्षिण-पूर्व कोने में सरसों के तेल का दीपक जलाना लाभकारी होता है। इसके अलावा, मीटर के पास लाल कपड़ा बांधना, वहां तुलसी का पौधा लगाना या स्वस्तिक का चिन्ह अंकित करना भी प्रभावी उपाय हो सकते हैं। यदि मीटर को स्थानांतरित करना संभव हो, तो इसे आग्नेय कोण में लगवाना सबसे अच्छा होता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार, घर में बिजली के उपकरणों को सही दिशा में रखना बहुत आवश्यक है। इससे न केवल आर्थिक और पारिवारिक स्थिति बेहतर बनी रहती है, बल्कि सकारात्मक ऊर्जा का संचार भी होता है।
सपने में घोड़ा दिखना सफलता का देता है संकेत
20 Feb, 2025 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
स्वप्न शास्त्र के अनुसार, सपने केवल रात की कल्पनाएं नहीं होते, बल्कि ये व्यक्ति के भविष्य से जुड़े संकेत भी देते हैं। कई बार हमें सपनों में विभिन्न जीव-जंतु दिखाई देते हैं, जिनका अर्थ समझना आसान नहीं होता। हालांकि, ज्योतिष और स्वप्न शास्त्र के माध्यम से इन संकेतों की व्याख्या की जा सकती है। ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार के अनुसार, कुछ खास जीवों के सपने भविष्य में होने वाली घटनाओं का संकेत देते हैं।
यदि कोई व्यक्ति सपने में घोड़ा देखता है, तो यह सफलता और उन्नति का प्रतीक माना जाता है। विशेष रूप से दौड़ता हुआ घोड़ा देखने का अर्थ होता है कि व्यक्ति अपने करियर में तेजी से प्रगति करेगा। वहीं, सफेद घोड़ा देखने से करियर में नए अवसर प्राप्त होने की संभावना बढ़ जाती है। यह सपना सकारात्मक बदलाव और उज्जवल भविष्य की ओर इशारा करता है।
ऊंट को भी स्वप्न शास्त्र में शुभ माना गया है। यदि किसी व्यक्ति को सपने में ऊंट दिखाई देता है, तो यह संकेत करता है कि उसे जल्द ही आर्थिक सफलता मिलेगी। ऊंट धैर्य और परिश्रम का प्रतीक है, इसलिए इस सपने का अर्थ है कि कड़ी मेहनत के बाद व्यक्ति को धन और सफलता का लाभ मिलेगा। व्यापार और निवेश से जुड़े लोगों के लिए यह सपना अत्यधिक शुभ माना जाता है।
इसके विपरीत, सपने में चीटियां देखना शुभ संकेत नहीं माना जाता। यदि कोई व्यक्ति सपने में बहुत सारी चीटियां देखता है, तो यह उसके जीवन में कठिनाइयों और परेशानियों के आने की चेतावनी हो सकती है। यह सपना बताता है कि व्यक्ति को अपने कार्यों में अधिक सतर्कता बरतनी चाहिए और आने वाली समस्याओं के लिए मानसिक रूप से तैयार रहना चाहिए।
सपने में सफेद उल्लू देखना अत्यंत शुभ संकेत माना जाता है। सफेद उल्लू का संबंध बुद्धिमत्ता और समृद्धि से होता है। यदि किसी व्यक्ति को यह सपना आता है, तो इसका अर्थ है कि उसे किसी प्रभावशाली व्यक्ति का मार्गदर्शन मिलेगा, जिससे उसके जीवन में आर्थिक प्रगति होगी। यह सपना सफलता के नए अवसरों के आगमन का संकेत भी देता है। स्वप्न शास्त्र के अनुसार, सपनों में दिखने वाले जीवों के संकेतों को समझकर व्यक्ति अपने भविष्य की संभावनाओं का पूर्वानुमान लगा सकता है और उचित दिशा में कार्य करके अपने जीवन को बेहतर बना सकता है।
