व्यापार
रसोई गैस हुई महंगी, कीमत ₹50 बढ़कर ₹853 हुई, इन शहरों में भी बड़े दाम
7 Apr, 2025 06:05 PM IST | GRAMINBHARATTV.IN
नई दिल्ली: महंगाई के मोर्चे पर आम जनता को एक और झटका लगा है. एलपीजी गैस सिलेंडर की कीमतों में बढ़ोतरी हुई है. घरेलू गैस सिलेंडर और उज्ज्वला योजना के तहत मिलने वाले सिलेंडर पर 50 रुपये प्रति सिलेंडर की बढ़ोतरी की गई है. केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने सोमवार को वितरण कंपनियों द्वारा रसोई गैस या एलपीजी की कीमत में 50 रुपये प्रति सिलेंडर की बढ़ोतरी की घोषणा की। मंत्री ने कहा कि उज्ज्वला और सामान्य श्रेणी के ग्राहकों दोनों के लिए गैस की कीमत में बढ़ोतरी की गई है. नई कीमतें आज आधी रात से लागू होंगी। आम उपभोक्ताओं के लिए 14.2 किलोग्राम वाले एलपीजी सिलेंडर की कीमत 803 रुपये से बढ़कर 853 रुपये हो जाएगी और उज्ज्वला योजना के तहत उपभोक्ताओं के लिए 14.2 किलोग्राम वाले सिलेंडर की कीमत 503 रुपये से बढ़कर 553 रुपये हो जाएगी।
मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा, "एलपीजी के प्रति सिलेंडर की कीमत में 50 रुपये की बढ़ोतरी होगी। 500 से यह 550 रुपये (पीएमयूवाई लाभार्थियों के लिए) हो जाएगा और अन्य के लिए यह 803 रुपये से बढ़कर 853 रुपये हो जाएगा। यह एक ऐसा कदम है जिसकी हम आगे समीक्षा करेंगे। हम हर 2-3 सप्ताह में इसकी समीक्षा करते हैं। इसलिए, आपने जो उत्पाद शुल्क में वृद्धि देखी है, उसका बोझ पेट्रोल और डीजल पर उपभोक्ताओं पर नहीं डाला जाएगा। उस उत्पाद शुल्क वृद्धि का उद्देश्य तेल विपणन कंपनियों को गैस पर हुए 43,000 करोड़ रुपये के घाटे की भरपाई करना है" पुरी ने कहा, "आपने वित्त मंत्रालय की एक अधिसूचना देखी होगी जिसमें कहा गया है कि पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क में वृद्धि की गई है। 2 रुपये की बढ़ोतरी की जा रही है। मैं पहले ही स्पष्ट कर दूं कि इसका बोझ उपभोक्ताओं पर नहीं डाला जाएगा।
कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमत घटकर 60 डॉलर प्रति बैरल के आसपास आ गई है, लेकिन कृपया याद रखें कि हमारी तेल विपणन कंपनियां 45 दिनों की अवधि के लिए स्टॉक रखती हैं। अगर आप जनवरी को देखें तो उस समय कच्चे तेल की कीमत 83 डॉलर थी, जो बाद में गिरकर 75 डॉलर हो गई। इसलिए उनके पास जो कच्चे तेल का स्टॉक है, उसकी कीमत औसतन 75 डॉलर प्रति बैरल है। आप उम्मीद कर सकते हैं कि तेल विपणन कंपनियां वैश्विक कीमत के हिसाब से पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कमी करेंगी।"
ब्लैक मंडे: शेयर बाजार में तबाही, सेंसेक्स में 2500 अंक की गिरावट, IT-मेटल इंडेक्स में 7% तक की गिरावट!
7 Apr, 2025 10:43 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
Sensex Crash: वैश्विक बाजारों में कमजोरी के बीच सोमवार (7 अप्रैल) भारतीय शेयर बाजार के लिए 'ब्लैक मंडे' साबित हुआ। अमेरिका ने 180 से ज्यादा देशों पर टैरिफ लगा दिया है। जवाब में चीन ने अमेरिकी उत्पादों पर 34 फीसदी का जवाबी टैरिफ लगा दिया है। इससे दुनिया में ग्लोबल ट्रेड वॉर की चिंता गहरा गई है। इसके अलावा विदेशी निवेशक लगातार बिकवाली कर रहे हैं। इसके चलते बाजार में चारों तरफ बिकवाली देखने को मिल रही है। बीएसई का 30 शेयरों वाला सेंसेक्स आज करीब 4000 अंकों की गिरावट के साथ 71,449.94 पर खुला। जबकि शुक्रवार को यह 75,364.69 अंकों पर बंद हुआ था। सुबह 9:20 बजे सेंसेक्स 3153.86 अंकों यानी 4.18 फीसदी की भारी गिरावट के साथ 72,210.83 पर था। इसी तरह नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) का निफ्टी-50 भी 1000 से ज्यादा अंकों की गिरावट के साथ 21,758.40 पर खुला। शुक्रवार को यह 22,904 पर बंद हुआ था। सुबह 9:24 बजे निफ्टी 996.15 अंकों यानी 4.35% की भारी गिरावट के साथ 21,908.30 अंकों पर था।
10 मिनट में निवेशकों को ₹18 लाख करोड़ का नुकसान
सोमवार को भारतीय शेयर बाजार में आई बड़ी गिरावट से निवेशकों को भारी नुकसान हुआ है। बाजार खुलते ही बीएसई में लिस्टेड कंपनियों का मार्केट कैप गिरकर 3,86,01,961 लाख करोड़ रुपये पर आ गया। शुक्रवार को यह 404,09,600 लाख करोड़ रुपये था। इस तरह बाजार खुलने के 10 मिनट के अंदर ही निवेशकों की दौलत 18,07,639 करोड़ रुपये घट गई।
शुक्रवार को कैसी रही बाजार की चाल?
इससे पहले शुक्रवार के कारोबारी सत्र में सेंसेक्स 930.67 अंक यानी 1.22% की गिरावट के साथ 75,364.69 पर बंद हुआ। वहीं, निफ्टी 50 में 345.65 अंकों की गिरावट आई और यह 1.49% की गिरावट के साथ 22,904.45 पर बंद हुआ।
वैश्विक बाजार में गिरावट जारी, एशियाई बाजारों में बड़ी गिरावट
सोमवार को एशियाई बाजारों में गिरावट का सिलसिला जारी रहा। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए टैरिफ के कारण वैश्विक व्यापार युद्ध की आशंका ने निवेशकों में घबराहट बढ़ा दी है। जापान का निक्केई इंडेक्स 8 फीसदी से ज्यादा गिरा, जबकि टॉपिक्स इंडेक्स 8.6 फीसदी गिरा। सर्किट ब्रेकर लगने से बाजार में भारी गिरावट के कारण जापानी वायदा कारोबार को अस्थायी रूप से रोक दिया गया। दक्षिण कोरिया के बाजारों में भी बड़ी गिरावट देखने को मिली। शुरुआती कारोबार में कोस्पी इंडेक्स 4.3 फीसदी गिरा, जबकि कोसडैक 3.4 फीसदी गिरा। ऑस्ट्रेलिया का ASX 200 इंडेक्स 6 फीसदी फिसला और अब अपने फरवरी के शिखर से 11 फीसदी नीचे है, यानी यह सुधार क्षेत्र में पहुंच गया है। अमेरिका में निवेशकों का भरोसा भी डगमगाता हुआ दिखाई दिया। डॉव जोन्स फ्यूचर्स में 979 अंक या 2.5 फीसदी की गिरावट आई। एसएंडपी 500 फ्यूचर्स में 2.9 फीसदी की गिरावट आई, जबकि नैस्डैक-100 फ्यूचर्स में 3.9 फीसदी की गिरावट आई।
इस बीच, अमेरिकी कच्चे तेल की कीमतें भी 60 डॉलर प्रति बैरल से नीचे गिर गईं। डब्ल्यूटीआई क्रूड फ्यूचर्स 3 फीसदी से ज्यादा गिरकर 59.74 डॉलर पर आ गया, जो अप्रैल 2021 के बाद सबसे निचला स्तर है। हालांकि, इतनी गिरावट के बावजूद ट्रंप प्रशासन के आर्थिक सलाहकारों ने महंगाई या मंदी को लेकर चिंता नहीं जताई है। उनका कहना है कि टैरिफ पर बाजार की प्रतिक्रिया मायने नहीं रखेगी और वे लागू रहेंगे। शुक्रवार को अमेरिकी शेयर बाजारों में तेज गिरावट देखी गई। इसका मुख्य कारण चीन द्वारा अमेरिकी सामानों पर 34 फीसदी अतिरिक्त टैरिफ लगाने की घोषणा थी। इससे वैश्विक व्यापार युद्ध की आशंका और गहरा गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था मंदी की ओर जा सकती है।
