धर्म एवं ज्योतिष (ऑर्काइव)
पक्षियों को दाना खिलाने से बनी रहती है देवी लक्ष्मी की कृपा
12 Oct, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हम अपने घरों में सुख समृद्धि लाने के लिए बहुत से उपाय करते रहते हैं। वास्तु शास्त्र के अनुसार पक्षियों को दाना खिलाना शुभ होता है, लेकिन इसमें मामूली सी गलती इसके विपरीत नुकसान पहुंचा सकती है। कई बार अंजाने में ही हम सही हम कुछ न कुछ गलती भी कर जाते हैं।
ज्योनतिष एवं वास्तुत शास्त्रर के अनुसार जो लोग पक्षियों को दाना डालते हैं उन पर हमेशा देवी लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है। अधिकतर लोग घर की छत या बालकनी में पक्षियों के लिए दाना डालते हैं लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि दाना डालने से भी नुकसान हो सकता है। पक्षियों को दाना डालना शुभ होता है, लेकिन उस समय कुछ गलतियां हो जाने से व्यक्ति को नुकसान का सामना करना पड़ सकता है। आप जैसे ही दाना डालते हैं तो पक्षी खाने के लिए पहुंच जाते हैं। इन पक्षियों में सबसे आम होता है कबूतर। कबूतर का दाना चुगने आना बेहद शुभ माना जाता है। कबूतर को ज्योतिष में बुध ग्रह का माना जाता है। कुछ लोग पक्षियों के लिए दाना छत पर डालते हैं। छत को राहू का प्रतीक माना जाता है। जब कबूतर दाना खाने छत पर आते हैं तो इस तरह बुध और राहू का मेल हो जाता है। इसके साथ ही जिस जगह पक्षी दाना खाते हैं वहां गंदगी भी हो जाती है। यदि आप जगह को साफ रखते हैं तो तो कोई परेशानी नहीं, लेकिन यदि गंदगी रहती है तो इससे अशुभ प्रभाव मिलने शुरू हो जाते हैं। इस स्थिलति में घर में रहने वाले लोगों पर राहु हावी हो जाता है जो अशुभ होता है।
बनासकांठा का नाडेश्वरी माता का मंदिर है आस्था का केन्द्र
12 Oct, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
गुजरात के बनासकांठा के बॉर्डर पर नाडेश्वरी माता का मंदिर बना है। यह मंदिर आम लोगों के साथ-साथ सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के जवानों के लिए भी आस्था और श्रद्धा का बहुत बड़ा धर्मस्थल बना हुआ है।
बनासकांठा बॉर्डर पर जब भी किसी जवान की ड्यूटी लगती है तो वह ड्यूटी देने से पहले मंदिर में माथा टेक कर ही जाता है। ऐसी मान्यता है कि मां नाडेश्वरी खुद यहां जवानों की रक्षा करती हैं।
दरअसल, पहले यहां पर कोई मंदिर नहीं था, एक छोटा सा मां का स्थान था, पर 1971 के युद्ध के बाद उस समय के कमान्डेंट ने इस मंदिर का निर्माण कराया। इस मंदिर कि खास बात यह भी है कि बीएसएफ का एक जवान ही यहां पुजारी के तौर पर ही अपनी ड्यूटी करता है।
बनासकांठा का सुई गांव जो भारत-पाकिस्तान सीमा पर आखिरी गांव है वहीं यह मंदिर स्थित है। यहां से महज 20 किलोमीटर की दूरी पर पाकिस्तान की सीमा शुरू हो जाती है। यह क्षेत्र बीएसएफ के निगरानी में ही रहता है।
मंदिर के निर्माण की कहानी भी बेहद दिलचस्प है। 1971 में पाकिस्तान के साथ लड़ाई के समय भारतीय सेना की एक टुकड़ी पाकिस्तान की सीमा में प्रवेश कर गई और इसके बाद वह रास्ता भटक गई क्योंकि रन का इलाका होने की वजह से उन्हें रास्ता भी नहीं मिल रहा था।