इस तरह के भक्तों के पास रहते हैं भगवान
20 Feb, 2025 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
किसी भी वस्तु की चेतनता की पहचान इच्छा, क्रिया अथवा अनुभूति के होने से होती है। अगर किसी वस्तु में ये तीनों नहीं होते हैं, तो उसे जड़ वस्तु कहते हैं और इन तीनों के होने से उसे चेतन वस्तु कहते हैं। मनुष्य में इन तीनों गुणओं के होने से उसे चेतन कहते हैं। मनुष्य के मृत शरीर में इनके न होने से उसे अचेतन अथवा जड़ कहते हैं।
प्रश्न यह उठता है कि जो मनुष्य अभी-अभी इच्छा, क्रिया अथवा अनुभूति कर रहा था और चेतन कहला रहा था, वही मनुष्य इनके न रहने से मृत क्यों घोषित कर दिया गया जबकि वह सशरीर हमारे सामने पड़ा हुआ है? आमतौर पर एक डॉक्टर बोलेगा कि इस शरीर में प्राण नहीं हैं। शास्त्रीय भाषा में, जब तक मानव शरीर में आत्मा रहती है, उसमें चेतनता रहती है। उसमें इच्छा, क्रिया व अनुभूति रहती है। आत्मा के चले जाने से वही मानव शरीर इच्छा, क्रिया व अनुभूति रहित हो जाता है, जिसे आमतौर पर मृत कहा जाता है।
शास्त्रों के अनुसार स्वरूप से आत्मा सच्चिदानन्दमय होती है। सच्चिदानन्द अर्थात सत्+चित्+आनंद। संस्कृत में सत् का अर्थ होता है नित्य जीवन अर्थात् वह जीवन जिसमें मृत्यु नहीं है, चित् का अर्थ होता है ज्ञान जिसमें कुछ भी अज्ञान नहीं है और आनंद का अर्थ होता है नित्य सुख जिसमें दुःख का आभास मात्र नहीं है। यही कारण है कि कोई मनुष्य मरना नहीं चाहता, कोई मूर्ख नहीं कहलवाना चाहता और कोई भी किसी भी प्रकार का दुःख नहीं चाहता।
अब नित्य जीवन, नित्य आनंद, नित्य ज्ञान कहां से मिलेगा? जैसे सोना पाने के लिए सुनार के पास जाना पड़ता है, लोहा पाने के लिए लोहार के पास, इसी प्रकार नित्य जीवन-ज्ञान-आनंद पाने के लिए भगवान के पास जाना पड़ेगा क्योंकि एकमात्र वही हैं जिनके पास ये तीनों वस्तुएं असीम मात्रा में हैं। प्रश्न हो सकता है कि बताओ भगवान मिलेंगे कहां? ये भी एक बहुत महत्वपूर्ण प्रश्न है। कोई कहता है भगवान कण-कण में हैं, कोई कहता है कि भगवान मंदिर में हैं, कोई कहता है कि भगवान तो हृदय में हैं, कोई कहता है कि भगवान तो पर्वत की गुफा में, नदी में, प्रकृति में वगैरह।
वैसे जिस व्यक्ति के बारे में पता करना हो कि वह कहां रहता है, अगर वह स्वयं ही अपना पता बताए तो उससे बेहतर उत्तर कोई नहीं हो सकता। उक्त प्रश्न के उत्तर में भगवान कहते हैं कि मैं वहीं रहता हूं, जहां मेरा शुद्ध भक्त होता है। चूंकि हम सब के मूल में जो तीन इच्छाएं- नित्य जीवन, नित्य ज्ञान व नित्य आनंद हैं, वे केवल भगवान ही पूरी कर सकते हैं, कोई और नहीं। इसलिए हमें उन तक पहुंचने की चेष्टा तो करनी ही चाहिए।