इस खबर के बाद, डॉव जोन्स इंडस्ट्रियल एवरेज में 5.5% की गिरावट आई, जो जून 2020 (कोविड महामारी के दौरान) के बाद सबसे बड़ी गिरावट है। एसएंडपी 500 इंडेक्स में भी 5.97% की गिरावट आई, जिसे मार्च 2020 के बाद सबसे बड़ी गिरावट माना जा रहा है। वहीं, टेक कंपनियों से भरे नैस्डैक इंडेक्स में भी 5.8% की गिरावट दर्ज की गई। खास बात यह है कि दिसंबर के शीर्ष स्तर से लेकर अब तक नैस्डैक में कुल 22% की गिरावट आ चुकी है, जिसके चलते यह बियर मार्केट में प्रवेश कर चुका है।
आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति की बैठक आज से शुरू
भारतीय रिजर्व बैंक की छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की सोमवार को बैठक होगी। यह चालू वित्त वर्ष की पहली बैठक होगी। उम्मीद है कि आरबीआई पॉलिसी रेपो रेट में 25 आधार अंकों की कटौती कर सकता है। हालांकि, इसमें और अधिक कटौती की भी संभावना है। बैठक में लिक्विडिटी यानी नकदी प्रवाह से जुड़े उपायों पर भी नजर रहेगी, ताकि रेपो रेट में बदलाव का असर बैंकों की लोन और डिपॉजिट दरों पर आसानी से पहुंच सके। बैठक से पहले आरबीआई ने लिक्विडिटी फ्रेमवर्क को लेकर बैंकों की राय लेने के लिए उनके साथ कई बैठकें की हैं।
स्टैंड-अप इंडिया योजना में स्वीकृत की गई लोन राशि बढ़कर 61,020.41 करोड़ रुपये हुई
6 Apr, 2025 06:30 PM IST | GRAMINBHARATTV.IN
नई दिल्ली । स्टैंड-अप इंडिया योजना ने बीते कुछ वर्षों में शानदार वृद्धि दर्ज की है, इसके तहत स्वीकृत की गई कुल लोन राशि 31 मार्च, 2019 को 16,085.07 करोड़ रुपये से बढ़कर 17 मार्च, 2025 तक 61,020.41 करोड़ रुपये हो गई है। इसकी जानकारी केंद्र की ओर से दी गई।
इस अवधि में एससी खाते 9,399 से बढ़कर 46,248 हो गए, जबकि लोन राशि 1,826.21 करोड़ से बढ़कर 9,747.11 करोड़ रुपये हो गई। एसटी खाते 2,841 से बढ़कर 15,228 हो गए, जबकि स्वीकृत किए गए लोन 574.65 करोड़ रुपये से बढ़कर 3,244.07 करोड़ रुपये हो गए। वित्त मंत्रालय ने कहा, 2018 से 2024 तक महिला उद्यमियों के खाते 55,644 से बढ़कर 1,90,844 हो गए, जबकि स्वीकृत की गई राशि 12,452.37 करोड़ रुपये से बढ़कर 43,984.10 करोड़ रुपये हो गई।
स्टैंड-अप इंडिया योजना परिवर्तनकारी पहल रही है, जो एससी, एसटी और महिला उद्यमियों को उनके व्यावसायिक विचारों को वास्तविकता में बदलने का मौका देती है। मंत्रालय ने बताया, लोन स्वीकृति और वितरण में महत्वपूर्ण उपलब्धियों के साथ योजना समावेशी विकास को बढ़ावा देना जारी रखती है। योजना केवल लोन को लेकर नहीं है, बल्कि यह अवसर पैदा करने, बदलाव लाने और आकांक्षाओं को उपलब्धियों में बदलने को लेकर भी है।
5 अप्रैल, 2016 को अपनी शुरुआत के बाद से, स्टैंड-अप इंडिया योजना एससी, एसटी और महिला उद्यमियों को सशक्त बना रही है। योजना का मकसद नए व्यवसाय शुरू करने के लिए बैंक लोन प्रदान कर बाधाओं को दूर करना है। वित्त मंत्रालय के अनुसार, बीते 7 वर्षों में, योजना ने न केवल व्यवसायों को फंड उपलब्ध करवाया बल्कि लाखों लोगों के सपनों को भी पूरा किया। इसके साथ ही आजीविका का सृजन करते हुए पूरे भारत में समावेशी विकास को बढ़ावा दिया है।
स्टैंड-अप इंडिया योजना ग्रीनफील्ड उद्यम स्थापित करने के लिए प्रत्येक बैंक शाखा कम से कम एक अनुसूचित जाति (एससी) या अनुसूचित जनजाति (एसटी) उधारकर्ता और कम से कम एक महिला उधारकर्ता को 10 लाख रुपये से 1 करोड़ रुपये के बीच बैंक लोन की सुविधा प्रदान करती है।
एक लीटर पेट्रोल में 73 किमी का माइलेज देती है हीरो बाइक
6 Apr, 2025 05:30 PM IST | GRAMINBHARATTV.IN
नईदिल्ली। अगर आप ऑफिस आने-जाने के लिए फ्यूल एफिशिएंट बाइक की तलाश में हैं, तो हीरो स्प्लेंडर प्लस एक्सटेक 2.0 आपके लिए एक बेहतरीन चॉइस हो सकती है। हीरो मोटोकॉर्प की इस बाइक की दिल्ली में एक्स-शोरूम कीमत 83,571 रुपए है। आरटीओ, इंश्योरेंस और अन्य चार्ज जोड़ने पर इसकी ऑन-रोड कीमत राज्य अनुसार अलग-अलग हो सकती है, लेकिन यह फिर भी 84,000 रुपए से कम में आ सकती है।
हीरो स्प्लेंडर प्लस एक्सटेक 2.0 में 9.8 लीटर का फ्यूल टैंक है और कंपनी का दावा है कि यह बाइक अराई सर्टिफिकेशन के अनुसार एक लीटर पेट्रोल में 73 किलोमीटर का माइलेज देती है। यानी फुल टैंक पर यह बाइक लगभग 715 किलोमीटर तक चल सकती है। हालांकि, असली माइलेज सड़क की स्थिति और राइडिंग स्टाइल पर निर्भर करता है।
इस बाइक में 97.2 सीसी का 4-स्ट्रोक, एयर-कूल्ड सिंगल सिलेंडर इंजन दिया गया है जो पावरफुल परफॉर्मेंस के साथ अच्छी ईंधन दक्षता भी देता है। ब्रेकिंग के लिए फ्रंट और रियर दोनों में ड्रम ब्रेक्स दिए गए हैं। बाइक के फीचर्स भी काफी आधुनिक हैं। इसमें फुल डिजिटल मीटर, रियल टाइम माइलेज इंडिकेटर, इको इंडिकेटर, ब्लूटूथ कनेक्टिविटी के साथ कॉल और एसएमएस अलर्ट, और हजार्ड लाइट जैसी सुविधाएं शामिल हैं।
हुंडई ने घरेलू बाजार में की 5,98,666 यूनिट्स की बिक्री
6 Apr, 2025 04:30 PM IST | GRAMINBHARATTV.IN
नई दिल्ली । टाटा मोटर्स और महिंद्रा एंड महिंद्रा को पीछे छोड़ते हुए वित्त वर्ष 2024-25 में हुंडई मोटर इंडिया ने अपनी स्थिति बनाए रखी है। हुंडई मोटर कंपनी ने घरेलू बाजार में 5,98,666 यूनिट्स की बिक्री दर्ज की, जबकि टाटा मोटर्स की बिक्री 5,53,585 यूनिट्स और महिंद्रा की बिक्री 5,51,487 यूनिट्स रही।
हुंडई की इस सफलता में एसयूवी सेगमेंट का बड़ा योगदान रहा, जो कंपनी की कुल घरेलू बिक्री का 68.5प्रतिशत हिस्सा रहा। हुंडई की एसयूवी रेंज में एक्सटेर, वेन्यू, क्रेटा, अल्काजार और टूकसन जैसी लोकप्रिय गाड़ियाँ शामिल हैं। इसके अलावा, कंपनी ने एफवाय25 में 1,63,386 यूनिट्स का निर्यात किया, जिससे भारत हुंडई मोटर कंपनी का एक प्रमुख ग्लोबल एक्सपोर्ट हब बन गया है। हुंडई मोटर इंडिया के व्होल टाइम डायरेक्टर और सीओओ तरुण गर्ग ने इस उपलब्धि को ग्राहकों के विश्वास और कंपनी की रणनीतिक योजनाओं का नतीजा बताया।
उन्होंने कहा कि इस साल हयूदै क्रेटा इलेक्ट्रिक और नई अल्काजार जैसे मॉडल्स के साथ एसयूवी पोर्टफोलियो और मजबूत हुआ है। गर्ग ने यह भी जानकारी दी कि कंपनी अब तक भारत में 25 लाख एसयूवी और 15 लाख क्रेटा गाड़ियों की बिक्री का रिकॉर्ड पार कर चुकी है। एफवाय24 में कंपनी ने 6,14,721 यूनिट्स की घरेलू बिक्री और 1,63,155 यूनिट्स के निर्यात का आंकड़ा छुआ था।
35 हजार रुपये तक सस्ती मिल रही मारुति ईको
6 Apr, 2025 03:30 PM IST | GRAMINBHARATTV.IN
नई दिल्ली। मारुति सुजुकी की ईको कार इस महीने खास ऑफर के तहत 35,000 रुपये तक सस्ती मिल रही है। कंपनी इस पर 10,000 रुपये तक का कैश डिस्काउंट और 25,000 रुपये तक का स्क्रैपेज बोनस दे रही है। यह ऑफर 30 अप्रैल 2025 तक ही मान्य है।
