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मस्क को अमेरिकी खर्च घटाने की जिम्मेदारी, लेकिन टेस्ला की वित्तीय स्थिति में लगातार गिरावट!
4 Apr, 2025 04:16 PM IST | GRAMINBHARATTV.IN
दुनिया के सबसे अमीर शख्स इलॉन मस्क की ऑटोमोबाइल कंपनी को इस साल जनवरी के आखिर से लगातार झटके लग रहे हैं। टेस्ला के शेयर 21 जनवरी से लेकर 3 अप्रैल, 2025 तक करीब 37 प्रतिशत टूट चुके हैं। ये भी एक संयोग है कि डोनाल्ड ट्रंप के साथ मस्क ने जब से राजनीति में एंट्री ली है, टेस्ला के लिए लगातार तरह-तरह की नई चुनौतियां खड़ी हो रही हैं। इतना ही नहीं, टेस्ला की बिक्री को भी जोरदार धक्का लगा है। बीते कुछ महीनों में, कस्टमर्स ने कंपनी की गाड़ियों से दूरी बनाना शुरू कर दिया है। वित्त वर्ष 2024-25 की चौथी तिमाही (जनवरी-मार्च 2025) में कंपनी का ग्लोबल सेल्स में अनुमान से ज्यादा गिरावट दर्ज की गई है। कंपनी ने वित्त वर्ष 2023-24 की चौथी तिमाही में 3,86,810 गाड़ियां बेची थीं, जो वित्त वर्ष 2024-25 की चौथी तिमाही में घटकर 3,36,681 पर पहुंच गई। इतना ही नहीं, ब्लूमबर्ग के आंकड़ों के मुताबिक, इस साल इलॉन मस्क की नेटवर्थ में 110 बिलियन डॉलर (25.5 प्रतिशत) की भारी कमी आई है।
21 जनवरी को 424.07 डॉलर के भाव पर बंद हुए थे टेस्ला के शेयर
अमेरिका के राष्ट्रपति बनने के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने इलॉन मस्क को एक बड़ी जिम्मेदारी दी। ट्रंप ने मस्क को DOGE (Department of Government Efficiency) का प्रमुख बना दिया। जहां एक तरफ, ट्रंप के आदेशों पर मस्क अमेरिकी सरकार के खर्च को कम कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर उनकी कंपनी टेस्ला के शेयरों में लगातार गिरावट देखने को मिल रही है। डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में जीत दर्ज करने के बाद 20 जनवरी, 2025 को शपथ ली थी। 21 जनवरी को टेस्ला के शेयर 433.20 डॉलर के इंट्राडे हाई पर पहुंचे थे और 424.07 डॉलर के भाव पर बंद हुए थे।
इलॉन मस्क के सामने खड़ी हुई कई चुनौतियां
NASDAQ के आंकड़ों के मुताबिक, नई टैरिफ पॉलिसी की घोषणा के बाद गुरुवार, 3 अप्रैल को टेस्ला के शेयर 276.30 डॉलर के इंट्राडे हाई पर पहुंचे थे और 267.28 डॉलर के भाव पर बंद हुए थे। इसका सीधा मतलब ये हुआ कि 21 जनवरी से लेकर 3 अप्रैल, 2025 तक टेस्ला के शेयर का भाव 36.97 प्रतिशत (156.79 डॉलर) टूट चुका है। जहां एक तरफ मस्क की टेस्ला को इलेक्ट्रिक कार बनाने वाली कंपनी BYD से कड़ी टक्कर मिल रही है। वहीं दूसरी ओर, ट्रंप के फैसलों की वजह से टेस्ला के निवेशकों का मोह भंग हो रहा है और वे कंपनी में अपनी हिस्सेदारी बेचकर बाहर निकल रहे हैं। ऐसी परिस्थितियों में इलॉन मस्क के लिए टेस्ला को संभाले रखने के लिए कड़ी चुनौतियों को सामना करना पड़ सकता है। उन्हें टेस्ला के निवेशकों का भरोसा जीतने के साथ-साथ ग्राहकों का भी भरोसा जीतना होगा।
अमेरिकी शेयर बाजार में कोहराम
2 अप्रैल, 2025 को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नई टैरिफ पॉलिसी की घोषणा के बाद से दुनियाभर में जबरदस्त हलचल मची हुई है। गुरुवार को भारतीय शेयर बाजार में बड़ी गिरावट देखने को मिली। लेकिन अमेरिकी शेयर बाजार में कारोबार शुरू होते ही हाहाकार मच गया। गुरुवार को Nasdaq में करीब 6 प्रतिशत, S&P 500 में 4.8 प्रतिशत, Dow Jones में 4 प्रतिशत की भारी गिरावट दर्ज की गई। अमेरिकी बाजार में आई इस सुनामी में देश की सबसे बड़ी कंपनियों में शामिल टेस्ला, अमेजन, एप्पल, एनवीडिया, गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, मेटा को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। जिस दिन से डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति बने हैं, उस दिन से लेकर अब तक टेस्ला के शेयरों में भारी-भरकम गिरावट दर्ज की जा चुकी है। जिसकी वजह से इलॉन मस्क के नेटवर्थ में भी भयंकर गिरावट आई है।
SIP निवेश में भूलकर भी न करें ये 10 गलतियां, निवेशकों को हो सकता है बड़ा नुकसान!
4 Apr, 2025 01:00 PM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सिस्टेमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIP) म्युचुअल फंड (Mutual Fund) में निवेश करने का एक आसान तरीका है। SIP का सबसे बड़ा फायदा यह है कि आप एक साथ बड़ी रकम लगाने की बजाय धीरे-धीरे छोटी-छोटी रकम लगाकर लॉन्ग टर्म में अच्छा कॉर्पस/फंड बना सकते हैं। म्युचुअल फंड एक्सपर्ट्स के मुताबिक, SIP के जरिए निवेश करना भारतीय इक्विटी बाजार में संपत्ति बनाने का एक बेहतरीन तरीका है, लेकिन कई बार निवेशक कुछ ऐसी गलतियां कर बैठते हैं जो उनके रिटर्न पर नकारात्मक असर डाल सकती हैं। यहां पर मार्केट एक्सपर्ट्स SIP से जुड़ी कुछ सामान्य गलतियों के बारे में बता रहे हैं, जिसके चलते SIP निवेशकों को बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है।
1. बाजार में गिरावट के दौरान SIP को बंद करना
BPN फिनकैप के डायरेक्टर एके निगम कहते हैं कि बाजार में गिरावट या उतार-चढ़ाव के दौरान SIP को बंद नहीं करना चाहिए। ऐसे समय में निवेश बनाए रखना लॉन्ग टर्म में वेल्थ क्रिएट करने का एक सफल तरीका है। एसआईपी का एक बड़ा फायदा यह है कि यह रुपये की औसत लागत (Rupee Cost Averaging) का लाभ देता है, जिससे बाजार गिरने पर कम NAV (नेट एसेट वैल्यू) पर ज्यादा यूनिट्स खरीदने का मौका मिलता है।
मोहित गांग बताते है कि जब बाजार गिरता है तो कई निवेशक घबरा जाते हैं और अपनी SIP बंद कर देते हैं। SIP उतार-चढ़ाव वाले बाजार में सबसे बेहतर काम करती है क्योंकि कम दाम पर ज्यादा यूनिट्स जमा करने का अवसर मिलता हैं।
2. अपने फाइनेंशियल टारगेट को ध्यान में न रखना
निगम के मुताबिक SIP करते समय अपने फाइनेंशियल टारगेट को ध्यान में रखें। अगर आपका लक्ष्य धन जुटाना, बच्चों की पढ़ाई के लिए बचत करना या रिटायरमेंट की तैयारी करना है, तो उसी के अनुसार फंड चुनें। सही फंड का चुनाव आपको बेहतर और स्थिर रिटर्न पाने में मदद करता है।
3. समय के साथ SIP अमाउंट में वृद्धि न करना
गांग कहते हैं कि इनकम बढ़ने के साथ, वेल्थ क्रिएशन को अधिकतम करने के लिए एसआईपी योगदान भी बढ़ना चाहिए। निवेश को ऑटोमेटिक रूप से बढ़ाने के लिए एसआईपी टॉप-अप का विकल्प चुनें।
4. SIP को बीच में बंद कर देना
अच्छा कॉपर्स या फंड बनाने के लिए SIP में लॉन्ग टर्म निवेश करने की जरूरत होती है। लॉन्ग टर्म निवेश से कंपाउंडिंग का फायदा भी मिलता है। शॉर्ट टर्म में किसी आर्थिक संकट या आपातकाल के दौरान बीच में SIP बंद करना समझदारी भरा विकल्प नहीं है। इसकी जगह पर आपको SIP Pause फीचर का इस्तेमाल करना चाहिए।
