धर्म एवं ज्योतिष (ऑर्काइव)
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन (26 जून 2023)
26 Jun, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- तनाव व उदर रोग, मित्र लाभ, राजभय तथा दाम्पत्य जीवन पूर्ण संतोषप्रद रहेगा।
वृष राशि :- शत्रुभय, शुभ मंगल कार्य, विरोध मामले-मुकदमे में प्राय: जीत की संभावना है।
मिथुन राशि :- कुसंग हानि, रोगभय, यात्रा, उद्योग, व्यापार की स्थिति लाभ-हानि की बनी ही रहेगी।
कर्क राशि :- पराक्रम, कार्यसिद्धी, व्यापार लाभ, खेती व गृह कार्य में व्यवस्था अवश्य बढ़ेगी।
सिंह राशि :- तनावपूर्ण स्थिति से बचें, विरोध, चिन्ता, उद्योग, व्यापार से लाभ, कार्य सफल होंगे।
कन्या राशि :- भूमि-लाभ, स्त्री-सुख, प्रगति, उद्योग-व्यापार में अड़चने होगी, ध्यान अवश्य रखें।
तुला राशि :- प्रगति, वाहन भय, भूमि-लाभ, कलह, व्यर्थ अनाप-शनाप खर्च से परेशानी होगी।
वृश्चिक राशि :- कार्यसिद्धी, विरोध, लाभ, कष्ट, हर्ष होगा, व्यापार में सुधार अवश्य ही होगा।
धनु राशि :- यात्रा से हानि, मातृ-पितृ कष्ट, व्यय होगा, लिखा-पढ़ी व शिक्षा जगत से सुख होगा।
मकर राशि :- शुभ कार्य, वाहनादि भय, नौकरी की स्थिति सामान्य बनी रहेगी, ध्यान दें।
कुंभ राशि :- अभीष्ट कार्य सिद्धी, राजभय, कार्य बाधा, धार्मिक व कुछ अच्छे कार्य बनेंगे।
मीन राशि :- अल्प हानि, रोगभय, सम्पत्ति का लाभ, मित्रों व पारिवारिक लोगों से सावधान रहें।
देवशयनी एकादशी से शुरू हो रहा है हरि भक्ति का चातुर्मास, तारीख, पूजा विधि जानें
25 Jun, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
Devshayani Ekadashi 2023 Date: साल की सभी एकादशी में आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है. मान्यतानुसार, इस दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु योग निद्रा में जाते हैं और सृष्टि संचालन का भार महादेव पर होता है.
अगले चार माह तक मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाती है. अषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी देवशयनी एकादशी के नाम से जानी जाती है, जो इस वर्ष गुरुवार, 29 जून को है. इसी दिन से चातुर्मास का आरंभ भी माना गया है. देवशयनी एकादशी को हरिशयनी एकादशी, आषाढ़ी एकादशी, प्रबोधनी और पद्मनाभा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. सभी उपवासों में देवशयनी एकादषी व्रत को श्रेष्ठतम कहा गया है. इस व्रत को करने से भक्तों की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं तथा सभी पापों का नाश होता है. इस दिन व्रत रखने व पूजा-अर्चना से भगवान श्री हरि प्रसन्न होते हैं.
देवउठनी एकादशी तक चार मास की अवधि पाताल लोक में निवास करते हैं श्री विष्णु
इस विषय में पद्म पुराण में विस्तारपूर्वक वर्णन मिलता है, जिसके अनुसार, इस दिन से भगवान श्री विष्णु कार्तिक माह में देवउठनी एकादशी तक चार मास की अवधि पाताल लोक में निवास करते हैं. अत: इस दौरान कोई मांगलिक कार्य, जैसे- विवाह, मुंडन, गृहप्रवेश, नये व्यापार की शुरुआत आदि वर्जित बताया गया है. हालांकि इस साल सावन महीने में अधिकमास पड़ने के कारण इस बार सावन दो महीनों का होगा और चातुर्मास पांच महीनों का होगा.
चातुर्मास में सात्विक जीवन व्यतीत करना चाहिए
सनातनी परंपरा के अनुसार, चातुर्मास में सात्विक जीवन व्यतीत करना चाहिए तथा ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए. साधु-संत चातुर्मास में यात्रा नहीं करते हैं, बल्कि एक ही जगह रहकर भगवान की भक्ति में लीन रहते हैं. चातुर्मास में शिवजी, विष्णु जी, गणपति जी और देव दुर्गा की उपासना श्रेष्ठ मानी गयी है. धार्मिक मान्यता है कि जो देवशयनी एकादशी का व्रत करता है, उसे नर्क नहीं जाना पड़ता, वह यमलोक की यातनाओं से मुक्त होकर बैकुंठ धाम को प्राप्त होता है. ब्रह्मावैवर्त पुराण के अनुसार, भक्ति एवं श्रद्धा से इस व्रत को करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.
एकादशी उपाय
देवशयनी एकादशी के दिन आंवले के रस से श्रीहरि का अभिषेक करने पर जीवन में आ रही आर्थिक समस्याओं से मुक्ति मिलती है. आंवला विष्णु जी का प्रतीक माना जाता है.
साथ ही महालक्ष्मी की विशेष पूजा करें. भगवान के लिए व्रत रखें. विष्णु स्रोत का पाठ करें. 'ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जप करें.
जरूरतमंद लोगों को यथासंभव छाता, जूते-चप्पल, वस्त्रों का दान करें. रात्रि जागरण कर अगले दिन व्रत का पारण करें.
पूजन विधान
इस दिन प्रात: स्नान-ध्यान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें. फिर भगवान विष्णु का जलाभिषेक कर उनका ध्यान करें. उन्हें फूल, चंदन, अक्षत, नेवैध अर्पित करें. पूजा में तुलसी का प्रयोग जरूर करें. तुलसी के भोग के बिना भगवान विष्णु की पूजा अधूरी मानी जाती है. अंत में भगवान विष्णु की आरती उतारें और पीपल के पेड़ की पूजा भी करें.