माना जाता है कि खुद कमान्डेंट ने मां नाडेश्वरी से मदद की गुहार लगाई और सकुशल सही जगह पहुंचाने की विनती की तो खुद मां ने दिये की रोशनी के जरिये भारतीय सेना की टुकड़ी की मदद की और उन्हें वापस अपने बेस कैंप तक लेकर आई। इस दौरान किसी भी जवान को खरोंच तक नहीं आई। तब से यहां पर आने वाले हर एक जवान के लिए मां का मंदिर अस्था और श्रद्धा का सब से बड़ा केंद्र बना हुआ है।
वहां ऐसी मान्यता है कि जब तक इस बॉर्डर पर मां नाडेश्वरी देवी विराजमान हैं किसी भी जवान को कुछ नहीं हो सकता।
इन लोगों से नहीं लें सलाह
12 Oct, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
महात्मा विदुर महाभारत काल के महान नीतिज्ञ माने जाते हैं इन्हें धर्मराज का अवतार भी माना जाता है। इन्होंने हमेशा नीतियों और न्याय का पालन किया। इन्होंने अपनी नीतियों में बताया है कि मनुष्य को कोई भी काम शांति और समझदार लोगों की सलाह से करना चाहिए। वहीं भूलकर भी 4 लोगों से सलाह लेने से बचना चाहिए। ये 4 लोग ऐसे हैं जिनसे सलाह लेने पर नुकसान होना तय है। आइए जानें विदुर नीति के अनुसार वो 4 लोग कौन हैं जिनसे सलाह लेने से बचना चाहिए।
जिनकी बुद्धि हो ऐसी
विदुरजी के अनुसार जिन लोगों की बुद्धि कम होती है। उन लोगों से कभी सलाह नहीं लेना चाहिए। इनके अनुसार थोड़ी बुद्धि वाले कभी सही सलाह देने में सक्षम नहीं होते हैं। वो खुद में ही अल्पबुद्धि के हैं तो किसी को क्या सलाह और विमर्श दे पाएंगे। इसलिए ऐसे लोगों से गुप्त विचार विमर्श करने से अपना ही नुकसान होगा। ऐसे लोगों से दूर ही रहना चाहिए। ऐसे लोग आपकी गुप्त योजनाओं को दूसरों के सामने प्रकट कर सकते हैं।
दीर्घसूत्री व्यक्ति
दीर्घसूत्री व्यक्ति विषयों की गंभीरता समझने की बजाय उस पर इतना मंथन करने लग जाता है कि काम पूरा होने का समय ही निकल जाए। इस तरह की सोच वाले व्यक्ति की सलाह लेने पर काम में सफलता मिलना मुश्किल होता है। विदुरजी बताते हैं कि जो समझदारी से विचार करके परिस्थिति की गंभीरता के समझता हो उसी से सलाह लेने में मनुष्य की भलाई है।
जल्दबाजी में काम करने वाले
किसी काम को जल्दबाजी में निपटाने वाले व्यक्ति से भी कोई सलाह नहीं लेना चाहिए। विदुर नीति के अनुसार जो लोग काम को करने में हड़बड़ाहट मचाते हैं, ध्यान से नहीं करते हैं उनकी सलाह को भी कोई खास प्रमुखता नहीं देनी चाहिए। जल्दबाजी करने वाले मनुष्य से गुप्त सलाह लेना एक नुकसानदायी परिणाम दे सकता है।
चाटुकारिता करने वाले
विदुर के अनुसार, चापलूसी करने वाले व्यक्ति से दूर रहना चाहिए। चाटुकार सच को छुपाकर आपको प्रसन्न करने वाली बात कहेगा वह आपकी कमियों को बताने से डरेगा और आप आत्ममुग्ध होकर गलती कर बैठेंगे जिससे आपका नुकसान होना तय है। इसलिए हमें सत्य को बोलने वाले की सलाह लेनी चाहिए।
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (12 अक्टूबर 2023)