भगवान स्वयं बता रहे हैं कि वह अपने शुद्ध भक्त के पास रहते हैं। अतः हमें ज्यादा नहीं सोचना चाहिए और तुरंत ऐसे भक्त की खोज करनी चाहिए जिसके पास जाने से, जिसकी बात मानने से हमें भगवद्प्राप्ति का मार्ग मिल जाए। साथ ही हमें यह सावधानी भी बरतनी चाहिए कि कहीं वह भगवद्-भक्त के वेश में ढोंगी न हो। स्कंद पुराण के अनुसार भगवान शिव माता पार्वती से कहते हैं कि कलियुग में ऐसे गुरु बहुत मिलेंगे जो शिष्य का सब कुछ हर लेते हैं, परंतु शिष्य का संताप हर कर उसे सद्माीर्ग पर ले आए ऐसा गुरु विरला ही मिलेगा।
नंदी के बिना शिवलिंग को माना जाता है अधूरा
20 Feb, 2025 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
भगवान शिव के किसी भी मंदिर में शिवलिंग के आसपास एक नंदी बैल जरूर होता है क्योंा नंदी के बिना शिवलिंग को अधूरा माना जाता है। इस बारे में पुराणों की एक कथा में कहा गया है शिलाद नाम के ऋषि थे जिन्होंाने लम्बेा समय तक शिव की तपस्या की थी। जिसके बाद भगवान शिव ने उनकी तपस्याद से खुश होकर शिलाद को नंदी के रूप में पुत्र दिया था।
शिलाद ऋषि एक आश्रम में रहते थे। उनका पुत्र भी उन्हींक के आश्रम में ज्ञान प्राप्ती करता था। एक समय की बात है शिलाद ऋषि के आश्रम में मित्र और वरुण नामक दो संत आए थे। जिनकी सेवा का जिम्माि शिलाद ऋषि ने अपने पुत्र नंदी को सौंपा। नंदी ने पूरी श्रद्धा से दोनों संतों की सेवा की। संत जब आश्रम से जाने लगे तो उन्होंसने शिलाद ऋषि को दीर्घायु होने का आर्शिवाद दिया पर नंदी को नहीं।
इस बात से शिलाद ऋषि परेशान हो गए। अपनी परेशानी को उन्हों्ने संतों के आगे रखने की सोची और संतों से बात का कारण पूछा। तब संत पहले तो सोच में पड़ गए। पर थोड़ी देर बाद उन्हों।ने कहा, नंदी अल्पायु है। यह सुनकर मानों शिलाद ऋषि के पैरों तले जमीन खिसक गई। शिलाद ऋषि काफी परेशान रहने लगे।
एक दिन पिता की चिंता को देखते हुए नंदी ने उनसे पूछा, ‘क्या बात है, आप इतना परेशान क्योंो हैं पिताजी।’ शिलाद ऋषि ने कहा संतों ने कहा है कि तुम अल्पायु हो। इसीलिए मेरा मन बहुत चिंतित है। नंदी ने जब पिता की परेशानी का कारण सुना तो वह बहुत जोर से हंसने लगा और बोला, ‘भगवान शिव ने मुझे आपको दिया है। ऐसे में मेरी रक्षा करना भी उनकी ही जिम्मेयदारी है, इसलिए आप परेशान न हों।’
नंदी पिता को शांत करके भगवान शिव की तपस्या करने लगे। दिनरात तप करने के बाद नंदी को भगवान शिव ने दर्शन दिए। शिवजी ने कहा, ‘क्याक इच्छास है तुम्हा।री वत्स’. नंदी ने कहा, मैं ताउम्र सिर्फ आपके सानिध्य में ही रहना चाहता हूं।नंदी से खुश होकर शिवजी ने नंदी को गले लगा लिया। शिवजी ने नंदी को बैल का चेहरा दिया और उन्हें अपने वाहन, अपना मित्र, अपने गणों में सबसे उत्तनम रूप में स्वीकार कर लिया।इसके बाद ही शिवजी के मंदिर के बाद से नंदी के बैल रूप को स्थाकपित किया जाने लगा
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन
20 Feb, 2025 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- स्वभाव में खिन्नता, मानसिक बेचैनी, शारीरिक असमर्थता बनी रहेगी।