Kawad Yatra 2023: जानें कब शुरू होगी कावड़ यात्रा, भगवान शिव को ऐसे करें प्रसन्न
25 Jun, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सावन का माह आते ही भगवान शिव के पूजन का समय भी आरंभ हो जाता है. प्रत्येक सावन शिव भक्तों के लिए भक्ति का अत्यंत ही उत्तम समय होता है. सावन के माह में सोमवार का समय शिव पूजन के लिए बहुत शुभ होता है.
इस माह के दौरान चारों ओर शिव के जयकारों की गूंज सभी के हृदय में झंकृत होती है.
सारा माहौल भी शिवमय हो जाता है, सावन के पवित्र महीने में कावड़ यात्रा एक बेहद विशेष समय माना जाता है. सावन में कावड़ यात्रा का विशेष महत्व होता है. इस साल भी कांवड़ यात्रा का महत्व बहुत अधिक रहने वाला है.
कांवड का होगा विशेष महत्व
इस साल 2023 में सावन एक नहीं बल्कि दो महीने का होगा क्योंकि यह समय अधिकमास का समय होगा इस कारण से ये समय महत्वपूर्ण रहने वाला है. सावन का महीना शिव भक्तों के लिए बहुत ही शुभ माना जाता है. भक्तों की यात्रा का आरंभ 4 जुलाई से हो जाएगा. इस साल सावन के दो महीने होने के कारण कावड़ यात्रा 4 जुलाई से शुरू होकर 31 अगस्त तक चलेगी. सभी को भगवान शिव की पूजा करने और उन्हें प्रसन्न करने के लिए अधिक समय भी मिलेगा. गंगा से कावंड लाने और भगवान को प्रसन्न करने का बहुत समय प्राप्त होगा.
कांवड सोमवार समय
कांवड यात्रा का हर दिन बहुत ही शुभ होता है. इसके हर दिन भक्ति और पूजा का रंग सभी के जीवन को सकारात्मकता से भर देने वाला होता है. कांवड यात्रा में भगवान शिव के भजनों एवं मंत्रों का पाठ करना तथा धार्मिक अनुष्ठान करना मनोकूल फलों को प्रदान करने वाला होता है.
04 जुलाई, 2023, मंगलवार
प्रथम श्रावण सोमवार व्रत
10 जुलाई, 2023, सोमवार
प्रथम श्रावण सोमवार व्रत
17 जुलाई, 2023, सोमवार
द्वितीय श्रावण सोमवार व्रत
श्रावण अधिक मास प्रारम्भ
18 जुलाई, 2023, मंगलवार
श्रावण अधिक मास प्रारम्भ
श्रावण अधिक प्रथम सोमवार व्रत
24 जुलाई, 2023, सोमवार
श्रावण अधिक प्रथम सोमवार व्रत
श्रावण अधिक द्वितीय सोमवार व्रत
31 जुलाई, 2023, सोमवार
श्रावण अधिक द्वितीय सोमवार व्रत
श्रावण अधिक तृतीय सोमवार व्रत
07 अगस्त, 2023, सोमवार
श्रावण अधिक तृतीय सोमवार व्रत
श्रावण अधिक चतुर्थ सोमवार व्रत
14 अगस्त, 2023, सोमवार
श्रावण अधिक चतुर्थ सोमवार व्रत
श्रावण अधिक मास समाप्त
16 अगस्त, 2023, बुधवार
श्रावण अधिक मास समाप्त
तृतीय श्रावण सोमवार व्रत
21 अगस्त, 2023, सोमवार
तृतीय श्रावण सोमवार व्रत
चतुर्थ श्रावण सोमवार व्रत
28 अगस्त, 2023, सोमवार
चतुर्थ श्रावण सोमवार व्रत
श्रावण समाप्त
31 अगस्त, 2023, बृहस्पतिवार
श्रावण समाप्त
जगन्नाथ रथयात्रा के रथों के लिए गंजाम में 'फासी' वृक्ष उगाती है ओडिशा सरकार, जानें इसके बारे में
25 Jun, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
Jagannath Rath Yatra: ओडिशा सरकार के वन विभाग ने राज्य के गंजाम जिले में 'फासी' के 30,000 पौधों का रोपण कराया है क्योंकि पुरी जगन्नाथ रथयात्रा में शामिल रथों के निर्माण में इस विशेष प्रकार के वृक्ष की लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है।
रथ का पहिया फासी वृक्ष की लकड़ियों से बनाया जाता है। रथयात्रा के लिए देवताओं के तीनों रथों के पहिये बनाने के लिए 14 फुट लंबी और छह फुट घेरे वाली फासी की 72 लकड़ियों की आवश्यकता होती है। घुमुसर दक्षिण वन मंडल के सहायक वन संरक्षक (एसीएफ) प्रभाकर नायक ने कहा, ''जगन्नाथ रथयात्रा के लिए रथ बनाने के लिए भविष्य में फासी की लकड़ियों की जरूरत को पूरा करने के लिए हमने फासी के करीब 3000 और नीम के 2000 पौधे लगाए हैं।