ईको की एक्स-शोरूम कीमतें फिलहाल 5.44 लाख से 6.70 लाख रुपये तक हैं। हालांकि, कंपनी ने साफ कर दिया है कि मई से कार की कीमतों में 62,000 रुपये तक की बढ़ोतरी की जाएगी। ऐसे में यह ऑफर कार खरीदने वालों के लिए एक अच्छा मौका साबित हो सकता है। ईको में 1.2-लीटर के सीरीज इंजन दिया गया है, जो पेट्रोल पर 80.76 पीएस की पावर और 104.5 एनएम टॉर्क देता है। सीएनजी वेरिएंट में यह घटकर 71.65 पीएस और 95 एनएम हो जाता है। टूर वेरिएंट के लिए कंपनी का दावा है कि यह पेट्रोल पर 20.2 किमी/l और सीएनजी पर 27.05 किमी/किग्रा तक का माइलेज देती है। पैसेंजर वेरिएंट में पेट्रोल पर 19.7 केएम/l और सीएनजी पर 26.78 किमी/किग्रा का माइलेज मिलता है।
ईको को 5-सीटर, 7-सीटर, कार्गो, टूर और एम्बुलेंस जैसे वैरिएंट्स में खरीदा जा सकता है, जिससे यह परिवारों और व्यवसाय दोनों के लिए एक बेहतरीन विकल्प बनती है। सेफ्टी के लिहाज से इसमें 11 जरूरी फीचर्स दिए गए हैं, जैसे डुअल फ्रंट एयरबैग, एबीएस के साथ ईबीडी, रिवर्स पार्किंग सेंसर और चाइल्ड लॉक। साथ ही इसमें डिजिटल इंस्ट्रूमेंट क्लस्टर और नया स्टीयरिंग व्हील भी है।
यूएसबी-सी चार्जिंग वाली नोवा और नोवा प्रो बाइक्स पेश
6 Apr, 2025 02:30 PM IST | GRAMINBHARATTV.IN
नई दिल्ली । ई-बाइक निर्माता एम्पलेर ने यूएसबी-सी चार्जिंग वाली नोवा और नोवा प्रो बाइक्स पेश की हैं। इन बाइक्स में यूएसबी-सी पोर्ट को फ्रेम में इंटीग्रेट किया गया है, जिससे इन्हें किसी भी लैपटॉप चार्जर या अन्य यूएसबी-सी चार्जिंग डिवाइस से चार्ज किया जा सकता है।
इस पोर्ट के जरिए गैजेट्स को भी चार्ज किया जा सकता है, हालांकि यह सुविधा अभी केवल यूरोप के लिए उपलब्ध है। एम्पलेर की नोवा सीरीज की बाइक्स में 48वी 336 डब्ल्यूएच की इंटीग्रेटेड बैटरी दी गई है, जिसे यूएसबी-सी पीडी 3.1 चार्जर की मदद से महज तीन घंटे में फुल चार्ज किया जा सकता है। आमतौर पर इतनी क्षमता की बैटरी को चार्ज होने में पांच घंटे या उससे ज्यादा का समय लग जाता है, लेकिन नई तकनीक के जरिए यह प्रक्रिया तेज हो गई है। 240 वॉट यूएसबी-सी चार्जर आने से चार्जिंग और भी तेज हो सकती है। कंपनी ने इन बाइक्स को आईकेईए और मेकबुक चार्जर के साथ भी टेस्ट किया है। यदि ग्राहक के पास संगत चार्जर नहीं है, तो एम्पलेर 80 में 140 वॉट यूएसबी-सी पीडी 3.1 चार्जर उपलब्ध कराएगा।
नोवा और नोवा प्रो बाइक्स यूके, ईयू और स्विट्जरलैंड में प्री-ऑर्डर के लिए उपलब्ध हैं और इनकी शिपिंग जून 2025 से शुरू होगी। कंपनी ने जर्मनी में सर्विस सेंटर्स और यूरोप में एम्पलेर फ्रेंडली वर्कशॉप्स का एक नेटवर्क तैयार किया है। हर बाइक के साथ दो साल की वारंटी और 14 दिनों की रिटर्न पॉलिसी दी जा रही है। बता दें कि दुनियाभर में इलेक्ट्रिक बाइक्स की मांग तेजी से बढ़ रही है और अब लोग ग्रीन मोबिलिटी की ओर ज्यादा आकर्षित हो रहे हैं। हालांकि, इलेक्ट्रिक वाहनों के साथ चार्जिंग की समस्या बनी हुई है, जिससे पेट्रोल वाहनों की तुलना में इनकी बिक्री अब भी कम है।
Delhivery का बड़ा अधिग्रहण: ₹1,407 करोड़ में Ecom Express को खरीदने की प्रक्रिया शुरू
5 Apr, 2025 05:58 PM IST | GRAMINBHARATTV.IN
लॉजिस्टिक्स कंपनी Delhivery ने अपने प्रतिद्वंद्वी फर्म Ecom Express लिमिटेड को खरीदने का फैसला किया है, और यह अधिग्रहण लगभग 1,407 करोड़ रुपये का होगा। अधिग्रहण पूरा होने के बाद Ecom Express, Delhivery की सहायक कंपनी बन जाएगी, बशर्ते नियामक मंजूरी और सामान्य समापन शर्तें पूरी हों। कंपनी ने शनिवार को एक एक्सचेंज फाइलिंग में यह जानकारी दी।
Delhivery ने एक नियामक फाइलिंग में कहा, “बोर्ड ने कंपनी, Ecom Express और इसके शेयरधारकों के बीच एक शेयर खरीद समझौते और अन्य जरूरी लेनदेन दस्तावेजों को लागू करने की मंजूरी दे दी है। अधिग्रहण पूरा होने पर Ecom Express, Delhivery की सहायक कंपनी बन जाएगी।”
इस अधिग्रहण पर टिप्पणी करते हुए Delhivery के प्रबंध निदेशक और सीईओ (CEO) साहिल बरुआ ने कहा, “भारतीय अर्थव्यवस्था को लॉजिस्टिक्स में लागत, गति और पहुंच में लगातार सुधार की जरूरत है। हमें विश्वास है कि यह अधिग्रहण दोनों कंपनियों के ग्राहकों को बेहतर सेवा देने में सक्षम बनाएगा, जो बुनियादी ढांचे, तकनीक, नेटवर्क और कर्मचारियों में निरंतर बड़े निवेश के जरिए संभव होगा।”
Ecom Express के संस्थापक के सत्यानारायण ने कहा, “यह अधिग्रहण Ecom Express के लिए एक नए विकास चरण की शुरुआत है, और दोनों कंपनियों की संयुक्त ताकत भारत भर के व्यवसायों और लॉजिस्टिक्स उद्योग के लिए बड़े लाभ लेकर आएगी।”
Ecom अधिग्रहण छह महीने में पूरा होगा
यह लेनदेन भारत के प्रतिस्पर्धा आयोग की मंजूरी के अधीन है। Delhivery को उम्मीद है कि शेयर खरीद समझौते के लागू होने से छह महीने के भीतर अधिग्रहण पूरा हो जाएगा, हालांकि आपसी सहमति से यह समयसीमा बढ़ाई जा सकती है। Delhivery ने इस लेनदेन के लिए शारदुल अमरचंद मंगलदास एंड कंपनी को अपने कानूनी सलाहकार और अर्न्स्ट एंड यंग को वित्तीय और टैक्स संबंधी जांच के लिए नियुक्त किया है।
Ecom Express के वित्तीय विवरण
Ecom Express की स्थापना अगस्त 2012 में हुई थी और यह गुरुग्राम, हरियाणा में मुख्यालय वाली एक तकनीक-सक्षम एंड-टू-एंड लॉजिस्टिक्स सेवा देने वाली कंपनी है। पिछले तीन वित्तीय वर्षों में कंपनी का टर्नओवर, ऑडिटेड रिपोर्ट्स के अनुसार, 31 मार्च 2022 को 2,090 करोड़ रुपये, 2023 में 2,548 करोड़ रुपये और 2024 में 2,607 करोड़ रुपये रहा। 2,400 करोड़ रुपये की अधिकृत शेयर पूंजी और 420.73 करोड़ रुपये की चुकता शेयर पूंजी के साथ, Ecom Express ने लॉजिस्टिक्स क्षेत्र में खुद को एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी के रूप में स्थापित किया है।
साहिल बरुआ ने कहा, “Ecom Express के संस्थापकों और प्रबंधन ने एक उच्च गुणवत्ता वाला नेटवर्क और टीम बनाई है, जिसने Delhivery के संचालन में एकीकरण के लिए मजबूत नींव तैयार की है।”
यह अधिग्रहण Delhivery के पिछले साल Ecom Express पर लगाए गए आरोपों के बाद हुआ है, जिसमें उसने Ecom Express के ड्राफ्ट रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस (DRHP) में शिपमेंट वॉल्यूम, लाभप्रदता और क्षमता मेट्रिक्स के गलत प्रस्तुतिकरण का दावा किया था। Delhivery ने बताया था कि दोनों कंपनियों के शिपमेंट गणना के तरीकों में अंतर था, जिसके कारण Ecom Express की रिपोर्ट में आंकड़े बढ़ा-चढ़ाकर दिखाए गए थे। जहां Delhivery एक शिपमेंट को एक इकाई मानती है, भले ही वह वापस मूल स्थान पर लौट आए, वहीं Ecom Express इसे दो शिपमेंट मानता है, जिससे उसका रिपोर्ट किया गया वॉल्यूम अधिक हो जाता है।
वित्तीय संपन्नता के बावजूद, समाज में सतत विकास की चुनौतियाँ बरकरार
5 Apr, 2025 05:28 PM IST | GRAMINBHARATTV.IN