कई म्युचुअल फंड कंपनियां SIP को बीच में रोकने (SIP Pause) का फीचर प्रदान करती हैं, जिससे आप अस्थाई वित्तीय समस्याओं के दौरान योजना से बाहर निकले बिना ही, अपने SIP को अस्थाई रूप से रोक सकते हैं। यह आपको अपनी निवेश योजना को बीच में बंद किए बिना अनुशासन बनाए रखने में मदद करता है।
5. SIP में धैर्य की कमी
निगम बताते हैं कि SIP के माध्यम से वेल्थ क्रिएशन के लिए लॉन्ग टर्म निवेश के साथ-साथ धैर्य की भी जरूरत होती है। आप जितना अधिक समय तक निवेश करेंगे, कंपाउंडिंग का असर उतना ही ज्यादा होता है। वे निवेशकों को SIP के माध्यम से नियमित रूप से निवेश करने की सलाह देते हैं।
गांग कहते हैं कि इक्विटी निवेश में धैर्य जरूरी होता है। 1-2 साल में बड़े रिटर्न की उम्मीद करना और जल्दी SIP बंद कर देना बेहतर नतीजों से आपको दूर कर सकता है। SIP को लंबे समय (5-10 साल या उससे अधिक) में संपत्ति निर्माण के लिए ही डिजाइन किया गया है।
6. गलत फंड का चयन करना
गांग कहते हैं कि किसी फंड के पिछले प्रदर्शन, फंड मैनेजर की विशेषज्ञता और जोखिम स्तर की सही जानकारी के बिना SIP में निवेश करना कमजोर रिटर्न का कारण बन सकता है। सेक्टोरल/थीमैटिक फंड्स में तभी निवेश करें जब आप उन्हें अच्छे से समझते हों।
7. टैक्स प्रभाव को नजरअंदाज करना
निगम बताते हैं कि SIP में निवेश करते समय कई निवेशक टैक्स से जुड़े पहलुओं को नजरअंदाज कर देते हैं, जो बाद में उनके रिटर्न पर असर डाल सकता है। इक्विटी म्युचुअल फंड में एक साल से पहले निकासी पर शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स (STCG) लगता है, जबकि एक साल से ज्यादा की अवधि के बाद होने वाले लाभ पर 1.25 लाख रुपये से ज्यादा की राशि पर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स (LTCG) लागू होता है। टैक्स की सही योजना न बनाना निवेश पर मिलने वाले शुद्ध रिटर्न को घटा सकता है। इसलिए SIP में निवेश करते समय टैक्स इंप्लिकेशन को जरूर ध्यान में रखें।
8. फंड्स को बार-बार बदलना
गांग कहते हैं कि कम समय में प्रदर्शन कमजोर रहने पर SIP निवेश को बार-बार बदलना अनावश्यक एक्जिट लोड और टैक्स का कारण बन सकता है। जब तक कोई फंड लगातार अपने बेंचमार्क से कमजोर प्रदर्शन न करे, तब तक उसमें कम से कम 5 साल तक बने रहें।
9. पिछले प्रदर्शन के आधार पर फंड चुनना
म्युचुअल फंड में पिछला प्रदर्शन भविष्य के रिटर्न की गारंटी नहीं होता है। निगम बताते हैं कि SIP निवेश में एक आम गलती यह होती है कि निवेशक सिर्फ फंड के पिछले प्रदर्शन को देखकर उसमें पैसा लगा देते हैं। हालांकि, कोई भी फंड अगर पहले अच्छा प्रदर्शन कर चुका है, तो यह जरूरी नहीं कि भविष्य में भी वह उतना ही अच्छा रिटर्न देगा। मार्केट की परिस्थितियां, फंड मैनेजर का बदलाव और आर्थिक माहौल जैसे कई वजहें फंड के प्रदर्शन को प्रभावित करते हैं। सिर्फ पिछली रैंकिंग या रिटर्न के आधार पर फंड चुनना जल्दबाजी हो सकती है। इसलिए फंड के ट्रैक रिकॉर्ड के साथ-साथ उसकी गुणवत्ता, रिस्क प्रोफाइल और निवेश स्ट्रैटेजी को भी ध्यान से समझना जरूरी है।
10. आपातकालीन फंड बनाएं
SIP शुरू करने से पहले यह सुनिश्चित करें कि आपके पास एक आपातकालीन फंड हो। यह फंड आपको अचानक आने वाले खर्चों से बचाता है और आपके निवेश में रुकावट नहीं आने देता है।
म्युचुअल फंड में निवेश बाजार जोखिमों के अधीन है। अगर आप SIP शुरू करने की सोच रहे हैं, तो सबसे पहले बाजार की अच्छी तरह से रिसर्च करें और अपनी जरूरत और समझ के अनुसार SIP करने के लिए सही फंड चुनें। अगर आप पहली बार निवेश करने जा रहे है तो किसी एक्सपर्ट से सलाह लेना आपके लिए ज्यादा फायदेमंद हो सकता है। ध्यान रखें, बिना रिसर्च किए और सिर्फ दूसरों की बातों पर भरोसा करके किया गया निवेश आपको नुकसान पहुंचा सकता है।
ट्रंप के व्यापारिक फैसलों से भारत के शेयर बाजार में भारी मंदी, सेंसेक्स में 700 अंकों की गिरावट!
4 Apr, 2025 12:49 PM IST | GRAMINBHARATTV.IN
अमेरिकी शेयर बाजारों में रिकॉर्ड गिरावट का असर भारतीय शेयर बाजारों पर भी पड़ा और प्रमुख बेंचमार्क इंडेक्स आज यानी शुक्रवार (4 अप्रैल) को लाल निशान में खुले। डोनल्ड ट्रंप के टैरिफ लगाने की घोषणा के बाद अमेरिकी शेयर बाजारों में बड़ी गिरावट आई। डाउ जोंस इंडस्ट्रियल एवरेज 1,400.87 अंक या 3.32% लुढ़ककर 40,824.45 पर बंद हुआ। S&P 500 में 232.04 अंकों (4.09%) की गिरावट आई। इससे निवेशकों को 2.5 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान हुआ है।
तीस शेयरों वाला बीएसई सेंसेक्स (BSE Sensex) आज गिरावट लेकर 76,160 अंक पर खुला। खुलते ही इंडेक्स में गिरावट और ज्यादा गहरी हो गई। सुबह 10:45 बजे सेंसेक्स 731.57 या 0.96% की गिरावट लेकर 75,563.79 पर था।
इसी तरह, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) का निफ़्टी-50 भी लाल निशान में खुला। सुबह 10:45 बजे यह 294.10 अंक या 1.26% की गिरावट लेकर 22,956 पर था।
सेक्टर इंडेक्सिस में निफ्टी मेटल, ऑटो, आईटी और फार्मा में 2.17 प्रतिशत तक की गिरावट आई। जबकि केवल बैंक और फाइनेंशियल सर्विस इंडेक्स हरे निशान में कारोबार कर रहे थे।
निवेशकों के 2 घंटे में ₹8 लाख करोड़ डूबे
बाजार में गिरावट की वजह से निवेशकों को भारी नुकसान हुआ है। बीएसई में लिस्टेड कंपनियों का मार्केट कैप शुक्रवार सुबह 11 बजे घटकर 4,06,36,517 करोड़ रुपये पर आ गया। यह गुरुवार को बाजार बंद होने के बाद 41,416,218 करोड़ रुपये था। इस तरह निवेशकों की वेल्थ शुरुआती 2 घंटे में 779,701 करोड़ रुपये घट गई।
गुरुवार को कैसी थी बाजार की चाल?
ट्रंप टैरिफ के ऐलान के बाद घरेलू शेयर बाजार गुरुवार को गिरावट में बंद हुए थे। आईटी इंडेक्स में गिरावट के चलते बाजार नीचे आया था। हालांकि, फार्मा और बैंकिंग स्टॉक्स में खरीदारी की वजह से बाजार में निचले स्तरों से रिकवरी देखने को मिली थी। तीस शेयरों वाला बीएसई सेंसेक्स 322.08 अंक या 0.42% की गिरावट लेकर 76,295.36 पर बंद हुआ। वहीं, निफ्टी-50 इंडेक्स 82.25 अंक या 0.35% गिरकर 23,250 पर क्लोज हुआ।
अमेरिकी बाजारों में भारी गिरावट
अमेरिकी बाजारों में गुरुवार को भारी गिरावट आई। इससे एसएंडपी 500 2020 के बाद से अपने सबसे बड़े एक दिवसीय नुकसान के साथ सुधार क्षेत्र में वापस आ गया। व्यापक बाजार सूचकांक 4.84 प्रतिशत गिरकर 5,396.52 पर बंद हुआ, डॉव जोन्स इंडस्ट्रियल एवरेज 1,679.39 अंक या 3.98 प्रतिशत गिरकर 40,545.93 पर बंद हुआ, जबकि नैस्डैक कंपोजिट 5.97 प्रतिशत गिरकर 16,550.61 पर बंद हुआ।
एशियाई बाजारों में जापान का निक्केई इंडेक्स 2.46 प्रतिशत नीचे था और टॉपिक्स 3.18 प्रतिशत पीछे था। दक्षिण कोरिया का कोस्पी 0.29 प्रतिशत गिरा, जबकि कोसडैक 0.59 प्रतिशत चढ़ा। ऑस्ट्रेलिया का एसएंडपी/एएसएक्स 200 1.42 प्रतिशत नीचे था। किंगमिंग फेस्टिवल के कारण हांगकांग और मेनलैंड चीन के बाजार आज बंद हैं।
भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों का भविष्य उज्जवल, जवाबी शुल्क से मिलेगा नया समर्थन!