इन्हें गंजाम जिले में घुमुसर दक्षिण वन मंडल के दो प्रमुख क्षेत्रों में लगाया गया है। अधिकारी ने कहा कि बड़ागढ़ रेंज के अंतर्गत गुम्मा वन क्षेत्र के साराबडी और बाजरा में 10 हेक्टेयर क्षेत्र में पौधारोपण किया गया। उन्होंने कहा कि विभिन्न वन मंडलों से पौधे खरीदने के बाद पौधारोपण किया गया और संरक्षण के कारण अधिकांश पौधे जीवित हैं। नायक ने कहा, ''हम क्षेत्र में उन पौधों की जगह दूसरे पौधे लगाएंगे जो नष्ट हो चुके हैं। हमने मर चुके पौधों के प्रतिस्थापन के लिए एक नर्सरी तैयार की है।''
देवशयनी एकादशी पर न करें ये गलतियां, वरना जीवनभर झेलना पड़ेगा कष्ट
25 Jun, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
धार्मिक शास्त्रों की मानें तो साल में कुल 24 एकादशी का व्रत किया जाता हैं जिसमें सभी का महत्व अलग अलग होता हैं लेकिन आषाढ़ माह में पड़ने वाली देवशयनी एकादशी बेहद ही खास मानी जाती हैं। जो कि इस बार 29 जून से को पड़ रही हैं।
पंचांग के अनुसार हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी का व्रत किया जाता हैं जिसे देवशयनी या हरिशयनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता हैं इस दिन व्रत पूजन करने से विष्णु कृपा साधक को मिलती हैं और हर मनोकामना भी पूर्ण हो जाती हैं।
देवशयनी एकादशी के दिन दान पुण्य के कार्य करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती हैं लेकिन इस दौरान कुछ ऐसे भी कार्य हैं जिन्हें भूलकर भी नहीं करना चाहिए वरना साधक को जीवनभर इसके अशुभ परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं तो आज हम आपको अपने इस लेख दवारा देवशयनी एकादशी के दिन किन कार्यों को नहीं करना चाहिए इसके बारे में बता रहे हैं तो आइए जानते हैं।
एकादशी पर ना करें ये गलतियां-
शास्त्र अनुसार एकादशी तिथि पर पूर्ण रूप से जातक को सात्विक आचार विचार रखना चाहिए इस दिन भूलकर भी तामसिक चीजों को ग्रहण नहीं करना चाहिए साथ ही देवशयनी एकादशी पर किसी प्रकार का नाश करने से भी बचना चाहिए। अगर आप एकादशी का व्रत नहीं भी कर रहे हैं तो ऐसे में भूलकर भी चावल का सेवन न करें। क्योंकि एकादशी पर चावल का सेवन वर्जित माना गया हैं। देवशयनी एकादशी के दिन ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए भगवान के मंत्रों का जाप करना चाहिए। देवशयनी एकादशी के दिन भूलकर भी मन में किसी के प्रति बुरे विचार नहीं लाने चाहिए। ना ही किसी की बुराई करनी चाहिए। ऐसा करने से पाप लगता हैं।
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन (25 जून 2023)
25 Jun, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- आशानुकूल सफलता से संतोष तथा कुछ सफलता के साधन बनेंगे।
वृष राशि :- समय आराम से बीते, व्यवसायिक क्षमता का ध्यान अवश्य ही रख सकेंगे।
मिथुन राशि :- अधिकारियों का समर्थन फलप्रद होगा किन्तु इष्ट मित्रों से परेशानी होगी।
कर्क राशि :- इष्ट मित्र सुखवर्धक हों, कुटुम्ब की समस्याएं सुलझेंगी, धैर्य से कार्य करेंगे।
सिंह राशि :- प्रतिष्ठा वृद्धि एवं बड़े लोगों से मेल-मिलाप होगा, स्थिति हर्षप्रद बनी रहेगी।
कन्या राशि :- संघर्ष में सफलता से संतोष, व्यवसायिक क्षमता में अनुकूलता बनी रहेगी।
तुला राशि :- मान-प्रतिष्ठा, प्रभुत्व वृद्धि, कार्यक्षमता बढ़े, समाज में प्रतिष्ठा के योग बनेंगे।
वृश्चिक राशि :- सामाजिक कार्यों में सुधार, कार्यगति में अनुकूलता, इष्ट मित्र सुखवर्धक हों।
धनु राशि :- अचानक कोई शुभ समाचार प्राप्त हो, कार्यगति में सुधार होगा, समय का ध्यान रखें।
मकर राशि :- स्थिति यथावत रखें, समय पर सोचे कार्य पूर्ण होंगे, कार्य में सुधार हो।
कुंभ राशि :- इष्ट मित्र सुखवर्धक होंगे, शरीर कष्ट, चिन्ता असमंजस की स्थिति बने।
मीन राशि :- इष्ट मित्र सहायक रहेंगे, दैनिक कार्यगति अनुकूल बनी ही रहेगी।
कामिका और पद्मिनी एकादशी का व्रत कब रखा जाएगा 2023?