भारत ने सतत विकास के लक्ष्य (एसडीजी) सूचकांक में अच्छी प्रगति की है। विभिन्न देश संयुक्त राष्ट्र के टिकाऊ विकास के लक्ष्यों की दिशा में जितनी अधिक उपलब्धि हासिल करते हैं, सूचकांक पर उनकी रैंकिंग उतनी ही बेहतर होती जाती है। भारत ने 2018 में इसमें 57 अंक मिले थे, जो 2023-24 में बढ़कर 71 हो गए। राज्यों ने भी कई लक्ष्यों में पहले से बेहतर प्रदर्शन किया है। प्रदेशों के कंपोजिट सूचकांक में 2020-21 और 2023-24 के बीच औसतन पांच यूनिट इजाफा हुआ है और कुछ ने तो आठ यूनिट तक वृद्धि की है। राज्य और जिला सूचकांक बनाकर एसडीजी का क्रियान्वयन स्थानीय स्तर पर करने को जोर दिया जा रहा है, जिससे नीति निर्माण और सेवा आपूर्ति से जुड़ी संस्थाओं के बीच होड़ बढ़ गई है।
हरेक राज्य की प्रगति और उसके सामने आई चुनौतियों की पड़ताल करने पर पता चलता है कि केरल और उत्तराखंड ने आठ-आठ लक्ष्यों में 80 फीसदी से अधिक अंक हासिल किए। आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिल नाडु, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल ने छह-छह लक्ष्यों में 80 फीसदी से अधिक अंक लिए। मगर कुछ खास लक्ष्यों में कुछ राज्यों के अंक कम हुए हैं। 2 फीसदी से ज्यादा गिरावट देखें तो आंकड़े बताते हैं कि कुछ राज्यों में छह लक्ष्यों में अंक गिरे हैं। पंजाब और पश्चिम बंगाल ही ऐसे राज्य हैं, जो तमाम लक्ष्यों में लगातार प्रगति करते रहे। सभी लक्ष्य देखें तो लक्ष्य 1 (गरीबी समाप्त), लक्ष्य 5 (स्त्री-पुरुष असमानता), लक्ष्य 10 (असमानता में कमी) और लक्ष्य 16 (शांति, न्याय एवं मजबूत संस्थाएं) पर प्रदर्शन फीका रहा। इनमें से से हरेक लक्ष्य के लिए 9 या अधिक राज्यों के अंक कम हुए हैं।
सतत विकास के लक्ष्यों पर केंद्र और राज्य सरकारों का जितना जोर है उसे देखकर माना जा सकता है कि दोनों सरकारें लक्ष्य हासिल करने के लिए बजट में काफी आवंटन कर रही होंगी। मगर सवाल है कि यह आवंटन काफी है या नहीं? खजाने में गुंजाइश कम होने के कारण कहीं प्रगति में रुकावट तो नहीं पड़ रही? विकासशील देशों में ये लक्ष्य हासिल करने के लिए जरूरी संसाधनों का आकलन बताता है कि हर साल करीब 4 लाख करोड़ रुपये की दरकार है। कह सकते हैं कि भारत को और ज्यादा खर्च करना चाहिए। ज्यादा संसाधन हमेशा बेहतर होते हैं। मगर एक नजरिया और है। क्या खर्च हो रही रकम और अंकों में सुधार के बीच कोई संबंध हो सकता है?
कुछ राज्य इन लक्ष्यों के लिए तय बजट को अपने बजट दस्तावेज में शामिल कर रहे हैं। हरियाणा 2018-19 से ही ऐसे अनुमान पेश कर रहा है। ओडिशा और मेघालय ने भी बाद में यह शुरू कर दिया। ये दस्तावेज विभिन्न लक्ष्यों के लिए आवंटन और व्यय की सही तस्वीर दिखाते हैं। 2023-24 से पहले आवंटन या व्यय और इन लक्ष्यों पर हुई प्रगति की तुलना करने पर मिले-जुले नतीजे सामने आए। कुछ लक्ष्यों के लिए आवंटन बहुत हुआ मगर प्रगति नहीं हुई। उदाहरण के लिए लक्ष्य 4 यानी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा में ओडिशा के परिणाम अच्छे नहीं रहे। असमानता कम करने वाले लक्ष्य 10 में भी उसका प्रदर्शन बेहतर नहीं रहा। हरियाणा शांति, न्याय और मजबूत संस्थानों वाले लक्ष्य 16 में और मेघालय गरीबी वाले लक्ष्य 1 और लक्ष्य 4 में पीछे रहा। तर्क दिया जा सकता है कि खर्च के नतीजे कुछ समय बाद सामने आ सकते हैं मगर यह अंकों में गिरावट की वजह तो नहीं हो सकती।
क्या खर्च और प्रगति की यह विसंगति प्रगति मापने में आ रही चुनौतियों के कारण है या दोबारा सोचना चाहिए कि हस्तक्षेप की योजना कैसे बनाएं और लागू करें? सावधिक या विश्वसनीय आंकड़े निगरानी परखने के लिए अहम हैं। प्रगति पर नजर रखने के लिए नियमित और विश्वसनीय आंकड़े जरूरी हैं। यह पता है कि सांख्यिकी की व्यवस्था सुधारी जा रही है, जिसके बाद बदलावों को अधिक प्रभावी ढंग से आंका जा सकता है। मगर अंकों में कमी को समझाने या खत्म करने के लिए शायद वे काफी नहीं होंगे।
सतत विकास के लक्ष्यों से जुड़ी जानकारी बताती है कि लक्ष्यों के बीच तालमेल भी संभव है। क्या लक्ष्यों के बीच कुछ ऐसा हो रहा है, जिसे हम पकड़ नहीं पा रहे हैं? इन्हें समझने और इनका मॉडल तैयार करने से जनता के धन का सबसे अच्छा और भरपूर नतीजा मिल सकता है।
12.50% गिरा कच्चा तेल, क्या अब पेट्रोल की कीमतों पर होगा असर?
5 Apr, 2025 02:31 PM IST | GRAMINBHARATTV.IN
बीते दो दिनों में कच्चे तेल की कीमतों में जबरदस्त गिरावट देखने को मिली है. ट्रंप के टैरिफ ऐलान और उसके बाद चीन की ओर से जवाबी टैरिफ के बाद कच्चे तेल की कीमतों में करीब 13 फीसदी की गिरावट देखने को मिल चुकी है. बीते एक हफ्ते में कच्चे तेल की कीमतों में 10 फीसदी से ज्यादा की गिरावट देखी गई है, जोकि दो साल के बाद कच्चे तेल की कीमतों में सबसे बड़ी वीकली गिरावट देखने को मिली है. इस गिरावट के बाद कीमतें तीन साल के लोअर लेवल पर आ गई हैं. खाड़ी देशों के क्रूड ऑयल के दाम 65 डॉलर और अमेरिकी तेल के दाम 62 डॉलर प्रति बैरल से नीचे आ गए हैं.
कच्चे तेल की कीमतें 35 रुपए प्रति लीटर पर आ चुकी है. इसका मतलब है कि इंटरनेशनल मार्केट में एक लीटर कच्चा तेल कोक और पेस्पी से भी सस्ता हो चुका है. इसके बाद भी भारत में पेट्रोल और डीजल की कीमतें 100 रुपए प्रति के पार हैं. एक साल पहले यानी मार्च 2024 में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में 2 रुपए की फ्लैट कटौती की गई थी. उसके बाद देश में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कोई खास बदलाव देखने को नहीं मिला है. आइए आपको भी बताते हैं कि आखिर इंटरनेशनल मार्केट में पेट्रोल और डीजल की कीमतें कितनी हो गई हैं. जानकार आने वाले दिनों में पेट्रोल और डीजल की कीमतें कितनी प्रिडिक्ट कर रहे हैं. आइए आपको भी बताते हैं.
चीन ने शुरू किया ट्रेड वॉर
शुक्रवार को तेल की कीमतें 7 फीसदी गिरकर तीन साल से ज़्यादा के निचले स्तर पर आ गईं. वास्तव में चीन ने अमेरिकी वस्तुओं पर टैरिफ बढ़ाकर ट्रेड वॉर की शुरुआत कर दी है, जिससे निवेशकों के मन में मंदी की संभावना को और बढ़ा दिया है. दुनिया के सबसे बड़े तेल इंपोर्टर चीन ने घोषणा की है कि वह 10 अप्रैल से सभी अमेरिकी वस्तुओं पर 34 फीसदी का अतिरिक्त टैरिफ लगाएगा. ट्रंप द्वारा टैरिफ को एक सदी से ज़्यादा के उच्चतम स्तर पर बढ़ाने के बाद दुनिया भर के देशों ने जवाबी कार्रवाई की तैयारी कर ली है. नेचुरल गैस, सोयाबीन और सोने जैसी वस्तुओं में भी गिरावट आई, जबकि ग्लोबल शेयर मार्केट में गिरावट देखने को मिल रही है. निवेश बैंक जेपी मॉर्गन ने कहा कि अब उसे साल के अंत तक वैश्विक आर्थिक मंदी की 60 फीसदी संभावना दिख रही है, जो पहले 40 फीसदी थी.