4 Apr, 2025 12:38 PM IST | GRAMINBHARATTV.IN
विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप द्वारा कारों और वाहन कलपुर्जों पर 25 फीसदी आयात शुल्क लगाने के निर्णय से भारत के लिए अपनी वाहन आपूर्ति श्रृंखलाओं में जरूरी बदलाव लाने, खासकर इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) निर्माण पर फिर से ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलेगी।
ईवाई इंडिया में टैक्स पार्टनर सौरभ अग्रवाल ने कहा, ‘भले ही भारत का अमेरिका को प्रत्यक्ष कार निर्यात मौजूदा समय में बेहद कम है, लेकिन वैश्विक टैरिफ संबंधित बदलाव वाहन आपूर्ति श्रृंखलाओं को नया आकार देने का एक महत्वपूर्ण अवसर मुहैया कराएगा। हमारी ‘मेक इन इंडिया’ पहल ईवी निर्माण पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित किए जाने की वजह से हमें खास स्थान पर रखती है।’ भारत का वाहन कलपुर्जा उद्योग मौजूदा बदलावों से पैदा हुई कमी की भरपाई करने में सफल रह सकता है। यह बदलाव निर्यात को बढ़ा सकता है और घरेलू निर्माण में और ज्यादा निवेश आकर्षित कर सकता है।
हालांकि, इससे एक अलग स्थिति भी पैदा हो सकती है, क्योंकि अमेरिकी कार बाजार वाहन निर्यात के लिए कम आकर्षक हो जाएगा। इलेक्ट्रिक वाहन या इलेक्ट्रिक वाहन के पुर्जे बनाने वाली कंपनियां, (जिनकी चीन, कोरिया, जापान और वियतनाम जैसे देशों में बड़ी उत्पादन क्षमता है) अपने उत्पादों के लिए नए निर्यात बाजार तलाश सकती हैं। ऐसा नहीं करने पर इन कंपनियों को भारी मात्रा में बेकार पड़े स्टॉक का सामना करना पड़ सकता है। सेंटर फॉर सोशल ऐंड इकनॉमिक प्रोग्रेस (सीएसईपी) में एनर्जी, रिसोर्सेज एवं सस्टेनेबिलटी के फेलो श्यामाशीष दास ने कहा, ‘गुणवत्तापूर्ण ईवी उत्पादों के लिए देश की बढ़ती मांग के कारण ये कंपनियां भारत में अपने उत्पादों, विशेष रूप से ईवी घटकों को तेजी से बेचने की कोशिश करेंगी।’
हाल में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने घोषणा की थी कि सीमा शुल्क टैरिफ को तर्कसंगत बनाने के प्रयास के तहत ईवी बैटरी के लिए 35 पूंजीगत वस्तुओं पर कोई आयात शुल्क नहीं लगाया जाएगा। यह घटनाक्रम एशियाई कंपनियों को अपने उत्पादों को भारत में लाने के लिए प्रेरित कर सकता है। दास के अनुसार, सीधी प्रतिस्पर्धा एक कठिन चुनौती बन सकती है, लेकिन अगर वे इन कलपुर्जों को अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं में सफलतापूर्वक शामिल करते हैं, तो उन्हें अपने ईवी या लिथियम-आयन बैटरी को अत्यधिक लागत-प्रतिस्पर्धी बनाने का एक अच्छा मौका मिल सकता है। दास ने कहा, ‘भारत-चीन संबंधों में सुधार के साथ, चीनी कंपनियां भारतीय ईवी बाजार में अधिक रुचि दिखा सकती हैं।’ अन्य विशेषज्ञों के अनुसार, यह बदलाव न केवल भारतीय ईवी निर्माताओं के लिए नए दरवाजे खोलेगा, बल्कि देश के विदेशी मुद्रा भंडार को मजबूत करने में भी मददगार साबित होगा।
वर्ष 2023 में, भारत का ईवी निर्यात सालाना आधार पर 246.3 प्रतिशत बढ़कर 2,139 करोड़ रुपये तक पहुंच गया, जो नेपाल और फ्रांस जैसे देशों की मांग से संभव हुआ। भारत का ईवी बाजार वर्ष 2030 तक सालाना 1 करोड़ वाहन तक पहुंचने का अनुमान है। मौजूदा समय में, भारत हर साल लगभग 100,000 ईवी का निर्यात करता है। इसमें मुख्य रूप से दोपहिया और तिपहिया वाहनों के निर्यात का बड़ा योगदान है।
नोमूरा रिसर्च इंस्टीट्यूट कंसल्टिंग एंड सॉल्युशंस इंडिया में सीएएसई (कनेक्टेड, ऑटोनॉमस, शेयर्ड, इलेक्ट्रिक) और अल्टरनेट पावरट्रेन के विशेषज्ञ प्रीतेश सिंह ने कहा कि हालांकि भारत में अपने मौजूदा उत्पादों के साथ अल्पावधि में निर्यात बाजार पर कब्जा करने की क्षमता है, लेकिन यह चीन या उसके विकल्पों को पूरी तरह से प्रतिस्थापित नहीं कर सकता है, जब तक कि वह अमेरिका और अन्य वैश्विक बाजारों के मानकों को पूरा करने के लिए अपने उत्पादों की गुणवत्ता में व्यापक सुधार नहीं लाता।
मुकेश अंबानी की Jio Financial ने नए कारोबार में किया करोड़ों रुपये का निवेश, क्या है आगे का प्लान?
3 Apr, 2025 07:04 PM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मुकेश अंबानी की अगुवाई वाली जियो फाइनेंशियल सर्विसेज (Jio Financial Services) ने अपने निवेश एडवायजरी बिजनेस में एक और बड़ा निवेश किया है। यह वही बिजनेस है, जिसे कंपनी ने सितंबर 2023 में ब्लैकरॉक एडवायजर्स सिंगापुर (BlackRock Advisors Singapore) के साथ मिलकर शुरू किया था।
रिलायंस इंडस्ट्रीज (Reliance Industries) ने 20 जुलाई 2023 को अपने फाइनेंशियल सर्विसेज बिजनेस को अलग करने का फैसला किया था और इसका नाम बदलकर जियो फाइनेंशियल सर्विसेज रखा गया। कंपनी अगस्त 2023 में शेयर बाजार में लिस्ट हुई और तब से यह कई नए क्षेत्रों में कदम रख चुकी है।
ब्लैकरॉक के साथ ज्वाइंट वेंचर में नया निवेश
गुरुवार को किए गए एक ताजा ऐलान में जियो फाइनेंशियल सर्विसेज ने बताया कि उसने अपने ज्वाइंट वेंचर—Jio BlackRock Investment Advisers Private Limited में और निवेश किया है। यह ज्वाइंट वेंचर 50:50 की साझेदारी पर आधारित है, यानी इसमें जियो फाइनेंशियल सर्विसेज और ब्लैकरॉक दोनों की बराबर हिस्सेदारी है। दोनों कंपनियों ने मिलकर 6.65 करोड़ (6,65,00,000) शेयर खरीदे हैं, जिनकी फेस वैल्यू ₹10 प्रति शेयर है। इस नए निवेश के तहत जियो फाइनेंशियल सर्विसेज ने 66.5 करोड़ रुपये का निवेश किया है। कंपनी ने जानकारी दी कि यह रकम ज्वाइंट वेंचर के बिजनेस ऑपरेशन्स को आगे बढ़ाने में इस्तेमाल की जाएगी। अब तक इस ज्वाइंट वेंचर में कुल ₹84.5 करोड़ का निवेश किया जा चुका है।
क्या करता है Jio BlackRock Investment Advisers?
Jio BlackRock Investment Advisers Private Limited की शुरुआत 6 सितंबर 2023 को हुई थी। इसका मुख्य काम निवेश एडवायजरी सेवाएं देना है। जब यह वेंचर बना था, तब जियो फाइनेंशियल सर्विसेज ने इसमें शुरुआती तौर पर ₹3 करोड़ का निवेश किया था और 3 लाख (3,000,000) शेयर खरीदे थे।
जियो फाइनेंशियल सर्विसेज के शेयरों में हलचल
गुरुवार को BSE (बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज) पर जियो फाइनेंशियल सर्विसेज का शेयर ₹230.45 पर बंद हुआ। पिछले एक हफ्ते में कंपनी के शेयर 2% बढ़े हैं। एक महीने में इसमें 14% की तेजी आई है। हालांकि, 2025 की शुरुआत से अब तक कंपनी का शेयर 24% गिर चुका है।
ट्रंप के 25% ऑटो टैरिफ का बाजार पर असर, गाड़ियों की कीमतों में हो सकती है जबरदस्त बढ़ोतरी
3 Apr, 2025 12:06 PM IST | GRAMINBHARATTV.IN
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ऑटोमोबाइल सेक्टर के लिए 25% टैरिफ लगाने की घोषणा की है। यह टैरिफ सैकड़ों अरब डॉलर के गाड़ियों और ऑटो पार्ट्स के आयात को प्रभावित करेगा। एक रिपोर्ट के अनुसार, यह टैरिफ 3 मई से लागू होंगे और इसमें लगभग 150 तरह के ऑटो पार्ट्स शामिल किए गए हैं।
किन चीजों पर लगेगा टैरिफ?