12 Oct, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष :- कुटुम्ब की समस्याएW सुलझेंगी, स्थिति पर नियंत्रण रखें, असफलता अवश्य ही मिलेगी।
वृष :- कारोबार में लाभांवित योजना बनेगी, कुछ नई आशायें सफल अवश्य ही होंगी।
मिथुन :- कार्यकुशलता से संतोष एवं स्त्री वर्ग से हर्ष, कार्य-व्यवसाय अवश्य ही होगा।
कर्क :- धन लाभ, आशानुकूल सफलता का हर्ष, कार्य-व्यवसाय अवश्य ही होगा, ध्यान रखें।
सिंह :- अधिकारियों की उपेक्षा से हानि होगी, मानसिक बेचैनी, कार्य में बाधा सम्भव है।
कन्या :- परिश्रम से सोचे कार्य में सफलता, संघर्ष वृद्धि अवश्य बनी ही रहेगी।
तुला :- समृद्धि के साधन बनेंगे, कार्य-व्यवस्था अनुकूल अधिकारियों से तनाव बनेगा।
वृश्चिक :- भाग्य का सितारा साथ देगा, बिगड़े हुए कार्य बनेंगे, समय का उपयोग करें।
धनु :- मानसिक क्लेश व मन अशांत रहे, धन हाथ से होकर जाता रहे, कार्य अवश्य बनेंगे।
मकर :- मनोबल उत्साहवर्धक हो, इष्ट मित्रों से परेशानी, किसी के धोखे से बचकर अवश्य चलें।
कुम्भ :- दैनिक कार्यगति अनुकूल, चिन्ताएं कम होंगी, तटस्थता से कार्य निपटा लेवें।
मीन :- कार्यगति अनुकूल, चिन्ताएW कम हों, सफलता के साधन अवश्य ही बनेंगे।
शारदीय नवरात्रि की पूजा के लिए आवश्यक सामग्री
11 Oct, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्म में नवरात्रि के त्योहार को बेहद ही खास माना जाता है जो कि देवी साधना का महापर्व होता है इस दौरान भक्त देवी मां को प्रसन्न करने के लिए उनकी विधि विधान से पूजा करते हैं और उपवास आदि भी रखते हैं नवरात्रि पूरे नौ दिनों तक चलता है और इसके हर दिन मां दुर्गा के अलग स्वरूप की साधना की जाती है।
मान्यता है कि नवरात्रि में पूजा पाठ और व्रत करने से देवी का आशीर्वाद मिलता है। इस साल शारदीय नवरात्रि का त्योहार 15 अक्टूबरा से आरंभ होने जा रहा हैं जिसका समापन 24 अक्टूबर को हो जाएगा। ऐसे में आज हम आपको नवरात्रि पूजन की सभी सामग्री के बारे में जानकारी प्रदान कर रहे हैं तो आइए जानते हैं।
कलश स्थापना से जुड़ी सामग्री-
शारदीय नवरात्रि के प्रथम दिन कलश स्थापना किया जाता है। ऐसे में घट स्थापना के लिए सबसे पहले कलश, मौली, आम के पत्ते का पल्ला पांच की संख्या में, रोली, गंगाजल, सिक्का, गेहूं या अक्षत। जवार बोने की सामग्री एक मिट्टी का बर्तन, शुद्ध मिट्टी, गेहूं या जौ, मिट्टी पर रखने के लिए एक साफ वस्त्र, साफ जल, और कलावा। वही अखंड ज्योति के लिए पीतल या मिट्टी का एक दीपक, देसी घी, रूई बत्ती, रोली या सिंदूर, अक्षत।
हवन सामग्री-
नवरात्रि के दिनों में पूरे नौ दिनों तक हवन किया जाता है इससे सकारात्मकता आती है ऐसे में हवन सामग्री के तौर पर हवन कुंड, आम की लकड़ी, काले तिल, रोली या कुमकुम, अक्षत, जौ, धूप, पंचमेवा, घी, लोबान, लौंग का जोड़ा, गुग्गल, कमलगट्टा, सुपारी, कपूर, हवन में चढ़ाने के लिए भोग, शुद्ध जल।
भगवान गणेश के इन मंत्रों का जाप, सभी परेशानियां होंगी दूर
11 Oct, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