तीन साल के लोअर लेवल पर तेल की कीमतें
ग्लोबल मार्केट में खाड़ी देशों का कच्चा तेल 4.56 डॉलर या 6.5 फीसदी की गिरावट के साथ 65.58 डॉलर प्रति बैरल पर बंद हुआ, जबकि अमेरिकी क्रूड ऑयल यूएस वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट क्रूड 4.96 डॉलर या 7.4 फीसदी की गिरावट के साथ 61.99 डॉलर पर बंद हुआ. सत्र के निचले स्तर पर, ब्रेंट 64.03 डॉलर और WTI 60.45 डॉलर पर आ गया, जो चार वर्षों में उनका सबसे निचला स्तर है. अगर बात इस हफ्ते की करें तो ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमतों में 10.9 फीसदी और बीते दो दिनों में ब्रेंट क्रूड ऑयल में 12.50 फीसदी गिरावट देखने को मिल चुकी है. जो डेढ़ साल में प्रतिशत के लिहाज से इसका सबसे बड़ा साप्ताहिक नुकसान है. वहीं दूसरी ओर अमेरिकी कच्चे तेल की कीमतें एक हफ्ते में 10.6 फीसदी की गिरावट के साथ दो वर्षों में अपनी सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की है. जबकि दो दिनों में कच्चे तेल की कीमत में 13.50 फीसदी से ज्यादा की गिरावट देखने को मिल चुकी है.
कोक और पेप्सी से भी सस्ता हुआ क्रूड ऑयल
खाड़ी देशों का कच्चा तेल 65.58 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया है. एक बैरल में 159 लीटर होते हैं. इसका मतलब है कि एक लीटर ब्रेंड क्रूड ऑयल के दाम 0.40 डॉलर पर आ गए. अगर इसे रुपए में कंवर्ट किया जाए तो 35 रुपए प्रति लीटर होता है. वहीं भारत में एक लीटर कोक और पेप्सी की कीमत 65 रुपए प्रति लीटर है. अब समझ सकते हैं कि कच्चे तेल की कीमतें कोक और पेप्सी के दाम से 50 फीसदी तक कम हो चुकी है.
50 डॉलर पर आएंगी कीमतें
यूनाइटेड आईसीएपी एनर्जी स्पेशलिस्ट स्कॉट शेल्टन ने रॉयटर्स की रिपोर्ट में कहा है कि मेरे हिसाब से, यह कच्चे तेल के उचित मूल्य के करीब है, जब तक कि हमें इस बात का कोई संकेत नहीं मिल जाता कि वास्तव में मांग में कितनी कमी आई है. शेल्टन ने कहा कि मेरी राय में हम निकट भविष्य में डब्ल्यूटीआई के दाम 50 डॉलर के लेवल पर पहुंच जाएंगे. उन्होंने चेतावनी दी कि मौजूदा बाजार परिस्थितियों में मांग में कमी आएगी. फेडरल रिजर्व के अध्यक्ष जेरोम पॉवेल ने कहा कि ट्रंप के नए टैरिफ “उम्मीद से अधिक” हैं और हाई महंगाई और स्लो ग्रोथ सहित आर्थिक गिरावट भी संभवतः उतनी ही होगी, जो अमेरिकी केंद्रीय बैंक के लिए आगे आने वाले संभावित कठिन फैसलो की ओर इशारा करती है.
क्यों कम हो सकती हैं कच्चे तेल की कीमतें?
तेल की कीमतों पर और दबाव डालते हुए, पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन और सहयोगियों (ओपेक+) ने उत्पादन वृद्धि की योजनाओं को आगे बढ़ाने का फैसला किया. समूह का लक्ष्य अब मई में बाजार में 411,000 बैरल प्रति दिन (बीपीडी) वापस लाना है, जो पहले से नियोजित 135,000 बीपीडी से अधिक है. तेल, गैस और रिफाउंड प्रोडक्ट्स के इंपोर्ट को ट्रंप के व्यापक नए टैरिफ से छूट दी गई थी, लेकिन पॉलिसीज से महंगाई बढ़ सकती है, आर्थिक विकास धीमा हो सकता है और ट्रेड वॉर बढ़ सकते हैं, जिससे तेल की कीमतों पर असर पड़ सकता है.
गोल्डमैन सैक्स के विश्लेषकों ने ब्रेंट और डब्ल्यूटीआई के लिए अपने दिसंबर 2025 के लक्ष्यों में भारी कटौती करके क्रमशः 66 और 62 डॉलर कर दिया. बैंक के ऑयल रिसर्च हेड, डैन स्ट्रुवेन ने एक नोट में कहा कि हमारे कम ऑयल प्राइस वैल्यूएशन के रिस्क नेगेटिव है. एचएसबीसी ने टैरिफ और ओपेक+ निर्णय का हवाला देते हुए 2025 के वैश्विक तेल मांग वृद्धि पूर्वानुमान को 1 मिलियन बीपीडी से घटाकर 0.9 मिलियन बीपीडी कर दिया.
कितना सस्ता हो सकता है पेट्रोल?
जानकारों की मानें तो पेट्रोल और डीजल की कीमतों में 5 रुपए प्रति लीटर की कटौती देखने को मिलनी चाहिए. जिस लेवल पर कच्चे तेल की कीमतों में जाने का अनुमान लगाया जा रहा है. उस हिसाब से भारत में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में 20 से 25 रुपए की कटौती देखी जानी चाहिए. एचडीएफसी सिक्योरिटीज के कमोडिटी करेंसी के हेड अनुज गुप्ता ने कहा कि कच्चे तेल की कीमतों में काफी गिरावट देखी गई है. आने वाले दिनों में इंटरनेशनल मार्केट में क्रूड ऑयल के दाम और कम होंगे. ऐसे में ऑयल मार्केटिंग कंपनियों को पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कटौती करनी चाहिए. उन्होंने ये भी कहा कि अगर सरकार विंडफॉल टैक्स को फिर से सिस्टम में लेकर आती है तो ऐसा करना मुश्किल हो जाएगा.
मौजूदा समय में पेट्रोल और डीजल के दाम
नई दिल्ली: पेट्रोल रेट: 94.77 रुपए प्रति लीटर, डीजल रेट: 87.67 रुपए प्रति लीटर
कोलकाता: पेट्रोल रेट: 105.01 रुपए प्रति लीटर, डीजल रेट: 91.82 रुपए प्रति लीटर
मुंबई: पेट्रोल रेट: 103.50 रुपए प्रति लीटर, डीजल रेट: 90.03 रुपए प्रति लीटर
चेन्नई: पेट्रोल रेट: 100.80 रुपए प्रति लीटर, डीजल रेट: 92.39 रुपए प्रति लीटर
बेंगलुरु: पेट्रोल रेट: 102.92 रुपए प्रति लीटर, डीजल रेट: 88.99 रुपए प्रति लीटर
चंडीगढ़: पेट्रोल रेट: 94.30 रुपए प्रति लीटर, डीजल रेट: 82.45 रुपए प्रति लीटर
गुरुग्राम: पेट्रोल रेट: 95.25 रुपए प्रति लीटर, डीजल रेट: 88.10 रुपए प्रति लीटर
लखनऊ: पेट्रोल रेट: 94.69 रुपए प्रति लीटर, डीजल रेट: 87.81 रुपए प्रति लीटर
नोएडा: पेट्रोल रेट: 94.87 रुपए प्रति लीटर, डीजल रेट: 88.01 रुपए प्रति लीटर
एक साल से नहीं बदली कीमतें
देश में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कोई बदलाव देखने को नहीं मिला है. आखिरी बार पेट्रोल और डीजल की कीमतों में 15 मार्च 2024 को बदलाव देखने को मिला था. जब सरकार ने फ्यूल की कीमतों में 2 रुपए की कटौती की थी. उसके बाद अब भी देश के तीन प्रमुख महानगरों में पेट्रोल के दाम 100 रुपए प्रति लीटर हैं. देश के चारों महानगरों में पेट्रोल की कीमतों की बात करें तो देश की राजधानी दिल्ली, कोलकाता, मुंबई और चेन्नई में क्रमश: 94.77, 105.01, 103.50 और 100.80 रुपए प्रति लीटर है. वहीं इन्हीं चारों महानगरों में डीजल की कीमतें क्रमश: 87.67, 91.82, 90.03 और 92.39 रुपए प्रति लीटर हो गई हैं.