नई टैरिफ लिस्ट में गाड़ियों के इंजन, ट्रांसमिशन, लिथियम-आयन बैटरी, टायर, शॉक एब्जॉर्बर, स्पार्क प्लग वायर और ब्रेक होज जैसे अहम पुर्जे शामिल हैं। इसके अलावा, कुछ इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट्स पर भी टैरिफ लगाया गया है। खास बात यह है कि ऑटोमोटिव कंप्यूटर भी उन इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों की श्रेणी में आ रहे हैं, जिन पर शुल्क लगेगा। 2024 में अमेरिका ने इस श्रेणी में $138.5 बिलियन का आयात किया था।
अलग से नहीं लगेगा कोई अतिरिक्त टैरिफ
ट्रंप प्रशासन के अधिकारियों ने स्पष्ट किया है कि ऑटो और ऑटो पार्ट्स पर लगाए गए ये नए 25% टैरिफ अलग से किसी अन्य बेसलाइन या रेसिप्रोकल (पारस्परिक) टैरिफ के तहत नहीं आएंगे। यानी, इन पर दोहरी दरें लागू नहीं होंगी।
भविष्य में और बढ़ सकती है टैरिफ लिस्ट
व्हाइट हाउस ने वाणिज्य विभाग को 90 दिनों के अंदर एक नई प्रक्रिया तैयार करने के लिए कहा है, जिससे अमेरिकी कंपनियां और ऑटो निर्माता सरकार से और अधिक आयातित ऑटो पार्ट्स पर टैरिफ लगाने की मांग कर सकें। इस फैसले से अमेरिकी बाजार में गाड़ियों की कीमतों पर असर पड़ सकता है और विदेशी ऑटो कंपनियों के लिए चुनौतियां बढ़ सकती हैं।
अमेरिका-मैक्सिको-कनाडा एग्रीमेंट के तहत राहत
अगर कोई वाहन अमेरिका-मैक्सिको-कनाडा व्यापार समझौते (USMCA) के नियमों के तहत आयात किया जाता है, तो उस पर केवल गैर-अमेरिकी हिस्सों के लिए ही 25% शुल्क देना होगा। इससे इन देशों से आने वाली गाड़ियों पर कुछ राहत मिल सकती है। ट्रंप प्रशासन के इस फैसले से ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में हलचल तेज हो गई है, क्योंकि यह टैरिफ सीधे उपभोक्ताओं और निर्माताओं पर असर डाल सकते हैं।
Textile Industry: ट्रंप के फैसले से भारत के कपड़ा कारोबार को मिलेगा नई जान, अमेरिका में बढ़ेगा एक्सपोर्ट
3 Apr, 2025 11:52 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सभी देशों से आने वाले आयातों पर नया टैरिफ लगाने का ऐलान किया है। इस फैसले से दुनिया के कई देशों को झटका लग सकता है, लेकिन भारत के कपड़ा उद्योग के लिए यह एक बड़ा अवसर बन सकता है। वियतनाम, बांग्लादेश और चीन जैसे देशों को अमेरिकी बाजार में अपने कपड़े बेचने के लिए अब ज्यादा शुल्क चुकाना होगा। इससे भारत की कपड़ा कंपनियों को अमेरिकी बाजार में अपनी पकड़ मजबूत करने का बढ़िया मौका मिलेगा।
भारत को कैसे मिलेगा फायदा?
भारत की तुलना में वियतनाम, बांग्लादेश और चीन जैसे प्रतिस्पर्धी देशों पर अमेरिका ने अधिक टैरिफ लगाया है। वियतनाम के कपड़ों पर 46%, बांग्लादेश के कपड़ों पर 37% और चीन के कपड़ों पर 54% टैक्स लगाया गया है। इसका मतलब है कि इन देशों के उत्पाद अब अमेरिकी बाजार में महंगे हो जाएंगे। दूसरी ओर, भारत को तुलनात्मक रूप से कम टैरिफ का सामना करना पड़ेगा, जिससे भारतीय कंपनियों के लिए अमेरिका में व्यापार बढ़ाने का सुनहरा मौका बनेगा।
भारतीय टेक्सप्रेन्योर्स फेडरेशन के संयोजक प्रभु धामोदरन ने कहा कि पहले भारत, बांग्लादेश और वियतनाम के लिए अमेरिका में समान टैक्स नियम थे। लेकिन अब भारत को इन देशों की तुलना में एक बड़ा लाभ मिलेगा। इससे भारतीय कपड़ा कंपनियां अमेरिकी बाजार में ज्यादा कंपटीटिव बन जाएंगी और उनका निर्यात बढ़ सकता है।
भारत और अमेरिका के बीच व्यापार वार्ता हो सकती है अहम
अगर भारत और अमेरिका के बीच व्यापार वार्ता सफल रहती है और भारत को कपास (cotton) के आयात पर “शून्य शुल्क” (zero duty) मिल जाता है, तो भारतीय कपड़ा उद्योग को और भी ज्यादा फायदा हो सकता है। भारत की अपैरल एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (AEPC) पहले ही सरकार से यह अनुरोध कर चुकी है कि “zero for zero” नीति अपनाई जाए, यानी भारत अपने कपड़ा उत्पादों पर टैरिफ हटाए, तो अमेरिका भी भारतीय कपड़ों पर टैक्स घटा सकता है।
तमिलनाडु स्पिनिंग मिल्स एसोसिएशन के सलाहकार के वेंकटाचलम ने सुझाव दिया कि अगर भारत अपने कपास के आयात पर 11% टैक्स हटाकर शून्य कर देता है, तो यह दोनों देशों के लिए फायदेमंद होगा। इससे भारतीय कंपनियां सस्ते दामों पर उत्पादन कर सकेंगी और अमेरिका में प्रतिस्पर्धा में और मजबूत हो जाएंगी।
भारतीय कंपनियों के लिए सुनहरा अवसर
अमेरिका भारतीय कपड़ा निर्यात का एक बड़ा बाजार है। 2024 में अमेरिका ने कुल $107.72 अरब डॉलर का कपड़ा आयात किया था, जिसमें से चीन की हिस्सेदारी $36 अरब (30%), वियतनाम की $15.5 अरब (13%), भारत की $9.7 अरब (8%) और बांग्लादेश की $7.49 अरब (6%) थी। बांग्लादेश में 2024 में राजनीतिक अस्थिरता के कारण उसकी बाजार हिस्सेदारी घटी है, जिससे भारत के लिए अवसर और बढ़ गया है।
विशेषज्ञों के अनुसार, Trident, Welspun India, Arvind, KPR Mill, Vardhman, Page Industries, Raymond और Alok Industries जैसी कंपनियों को सबसे ज्यादा फायदा हो सकता है क्योंकि उनका 20% से 60% तक का कारोबार अमेरिका से आता है।
क्या भारत अमेरिका का प्रमुख सप्लायर बन सकता है?
टीटी लिमिटेड के संजय कुमार जैन का मानना है कि शुरुआत में अमेरिकी कंपनियां अपने पुराने स्टॉक को खत्म करने में समय लेंगी। लेकिन अगर नए टैरिफ नियम लंबे समय तक लागू रहते हैं, तो अमेरिकी कंपनियों को कहीं न कहीं से कपड़े खरीदने ही होंगे। उस स्थिति में भारत सबसे सस्ता और विश्वसनीय विकल्प होगा और भारतीय कपड़ों की मांग तेजी से बढ़ सकती है।
भारत के लिए सही समय पर सही कदम उठाने का मौका
भारत के लिए यह एक महत्वपूर्ण समय है, जब वह अमेरिका में अपनी कपड़ा इंडस्ट्री को और मजबूत कर सकता है। भारत की GDP में कपड़ा उद्योग का योगदान सिर्फ 2% है, जबकि बांग्लादेश में यह 11% और वियतनाम में 15% है। इसका मतलब है कि भारत को अन्य देशों की तुलना में कम दबाव झेलना पड़ेगा और वह इस मौके का बेहतर इस्तेमाल कर सकता है।
Pharma Industry: अमेरिका ने सस्ती दवाओं पर लिया भारत के पक्ष में फैसला, कंपनियों को होगा भारी मुनाफा
3 Apr, 2025 11:44 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
अमेरिका ने हाल ही में अपने आयात नियमों में बदलाव करते हुए कई देशों पर नए टैरिफ लगाए हैं। लेकिन भारत की दवा कंपनियों को इससे छूट दी गई है। भारत की बड़ी दवा कंपनियों का प्रतिनिधित्व करने वाला संगठन इंडियन फार्मास्युटिकल एलायंस (IPA) ने इस फैसले का स्वागत किया है। यह संगठन उन कंपनियों का समूह है जो भारत के कुल दवा निर्यात का 80% से अधिक योगदान देती हैं।
IPA के महासचिव सुदर्शन जैन ने इस फैसले को सकारात्मक कदम बताया और कहा, “अमेरिका का यह फैसला दिखाता है कि भारत की सस्ती और जीवनरक्षक दवाएं दुनिया के लिए कितनी जरूरी हैं। ये दवाएं न केवल लोगों की सेहत के लिए महत्वपूर्ण हैं, बल्कि आर्थिक स्थिरता और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से भी बहुत अहम हैं।”
भारत और अमेरिका के व्यापारिक संबंध
भारत और अमेरिका के बीच व्यापार लगातार बढ़ रहा है। दोनों देशों ने “मिशन 500” के तहत आपसी व्यापार को $500 अरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा है। इस मिशन में दवा उद्योग की भूमिका बहुत अहम मानी जा रही है, क्योंकि भारत अमेरिका के लिए किफायती और असरदार दवाओं का एक प्रमुख सप्लायर है।
IPA का कहना है कि भारतीय दवा उद्योग दोनों देशों के व्यापारिक हितों को आगे बढ़ाने के लिए पूरी तरह से तैयार है। इससे दवा सप्लाई चेन मजबूत होगी और सभी लोगों को सस्ती दवाएं मिलती रहेंगी।
भारत सरकार से आयात शुल्क हटाने की अपील
IPA ने भारत सरकार से भी एक जरूरी मांग की है। संगठन का कहना है कि आयातित दवाओं पर लगने वाले 5-10% कस्टम ड्यूटी को हटाया जाना चाहिए। भारत हर साल अमेरिका को $8.7 अरब डॉलर की दवाएं निर्यात करता है, जबकि अमेरिका से केवल $800 मिलियन डॉलर की दवाएं खरीदता है। अगर सरकार कस्टम ड्यूटी हटा देती है, तो इससे भारतीय दवा उद्योग को और भी फायदा होगा।
क्या अमेरिका में दवा की कीमतें बढ़ सकती हैं?