वृष राशि :- बड़े-बड़े लोगों से मेल-मिलाप होगा, स्त्री वर्ग से हर्ष रहेगा, समय का ध्यान रखें।
मिथुन राशि :- कुटुम्ब की समस्यायें सुलझें, बिगड़े कार्य बनेंगे तथा हर्ष अवश्य ही होगा।
कर्क राशि :- कार्य कुशलता से हर्ष, सामाजिक कार्य में वृद्धि, प्रभुत्व वृद्धि होगी।
सिंह राशि :- आशानुकूल सफलता मिलेगी, मानसिक विभ्रम से अवश्य बचें।
कन्या राशि :- मानसिक शिथिलता से बेचैनी, अर्थ-व्यवस्था अनुकूल होगी, व्यर्थ व्यय होगा।
तुला राशि :- कार्य कुशलता से संतोष होगा, आर्थिक लाभ होगा, कार्य योजना फलीभूत होगी।
वृश्चिक राशि :- आकस्मिक विभ्रम व बेचैनी, चिन्तायें परेशान करेंगी, धैर्य से काम लें।
धनु राशि :- आशानुकूल सफलता मिलेगी, मानसिक विभ्रम से परेशानी, लाभ होगा।
मकर राशि :- योजनायें फलीभूत होंगी, शुभ समाचार हर्षयुक्त रखेगा, विशेष कार्य बनेंगे।
कुंभ राशि :- मानसिक व्यग्रता, विघटनकारी तत्व परेशान करेंगे, रुके कार्य अवश्य ही बनेंगे।
मीन राशि :- मनोवृत्ति संवेदनशील रहेगी, आकस्मिक धन लाभ से संतोष होगा।
हाथों की रेखा से जानें किस्मत में संतान सुख है या नहीं? घर में कब गूंजेगी किलकारी?
19 Feb, 2025 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
शादी के बाद हर जोड़ा अपनी खुशहाल दांपत्य जीवन की कामना करता है और उनमें से कई दंपत्ति संतान सुख की चाहत रखते हैं. यह सुख पाना हर दंपत्ति का सपना होता है, लेकिन संतान कब होगी और वह कैसी होगी, इस बारे में अनगिनत सवाल होते हैं. क्या आप भी इसी चिंता में हैं? तो, चिंता की कोई बात नहीं. आपकी हथेली में छिपी हुई कुछ रेखाएं इस सवाल का समाधान दे सकती हैं.
हस्तरेखा में संतान सुख का संकेत
हस्तरेखा शास्त्र एक प्राचीन और गहरा विज्ञान है जो मनुष्य के जीवन की कई घटनाओं का पूर्वानुमान करने में सक्षम है. खासकर जब बात संतान की होती है, तो हथेली की विशेष रेखाओं से इसके संकेत मिल सकते हैं. हथेली में कुछ महत्वपूर्ण स्थान होते हैं, जैसे बुध पर्वत और शुक्र पर्वत, जो इस विषय से जुड़े होते हैं.
बुध पर्वत और संतान रेखा
हथेली में सबसे छोटी उंगली के नीचे जो स्थान होता है, उसे बुध पर्वत कहा जाता है. इस पर्वत के पास कुछ खड़ी रेखाएं होती हैं जो संतान सुख का संकेत देती हैं. ये रेखाएं संतान के जन्म और उनके जीवन से जुड़े कुछ प्रमुख पहलुओं का संकेत करती हैं. जो लोग जिनकी हथेली में यह रेखाएं साफ दिखती हैं, उन्हें संतान सुख प्राप्त होने की संभावना अधिक होती है.
शुक्र पर्वत और संतान रेखा
इसके अलावा, अंगूठे के नीचे स्थित शुक्र पर्वत के पास भी छोटी रेखाएं होती हैं, जो संतान के बारे में जानकारी देती हैं. इन रेखाओं का मिलाजुला प्रभाव यह दर्शाता है कि संतान सुख के बारे में जीवन के विभिन्न पहलुओं के बारे में क्या संकेत हैं. अगर शुक्र पर्वत पर साफ और मजबूत रेखाएं हैं, तो यह संतान सुख की प्राप्ति की संभावना को दर्शाता है.