ट्रंप के नए टैक्स से भारतीय कंपनियों को चिंता, अब देसी निवेश को बढ़ाने की दिशा में प्रयास
5 Apr, 2025 12:41 PM IST | GRAMINBHARATTV.IN
अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप द्वारा अनेक देशों पर भारी जवाबी शुल्क लगाए जाने से चिंतित भारतीय उद्योग जगत के दिग्गज अपने कारोबार और व्यापक भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभाव का मूल्यांकन कर रहे हैं। साथ ही बढ़ती वैश्विक अनिश्चितता के बीच अपने निवेश पर पड़ने वाले प्रभावों का भी वे मूल्यांकन कर रहे हैं।
कंपनी जगत के दिग्गजों ने कहा कि वे अपना ध्यान देश की ओर मोड़ रहे हैं और देसी बाजारों में नए निवेश के मौके तलाश रहे हैं। अमेरिका को टेक्सटाइल व वाहन कलपुर्जे का निर्यात करने वाली रेमंड के ग्रुप सीएफओ अमित अग्रवाल ने कहा, जवाबी शुल्क का अमेरिकी उपभोक्ता की क्रय शक्ति पर खासा असर पड़ सकता है और अमेरिका व वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं पर इसके असर को पूरी तरह से समझने के लिए हमें प्रतीक्षा करनी होगी।
अग्रवाल ने कहा, सभी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं पर लगाए गए जवाबी शुल्क को ध्यान में रखते हुए हम प्रभावित देशों से (भारत में) आयात में संभावित वृद्धि की उम्मीद करते हैं। हमें विश्वास है कि सरकार भारतीय उद्योग के हितों और इससे उत्पन्न होने वाले रोजगार की रक्षा के लिए सभी आवश्यक उपाय करेगी। हालांकि अन्य प्रमुख बाजार शुल्क प्रभावित देशों से माल खरीदना जारी रख सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप भारत को उन बाजारों में प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ सकता है।
फिर भी यह अनुमान लगाना अभी भी जल्दबाजी होगी कि स्थिति कैसे आगे बढ़ेगी।आदित्य बिड़ला समूह सहित भारत के कुछ सबसे बड़े व्यापारिक समूह पहले ही हिंडाल्को की सहायक कंपनी नोवेलिस के 2.5 अरब डॉलर के विस्तार के साथ संयुक्त राज्य अमेरिका में पर्याप्त निवेश कर चुके हैं। पिछले साल सितंबर में अदाणी समूह ने अमेरिकी ऊर्जा सुरक्षा और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में 10 अरब डॉलर के निवेश की घोषणा की, जिसका लक्ष्य 15,000 नौकरियां पैदा करना है। 2024 में, जेएसडब्ल्यू स्टील ने टैक्सस के बेटाउन में अपने स्टील परिचालन का विस्तार करने के लिए 11 करोड़ डॉलर की प्रतिबद्धता जताई।
निवेशक बदलते भूराजनीतिक रुझानों और घरेलू स्तर पर विनिर्माण की सरकारी पहल के कारण कई क्षेत्रों में निवेश पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। इस क्रम में निवेशक भारत में बिजली, धातु, खनन, बंदरगाह और लॉजिस्टिक्स के साथ-साथ सेमीकंडक्टर और इलेक्ट्रॉनिक्स के विनिर्माण पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
कोटक इंश्यूट्यूशनल इक्विटीज के अनुमान के अनुसार भारत के निजी क्षेत्र के पास बुनियादी क्षेत्र में वित्त वर्ष 2025 से वित्त वर्ष 2030 तक 32 लाख करोड़ रुपये (384 अरब डॉलर) के निवेश का अवसर है। प्रमुख कारोबारी के प्रमुख के अनुसार, ‘अर्थव्यवस्था 6.5 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है और सरकार प्रोत्साहन से जुड़ी योजनाएं मुहैया करवा रही है। हमें उम्मीद है कि स्थानीय विनिर्माण आने वाले वर्षों में बढ़ेगा।’ उन्होंने कहा, ‘हालांकि वैश्विक अनिश्चितता और गिरती घरेलू मांग से अल्पावधि में कॉरपोरेट निवेश में कमी आ सकती है। ‘
भारत के कुछ दिग्गज समूहों ने बड़ा निवेश करने की घोषणा की है। इस क्रम में अडाणी समूह ने 100 अरब डॉलर और टाटा समूह ने 120 अरब डॉलर के निवेश की घोषणा की है। इस क्रम में जेएसडब्ल्यू समूह ने वित्त वर्ष 26 में स्टील, एनर्जी और ईवी क्षेत्रों में 7 अरब डॉलर के निवेश की घोषणा की है। भारत के इन दिग्गजों ने आधारभूत ढांचा, नवीकरणीय, इलेक्ट्रॉनिक्स और सेमीकंडक्टर बिजनेस में निवेश पर ध्यान केंद्रित किया है।
मोबाइल कंपनियों के लिए 27% शुल्क चुनौती, सरकार से आर्थिक सहायता की याचिका
5 Apr, 2025 11:55 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
भारत में असेंबलिंग करने वाली वैश्विक मोबाइल डिवाइस निर्माता कंपनियां सरकार से वित्तीय प्रोत्साहन की मांग करेंगी ताकि वे अमेरिका जाने वाले उनके निर्यात पर लगाए गए 27 प्रतिशत शुल्क के असर के बावजूद प्रतिस्पर्धी बनी रहें। वरना उन्हें उन देशों में नई क्षमता लगाने का दांव खेलना पड़ सकता है, जहां अमेरिकी निर्यात पर लगाया जाने वाला शुल्क कम है।
एक मोबाइल कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘पिछले केंद्रीय बजट में कटौती के बाद भी कलपुर्जों पर भारतीय शुल्क कुल मैटेरियल्स के बिल का 6 से 8 प्रतिशत तक है। भले ही किसी कंपनी की घरेलू बिक्री और निर्यात 50-50 प्रतिशत हो, लेकिन इसका आधा यानी 2-3 प्रतिशत निर्यात मात्रा पर लगाया जाने वाला खर्च है, जिससे अतिरिक्त बाधा खड़ी हो रही है।’
बड़ी तादाद में अपने फोन निर्यात करने वाली ऐपल इंक जैसी कंपनियों के लिए यह और ज्यादा होगा। अगर हम आगामी नए स्थानों को लेकर प्रतिस्पर्धी रहना चाहते हैं तो इस बाधा को तुरंत दूर करना होगा।
भारत को अब चीन (जहां शुल्क 54 प्रतिशत है) और वियतनाम (जहां अमेरिकी शुल्क 46 प्रतिशत हैं) की तुलना में कम टैरिफ का लाभ हासिल है। लेकिन एक त्वरित प्रतिक्रिया में वियतनाम के व्यापार मंत्रालय ने अमेरिकी प्रशासन से अनुरोध किया है कि वह नए टैरिफ रोक दे और आगे बातचीत करे। वह उप-प्रधानमंत्री हो डुक फोक के नेतृत्व में एक प्रतिनिधि मंडल अमेरिका भेजने की भी योजना बना रहा है। वैश्विक मोबाइल डिवाइस कंपनियों का कहना है कि अगर शुल्क इतना ही बना रहेगा तो वे विकल्प तलाशेंगी। इन विकल्पों में सऊदी अरब, यूएई, ब्राजील और सिंगापुर शामिल हैं जो शीर्ष स्थानों में शामिल हैं और इन सभी पर अमेरिका ने 10 प्रतिशत का जवाबी शुल्क लगाया है।
एक वैश्विक मोबाइल कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘सऊदी और सिंगापुर दुनिया के कुछ सबसे महत्त्वपूर्ण एसईजेड संचालित करने के लिए जाने जाते हैं। सऊदी अरब या यूएई जैसे देश शून्य कर व्यवस्था या सिंगापुर की तरह सरल कर ढांचा मुहैया कराते हैं जबकि भारत में यह जटिल और ज्यादा है। इसके अलावा सऊदी, यूएई और सिंगापुर निवेश को आकर्षित करने के लिए व्यापक रूप से प्रोत्साहन पर जोर दे रहे हैं। इसलिए भारत को इस पर ध्यान देना होगा।’
उनका तर्क है कि अमेरिका और भारत के शुल्कों के आधार पर और उत्पादन की ऊंची लागत के बावजूद ब्राजील को अमेरिका को निर्यात करने पर भारत की तुलना में 7-8 प्रतिशत लागत लाभ हासिल होगा। उनका कहना है कि एक अमेरिकी मोबाइल कंपनी इस बात पर विचार कर रही है कि उसे अमेरिका को भारत से निर्यात करना चाहिए या ब्राजील से या दोनों से।
हालांकि सभी का नजरिया एक जैसा नहीं है। एक ईएमएस कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी का कहना है, ‘मोबाइल डिवाइस असेंबली के लिए एक इको सिस्टम बनाने में 10 साल लग गए हैं और हम अभी बीच में हैं। सिंगापुर काफी महंगा है, ब्राजील में फोन बनाने की लागत पर सीमा है और इसका मुख्य उद्देश्य स्थानीय बाजार पर ध्यान केंद्रित करना है। वहीं यूएई और सऊदी के पास इस समय कोई इको सिस्टम नहीं है।’
कैनालिस के अनुमान के अनुसार, जिन शीर्ष ब्रांडों के विक्रेता अमेरिका को सामान भेजते हैं, उनमें ऐपल इंक मुख्य रूप से शामिल है जिसकी हिस्सेदारी 60 प्रतिशत है। इसके बाद सैमसंग (21 प्रतिशत), मोटोरोला (10 प्रतिशत), टीसीएल और गूगल (प्रत्येक 3 प्रतिशत) का स्थान है।
अमेरिका के नए शुल्कों से बचने के लिए PLI योजना को सशक्त बनाने की जरूरत: विशेषज्ञ