अमेरिका में दवाओं की कीमत बढ़ने को लेकर चिंता जताई जा रही है। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि ट्रंप प्रशासन भारतीय दवाओं पर ज्यादा टैरिफ लगाने से बच सकता है, क्योंकि इससे अमेरिका में दवाओं की कीमतें बढ़ सकती हैं।
हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका भारतीय दवाओं पर 10% तक टैरिफ लगा सकता है। अगर ऐसा हुआ, तो भारतीय दवा कंपनियों के पास दो ही विकल्प होंगे –
या तो वे टैरिफ का खर्च ग्राहकों से वसूल करें, जिससे अमेरिका में दवाएं महंगी हो जाएंगी।
या फिर इस अतिरिक्त लागत को खुद वहन करें, जिससे दवा कंपनियों, दवा विक्रेताओं और सप्लाई चेन पर दबाव बढ़ेगा।
भारत के दवा उद्योग को क्या फायदा होगा?
अमेरिका का यह फैसला भारत की दवा कंपनियों के लिए बहुत फायदेमंद साबित हो सकता है। इससे कंपनियों को अमेरिकी बाजार में अपनी पकड़ मजबूत करने का मौका मिलेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर भारत सरकार दवा उद्योग को और सहूलियतें देती है, तो भारत दुनिया के सबसे बड़े दवा निर्यातक देशों में अपनी स्थिति और मजबूत कर सकता है। अब यह देखना होगा कि अमेरिका इस सेक्टर पर आगे कोई नया टैरिफ लगाता है या नहीं। लेकिन फिलहाल, भारतीय दवा कंपनियों के लिए यह एक बहुत बड़ी राहत की खबर है।
भारत पर 26% टैरिफ, ट्रंप ने कहा- ‘PM मोदी से रिश्ते अच्छे लेकिन अमेरिका के साथ सही व्यवहार जरूरी’
3 Apr, 2025 11:36 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) ने गुरुवार को भारत और अन्य देशों से होने वाले सभी आयात पर ‘रेसिप्रोकल टैरिफ (reciprocal tariffs) लगाने का ऐलान कर दिया। उन्होंने इस फैसले को “काइंड रेसिप्रोकल” (kind reciprocal) करार दिया।
ट्रंप ने कहा कि भारत की टैरिफ नीतियां “बहुत ही सख्त” हैं। इसलिए अमेरिका भारत से होने वाले सभी आयात पर 26 फीसदी शुल्क लगाएगा, जो कि भारत द्वारा अमेरिकी उत्पादों पर लगाए जाने वाले शुल्क का आधा है।
‘मोदी मेरे दोस्त, लेकिन अमेरिका के साथ सही व्यवहार नहीं’
व्हाइट हाउस में ‘मेक अमेरिका वेल्दी अगेन’ नामक अपने संबोधन में ट्रंप ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हाल की अमेरिका यात्रा का जिक्र किया। उन्होंने कहा, “वह (पीएम मोदी) मेरे अच्छे दोस्त हैं। लेकिन मैंने उनसे कहा, ‘तुम मेरे दोस्त हो, लेकिन अमेरिका के साथ सही व्यवहार नहीं कर रहे हो।’ वे हमसे 52 फीसदी शुल्क वसूलते हैं जबकि हम दशकों तक उनसे कुछ नहीं लेते रहे। यह सब सात साल पहले तब बदला जब मैंने पद संभाला।”
कुल मिलाकर ट्रंप ने लगभग सभी आयात पर कम से कम 10 फीसदी टैरिफ लगाने की घोषणा की, जबकि जिन देशों के साथ अमेरिका का व्यापार घाटा सबसे ज्यादा है, उनके लिए टैरिफ दरें और ऊंची होंगी। इसके साथ ही ट्रंप ने यह भी कहा कि अमेरिका सभी विदेशी निर्मित गाड़ियों पर 25 फीसदी टैरिफ लगाएगा ताकि “खतरनाक व्यापार असंतुलन” को ठीक किया जा सके, जिससे अमेरिकी औद्योगिक आधार प्रभावित हुआ है।
ट्रंप ने कहा, “पिछले 50 वर्षों से अमेरिकी टैक्स पेयर्स का शोषण होता आया है, लेकिन अब ऐसा नहीं होने दिया जाएगा।” व्हाइट हाउस के मुताबिक, यह टैरिफ घोषणा के तुरंत बाद प्रभाव में आ जाएगा।
वरिष्ठ अधिकारियों की स्थिति पर नजर
भारत सरकार ने ट्रंप की घोषणाओं पर निगरानी रखने के लिए एक नियंत्रण कक्ष स्थापित किया है। वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय सहित कई मंत्रालयों के वरिष्ठ अधिकारी स्थिति पर करीबी नजर बनाए हुए हैं।
टैरिफ की घोषणा से पहले भारत ने अमेरिका से छूट प्राप्त करने के लिए राजनयिक स्तर पर कोशिशें की थीं। पिछले महीने केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल इस उद्देश्य से वॉशिंगटन डीसी गए थे। उनका दौरा भारत-अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार समझौते को आगे बढ़ाने और आर्थिक सहयोग के नए रास्ते तलाशने की कोशिश का हिस्सा था।
31 मार्च को अमेरिका के व्यापार प्रतिनिधि कार्यालय (USTR) ने एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें बताया गया कि अमेरिका के मुकाबले अन्य देश कैसे टैरिफ लगाते हैं। रिपोर्ट में कहा गया कि भारत की टैरिफ और गैर-टैरिफ नीतियां वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं में सबसे ज्यादा प्रतिबंधात्मक हैं। विशेष रूप से कृषि, दवाइयों, चिकित्सा उपकरणों और डिजिटल सेवाओं के क्षेत्रों में भारत द्वारा अमेरिकी आयात पर ऊंचे टैरिफ और कई तरह की नियामकीय बाधाएं लागू हैं।
‘ट्रम्प के टैरिफ से घरेलू कंपनियां प्रभावित होंगी’: FIEO
डोनल्ड ट्रंप द्वारा भारत से आयात पर 26 प्रतिशत शुल्क लगाए जाने की घोषणा पर प्रतिक्रिया देते हुए भारतीय निर्यात संगठन महासंघ (FIEO) ने कहा है कि यह निर्णय घरेलू कंपनियों को निश्चित रूप से प्रभावित करेगा।
हालांकि, FIEO के महानिदेशक और सीईओ अजय साहनी ने कहा कि भारत की स्थिति अन्य कई देशों की तुलना में बेहतर है। उन्होंने उम्मीद जताई कि प्रस्तावित द्विपक्षीय व्यापार समझौता जल्द पूरा होगा, जिससे इन प्रतिस्पर्धात्मक शुल्कों से राहत मिल सकेगी।
साहनी ने कहा, “हमें इस कदम के प्रभाव का मूल्यांकन करना होगा, लेकिन अन्य देशों पर लगाए गए प्रतिस्पर्धात्मक शुल्कों को देखते हुए भारत अपेक्षाकृत निचले स्तर पर है। वियतनाम, चीन, इंडोनेशिया, म्यांमार जैसे हमारे प्रमुख प्रतिस्पर्धियों की तुलना में हमारी स्थिति कहीं बेहतर है। इन शुल्कों का असर हम पर ज़रूर पड़ेगा, लेकिन हम कई अन्य देशों की तुलना में बेहतर स्थिति में हैं।”
भारत के लिए विशेष टैरिफ, ट्रंप ने कौन से देशों पर लगाए जवाबी टैक्स?