गौरी पुत्र गणेश को सभी देवताओं में प्रथम पूजनीय माना जाता है। इसलिए सभी मांगलिक और शुभ कार्य की शुरुआत से पहले गणेश जी की पूजा की जाती है। मान्यता है कि किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत से पहले यदि भगवान की पूजा की जाए तो वो कार्य बिना किसी विघ्न-बाधा के पूरा होता है।
भगवान गणेश का पूजन करने से सभी विघ्न और बाधाएं समाप्त हो जाती हैं। हिंदू धर्म में भगवान श्री गणेश की पूजा आराधना के लिए बुधवार का दिन सबसे उत्तम माना जाता है। यदि इस दिन पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ भगवान गणेश जी की पूजा की जाए तो जीवन की परेशानियों और समस्याओं का अंत हो जाता है। बुधवार के दिन भगवान गणेश की पूजा के साथ ही उनके कुछ मंत्रों का जाप करना चाहिए। आइए जानते हैं उन मंत्रों के बारे में, जिनका बुधवार के दिन जाप करने से आपकी सभी परेशानियां दूर हो जाएंगी-
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
यदि आप गणेश जी को प्रसन्न करना चाहते हैं, इस मंत्र का जाप करें। कहा जाता है कि ये मंत्र इतना ज्यादा प्रभावशाली है कि कोई भी कार्य शुरू करने से पूर्व इस मंत्र का जाप करने से आपके सभी काम बिना किसी बाधा के पूरे हो जाएंगे।
ॐ गं गणपतये नमः
यदि आपके जीवन में परेशानियां हैं और उनसे छुटकारा पाना चाहते हैं, तो गणेश जी के इस मंत्र का जाप करें। भगवान गणेश का ये मंत्र इतना चमत्कारी है कि इसके जाप से जीवन में आने वाली सभी बाधाएं और परेशानियां दूर होती हैं।
गणपूज्यो वक्रतुण्ड एकदंष्ट्री त्रियम्बक:।
नीलग्रीवो लम्बोदरो विकटो विघ्रराजक :।।
धूम्रवर्णों भालचन्द्रो दशमस्तु विनायक:।
गणपर्तिहस्तिमुखो द्वादशारे यजेद्गणम।।
कुंडली से ग्रह दोष दूर करने के लिए कर बुधवार गणपति बप्पा के इस मंत्र का 11 बार जाप करें। इस मंत्र में गणेश जी के 12 नामों का जिक्र किया गया है। मान्यता है यदि आप इस मंत्र का जाप किसी मंदिर में भगवान गणेश के सामने बैठकर करेंगे तो आपको शुभ फल की प्राप्ति होगी। साथ ही जीवन में आ रही बढ़ाएं दूर होंगी।
त्रयीमयायाखिलबुद्धिदात्रे बुद्धिप्रदीपाय सुराधिपाय।
नित्याय सत्याय च नित्यबुद्धि नित्यं निरीहाय नमोस्तु नित्यम्।
यदि आपका काम बनते-बनते बिगड़ जा रहा है, तो बुधवार को गौरी पुत्र गणेश के इस मंत्र का जाप करें। ये मंत्र आपके सभी बिगड़े हुए कार्यों को पूरा करेगा। वहीं यदि आपको मेहनत करने के बाद भी सफलता नहीं मिल रही है, तो इस मंत्र का 21 बार जाप करें।
श्राद्ध पक्ष की शिवरात्रि पर बनेंगे कईं शुभ योग
11 Oct, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
धर्म ग्रंथों के अनुसार, हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि का व्रत किया जाता है। इस बार ये व्रत और भी खास हो गया है क्योंकि ये श्राद्ध पक्ष में आ रहा है।
(October 2023 Mai Shivratri Kab hai) साथ ही इस दिन कईं शुभ योग भी बन रहे हैं, जिसके चलते इसका महत्व और भी बढ़ गया है। इस दिन किए गए व्रत-पूजन से जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है। आगे जानिए इस व्रत की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त व अन्य खास बातें…