24 Jun, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
देवशयनी के बाद श्रावण माह में कामिका एकादशी और फिर पद्मिनी एकादशी का व्रत रखा जाता है। कामिका सभी कामना पूर्ण करती है और अधिकमास में आने वाली पद्मिनी एकादशी से पुत्री, कीर्ति, धन एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है।
आओ जानते हैं कि अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार कब रखा जाएगा कामिका एकादशी और फिर पद्मिनी एकादशी का व्रत।
कामिनी एकादशी : एकादशी के दिन किया जाने वाला व्रत समस्त पाप और कष्टों को नष्ट करके हर प्रकार की सुख-समृद्धि प्रदान करता है। इस बार अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 13 जुलाई गुरुवार के दिन इस एकादशी का व्रत रखा जाएगा।
पद्मिनी एकादशी : पद्मिनी एकादशी तब ही आती है जबकि व्रत का महीना अधिक हो जाता है। यह अधिमास में ही आती है। इस बार श्रावण मास में अधिकमास के माह भी जुड़ रहे हैं। इसलिए पद्मिनी एकादशी भी आ रही है। इस बार अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 29 जुलाई शनिवार को इसका व्रत रखा जाएगा।
सुबह-शाम की पूजा में ना करें ये गलतियां, लगता है पाप
24 Jun, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म में ईश्वर आराधना को सर्वोत्तम बताया गया हैं ऐसे में अधिकर लोग सुबह शाम नियम से देवी देवताओं की विधिवत पूजा करते हैं माना जाता है कि ऐसा करने से ईश्वर की कृपा प्राप्त होती हैं और जीवन में सुख समृद्धि का आगमन होता हैं लेकिन शास्त्रों में पूजा को लेकर कुछ नियम बताए गए हैं जिसका पालन करने से ही व्यक्ति को पूजा पाठ का फल मिलता हैं।
अगर आप सुबह शाम की पूजा में इन नियमों की अनदेखी करते हैं तो आपको पुण्य की जगह पाप का भागीदार होना पड़ सकता हैं तो आज हम आपको अपने इस लेख दवारा सुबह शाम की पूजा से जुड़े जरूरी नियम बता रहे हैं तो आइए जानते हैं।
पूजा पाठ से जुड़े नियम
शास्त्र अनुसार दोनों प्रहर की पूजा करना बेहद शुभ माना जाता हैं लेकिन इस दौरान कुछ बातों का ध्यान अगर रखा जाए तो उत्तम फल मिलता हैं। हिंदू धर्म में देवी देवताओं की पूजा में फूल अर्पित करना शुभ माना जाता हैं लेकिन हमेशा याद रखें कि सुबह की ही पूजा में भगवान को फूल अर्पित करें ना की शाम की पूजा में। क्योंकि शाम के समय फूलों को तोड़ना अच्छा नहीं माना जाता हैं ना ही इस दौरान भगवान को फल अर्पित करें।
इसके अलावा शाम की पूजा में शंख और घंटी बजाने की भी मनाही होती हैं माना जाता हैं कि सूर्यास्त होते ही देवी देवता सोने चले जाते हैं ऐसे में शाम की पूजा में शंख या घंटी बजाने से उनके आराम में खलल पड़ सकती हैं। शास्त्रों की मानें तो सुबह के समय ही भगवान सूर्यदेव की पूजा करना शुभ माना जाता हैं ऐसे में भूलकर भी शाम के वक्त सूरज की पूजा ना करें क्योंकि संध्याकाल में की गई सूर्य आराधना नकारात्मकता पैदा करती हैं तो संकट का कारण बनती हैं।
एक बार आप चले जाएं इन पवित्र ज्योतिर्लिंग के दर्शन पर, बदल जाएगी जिंदगी
24 Jun, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
ज्योतिर्लिंग (Jyotirlinga) भगवान शिव के पवित्र शिवलिंगों को संकेत करता है। ये शिवलिंग भारत भर में स्थित हैं। ज्योतिर्लिंग की संख्या कई शास्त्रों और पुराणों में विभिन्न हो सकती है, लेकिन मान्यताओं के आधार पर आमतौर पर उनकी संख्या 12 मानी जाती है।
ये हैं वे 2 ज्योतिर्लिंग:
वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग भारतीय धर्म के प्रमुख तीर्थस्थानों में से एक है। यह ज्योतिर्लिंग वाराणसी के पास स्थित है और हिंदू धर्म के शिव परमेश्वर को समर्पित है। इस लेख में, हम वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे और इसके महत्वपूर्णता और इतिहास के बारे में जानेंगे।
सन्धान
वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का स्थान देश के उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित है। यह ज्योतिर्लिंग वाराणसी से लगभग 70 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह स्थान पवित्र वैद्यनाथ नदी के किनारे स्थित है और प्राकृतिक सौंदर्य से घिरा हुआ है। यहां के मंदिर में मात्र शिव परमेश्वर ही नहीं, बल्कि उनकी पत्नी गौरी माता का भी मंदिर है।
महत्वपूर्णता
वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का महत्वपूर्ण स्थान हिंदू धर्म के अनुयायीयों के लिए है। यहां के मंदिर में भगवान शिव की पूजा और अर्चना की जाती है और इसे एक पवित्र स्थान के रूप में मान्यता प्राप्त है। इस स्थान पर हर साल अनेक शिव भक्त आते हैं और अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करने का प्रयास करते हैं। यहां का माह महाशिवरात्रि है, जब यहां लाखों शिव भक्त एकत्र होते हैं और विभिन्न पूजा-अर्चना करते हैं।