3 Apr, 2025 10:51 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
Trump Tariffs: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) ने बुधवार को एक बड़ा कदम उठाते हुए सभी आयातों पर न्यूनतम 10 फीसदी टैक्स लगाने और व्यापार घाटे वाले दर्जनों देशों पर इससे कहीं ज्यादा दरों से शुल्क लगाने का एलान कर दिया।
व्हाइट हाउस के रोज़ गार्डन से दिए गए एक बयान में ट्रंप ने इस फैसले को “आर्थिक स्वतंत्रता की घोषणा” करार दिया और कहा कि यह कदम घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देगा और विदेशी प्रतिस्पर्धियों के साथ समान शर्तों पर प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करेगा।
नई टैरिफ संरचना के अंतर्गत सभी आयातों पर समान रूप से 10 फीसदी का फ्लैट टैक्स लगाया गया है, जबकि कुछ प्रमुख व्यापारिक भागीदारों पर इससे कहीं ज्यादा दरें लागू होंगी। कंबोडिया पर सबसे ज्यादा 49 फीसदी का शुल्क लगाया गया है, उसके बाद वियतनाम पर 46 फीसदी, श्रीलंका पर 44 फीसदी और चीन पर 34 फीसदी का शुल्क लागू किया गया है। भारत से होने वाले आयात पर 26 फीसदी का “डिस्काउंटेड रेसिप्रोकल टैरिफ” लगाया गया है, जिसकी घोषणा भी ट्रंप ने अपने बयान में की।
व्हाइट हाउस की ओर से लगाए गए टैरिफ की पूरी लिस्ट
सबसे ज्यादा टैरिफ (40% और उससे ज्यादा)
Lesotho: 50 per cent (charges US 99 per cent)
Saint Pierre and Miquelon: 50 per cent (charges US 99 per cent)
Cambodia: 49 per cent (charges US 97 per cent)
Laos: 48 per cent (charges US 95 per cent)
Madagascar: 47 per cent (charges US 93 per cent)
Vietnam: 46 per cent (charges US 90 per cent)
Myanmar: 44 percent (charges US 88 per cent)
Sri Lanka: 44 per cent (charges US 88 per cent)
Falkland Islands: 41 per cent (charges US 82 per cent)
Syria: 41 per cent (charges US 81 per cent)
मॉडरेट से हाई टैरिफ(20 से 39%)
Iraq: 39 per cent (charges US 78 per cent)
Guyana: 38 per cent (charges US 76 per cent)
Bangladesh: 37 per cent (charges US 74 per cent)
Botswana: 37 per cent (charges US 74 per cent)
Reunion: 37 per cent (charges US 73 per cent)
Serbia: 37 per cent (charges US 74 per cent)
Thailand: 36 per cent (charges US 72 per cent)
Bosnia and Herzegovina: 35 per cent (charges US 70 per cent)
China: 34 per cent (charges US 67 per cent)
North Macedonia: 33 per cent (charges US 65 per cent)
Angola: 32 per cent (charges US 63 per cent)
Indonesia: 32 per cent (charges US 64 per cent)
Taiwan: 32 per cent (charges US 64 per cent)
Libya: 31 per cent (charges US 61 per cent)
Moldova: 31 per cent (charges US 61 per cent)
Switzerland: 31 per cent (charges US 61 per cent)
Algeria: 30 per cent (charges US 59 per cent)
South Africa: 30 per cent (charges US 60 per cent)
Tunisia: 28 per cent (charges US 55 per cent)
Kazakhstan: 27 per cent (charges US 54 per cent)
India: 26 per cent (charges US 52 per cent)
South Korea: 25 per cent (charges US 50 per cent)
Japan: 24 per cent (charges US 46 per cent)
Malaysia: 24 per cent (charges US 47 per cent)
Cote d’Ivoire: 21 per cent (charges US 41 per cent)
Namibia: 21 per cent (charges US 42 per cent)
European Union: 20 per cent (charges US 39 per cent)
Jordan: 20 per cent (charges US 40 per cent)
कम या मानकीकृत टैरिफ(10 से 19%)
Nicaragua: 18 per cent (charges US 36 per cent)
Malawi: 17 per cent (charges US 34 per cent)
Philippines: 17 per cent (charges US 34 per cent)
Israel: 17 per cent (charges US 33 per cent)
Zambia: 17 per cent (charges US 33 per cent)
Mozambique: 16 per cent (charges US 31 per cent)
Venezuela: 15 per cent (charges US 29 per cent)
Nigeria: 14 per cent (charges US 27 per cent)
Equatorial Guinea: 13 per cent (charges US 25 per cent)
Cameroon: 11 per cent (charges US 22 per cent)
Argentina: 10 per cent (charges US 10 per cent)
Australia: 10 per cent (charges US 10 per cent)
Azerbaijan: 10 per cent (charges US 10 per cent)
Bahamas: 10 per cent (charges US 10 per cent)
Bahrain: 10 per cent (charges US 10 per cent)
Bolivia: 10 per cent (charges US 20 per cent)
Brazil: 10 per cent (charges US 10 per cent)
Chile: 10 per cent (charges US 10 per cent)
Colombia: 10 per cent (charges US 10 per cent)
Costa Rica: 10 per cent (charges US 17 per cent)
Dominican Republic: 10 per cent (charges US 10 per cent)
Ecuador: 10 per cent (charges US 12 per cent)
Egypt: 10 per cent (charges US 10 per cent)
El Salvador: 10 per cent (charges US 10 per cent)
Ethiopia: 10 per cent (charges US 10 per cent)
Georgia: 10 per cent (charges US 10 per cent)
Ghana: 10 per cent (charges US 17 per cent)
Guatemala: 10 per cent (charges US 10 per cent)
Haiti: 10 per cent (charges US 10 per cent)
Honduras: 10 per cent (charges US 10 per cent)
Iceland: 10 per cent (charges US 10 per cent)
Jamaica: 10 per cent (charges US 10 per cent)
Kenya: 10 per cent (charges US 10 per cent)
Lebanon: 10 per cent (charges US 10 per cent)
Morocco: 10 per cent (charges US 10 per cent)
New Zealand: 10 per cent (charges US 20 per cent)
Oman: 10 per cent (charges US 10 per cent)
Panama: 10 per cent (charges US 10 per cent)
Paraguay: 10 per cent (charges US 10 per cent)
Peru: 10 per cent (charges US 10 per cent)
Qatar: 10 per cent (charges US 10 per cent)
Saudi Arabia: 10 per cent (charges US 10 per cent)
Senegal: 10 per cent (charges US 10 per cent)
Singapore: 10 per cent (charges US 10 per cent)
Tanzania: 10 per cent (charges US 10 per cent)
Trinidad and Tobago: 10 per cent (charges US 12 per cent)
Turkey: 10 per cent (charges US 10 per cent)
UAE: 10 per cent (charges US 10 per cent)
Uganda: 10 per cent (charges US 20 per cent)
Ukraine: 10 per cent (charges US 10 per cent)
United Kingdom: 10 per cent (charges US 10 per cent)
Uruguay: 10 per cent (charges US 10 per cent)
“लिबरेशन डे” आर्थिक एजेंडे का हिस्सा
यह कदम, ट्रम्प के व्यापक “लिबरेशन डे” आर्थिक एजेंडे का हिस्सा है, जिसे उनके प्रशासन द्वारा अनुचित व्यापार प्रथाओं को सुधारने के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीति के रूप में माना जाता है, जो कि अन्य देशों द्वारा अमेरिकी उत्पादों पर लगाए गए शुल्कों से मेल खाते हैं। हालांकि, अर्थशास्त्रियों ने चेतावनी दी है कि इस कदम से प्रतिशोधात्मक उपाय हो सकते हैं और पहले से ही मुद्रास्फीति से जूझ रहे अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए कीमतें बढ़ सकती हैं।
ट्रंप ने कहा- मोदी मेरे दोस्त, लेकिन…
व्हाइट हाउस में ‘मेक अमेरिका वेल्दी अगेन’ नामक अपने संबोधन में ट्रंप ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हाल की अमेरिका यात्रा का जिक्र किया। उन्होंने कहा, “वह (पीएम मोदी) मेरे अच्छे दोस्त हैं। लेकिन मैंने उनसे कहा, ‘तुम मेरे दोस्त हो, लेकिन अमेरिका के साथ सही व्यवहार नहीं कर रहे हो।’ वे हमसे 52 फीसदी शुल्क वसूलते हैं जबकि हम दशकों तक उनसे कुछ नहीं लेते रहे। यह सब सात साल पहले तब बदला जब मैंने पद संभाला।”
कुल मिलाकर ट्रंप ने लगभग सभी आयात पर कम से कम 10 फीसदी टैरिफ लगाने की घोषणा की, जबकि जिन देशों के साथ अमेरिका का व्यापार घाटा सबसे ज्यादा है, उनके लिए टैरिफ दरें और ऊंची होंगी। इसके साथ ही ट्रंप ने यह भी कहा कि अमेरिका सभी विदेशी निर्मित गाड़ियों पर 25 फीसदी टैरिफ लगाएगा ताकि “खतरनाक व्यापार असंतुलन” को ठीक किया जा सके, जिससे अमेरिकी औद्योगिक आधार प्रभावित हुआ है।
ट्रंप ने कहा, “पिछले 50 वर्षों से अमेरिकी टैक्स पेयर्स का शोषण होता आया है, लेकिन अब ऐसा नहीं होने दिया जाएगा।” व्हाइट हाउस के मुताबिक, यह शुल्क घोषणा के तुरंत बाद प्रभाव में आ जाएगा।
मैन्युफैक्चरिंग पीएमआई 58.1 तक पहुंचा, मार्च में इंडस्ट्रियल सेक्टर में तेज रफ्तार आई
2 Apr, 2025 05:28 PM IST | GRAMINBHARATTV.IN
Manufacturing PMI for March : प्राइवेट सेक्टर के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत की मैन्युफैक्चरिंग गतिविधि मार्च में सुधरी है जो मांग की स्थिति में तेजी के बीच फैक्ट्री ऑर्डर और प्रोडक्शन में तेज बढ़ोतरी के कारण हुआ है. एचएसबीसी इंडिया मैन्युफैक्चरिंग पर चेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआई) मार्च में 58.1 पर था, जो फरवरी में 56.3 था. वहीं, पिछले महीने फरवरी में यह स्तर 56.3 के स्तर पर रही थी. बता दें, कि 50 से अधिक का नंबर मैन्युफैक्चरिंग गतिविधियों में विस्तार का संकेत होता है. वहीं 50 से नीचे का आंकड़ा मैन्युफैक्चरिंग गतिविधियों में गिरावट के आने का संकेत होता है.