ये शुभ योग बनेंगे इस दिन (Masik Shivratri 2023 Shubh Yog)
पंचांग के अनुसार, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि 12 अक्टूबर, गुरुवार की रात 07:54 से 13 अक्टूबर, शुक्रवार की रात 09:51 तक रहेगी। चूंकि मासिक शिवरात्रि व्रत में पूजा रात में की जाती है, इसलिए ये व्रत 12 अक्टूबर, गुरुवार को ही किया जाएगा। गुरुवार को पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र होने से गद और उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र होने से मातंग नाम के 2 शुभ योग बनेंगे। साथ ही इस दिन शुक्ल और ब्रह्म नाम के 2 अन्य शुभ योग भी रहेंगे।
इस विधि से करें शिव चतुर्दशी की पूजा विधि (Masik Shivratri Puja Vidhi)
12 अक्टूबर, गुरुवार की सुबह उठकर स्नान करें और व्रत-पूजा का संकल्प लें। दिन भर निराहार रहें। ऐसा करना संभव न हो तो एक समय फलाहार कर सकते हैं। रात्रि के पहले प्रहर में शिवजी की पूजा शुरू करें। शुद्ध घी का दीपक जलाएं। शिवलिंग का पंचामृत और फिर शुद्ध जल से अभिषेक करें। अबीर, गुलाल, रोली, बिल्व पत्र, धतूरा, भांग आदि चीजें चढ़ाएं। इस प्रकार अन्य तीन प्रहर में भी शिवजी की पूजा करें। चौथे प्रहर की पूजा के बाद आरती करें भोग लगाएं। इस व्रत को करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी हो सकती हैं।
भगवान शिव की आरती (Shiv ji Ki aarti)
जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे ।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
कब मनाया जाएगा करवा चौथ का त्योहार
11 Oct, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ का त्योहार मनाया जाता है। करवा चौथ के दिन पूरे दिन उपवास करने का विधान है जिसे करवा चौथ व्रत या करवा चौथ व्रत के नाम से जाना जाता है।
इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति के जीवन की सुरक्षा और दीर्घायु सुनिश्चित करने के लिए सूर्योदय से चंद्रोदय तक कठोर उपवास रखती हैं। शाम को चंद्रमा उदय होने के बाद ही महिलाएं अपना व्रत पूर्ण करती हैं। इस व्रत से जुड़ी और भी कईं मान्यताएं और परंपराएं हैं,जो इसे खास बनाती हैं। करवा चौथ हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, गुजरात और राजस्थान आदि राज्यों में मनाया जाता है। आइए जानते हैं इस बार ये व्रत कब किया जाएगा और करवा चौथ पर कब निकलेगा चन्द्रमा।
कब मनाया जाएगा करवा चौथ?
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि आरंभ: 31 अक्टूबर, मंगलवार, रात्रि 09:30 मिनट से
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि समाप्त:1 नवंबर, बुधवार, रात्रि 09:19 मिनट पर
चतुर्थी तिथि का सूर्योदय व चंद्रोदय दोनों ही 1 नवंबर को होगा,इसलिए इसी दिन करवा चौथ का व्रत किया जाएगा।
चंद्रोदय का समय
पंचांग के अनुसार, इस बार करवा चौथ पर यानी 1 नवंबर, बुधवार को है। तो इस हिसाब से चन्द्रोदय का समय रात्रि 08:15 रहेगा। ऐसे में अलग-अलग स्थानों पर चंद्रोदय के समय में 5 से 7 मिनिट का अंतर आ सकता है।