इतिहास: वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का इतिहास काफी प्राचीन है। इसके बारे में कई पुराणों और इतिहासिक प्रस्तुतियों में उल्लेख किया गया है। इसका मान्यता से जुड़ा एक प्रमुख कथा है जिसमें कहा जाता है कि वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के नीलकंठ अवतार का एक हिस्सा है। इसके अलावा भी इसके इतिहास में कई महत्वपूर्ण घटनाएं हुई हैं जिनसे यहां का महत्व बढ़ गया है।
स्थानीय मान्यताएँ और रीति-रिवाज: वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के स्थानीय मान्यताओं और रीति-रिवाजों का भी एक महत्वपूर्ण स्थान है। यहां के मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना विधियां होती हैं और यहां के पुजारियों द्वारा अनुष्ठान किए जाते हैं। यहां की रीति-रिवाज बहुत ही पवित्र मान्यताओं और शास्त्रीय पद्धतियों पर आधारित होती हैं और यहां शिव भक्त अपनी विशेष आराधना करते हैं।
नागेश्वर: नागेश्वर ज्योतिर्लिंग हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण तीर्थस्थानों में से एक है। यह ज्योतिर्लिंग गुजरात राज्य के सोमनाथ मंदिर के पास स्थित है और भगवान शिव को समर्पित है। इस लेख में, हम नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे और इसके महत्वपूर्णता और इतिहास के बारे में जानेंगे।
स्थान: नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का स्थान भारत के गुजरात राज्य में स्थित है। यह ज्योतिर्लिंग सोमनाथ मंदिर से लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह स्थान अरब सागर के किनारे स्थित है और प्राकृतिक सौंदर्य से घिरा हुआ है। नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का मंदिर नागेश्वर नदी के किनारे स्थित है और यहां शिव परमेश्वर के रूप में पूजा की जाती है।
महत्वपूर्णता: नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का महत्वपूर्ण स्थान हिंदू धर्म के अनुयायीयों के लिए है। यहां के मंदिर में भगवान शिव की पूजा और अर्चना की जाती है और यहां की मान्यता प्राप्त है। नागेश्वर ज्योतिर्लिंग यात्रियों के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है और यहां की यात्रा एक धार्मिक और आध्यात्मिक अनुभव की प्राप्ति के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है।
इतिहास: नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का इतिहास बहुत ही प्राचीन है। इसके बारे में कई पुराणों और इतिहासिक प्रस्तुतियों में उल्लेख किया गया है। यहां की मान्यता से जुड़े कई कथाएं हैं, जिनमें कहा जाता है कि यहां भगवान शिव ने सांप के रूप में अपनी मानसिकता का प्रकटीकरण किया था। इसके अलावा भी इसके इतिहास में कई महत्वपूर्ण घटनाएं हुई हैं जिनसे यहां का महत्व बढ़ा है।
स्थानीय मान्यताएँ और प्रवासी आयोजन: नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थानीय मान्यताएं और प्रवासी आयोजन भी इसे विशेष बनाते हैं। यहां की प्रमुख पूजा-अर्चना विधियां होती हैं और यहां के पुजारियों द्वारा नियमित रूप से पूजा की जाती है। नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के आसपास अन्य तीर्थस्थानों की यात्रा का भी आयोजन किया जाता है और यहां आने वाले प्रवासी यात्रियों को सुविधाएं प्रदान की जाती हैं।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग हिंदू धर्म का महत्वपूर्ण स्थान है और इसकी मान्यता और इतिहास इसे एक पवित्र तीर्थस्थान बनाते हैं। नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने के लिए लोग यहां आते हैं और अपनी आराधना करते हैं। यहां के प्राकृतिक सौंदर्य और धार्मिक वातावरण में यात्रा का आनंद लें!
पर्यटन और यात्रा: वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग एक प्रमुख पर्यटन स्थल भी है। यहां के प्राकृतिक सौंदर्य, मंदिर और शानदार दृश्यों के कारण यहां हर साल अनेक पर्यटक आते हैं। यहां पर्यटकों को आरामदायक आवास और सुविधाएं उपलब्ध हैं और उन्हें यहां के स्थानीय भोजन का भी आनंद मिलता है। पर्यटक यहां आकर अपने आत्मीयता और शांति की खोज करते हैं।
वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग हिंदू धर्म का महत्वपूर्ण और पवित्र स्थान है। इस ज्योतिर्लिंग की मान्यता, इतिहास, और स्थानीय मान्यताएं इसे एक विशेष तीर्थस्थान बनाती हैं। वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का दर्शन करने के लिए लोग यहां आते हैं और अपनी आराधना करते हैं। यहां के प्राकृतिक सौंदर्य और धार्मिक माहौल का आनंद लेने के लिए यहां की यात्रा का अनुभव करें!