महाशिवरात्रि और शिवरात्रि में क्या है अंतर जानें, क्यों मनाया जाता है यह पर्व
19 Feb, 2025 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
महाशिवरात्रि का पर्व इस बार 26 फरवरी दिन बुधवार को है, हर वर्ष यह पर्व फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है. वहीं शिवरात्रि हर मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को आती है. यूं तो भगवान शिव की पूजा अर्चना करने के लिए हर दिन बेहद पवित्र माना जाता है लेकिन सावन मास, सोमवार का दिन, शिवरात्रि और महाशिवरात्रि का अपना विशेष महत्व है. महाशिवरात्रि और शिवरात्रि का पर्व दोनों ही भगवान शिव को समर्पित हैं, महाशिवरात्रि का पर्व सालभर में एक बार मनाया जाता है तो शिवरात्रि का हर माह पड़ती है. आइए जानते हैं आखिर महाशिवरात्रि और शिवरात्रि में क्या है अंतर…
शिवरात्रि
हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को शिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है, इसलिए मासिक शिवरात्रि भी कहते हैं. ऐसे सालभर में 12 शिवरात्रि पड़ती हैं. पंचांग के अनुसार, सावन में आने वाली चतुर्दशी तिथि को बड़ी शिवरात्रि भी माना जाता है क्योंकि इस दिन भगवान शिव ने हलाहल विष को कंठ में धारण किया था. इस तरह सभी शिवरात्रि के अलावा सावन शिवरात्रि का अपना महत्व है. शिवरात्रि का पर्व हमको यह बोध कराता है कि हम सभी शिव के अंश और एक दिन उनमें ही मिल जाना है.
महाशिवरात्रि
महाशिवरात्रि का पर्व फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह भी हुआ था. इसलिए इस पर्व भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह के उपलक्ष्य में मनाया जाता है. इस तरह महाशिवरात्रि का पर्व साल में एक बार और शिवरात्रि का पर्व हर महीने मनाया जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि की रात्रि को भगवान शिव लाखों सूर्य के समान प्रभाव वाले लिंग के रूप में प्रकट हुए थे. महाशिवरात्रि के पर्व को हिंदू धर्म में सबसे बड़ा पर्व माना जाता है और इस व्रत के करने से साधक को मोक्ष की प्राप्ति होती है.
शिव और शक्ति का दिन है महाशिवरात्रि
महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की विशेष पूजा अर्चना की जाती है. महाशिवरात्रि की रात्रि के चारों प्रहरों में भगवान शिव की पूजा का विधान है. इस दिन उपवास और रात्रि जागरण का विशेष महत्व है. यह दिन शिव और शक्ति के मिलन की रात है और इस रात भगवान शिव अपने भक्तों को विशेष आशीर्वाद भी देते हैं और उनकी सभी मनोकामनाओं का पूरी करते हैं. भोलेनाथ के भक्त इस दिन को उपवास और श्रद्धाभाव के साथ मनाते हैं और अपने आराध्य देव शिवजी का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए पूरे परिवार के साथ शिव पूजन करते हैं. महाशिवरात्रि को सूर्यदेव पूरी तरह उत्तरायण में आ चुके होते हैं और ऋतु परिवर्तन इस दिन से शुरू हो जाता है.
वृद्धि योग में गणेश पूजा, सफलता में होगी बढ़ोत्तरी, देखें मुहूर्त, भद्राकाल, दिशाशूल, राहुकाल
19 Feb, 2025 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
बुधवार को वृद्धि योग में गणेश जी की पूजा करने से सफलता में बढ़ोत्तरी होगी. इस दिन रवि योग भी बन रहा है. बुधवार को फाल्गुन कृष्ण षष्ठी तिथि, स्वाति नक्षत्र, वृद्धि योग, वणिज करण, उत्तर का दिशाशूल और तुला राशि का चंद्रमा है. वृद्धि योग में आप जो भी कार्य करते हैं, उसके फल में वृद्धि होती है. बुधवार को सुबह में गणेश जी की पूजा विधि विधान से करें. गणेश जी की कृपा से आपके जीवन में शुभता, सफलता, ज्ञान, बुद्धि आदि का प्राप्ति होगी. गणेश जी की पूजा में उनको सिंदूर, दूर्वा और मोदक जरूर चढ़ाते हैं. पूजा के समय बुधवार व्रत की कथा पढ़ें, इससे व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होगा. पूजा के दौरान गणेश चालीसा, आरती, गणेश मंत्र का जाप आदि कर सकते हैं.