करवा चौथ पर चंद्रमा पूजन से जुड़ी ज्योतिष और पौराणिक मान्यता
करवा चौथ से जुड़ी कई मान्यताएं और परंपराए हैं जो इस पर्व को और भी खास बनाती है। परंपरा के अनुसार इस दिन चंद्रमा की पूजा के बाद ही महिलाओं का व्रत पूर्ण होता है। इस परंपरा के पीछे ज्योतिष एवं धार्मिक कारण जुड़ा हुआ है।
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार चंद्रमा मन का कारक है। करवा चौथ पर चंद्रमा अपनी उच्च राशि वृषभ में और सबसे प्रिय पत्नी रोहिणी के साथ होता है। इस स्थिति में की गई चंद्रमा की पूजा वैवाहिक जीवन को और अधिक सुखमय बनाती है। इसलिए करवा चौथ पर चंद्रमा की पूजा करने की परंपरा है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार चंद्रमा की पूजा को लेकर रामायण की एक कथा प्रचलित हैं। एक बार श्रीराम ने पूर्व दिशा की ओर चमकते हुए चंद्रमा को देखकर पूछा कि चंद्रमा में कालापन क्यों है। इस पर लोगों ने अलग-अलग तर्क दिए। तब भगवान राम ने कहा कि चंद्रमा में कालापन उसके विष के कारण है और इससे वह अलग रह रहे पति-पत्नी को जलाता रहता है। इसलिए सुहागिन महिलाएं चंद्रमा की पूजा करके प्रार्थना करती हैं कि उन्हें अपने पति से कभी दूर न रहना पड़े और वे खुशहाल वैवाहिक जीवन व्यतीत कर पाएं।
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (11 अक्टूबर 2023)
11 Oct, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष :- दैनिक व्यवसाय गति में सुधार होगा, योजनाएं फलीभूत होंगी, रुके कार्य बनेंगे।
वृष :- दैनिक क्षमता में वृद्धि, सफलता एवं प्रभुत्व वृद्धि के योग अवश्य बनेंगे, आप ध्यान रखें।
मिथुन :- आर्थिक योजना पूर्ण हो, कार्यक्षमता में वृद्धि के योग बने, इष्ट मित्र सुखवर्धक होंगे।
कर्क :- कार्य-व्यवसाय अनुकूल, चिन्ताए कम होंगी, इष्ट मित्र सुखवर्धक होंगे।
सिंह :- धन लाभ, आशानुकूल सफलता का हर्ष होगा, कार्यवृत्ति में सुधार होगा, ध्यान रखें।
कन्या :- कुछ समस्या सुलझेंगी कुछ पैदा होगी, समय अनुकूल नहीं, सोच-विचार कर कार्य करें।
तुला :- कार्य-व्यस्तता, क्षमता कुछ अनुकूल हो, आशाओं में कुछ सफलता किन्तु तनाव बनेगा।
वृश्चिक :- धन लाभ, आशानुकूल सफलता का हर्ष होगा, कुटुम्ब की समस्याए अवश्य सुलझेंगी।
धनु :- प्रत्येक कार्य में विलम्ब सम्भव, धन लाभ, आशानुकूल सफलता से खुशी होगी।
मकर :- आरोप व क्लेश सम्भव, धन का व्यय किन्तु विशेष सफलता से खुशी होगी।
कुम्भ :- सफलता के साधन जुटायें, समय सुख आराम से बीते, रुके कार्य बनेंगे।
मीन :- किसी तनाव व क्लेश से बचिये, अशांति तथा असमंजस, कष्ट अवश्य होगा।
अट्टाहास मंदिर में पूरी हो जाएगी आपकी मनोकामना
10 Oct, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
बर्धमान, इतिहास और संस्कृति से भरा शहर, कई छिपे हुए रत्नों का घर है, और अट्टाहास निस्संदेह उनमें से एक है। भारत के पश्चिम बंगाल के मध्य में स्थित, अट्टाहास परंपरा, आधुनिकता और प्राकृतिक सुंदरता का एक अनूठा मिश्रण प्रदान करता है।