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन (24 जून 2023)
24 Jun, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- यात्रा वृत्ति से लाभ, कुसंग से हानि, गृह कलह तथा मानसिक अशांति अवश्य ही बनेगी।
वृष राशि :- आर्थिक व्यय, स्वजन कष्ट, विवाद, अस्थिर व अशांति का वातावरण बना ही रहेगा।
मिथुन राशि :- शुभ कार्य, भूमि से हानि, कार्य सिद्धी, लॉटरी-सट्टा से हानि की संभावना बनी रहेगी।
कर्क राशि :- धन हानि, रोगभय, नौकरी में चिन्ता, राजकार्य, गृहकार्य में व्यवस्था बनी रहेगी।
सिंह राशि :- कार्य में निराशा, खेती से लाभ तथा शत्रु-भय, उद्योग-व्य वसाय से लाभ होगा।
कन्या राशि :- शरीर कष्ट, राजलाभ, व्यय-भार बढ़ेगा, दाम्पत्य जीवन असमंजसपूर्ण रहेगा, ध्यान रखें।
तुला राशि :- चोटाग्नि भय, धार्मिक कार्य कष्ट, व्यापार में उलझन की स्थिति बनी रहेगी।
वृश्चिक राशि :- बाधा, आरोप, धन लाभ, यात्रा-कष्ट, गृहकार्य, राजकार्य में रुकावट की स्थिति बनेगी।
धनु राशि :- रोग-भय, मुकदमे में जीत, मानसिक परेशानी, अपवाद तथा व्यर्थ उलझन बढ़ेंगी।
मकर राशि :- व्यापार में लाभ, शत्रु-भय, धन सुख, कार्यों में सफलता का योग, रुके कार्य बनेंगे।
कुंभ राशि :- कलह, व्यर्थ खर्च, सफलता प्राप्त होगी, सामाजिक कार्यों में सफलता तथा रुकावट का अनुभव होगा।
मीन राशि :- स्वजन सुख, पुत्र चिन्ता, धन-हानि, राजकार्य में विलम्ब, परेशानी बन सकती है।
श्रावण मास में भगवान महाकाल की पहली सवारी 10 जुलाई को
23 Jun, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
कलेक्टर कुमार पुरुषोत्तम और पुलिस अधीक्षक सचिन शर्मा ने बुधवार देर शाम प्रशासनिक संकुल भवन के सभाकक्ष में आगामी श्रावण-भादौ मास-2023 में भगवान महाकालेश्वर के दर्शन, भगवान महाकालेश्वर की निकलने वाली सवारी और नागपंचमी पर्व पर की जाने वाली दर्शन व्यवस्था की समीक्षा की।
उल्लेखनीय है कि महाकालेश्वर मंदिर में श्रावण-भादौ मास 04 जुलाई 2023 से प्रारंभ होकर 11 सितम्बर 2023 तक मनाया जाएगा।
बैठक में महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति के प्रशासक संदीप सोनी ने पावर पाइंट प्रजेन्टेशन के माध्यम से आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या को ध्यान में रखते हुए की जाने वाली व्यवस्थाओं की जानकारी दी। बताया गया कि इस बार अधिकमास होने के कारण भगवान महाकालेश्वर की 10 सवारियां निकाली जाएंगी। आगामी 10 जुलाई को श्रावण मास की प्रथम सवारी निकाली जाएगी। आगामी 21 अगस्त सोमवार को नागपंचमी पर्व भी रहेगा तथा सवारी भी निकाली जाएगी और 11 सितम्बर को शाही सवारी निकाली जायेगी।
श्रावण मास में डेढ़ घंटे पहले जागेंगे भगवान महाकाल
ज्योतिर्लिंग महाकाल मंदिर में श्रावण-भादौ मास के दौरान चार जुलाई से 11 सितंबर तक भगवान महाकाल भक्तों के लिए आम दिनों की अपेक्षा एक से डेढ़ घंटे पहले जागेंगे। मंदिर की परंपरा अनुसार श्रावण मास के प्रत्येक सोमवार रात 2.30 बजे मंदिर के पट खुलेंगे। शेष दिनों में रात तीन बजे पट खोले जाएंगे। इसके बाद भगवान महाकाल की भस्म आरती होगी। दरअसल, आम दिनों में भस्म आरती के लिए तड़के चार बजे मंदिर के पट खोले जाते हैं।
यह निर्णय भी बुधवार शाम हुई समीक्षा बैठक में लिया गया। बैठक में बताया गया कि श्रावण-भादौ मास में भगवान महाकालेश्वर की भस्म आरती 04 जुलाई 2023 से 11 सितम्बर 2023 तक प्रात: कालीन पट खुलने का समय प्रात: 03 बजे होगा तथा प्रत्येक सोमवार प्रात: 2.30 बजे होगा। भस्म आरती के दौरान कार्तिकेय मण्डपम की अंतिम 03 पंक्तियों से श्रद्धालुओं के लिए चलित भस्म आरती दर्शन व्यवस्था की जायेगी ताकि अधिक से अधिक लोगों को दर्शन हो सके।
बैठक में कलेक्टर ने निर्देश दिये कि श्रावण-भादौ मास में सोमवार को अतिविशिष्ट व्यक्तियों का प्रवेश बेगमबाग से रखा जाये और मंदिर में प्रवेश गेट क्रमांक-1 से कराया जाये। बैठक में सवारी के मार्ग और शाही सवारी के मार्ग पर की जाने वाली व्यस्थाओं की समीक्षा की गई। कलेक्टर ने कहा कि नागपंचमी पर्व पर स्वास्थ्य विभाग द्वारा आगंतुक श्रद्धालुओं के त्वरित उपचार की सुविधा कराने हेतु जैसी व्यवस्था विगत महाशिवरात्रि पर्व पर की गई थी वैसी ही व्यवस्था की जाये।
नागपंचमी पर्व पर मंदिर में ही कंट्रोल रूम बनाया जायेगा। बैठक में श्रद्धालुओं के लिए टेंट व्यवस्था, पेयजल व्यवस्था और बैरिकेटिंग व्यवस्था किये जाने के संबंध में आवश्यक दिशा निर्देश दिये गये। कलेक्टर ने कहा कि श्रद्धालुओं की संख्या को ध्यान में रखते हुए सभी व्यवस्थाएं चाक-चौबंद की जाये। मंदिर परिसर, मंदिर परिक्षैत्र के आस-पास पर्याप्त संख्या में मजबूत बैरिकेटिंग कार्यपालय यंत्री लोक निर्माण विभाग द्वारा की जाये। एक कोर टीम बना ली जाये जो आपसी समन्वय के साथ काम करें। जूता स्टैण्ड जहां भी बनाये उसे स्थायी तौर पर बनाया जाये। पूरे महाकाल लोक में 8 से 10 बड़ी स्क्रीन लगाई जाये।