खपत में आई तेजी
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, फरवरी में नए ऑर्डर और प्रोडक्शन में धीमी ग्रोथ के बीच भारत का मैनुफैक्चरिंग पीएमआई 14 महीने के निचले स्तर पर आ गया था. घरेलू ऑर्डर बुक में सुधार के कारण एचएसबीसी इंडिया मैन्युफैक्चरिंग पर चेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स ने पिछले वित्त वर्ष में आठवीं बार 57 से ऊपर का स्तर दर्ज किया है. हालांकि ऑटो कंपनियों के सेल्स आंकड़ों से भी पता चलता है कि ब्रिकी में बढ़ोतरी हुई है. महिंद्रा एंड महिंद्रा ने मार्च में बिक्री में एक साल पहले की समान अवधि के मुकाबले 18 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की है. इतना ही नहीं, ट्रैक्टर निर्माता एस्कॉर्ट्स कुबोटा की बिक्री में 15 फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई है.
जीएसटी कलेक्शन और यूपीआई लेनदेन बढ़ा
देश का जीएसटी कलेक्शन भी वित्त वर्ष के अंत में 1.96 लाख करोड़ रुपए पर रहने के साथ 11 महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है. जबकि यूपीआई लेनदेन 25 करोड़ रुपए के करीब पहुंच गया. हालांकि, कोयला उत्पादन निराशाजनक रहा और वित्त वर्ष के अंतिम महीने में यह 31. फीसदी तक घट गया.
इकोनॉमी की विकास दर 6.5 फीसदी रहने की उम्मीद
सरकार को उम्मीद है कि वित्त वर्ष 2025 में इकोनॉमी की विकास दर 6.5 फीसदी रहेगी. लेकिन मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का प्रदर्शन कमजोर रहने की संभावना है. ये पिछले वित्त वर्ष के 12.3 फीसदी से घटकर 4.3 फीसदी पर आ सकता है.
मुंबई के सिद्धिविनायक मंदिर ने सालभर में 133 करोड़ रुपये का दान लिया, खजाना हुआ भरपूर
2 Apr, 2025 05:23 PM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मुंबई का प्रसिद्ध सिद्धिविनायक मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का एक बड़ा केंद्र है. हर साल लाखों लोग यहां दर्शन के लिए आते हैं और दान देते हैं. अरबपतियों से लेकर हर आम इंसान मंदिर में दर्शन के बाद दान करके जाते हैं. जिससे हर साल मंदिर के खजाने में अरबों रुपए आते हैं. वित्तीय वर्ष 2023-24 में मंदिर ने 133 करोड़ रुपये की रिकॉर्ड कमाई की है, जो अब तक की सबसे ज्यादा सालाना कमाई मानी जा रही है. \
दान और चढ़ावे से ऐतिहासिक कमाई
सिद्धिविनायक गणपति मंदिर को इस साल श्रद्धालुओं से नकद दान, सोना-चांदी, ऑनलाइन ट्रांजैक्शन और अन्य माध्यमों से बड़ी रकम प्राप्त हुई. मंदिर प्रशासन के अनुसार, भक्तों की बढ़ती संख्या और ऑनलाइन डोनेशन विकल्पों के कारण यह आय लगातार बढ़ रही है.
इनसे हुई रिकॉर्ड कमाई
दान पेटी से प्राप्त नकद दान- 98 करोड़
सोना और चांदी के दान 7 करोड़
ऑनलाइन डोनेशन 18 करोड़
अन्य आय स्रोत (प्रसाद, पूजा बुकिंग आदि) 10 करोड़
पिछले साल की तुलना में बड़ी बढ़ोतरी
पिछले वित्तीय वर्ष 2022-23 में मंदिर की कुल आय 80 करोड़ रुपये थी. इस साल यह आय करीब 66% अधिक रही, जो दर्शाता है कि मंदिर की लोकप्रियता और भक्तों की आस्था लगातार बढ़ रही है.
कहां होता है ये पैसा इस्तेमाल?
सिद्धिविनायक मंदिर ट्रस्ट इस आय का उपयोग सामाजिक कल्याण योजनाओं, शिक्षा, चिकित्सा सुविधाओं, और गरीबों की सहायता के लिए करता है. इसके अलावा, मंदिर की सुरक्षा, रखरखाव और विस्तार कार्यों पर भी यह राशि खर्च की जाती है.
हर साल गणेश चतुर्थी और अन्य महत्वपूर्ण अवसरों पर लाखों श्रद्धालु मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं. बॉलीवुड सितारे, बिजनेसमैन और आम जनता सभी इस मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना के लिए पहुंचते हैं.
सबसे ज्यादा होती है कमाई
सिद्धिविनायक मंदिर ही नहीं, भारत के अन्य धार्मिक स्थलों को भी हर साल सौ करोड़ से ज़्यादा का दान मिलता है. दान के मामले में आंध्र प्रदेश का तिरुपति वेंकटेश्वर मंदिर पूरे भारत में सबसे आगे है. इस मंदिर को सालाना 1500 करोड़ से लेकर 1650 करोड़ रुपये तक का दान मिलता है. इस सूची में अगला नाम केरल के पद्मनाभस्वामी मंदिर का है. इस मंदिर को हर साल भक्त 750 करोड़ से लेकर 800 करोड़ रुपये तक का दान देते हैं. वर्तमान में तीसरे स्थान पर मौजूद राम मंदिर को एक साल में 700 करोड़ रुपये का दान मिलने की खबर है.
वॉरेन बफे का नया कीर्तिमान, मस्क, बेजोस और जुकरबर्ग को पीछे छोड़कर बने सबसे बड़े कारोबारी
2 Apr, 2025 05:09 PM IST | GRAMINBHARATTV.IN
ना एलन मस्क, ना ही जेफ बेजोस और ना ही मेटा के को फाउंडर मार्क जुकरबर्ग. साल 2025 के शुरुआती 90 दिनों में जो कमाल 94 साल के दुनिया के सबसे उम्रदराज अरबपति ने कर दिया है, वो इनमें से कोई नहीं कर सका. जी हां, साल 2025 के 90 से ज्यादा खत्म हो चुके हैं. इस दौरान दुनिया के अरबपतियों की दौलत को एनालाइज किया जाए तो 94 साल के अरबपति के सामने सभी नतमस्तक हो गए हैं. दुनिया का ये सबसे उम्रदराज कारोबारी कोई और नहीं बल्कि वॉरेन बफे है.
जिसकी दौलत में साल 2025 में सबसे ज्यादा इजाफा देखने को मिला है. इस 90 दिनों के दौरान वॉरेन बफे की नेटवर्थ में 24.5 अरब डॉलर का इजाफा देखने को मिला है. वहीं दूसरी ओर दुनिया के टॉप 17 अरबपतियों में से 15 अरबपति ऐसे हैं, जिनकी दौलत में गिरावट ही देखने को मिली है. वॉरेन बफे के बाद बिलगेट्स ही ऐसे अरबपति हैं, जिनकी दौलत में इस साल बढ़ोतरी हुई है. वर्ना मार्क जुकरबर्ग करीब 70 मिलियन डॉलर और एलन मस्क 110 अरब डॉलर नेटवर्थ गंवा चुके हैं. आइए ब्लूमबर्ग के आंकड़ों को समझने की कोशिश करते हैं और देखते हैं कि दुनिया के सबसे अमीर कारोबारी की दौलत में कैसे और कितना इजाफा देखने को मिला है.
दुनिया के सबसे उम्रदराज कारोबारी वॉरेन बफे
दुनिया के सबसे बड़े इंवेस्टर वॉरेन बफे दुनिया के सबसे उम्रदराज अरबपति भी हैं. वॉरेन बफे की उम्र 94 साल है. वहीं उसके बाद अरनॉल्ट बर्नार्ड और जिम वॉल्टन की उम्र 76 वर्ष है. ब्लूमबर्ग बिलेनियर्स इंडेक्स के आंकड़ों के अनुसार वॉरेन बफे की नेटवर्थ मौजूदा समय में 167 अरब डॉलर है और वो दुनिया के 5वें सबसे अमीर कारोबारी हैं. वहीं दूसरी ओर दुनिया के चौथे सबसे अमीर कारोबारी अरनॉल्ट बर्नार्ड की नेटवर्थ 168 अरब डॉलर देखने को मिल रही है. मंगलवार को वॉरेन बफे की दौलत में दुनिया के बाकी अरबपतियों के मुकाबले काफी कम यानी 194 मिलियन डॉलर का इजाफा देखने को मिला है. उसके बाद भी साल 2025 में वॉरेन बफे का नाम एलन मस्क और मार्क जुकरबर्ग से ऊपर देखने को मिल रहा है ये अपने आप में बड़ा सवाल है.