इस लेख में, हम आपको अट्टाहास की समृद्ध विरासत, जीवंत संस्कृति और लुभावने परिदृश्यों का प्रदर्शन करते हुए एक यात्रा पर ले जाएंगे।
अट्टाहास: एक सिंहावलोकन
बर्धमान की हरी-भरी हरियाली के बीच बसा, अट्टाहास एक आकर्षक गाँव है जो बदलाव की हवाओं को गले लगाते हुए अपने प्रामाणिक सार को बनाए रखने में कामयाब रहा है। मुख्य रूप से कृषि प्रधान आबादी के साथ, यह गाँव शहरी जीवन की हलचल से एक शांत मुक्ति प्रदान करता है। यहां, समय धीमा लगता है, जिससे आगंतुकों को ग्रामीण जीवन की सादगी में डूबने का मौका मिलता है।
इतिहास और विरासत
अट्टाहास का एक ऐतिहासिक अतीत है जो सदियों पुराना है। यह गाँव एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का दावा करता है, जिसमें ऐतिहासिक स्थल हैं जो बीते युगों की कहानियाँ बताते हैं।
1. दुर्गा मंदिर: एक आध्यात्मिक नखलिस्तान
अपनी उत्कृष्ट वास्तुकला और जटिल नक्काशी के साथ, दुर्गा मंदिर अतीत की कलात्मक शक्ति के प्रमाण के रूप में खड़ा है। यह आध्यात्मिकता और भक्ति का केंद्र है, जो दूर-दूर से तीर्थयात्रियों को आकर्षित करता है।
2. राजबाड़ी: रॉयल्टी की एक झलक
राजबाड़ी, या शाही महल, अतीत की समृद्धि को प्रदर्शित करता है। इसकी भव्यता और वास्तुकला देखने लायक है, जो कभी यहां रहने वाले राजघरानों के जीवन की झलक पेश करती है।
संस्कृति और परंपराएँ
अट्टाहास का हृदय इसकी जीवंत सांस्कृतिक परंपराओं की लय में धड़कता है। ग्रामीण बहुत सारे त्यौहार बड़े उत्साह और उमंग के साथ मनाते हैं।
1. दुर्गा पूजा: एक भव्य उत्सव
सबसे महत्वपूर्ण त्योहार, दुर्गा पूजा में गाँव को रंग-बिरंगी सजावट और खूबसूरती से तैयार की गई मूर्तियों से सजाया जाता है। हवा पारंपरिक संगीत की ध्वनि और स्वादिष्ट बंगाली व्यंजनों की सुगंध से भर जाती है।
2. काली पूजा: शक्ति की देवी का सम्मान करना
काली पूजा उत्साह के साथ मनाया जाने वाला एक और प्रमुख त्योहार है। यह एक ऐसा समय है जब पूरा समुदाय देवी काली से आशीर्वाद लेने के लिए एक साथ आता है।
प्राकृतिक सौंदर्य और शांति
अपनी सांस्कृतिक समृद्धि के अलावा, अट्टाहास प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर है जो आगंतुकों को मंत्रमुग्ध कर देता है।
1. हुगली नदी: एक शांत विश्राम स्थल
हुगली नदी अट्टाहास के पास सुंदर ढंग से बहती है, जो गांव के लिए एक शांत पृष्ठभूमि प्रदान करती है। इसके किनारे इत्मीनान से टहलना एक तरोताजा कर देने वाला अनुभव है।
2. मैंग्रोव वन: एक जैव विविधता हॉटस्पॉट
अट्टाहास विविध वनस्पतियों और जीवों से भरपूर, समृद्ध मैंग्रोव वनों का घर है। प्रकृति प्रेमी इन हरे-भरे विस्तारों का पता लगा सकते हैं।
आधुनिक सुविधाएं
जबकि अट्टाहास अपनी विरासत को संरक्षित रखता है, इसने निवासियों और पर्यटकों को आवश्यक सुविधाएं प्रदान करते हुए आधुनिक समय के अनुसार भी अनुकूलित किया है।
1. स्थानीय बाज़ार: खरीदारी का आनंद
गाँव में हलचल भरे स्थानीय बाज़ार हैं जहाँ आप हस्तशिल्प, पारंपरिक पोशाक और ताज़ा उपज पा सकते हैं। कुछ स्ट्रीट फूड का आनंद लेना न भूलें!