पुलिस अधीक्षक सचिन शर्मा ने निर्देश दिये कि सभी विभाग व्यवस्था के लिए समन्वय समिति बनाए। बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं तथा स्थानीय श्रद्धालुओं के वाहनों के लिए पार्किंग स्थल सुनिश्चित किये जाये। बैरिकेटिंग व्यवस्था माकूल हो। सवारी के 3 घण्टे पहले बैरिकेटिंग पूरी कर ली जाये तथा इसके अनुसार ट्रैफिक व्यवस्था की जाये।
कब है आषाढ़ मासिक दुर्गा अष्टमी, जानिए तारीख और पूजा विधि
23 Jun, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म में वैसे तो कई सारे पर्व त्योहार मनाए जाते हैं लेकिन देवी साधना को समर्पित मासिक दुर्गाष्टमी का व्रत पूजन बेहद ही खास माना जाता हैं जो कि हर माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि पर मनाया जाता हैं।
इसे दुर्गाष्टमी, मासिक दुर्गाष्टमी और मास दुर्गाष्टमी के नाम से जाना जाता हैं इस दिन भक्त देवी मां दुर्गा की विधिवत पूजा करते हैं और उपवास भी रखते हैं।
अभी आषाढ़ का महीना चल रहा हैं और इस माह पड़ने वाली दुर्गाष्टमी बेहद खास हैं क्योंकि इसी दिन आषाढ़ गुप्त नवरात्रि की भी अष्टमी पड़ रही हैं ऐसे में इस दिन मां जगत जननी की पूजा आराधना करने से साधक को दोगुना फल प्राप्त होगा। तो आज हम आपको अपने इस लेख दवारा मासिक दुर्गा अष्टमी की तारीख और पूजा विधि के बारे में जानकारी प्रदान कर रहे हैं तो आइए जानते हैं।
मासिक दुर्गाष्टमी की तिथि-
पंचांग के अनुसार आषाढ़ माह की अष्टमी तिथि 26 जून दिन सोमवार को सुबह 4 बजकर 15 मिनट से आरंभ हो रहा हैं और समापन अगले दिन यानी मंगलवार को सुबह 4 बजे हो जाएगा। वही उदया तिथि की मानें तो आषाढ़ मासिक दुर्गाष्टमी का व्रत पूजन 26 जून को किया जाएगा। इस दिन देवी आराधना उत्तम फल प्रदान करती हैं।
पूजन की संपूर्ण विधि-
मासिक दुर्गाष्टमी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करें इसके बाद पूजन स्थल की साफ सफाई करके गंगाजल का छिड़काव करें। अब मां दुर्गा का गंगाजल से अभिषेक करें साथ ही घर के मंदिर में एक दीपक जलाएं। माता को अक्षत, सिंदूर और लाल पुष्प अर्पित करें फिर प्रसाद फल और मिठाई का भोग चढ़ाएं। पूजन के अंत में माता की आरती करें और अपनी भूल चूक के लिए देवी मां से क्षमा मांगे और अपनी प्रार्थना कहें।
कालसर्प योग से छुटकारा पाना चाहते हैं तो इस सावन में करें ये उपाय
23 Jun, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
Kaal Sarp Yog Upay: ऐसा कहा जाता है कि पिछले जन्म के कर्मों के आधार पर ही अगले जन्म में कष्ट भोगना पड़ता है. लेकिन जब समस्या आती है तो समाधान भी होता है, बस उसे ढूंढने की जरूरत होती है.
आपको बता दें कि किसी व्यक्ति की कुंडली में कालसर्प दोष तभी बनता है जब उसके सभी ग्रह राहु और केतु के बीच हों. कई लोगों की कुंडली में कई तरह के दोष पाए जाते हैं जिनमें से कालसर्प दोष भी एक है जिसे ईश्वर प्रदत्त माना जाता है. लेकिन आपको काल सर्प दोष से घबराने की जरूरत नहीं है. कुछ उपाय करने से काल सर्प दोष से छुटकारा मिलता है. जानें काल सर्प दोष दूर करने के लिए सावन में कौन से उपाय किये जा सकते हैं.
कालसर्प योग से छुटकारा के लिए सावन में करें ये उपाय
हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार, सावन का महीना बहुत पवित्र होता है और इस महीने में सभी देवी-देवता पृथ्वी पर भ्रमण करने आते हैं. इनमें भगवान शिव भी शामिल हैं जो एक लोटा जल से प्रसन्न हो जाते हैं. इस बार सावन का महीना 4 जुलाई 2023 को शुरू होगा और इस साल सावन 2 महीने का है. कहा जाता है कि अगर कुंडली में कालसर्प दोष है तो भगवान शिव को प्रसन्न करना जरूरी है और इस साल इसके लिए भक्तों को काफी समय मिलेगा.
ऐसे दूर करें कालसर्प दोष
सावन के महीने में भगवान शिव की पूजा करने से नाग देवता भी प्रसन्न होते हैं. यदि आप पर भगवान शिव की कृपा हो गई तो नाग देवता के सभी दोष दूर हो जाएंगे. कालसर्प दोष दूर करने के लिए सावन का महीना सबसे उत्तम है.
सावन के पूरे महीने में लोग भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं और उन्हें प्रसन्न करते हैं. इसके अलावा महामृत्युंजय मंत्र या ॐ नमः शिवाय का जाप करने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं.
महामृत्युंजय मंत्र का जाप रुद्राक्ष की माला से 1,32,000 बार करना चाहिए.
भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती का पाठ करना चाहिए.
रोजाना शिवलिंग पर दूध, गंगाजल और शहद मिलाकर अभिषेक करने और बिल्व पत्र चढ़ाने से भी कालसर्प दोष दूर हो जाता है.