बुधवार को रवि योग में पूजा पाठ करना अच्छा होगा. इस योग में सभी प्रकार के दोषों को दूर करने की क्षमता होती है क्योंकि इसमें सूर्य देव का प्रभाव अधिक होता है. जिनकी कुंडली में बुध दोष है या बुध की स्थिति कमजोर है तो आपको गणेश जी की पूजा के साथ हरे रंग की वस्तुओं का दान करना चाहिए. इसमें आप हरा वस्त्र, हरे फल, हरी मूंग, हरा चारा आदि दान कर सकते हैं. बुध को मजबूत करने के लिए उसके बीज मंत्र का जाप कर सकते हैं. पंचांग से जानते हैं बुधवार का मुहूर्त, सूर्योदय, चंद्रोदय, चौघड़िया समय, भद्रा काल, राहुकाल, दिशाशूल आदि.
आज का पंचांग, 19 फरवरी 2025
आज की तिथि- षष्ठी – 07:32 ए एम तक, उसके बाद सप्तमी
आज का नक्षत्र- स्वाति – 10:40 ए एम तक, फिर विशाखा
आज का करण- वणिज – 07:32 ए एम तक, विष्टि – 08:47 पी एम तक, उसके बाद बव
आज का योग- वृद्धि – 10:48 ए एम तक, फिर ध्रुव
आज का पक्ष- कृष्ण
आज का दिन- बुधवार
चंद्र राशि- तुला – 06:49 ए एम, फरवरी 20 तक, फिर वृश्चिक
सूर्योदय-सूर्यास्त और चंद्रोदय-चंद्रास्त का समय
सूर्योदय- 06:56 ए एम
सूर्यास्त- 06:14 पी एम
चन्द्रोदय- 12:22 ए एम, फरवरी 20
चन्द्रास्त- 10:20 ए एम
आज के मुहूर्त और योग
रवि योग 06:56 ए एम से 10:40 ए एम, 12:34 पी एम से 06:55 ए एम, फरवरी 20
ब्रह्म मुहूर्त: 05:14 ए एम से 06:05 ए एम
अभिजीत मुहूर्त: कोई नहीं
विजय मुहूर्त: 02:28 पी एम से 03:13 पी एम
अमृत काल: 03:40 ए एम, फरवरी 20 से 05:27 ए एम, फरवरी 20
दिन का शुभ चौघड़िया मुहूर्त
लाभ-उन्नति: 06:56 ए एम से 08:21 ए एम
अमृत-सर्वोत्तम: 08:21 ए एम से 09:46 ए एम
शुभ-उत्तम: 11:10 ए एम से 12:35 पी एम
चर-सामान्य: 03:25 पी एम से 04:49 पी एम
लाभ-उन्नति: 04:49 पी एम से 06:14 पी एम
रात का शुभ चौघड़िया मुहूर्त
शुभ-उत्तम: 07:49 पी एम से 09:24 पी एम
अमृत-सर्वोत्तम: 09:24 पी एम से 11:00 पी एम
चर-सामान्य: 11:00 पी एम से 12:35 ए एम, फरवरी 20
लाभ-उन्नति: 03:45 ए एम से 05:20 ए एम, फरवरी 20
अशुभ समय
राहुकाल- 12:35 पी एम से 02:00 पी एम
गुलिक काल- 11:10 ए एम से 12:35 पी एम
यमगण्ड- 08:21 ए एम से 09:46 ए एम
दुर्मुहूर्त- 12:12 पी एम से 12:58 पी एम
भद्रा- 07:32 ए एम से 08:47 पी एम
भद्रा वास स्थान- पाताल लोक