2025 में बनें नंबर 1
साल 2025 में वो एलन मस्क, जेफ बेजोस और मार्क जुकरबर्ग यानी दुनिया के टॉप 3 अरबपतियों से ऊपर देखने को मिल रहे हैं, लेकिन कैसे. आइए आपको भी समझाने की कोशिश करते हैं. टॉप 3 अरबपतियों की दौलत में इस साल बड़ी गिरावट देखने को मिली है. आंकड़ों को देखें तो एलन मस्क की दौलत में 110 अरब डॉलर, जेफ बेजोस की नेटवर्थ में 25.4 अरब डॉलर और मार्क जुकरबर्ग की नेटवर्थ 69.3 मिलियन डॉलर की गिरावट देखने को मिली है. जबकि दुनिया के सबसे उम्रदराज कारोबारी की नेटवर्थ में 24.5 अरब डॉलर की बढ़ोतरी देखने को मिली है, जो मौजूदा समय में दुनिया के किसी अरबपति के मुकाबले में सबसे ज्यादा है.
टॉप 17 में सिर्फ दो ही फायदे में
खास बात तो ये है कि ब्लूमबर्ग बिलेनियर्स इंडेक्स के अनुसार दुनिया के टॉप 17 अरबपतियों में सिर्फ दो ही ऐसे अरबपति हैं, जिनकी नेटवर्थ में इजाफा देखने को मिला है. बाकी अरबपतियों की दौलत में गिरावट ही देखने को मिली है. जैसा कि हम पहले ही आपको बता चुके हैं वॉरेन बफे की नेटवर्थ में इजाफा हुआ है जबकि दूसरा कारोबारी कोई और नहीं बल्कि बिल गेट्स हैं. जिनकी नेटवर्थ में 2.86 अरब डॉलर का इजाफा देखने को मिला है. मंगलवार को उनकी नेटवर्थ में 830 मिलियन डॉलर का इजाफा देखने को मिला है. इसका मतलब है कि दुनिया के टॉप 50 अरबपतियों में 30 कारोबारी ऐसे हैं जिनकी दौलत में गिरावट देखी गई है. वहीं 20 अरबपतियों की दौलत में इजाफा देखने को मिला है.
3 हफ्तों में 12 अरब डॉलर का इजाफा
अगर बात बीते 3 हफ्तों की बात करें तो वॉरेन बफे की दौलत में 12 अरब डॉलर का इजाफा देखने काे मिला है. ब्लूमबर्ग बिनेलियर्स इंडेक्स के अनुसार 10 मार्च को वाॅरेन बफे की नेटवर्थ 155 अरब डॉलर देखने को मिली थी. उसके बाद से उनकी नेथवर्थ में 12 अरब डॉलर की बढ्ोतरी देखने को मिली है. जिसके बाद उनकी कुल नेथ्वर्थ 167 अरब डॉलर हो गई है.
मौद्रिक नीति में बदलाव से पहले RBI का ऐतिहासिक कदम, बैंकों को ₹80,000 करोड़ की राहत
2 Apr, 2025 12:15 PM IST | GRAMINBHARATTV.IN
भारतीय रिजर्व बैंक ने अप्रैल की मौद्रिक नीति समीक्षा बैठक से ठीक एक सप्ताह पहले बैंकिंग प्रणाली में खुले बाजार परिचालन के जरिये 80,000 करोड़ रुपये डालने की घोषणा की। इसे बैंकों के लिए नीतिगत ब्याज दरों में कटौती का लाभ सुनिश्चित करने के कदम के रूप में देखा जा रहा है। अतिरिक्त नकदी होने से नीतिगत दरों का लाभ आगे बढ़ाने में मदद मिलती है और इसका विपरीत होने पर मुश्किल होता है।
रिजर्व बैंक की बॉन्ड खरीद चार खंडों में 3 अप्रैल, 8 अप्रैल, 22 अप्रैल और 29 अप्रैल को हर बार 20,000 करोड़ रुपये की होगी। रिजर्व बैंक के अनुसार इस कदम से नकदी की समुचित स्थिति सुनिश्चित होगी। केंद्रीय बैंक ने ओएमओ की घोषणा करते हुए कहा, ‘रिजर्व बैंक नकदी की समुचित स्थितियों का आकलन करने के लिए बढ़ती नकदी और मार्केट की बदलती स्थितियों पर नजर रखेगा।’ यह कदम चार महीने बाद शनिवार और रविवार को बैंकिंग प्रणाली में नकदी की स्थिति अधिशेष होने के बाद उठाया गया है।
अर्थशास्त्रियों के अनुसार ‘ओएमओ की खरीदारी योजना संकेत है कि रिजर्व बैंक का लक्ष्य बैंकिंग प्रणाली में समुचित अधिशेष नकदी को कायम रखने पर है। अधिशेष ब्याज दरों में कटौती के लिए अनिवार्य भी है।’
आईडीएफसी फर्स्ट बैंक की मुख्य अर्थशास्त्री गौरा सेन गुप्ता ने कहा, ‘बीती स्थितियों ने दर्शाया है कि नकदी नियमित रूप से 1 लाख करोड़ से 2 लाख करोड़ रुपये रहने पर ही बदलाव होता है। इस उम्मीद के बावजूद रिजर्व बैंक अपने लाभांश के कारण इन गतिविधियों को सुस्त कर सकता है। केंद्रीय बैंक के कदमों से लगता है कि वह बदलाव के लिए समुचित नकदी सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है। हालांकि रिजर्व बैंक की आगामी बैठक में रुख में बदलाव होने की उम्मीद नहीं है।’
यह उम्मीद जबरदस्त ढंग से लगाई जा रही है कि भारतीय रिजर्व बैंक की छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति 7 से 9 अप्रैल को प्रस्तावित बैठक में दूसरी बार नीतिगत रीपो दर में 25 आधार अंक की कटौती कर सकती है। घरेलू दर तय करने वाली समिति ने नीतिगत रीपो दर को लगातार 11 बैठकों में यथावत रखने के बाद इसमें फरवरी की बैठक में 25 आधार अंक की कटौती की थी। भारतीय रिजर्व बैंक के नवीनतम आकंड़े के अनुसार रविवार को शुद्ध नकदी 89.398 करोड़ रुपये थी। मुख्य नकदी 21 मार्च को 1.1 लाख करोड़ रुपए अधिक थी।
स्विगी को ₹158 करोड़ का टैक्स नोटिस, कंपनी इसे चुनौती देगी
2 Apr, 2025 11:54 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
फूड और ग्रॉसरी डिलीवरी प्लेटफॉर्म स्विगी (Swiggy) ने मंगलवार (1 अप्रैल) को बताया कि उसे अप्रैल 2021 से मार्च 2022 की अवधि के लिए 158 करोड़ रुपये से ज्यादा की अतिरिक्त टैक्स मांग वाला एक असेसमेंट ऑर्डर मिला है। कंपनी ने बताया कि यह आदेश आयकर विभाग के डिप्टी कमिश्नर, सेंट्रल सर्कल 1(1), बेंगलुरु द्वारा जारी किया गया है।
यह मामला कथित उल्लंघनों से जुड़ा है, जिसमें मर्चेंट्स को दिए गए कैंसलेशन चार्ज को इनकम टैक्स एक्ट, 1961 की धारा 37 के तहत अस्वीकार किया जाना और इनकम टैक्स रिफंड पर प्राप्त ब्याज को कर योग्य आय में शामिल न करना शामिल है।
Swiggy टैक्स डिमांड पर करेगी अपील
स्विगी ने एक एक्सचेंज फाइलिंग में कहा, “कंपनी को अप्रैल 2021 से मार्च 2022 की अवधि के लिए एक असेसमेंट ऑर्डर प्राप्त हुआ है, जिसमें ₹1,58,25,80,987 की अतिरिक्त आय जोड़ी गई है।”
कंपनी ने कहा कि उसे इस आदेश के खिलाफ मजबूत तर्कों पर भरोसा है और वह अपनी स्थिति की रक्षा के लिए रिव्यू/अपील के जरिए जरूरी कदम उठा रही है। कंपनी ने यह भी स्पष्ट किया कि इस आदेश का उसकी वित्तीय स्थिति और संचालन पर कोई बड़ा नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा।
Swiggy का शेयर अब तक 39% टूटा
स्विगी 13 नवंबर, 2024 को स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्ट हुई थी। बाजार में कदम रखने के बाद से फूड डिलीवरी कंपनी के शेयरों पर दबाव देखा गया है। पिछले तीन महीनों में कंपनी के शेयर 38.88% तक टूट चुका है। पिछले कारोबारी सत्र (1 अप्रैल) में स्विगी का शेयर 0.50% की तेजी लेकर 331.55 रुपये प्रति शेयर के भाव पर बंद हुआ। शेयर का 52 सप्ताह का हाई 617 रुपये और लो 312.80 रुपये है।