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन (23 जून 2023)
23 Jun, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- यात्रा भय, कष्ट, व्यापार बाधा, लाभ, पारिवारिक समस्या उलझी ही रहेंगी, ध्यान दें।
वृष राशि :- शत्रुभय, रोग, स्वजन सुख, लाभ, शिक्षा-लेखन कार्य में सफलता, प्रगति के योग बनेंगे।
मिथुन राशि :- वाहन भय, कष्ट, हानि, अस्थिरता, अशांति का वातावरण रहेगा, ध्यान अवश्य रखें।
कर्क राशि :- सफलता, उन्नति, शुभ कार्य, विवाद, राजकार्य व मामले मुकदमे में स्थिति कष्टमय रहेगी।
सिंह राशि :- शरीर कष्ट, अपव्यय, कार्य में सफलता, आर्थिक सुधार आदि के कार्य अवश्य ही होंगे।
कन्या राशि :- खर्च, विवाद, स्त्री कष्ट, विद्या लाभ, धीरे-धीरे सुधार के साथ अर्थ लाभ होगा।
तुला राशि :- यात्रा से हानि, राजलाभ, शरीर कष्ट तथा खर्च की यात्रा कष्टदायक होगी।
वृश्चिक राशि :- कार्यवृत्ति से लाभ, यात्रा, सम्पत्ति लाभ, व्यापार में सुधार, खर्च होते ही रहेंगे।
धनु राशि :- अल्प लाभ, चोराग्नि भय, मानसिक परेशानी, अपवाद, उलझन का सामना करना पड़ेगा।
मकर राशि :- शत्रु से हानि, अपव्यय, शरीरिक सुख, कभी-कभी व्यवस्था कुछ तंग पड़ेगा।
कुंभ राशि :- शत्रु व्यय, संतान सुख, कार्य में सफलता, उत्साह की वृद्धि होगी।
मीन राशि :- पदोन्नति, राजभय, न्याय लाभ, धन हानि, अधिकारियों से मनमुटाव अवश्य ही होगा।
भगवान श्रीगणेश को इसलिए मिला है अहम स्थान
22 Jun, 2023 07:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
वास्तु शास्त्र में भगवान श्रीगणेश को महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया गया है। भगवान श्रीगणेश वास्तु दोषों को दूर करते हैं। भगवान श्रीगणेश मंगलकारी देवता हैं। जहां श्रीगणेश का नित पूजन-अर्चन होता है, वहां रिद्धि-सिद्धि और शुभ-लाभ का वास होता है।
घर के मुख्य द्वार पर भगवान श्रीगणेश की प्रतिमा या तस्वीर लगाने से घरवालों की दिनों दिन उन्नति होती है।
आम, पीपल और नीम से बनी श्रीगणेश की मूर्ति घर के मुख्य दरवाजे पर लगाएं। इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा आती है।
घर के मुख्यद्वार पर चौखट के ऊपर भगवान श्रीगणेश की प्रतिमा या तस्वीर लगानी चाहिए। उनके आसपास सिंदूर से उनकी दोनों पत्नियों के नाम रिद्धि-सिद्धि लिखने की परंपरा है।
घर में पूजा के लिए भगवान श्रीगणेश की शयन या बैठी हुई मुद्रा में मूर्ति शुभ मानी जाती है।
कार्यस्थल पर खड़ी हुए मुद्रा में भगवान श्रीगणेश की मूर्ति लगाएं। इससे स्फूर्ति और उमंग बनी रहती है। ध्यान रहे कि खड़े हुए श्रीगणेश जी के दोनों पैर जमीन को स्पर्श करते हुए हों। इससे कार्य में स्थिरता आती है।
घर में भगवान श्रीगणेश का चित्र लगाते समय ध्यान रखें कि चित्र में मोदक या लड्डू और चूहा अवश्य होना चाहिए। घर में भगवान श्रीगणेश की ज्यादा मूर्तियां या तस्वीर नहीं होनी चाहिए।
कई वास्तुदोषों का निवारण भगवान गणपति जी की पूजा से होता है। वास्तु पुरुष की प्रार्थना पर ब्रह्माजी ने वास्तुशास्त्र के नियमों की रचना की थी। यह मानव कल्याण के लिए बनाया गया था इसलिए इनकी अनदेखी करने पर घर के सदस्यों को शारीरिक, मानसिक, आर्थिक हानि भी उठानी पड़ती है अत: वास्तु देवता की संतुष्टि के लिए भगवान गणेश को पूजना बेहतर है। श्री गणेश की आराधना के बिना वास्तु देवता को संतुष्ट नहीं किया जा सकता। बिना तोड़-फोड़ अगर वास्तु दोष को दूर करना चाहते हैं तो इन्हें आजमाइए.
सुख, समृद्धि व प्रगति
यदि घर के मुख्य द्वार पर एकदंत की प्रतिमा या चित्र लगाया गया हो तो हो सके तो दूसरी तरफ ठीक उसी जगह पर गणेशजी की प्रतिमा इस प्रकार लगाएं कि दोनों गणेशजी की पीठ मिलती रहे। इस प्रकार से दूसरी प्रतिमा का चित्र लगाने से वास्तु दोषों का शमन होता है। भवन के जिस भाग में वास्तु दोष हो, उस स्थान पर घी मिश्रित सिन्दूर से स्वस्तिक दीवार पर बनाने से वास्तु दोष का प्रभाव कम होता है।
दक्षिण व नैऋत्य कोण और श्री गणेश
घर या कार्यस्थल के किसी भी भाग में वक्रतुंड की प्रतिमा अथवा चित्र लगाए जा सकते हैं, किंतु प्रतिमा लगाते समय यह ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि किसी भी स्थिति में इनका मुंह दक्षिण दिशा या नैऋत्य कोण में नहीं हो। इसका विपरीत प्रभाव होता है।
घर में बैठे हुए गणेशजी तथा कार्यस्थल पर खड़े गणेशजी का चित्र लगाना चाहिए। किंतु यह ध्यान रखें कि खड़े गणेशजी के दोनों पैर जमीन का स्पर्श करते हुए हों, इससे कार्य में स्थिरता आने की संभावना रहती है.
भवन के ब्रह्म स्थान अर्थात केंद्र में, ईशान कोण एवं पूर्व दिशा में सुखकर्ता की मूर्ति अथवा चित्र लगाना शुभ रहता है। सुख, शांति, समृद्धि की चाह रखने वालों के लिए सफेद रंग के विनायक की मूर्ति, चित्र लगाना चाहिए।
हर अवसर पर शुभ सिंदूरी गणेश
सर्व मंगल की कामना करने वालों के लिए सिंदूरी रंग के गणपति की आराधना अनुकूल रहती है। विघ्नहर्ता की मूर्ति अथवा चित्र में उनके बाएं हाथ की ओर सूंड घुमी हुई हो, इस बात का ध्यान रखना चाहिए।
दाएं हाथ की ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी हठी होते हैं तथा उनकी साधना-आराधना कठिन होती है।
लड्डू और मूषक
मंगलमूर्ति भगवान को मोदक एवं उनका वाहन मूषक अतिप्रिय है अत: घर में चित्र लगाते समय ध्यान रखें कि चित्र में मोदक या लड्डू और चूहा अवश्य होना चाहिए। इस तरह आप भी बिना तोड़-फोड़ के गणपति पूजन द्वारा वास्तुदोष को दूर कर सकते हैं।