5 Apr, 2025 11:37 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर भारत को अपनी महत्त्वाकांक्षी मेक इन इंडिया पहल को बरकरार रखना है और अमेरिकी शुल्कों के संभावित व्यापार असर को कम करना है तो उसे उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना का विस्तार करना होगा। अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने 9 अप्रैल से भारत से आयात पर 27 फीसदी जवाबी शुल्क लगाने की घोषणा की है।
हालांकि उन्होंने फार्मास्यूटिकल्स उत्पादों, सेमीकंडक्टर, लकड़ी के सामान, तांबा और सोना, ऊर्जा संसाधन और कुछ चुनिंदा खनिजों जैसी वस्तुओं पर छूट दी है। इसके अलावा, इस्पात, एल्यूमीनियम, वाहन और वाहन पुर्जे पहले से ही धारा 232 के शुल्कों के दायरे में हैं। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि ट्रंप प्रशासन के ये शुल्क भारत को सुधारों पर तेजी से आगे बढ़ने और मेक इन इंडिया और पीएलआई योजना जैसी अपनी पहलों को आगे बढ़ाने के लिए मजबूर कर सकते हैं।
पीएलआई पर ज्यादा जोर
भारत को वैश्विक विनिर्माण केंद्र के तौर पर स्थापित करने के लिए साल 2020 में पीएलआई योजना शुरू की गई थी। 1.97 लाख करोड़ रुपये की इस योजना में मोबाइल फोन, ड्रोन, व्हाइट गुड्स, दूरसंचार, कपड़े, वाहन, विशेष इस्पात, फार्मास्यूटिक दवाओं सहित 14 क्षेत्र शामिल हैं। बैंक ऑफ बड़ौदा में मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस का मानना है कि सरकार को अब इस योजना को आगे बढ़ाना होगा और घरेलू उद्योगों को भी सुरक्षा देनी होगी। उन्होंने कहा, ‘कपड़ा, बहुमूल्य नग और कुछ हद तक फार्मा उद्योग, जिसमें छोटे और मझोले उद्यम शामिल हैं, ऐसे क्षेत्र हैं जिन पर अमेरिकी शुल्कों का असर होगा। इन क्षेत्रों में पीएलआई पर ज्यादा जोर दिया जा सकता है।’
असर कम करना
पीएलआई योजना कुछ क्षेत्रों को लगे झटके को कम कर सकती है। उदाहरण के लिए, भारत का इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात, जिसमें भारत में ऐपल के आईफोन के विनिर्माण के कारण भारी उछाल आई है, पर असर पड़ने की संभावना है। मगर जानकारों का कहना है कि स्मार्टफोन के लिए पीएलआई योजना के कारण यह क्षेत्र बेहतर स्थिति में हो सकता है।
ईवाई इंडिया में टैक्स पार्टनर कुणाल चौधरी ने कहा, ‘इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात सीधे तौर पर अमेरिकी शुल्कों से प्रभावित होगा मगर चीन और वियतनाम जैसे अपने एशियाई प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले भारत इनके असर को बेहतर तरीके से झेलने में सक्षम है। इसके अलावा, भारत की निर्यात प्रतिस्पर्धा पर अपने प्रतिद्वंद्वियों के मुकाबले तम ही असर होगा क्योंकि वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक्स आपूर्ति श्रृंखला में उसका हिस्सा छोटा है। ‘ फिलहाल भारत आईफोन उत्पादन में 10 से 15 फीसदी का योगदान दे रहा है। दूसरी ओर, चीन के लिए जवाबी शुल्क 54 फीसदी है और वियतनाम पर 46 फीसदी।
प्रोत्साहन की दरकार
कपड़ा जैसे कुछ क्षेत्रों में वियतनाम, बांग्लादेश और चीन जैसे प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले भारत बेहतर स्थिति में है। इन पड़ोसी देशों को ऊंचे शुल्कों का सामना करना पड़ रहा है। मगर टेक्सपोर्ट इंडस्ट्रीज के नरेन गोयनका का कहना है कि भारत के कपड़ा उद्योग की संभावित बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए मेक इन इंडिया को और बढ़ावा देने के लिए सरकार के अधिक समर्थन की जरूरत है।
ईवाई इंडिया के मुताबिक इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) क्षेत्र के पास अमेरिकी बाजार खासकर बजट कार खंड की बड़ी हिस्सेदारी हासिल करने का सुनहरा मौका है। पिछले साल अमेरिका को चीन का वाहन और पुर्जा निर्यात 17.99 अरब डॉलर था जबकि भारत का सिर्फ 2.1 अरब डॉलर। उसने कहा कि इसमें तेजी के लिए सरकार को पीएलआई योजना में अधिक वाहन पुर्जे शामिल करना चाहिए और नई कंपनियों को अवसर देने के साथ-साथ इसे दो साल के लिए बढ़ाना चाहिए।
ईवाई इंडिया में टैक्स पार्टनर सौरभ अग्रवाल ने कहा कि भारत की निर्यात क्षमता का पूरा लाभ उठाने के लिए सरकार को इस क्षेत्र में मौजूदा पीएलआई योजना का विस्तार करना चाहिए ताकि उत्पादों की व्यापक श्रृंखला को इसमें शामिल किया जा सके।
मगर चिंता भी अधिक
विशेषज्ञों का मानना है कि मुख्य तौर पर घरेलू मांग पर निर्भर रहने वाली भारत की वृद्धि पर ज्यादा असर पड़ने के आसार नहीं हैं। केयरएज का अनुमान है कि भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) पर ट्रंप के शुल्कों का 0.2 से 0.3 फीसदी के आसपास ही असर होगा।
केयरएज की मुख्य अर्थशास्त्री रजनी सिन्हा ने कहा, ‘मगर सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि घरेलू खपत और घरेलू मांग दमदार बनी रहे। इसके लिए विनिर्माण गतिविधियों और रोजगार सृजन को बढ़ावा देना जरूरी है।’
हालांकि, वैश्विक वृद्धि पर इन शुल्क के असर का आकलन अभी नहीं हुआ है। लेकिन आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि दूसरे एशियाई देशों के मुकाबले भारत पर इनका असर सीमित रहेगा। लेकिन सेमीकंडक्टर जैसे अन्य क्षेत्रों पर इस तरह के और अधिक शुल्कों की अनिश्चितताओं के बीच परोक्ष असर को लेकर चिंता बरकरार है। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि यह निजी निवेश में बाधा बन सकता है।
सिन्हा ने कहा, ‘फार्मा और सेमीकंडक्टर क्षेत्र पर और अधिक शुल्क आ सकते हैं। जब तक स्पष्टता नहीं होती, सभी कारोबारी निर्णय टाले जा सकते हैं। निजी निवेश के बढ़ने की उम्मीद थी मगर वह भी अभी रुका रहेगा।’ उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में पीएलआई योजना को बढ़ावा देने के बावजूद अगर अमेरिका में मांग पर असर पड़ता है तो भारत को अपने निर्यात को अन्य देशों की ओर ले जाना होगा।
देश में 'न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन' का वक्त, क्या प्रशासनिक सुधार होंगे प्रभावी?
4 Apr, 2025 04:45 PM IST | GRAMINBHARATTV.IN
डॉनल्ड ट्रंप के कदमों से दुनिया भर में अनिश्चितता फैल गई है और बराबरी के शुल्क की धमकी देकर उन्होंने भारत की शुल्क व्यवस्था को तहस-नहस कर दिया है। ऐसे में लालफीताशाही, भ्रष्टाचार और अफसरशाही कम कर प्रतिस्पर्धी क्षमता बढ़ाने का वक्त आ गया है। बजट में उल्लिखित विनियमन के अलावा भारत को सरकार का आकार घटाना होगा यानी न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन का वादा पूरा करना होगा, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में किया था।
केंद्र और राज्य सरकारों का कुल खर्च 1980 के दशक में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का करीब 10 फीसदी था, जो 1991 में बढ़कर 27 फीसदी हो गया। तब से यह अधिक ही बना हुआ है। आज सरकार जीडीपी का करीब 28 फीसदी खर्च करती है। दक्षिण कोरिया भी इतना ही खर्च करता है मगर थाईलैंड, इंडोनेशिया और वियतनाम जैसे आसियान देश कम खर्च करते हैं। तीन दशक से ऐसा ही चल रहा है, जबकि चीन और दक्षिण कोरिया में तेज वृद्धि के दौरान भी सार्वजनिक खर्च जीडीपी के 20 फीसदी से कम था। यह हाल में बढ़ा है। पूर्वी एशियाई अर्थव्यवस्थाओं के राजकोषीय अनुशासन पर बात कम होती है मगर उनकी कामयाबीम में इसका बड़ा हाथ है।
कुछ विशेषज्ञ जीडीपी की तुलना में कर के अनुपात का हवाला देते हुए कहते हैं कि सरकार का आकार बहुत बड़ा नहीं बल्कि बहुत छोटा है। मगर 2024-25 में यह अनुपात 18.6 फीसदी रहा, जो भारत के आय स्तर को देखते हुए कम नहीं है। जीडीपी की तुलना में कुल राजस्व का अनुपात 22 फीसदी रहा, जो और भी ज्यादा है। वे ज्यादा शिक्षकों, स्वास्थ्यकर्मियों, तकनीकी कर्मचारियों तथा विदेश सेवा अधिकारियों की जरूरत भी बताते हैं। बात सही है मगर इसका मतलब यह नहीं है कि सरकार और भी खर्च करे। इसके बजाय दफ्तरों में गैर-तकनीकी कर्मचारियों की भीड़ घटाने और उन पर होने वाले खर्च से तकनीकी कर्मचारी रखने की जरूरत है। ज्यादातर भर्तियां भी केंद्र या राज्य के बजाय स्थानीय स्तर पर की जाएं क्योंकि केंद्र और राज्य कर्मचारियों के वेतनमान बहुत अधिक हैं।
भारत का सरकारी व्यय अधिक होने से राजकोषीय घाटा बढ़ गया है (देखें चार्ट 2)। 1990-91 से केंद्र और राज्यों का कुल राजकोषीय घाटा जीडीपी का औसतन 7.8 फीसदी रहा है। इस कारण भारतीय रिजर्व बैंक को भी सरकारी उधारी की लागत कम रखनी पड़ी है। इसके लिए सांविधिक तरलता अनुपात (एसएलआर) का इस्तेमाल किया गया, जिसके कारण वाणिज्यिक बैंकों को सरकारी बॉन्ड खरीदने पड़ते हैं। एसएलआर कभी 39.5 फीसदी तक था और आज भी 18 फीसदी है। भारत के अलावा बांग्लादेश में ही एसएलआर लागू है मगर 13 फीसदी है। इस वित्तीय जबरदस्ती से राजकोषीय घाटे की भरपाई तो हो जाती है मगर इसका खमियाजा वाणिज्यिक बॉन्ड बाजार को उठाना पड़ता है और निजी क्षेत्र विशेषकर सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उपक्रमों को देसी पूंजी नहीं मिल पाती।
भारत का सार्वजनिक ऋण जीडीपी का 82 फीसदी है और बहुत ज्यादा है। 2030 तक इसे जीडीपी के 70 फीसदी पर लाने का प्रस्ताव है मगर रफ्तार बहुत धीमी है और तेज वृद्धि के अनुमानों पर आधारित है। सार्वजनिक पूंजीगत व्यय ठहर गया है और भारत को बाकी दुनिया की तरह रक्षा व्यय बढ़ाना होगा। इस बीच ट्रंप के कारण शुल्क में जो कमी करनी पड़ी है वह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी है मगर अभी उसके कारण राजस्व कम होगा। भारत को सरकारी सुधारों तथा निजीकरण तेज कर राजकोषीय गुंजाइश बनानी होगी। एयर इंडिया बिकने के बाद से ही निजीकरण रुका हुआ है।
भारत को ईलॉन मस्क के नेतृत्व वाला डोज नहीं चाहिए बल्कि अधिक सावधानी से योजना बनानी होगी जैसे क्लिंटन प्रशासन में उप राष्ट्रपति अल गोर ने 1993 से 1996 तक किया था। उनके बजट अधिशेष के कारण सार्वजनिक कर्ज में बहुत कमी आई थी। चीन को 21वीं सदी के लिहाज से आधुनिक बनाने के लिए 1995-96 में तत्कालीन प्रधानमंत्री झू रोंग्जी के कार्यकाल में हुए प्रशासनिक सुधारों का भी अध्ययन किया जा सकता है।
लगातार वेतन आयोगों खासकर सातवें वेतन आयोग ने वेतन और पेंशन बहुत बढ़ा दिए, जिससे उच्च और निम्न वेतनमान में बहुत कम फर्क रह गया। इससे कम आय वाले सरकारी कर्मचारियों के वेतन भत्ते निजी क्षेत्र में उसी स्तर पर काम करने वालों की तुलना में बहुत ज्यादा हो गए। फिर सरकारी नौकरियों का इतना आकर्षण क्यों नहीं होगा? हाल में घोषित आठवां वेतन आयोग वेतन-पेंशन और भी बढ़ा देगा। जरूरी प्रशासनिक सुधारों के बगैर वेतन में यह बढ़ोतरी सरकारी खजाने को चोट ही पहुंचाएगी। सार्वजनिक व्यय में राज्यों की हिस्सेदारी 60 फीसदी से ज्यादा है, इसलिए प्रशासनिक सुधार भी राज्यों मे होने चाहिए। बिगड़े हुए राज्यों में राजकोषीय अनुशासन लाना आसान नहीं है क्योंकि केंद्र की गारंटी होने के कारण अपने घाटे की भरपाई के लिए उन्हें भी उसी ब्याज पर कर्ज मिल जाता है, जिस पर अनुशासित राज्य पाते हैं। 16वें वित्त आयोग को भी उन प्रोत्साहनों पर अतीत के आयोगों से ज्यादा ध्यान देना चाहिए, जो राज्यों में राजकोषीय अनुशासन बढ़ा सकते हैं।
नीति आयोग ने राज्यों का राजकोषीय प्रबंधन मापने के ले नया राजकोषीय स्वास्थ्य सूचकांक बनाया है। परंतु इसमें और सुधार की जरूरत है। इस सूचकांक ने शिक्षकों और स्वास्थ्यकर्मियों की किल्लत के बाद भी ओडिशा, झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों को ऊंची रेटिंग दी है। इससे ध्यान आता है कि राजकोषीय शुचिता के साथ कारगर सेवा उपलब्ध कराने को भी इस सूचकांक में तवज्जो दी जानी चाहिए।
स्कॉच ग्रुप की हाल में आई रिपोर्ट ‘स्टेट ऑफ गवर्नेंस ट्रांसफॉर्मेशन’ में तकनीकी शासन के पैमानों मसलन इंटरनेट की पैठ, स्कूलों में दाखिले और ऑनलाइन सेवा की उपलब्धता के साथ परियोजना क्रियान्वयन की गुणवत्ता को भी शामिल किया गया है। इसमें झारखंड और छत्तीसगढ़ को इस सूचकांक पर काफी पीछे दिखाया गया है। ओडिशा ने सुधार दिखाया है मगर उसके कुल अंक राष्ट्रीय औसत से कम हैं। असम और बिहार के अंक भी काफी कम हैं। आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, गुजरात, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल का प्रदर्शन सबसे बेहतर रहा।
अब भारत की प्रतिस्पर्धी क्षमता बढ़ाने के लिए कदम उठाने का समय आ गया है। बढ़े हुए सरकारी व्यय, अतिरिक्त नियंत्रण और जटिल नियमन का बोझ वैसा ही है जैसे पैरों में भारी वजन बांधकर मैराथन दौड़ना। विकसित भारत का लक्ष्य हासिल करने के लिए न्यूनतम सरकार अधिकतम शासन को अपनाना जरूरी है।
ट्रंप की टैरिफ नीति पर WTO की चेतावनी, ग्लोबल ट्रेड सिस्टम को हो सकता है नुकसान!
4 Apr, 2025 04:32 PM IST | GRAMINBHARATTV.IN
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नई टैरिफ पॉलिसी लागू होते ही बाजारों पर इसका असर दिखने लगा है। गुरुवार को अमेरिकी शेयर बाजारों में ट्रंप के इस फैसले का जबरदस्त विरोध हुआ और निवेशकों ने भारी बिकवाली की, जिसकी वजह से हाहाकार मच गया। गुरुवार को अमेरिकी शेयर बाजार में गिरावट की सुनामी देखी। ट्रंप के इस टैरिफ वाले फैसले पर विश्व व्यापार संगठन (WTO) ने भी चिंता जाहिर की है। WTO ने कहा कि अमेरिका के टैरिफ के ऐलान का ग्लोबल ट्रेड और इकोनॉमिक ग्रोथ की संभावनाओं पर काफी गंभीर प्रभाव पड़ेगा और इस साल ग्लोबल कमोडिटी ट्रेड में लगभग एक प्रतिशत की कमी आ सकती है।
टैरिफ लगाने के फैसले की बारीकी से निगरानी कर रहा है WTO
डब्ल्यूटीओ की डायरेक्टर जनरल नगोजी ओकोन्जो-इवेला का ये बयान अमेरिका के लगभग 60 देशों पर टैरिफ लगाने के फैसले के बाद आया है। इवेला ने कहा कि डब्ल्यूटीओ सचिवालय 2 अप्रैल को अमेरिका के टैरिफ लगाने के फैसले की बारीकी से निगरानी और विश्लेषण कर रहा है। उन्होंने कहा, ‘‘कई सदस्य हमसे संपर्क कर चुके हैं और हम उनकी इकोनॉमी और ग्लोबल ट्रेडिंग सिस्टम पर संभावित प्रभाव के बारे में उनके सवालों के जवाब में सक्रिय रूप से उनसे जुड़ रहे हैं।’’ डायरेक्टर जनरल ने कहा कि हाल की घोषणाओं का ग्लोबल ट्रेड और इकोनॉमिक ग्रोथ की संभावनाओं पर काफी प्रभाव पड़ेगा। उन्होंने कहा, ‘‘हालांकि, स्थिति तेजी से बदल रही है, लेकिन हमारे शुरुआती अनुमानों से पता चलता है कि इन कदमों के साथ-साथ साल की शुरुआत से लागू किए गए उपायों के कारण इस साल वैश्विक वस्तु व्यापार में लगभग एक प्रतिशत की कमी आ सकती है।’’
व्यापार में आएगी और ज्यादा गिरावट
इवेला ने ये भी कहा कि वो वस्तु व्यापार में इस गिरावट और अन्य देशों के जवाबी उपायों के साथ टैरिफ वॉर में बढ़ोतरी की आशंका को लेकर बहुत चिंतित हैं। इससे व्यापार में और गिरावट आएगी। उन्होंने कहा, ‘‘ये याद रखना महत्वपूर्ण है कि इन नए उपायों के बावजूद, ग्लोबल ट्रेड का एक बड़ा हिस्सा अब भी डब्ल्यूटीओ के एमएफएन शर्तों के साथ है। हमारा अनुमान संकेत देता है कि ये हिस्सा वर्तमान में 74 प्रतिशत है, जो साल की शुरुआत में लगभग 80 प्रतिशत था। डब्ल्यूटीओ सदस्य देशों को इन लाभ की रक्षा के लिए एक साथ खड़ा होना चाहिए। मैं सदस्यों से व्यापार तनाव को बढ़ने से रोकने के लिए स्थिति को जिम्मेदारी से प्रबंधित करने का आह्वान करती हूं।’’