2. गेस्टहाउस और होमस्टे: आरामदायक आवास
अट्टाहास आरामदायक प्रवास चाहने वाले पर्यटकों के लिए आरामदायक गेस्टहाउस और होमस्टे प्रदान करता है। ये आवास आगंतुकों को स्थानीय लोगों की गर्मजोशी और आतिथ्य का अनुभव करने की अनुमति देते हैं। बर्धमान के मध्य में स्थित अट्टाहास, इतिहास, संस्कृति और प्राकृतिक सुंदरता का एक मनोरम मिश्रण है। चाहे आप इतिहास प्रेमी हों, प्रकृति प्रेमी हों, या बस एक शांतिपूर्ण छुट्टी की तलाश में हों, अट्टाहास के पास हर किसी को देने के लिए कुछ न कुछ है। यह अनोखा गाँव आपको इसके आकर्षण में डूबने, इसकी परंपराओं का अनुभव करने और इसके प्राकृतिक परिवेश की शांति का आनंद लेने के लिए आमंत्रित करता है। इसलिए, अगली बार जब आप पश्चिम बंगाल की यात्रा की योजना बनाएं, तो अपने यात्रा कार्यक्रम में अट्टहास को शामिल करना सुनिश्चित करें। यह एक ऐसी जगह है जहां समय स्थिर रहता है और यादें हमेशा के लिए अंकित हो जाती हैं।
जयंती देवी शक्तिपीठ: जहां आध्यात्मिकता प्रकृति के वैभव से मिलती है
10 Oct, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
राजसी हिमालय पर्वतों के बीच स्थित मनमोहक जयंती देवी शक्तिपीठ, दूर-दूर से तीर्थयात्रियों और आध्यात्मिक साधकों द्वारा पूजनीय एक पवित्र स्थल है। नेपाल में यह छिपा हुआ रत्न इतिहास, संस्कृति और आध्यात्मिकता की एक समृद्ध टेपेस्ट्री रखता है जो यात्रियों को खोज की यात्रा पर जाने के लिए प्रेरित करता है।
इस लेख में, हम जयंती देवी शक्तिपीठ के रहस्य में गहराई से उतरेंगे, इसके महत्व, किंवदंतियों, अनुष्ठानों और आसपास के परिदृश्य की विस्मयकारी सुंदरता को उजागर करेंगे।
जयंती देवी शक्तिपीठ का दिव्य सार
1. दिव्य स्त्री ऊर्जा का स्थान
जयंती देवी शक्तिपीठ समस्त सृष्टि के स्रोत, दिव्य नारी की पूजा के लिए समर्पित एक पवित्र स्थान के रूप में प्रसिद्ध है। ऐसा माना जाता है कि यह दिव्य ऊर्जा हिमालय के हृदय से निकलती है, जिससे वातावरण आध्यात्मिकता और श्रद्धा से भर जाता है।
2. जयंती देवी की कथा
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, जयंती देवी को देवी पार्वती का स्वरूप माना जाता है। किंवदंती है कि उनका मंदिर उस स्थान पर स्थापित किया गया था जहां भगवान शिव के महान ब्रह्मांडीय नृत्य, जिसे तांडव के नाम से जाना जाता है, के दौरान उनकी जीभ गिरी थी। यह किंवदंती इस स्थल को अत्यधिक आध्यात्मिक महत्व देती है।
आध्यात्मिक तीर्थयात्रा
3. तीर्थयात्रियों की पवित्र यात्रा
जयंती देवी शक्तिपीठ तक पहुंचने के लिए भक्त और तीर्थयात्री कठिन यात्रा करते हैं। मंदिर तक जाने वाला मार्ग चुनौतियों और कठिनाइयों से भरा है, लेकिन आध्यात्मिक पुरस्कार गहरा है।
4. अनुष्ठान और प्रसाद
मंदिर में, आगंतुक जयंती देवी का आशीर्वाद पाने के लिए दीपक जलाने, फूल चढ़ाने और आरती करने सहित विभिन्न अनुष्ठानों में शामिल होते हैं। ये अनुष्ठान उन्हें देवी की दिव्य ऊर्जा से जोड़ते हैं।
5. राजसी मंदिर परिसर
मंदिर परिसर अपने आप में वास्तुकला की सुंदरता का एक नमूना है, जिसमें जटिल नक्काशी और मूर्तियां हैं जो हिंदू पौराणिक कथाओं की कहानियों को दर्शाती हैं। यहां का वातावरण शांत है, जो इसे ध्यान और आत्म-चिंतन के लिए एक आदर्श स्थान बनाता है।
जयंती देवी शक्तिपीठ का प्राकृतिक सौन्दर्य
6. हिमालयन ब्लिस
मनमोहक हिमालय पर्वतों से घिरा, जयंती देवी शक्तिपीठ आगंतुकों को प्रकृति की विस्मयकारी सुंदरता में डूबने का मौका प्रदान करता है। बर्फ से ढकी चोटियाँ और हरी-भरी घाटियाँ एक मंत्रमुग्ध कर देने वाली पृष्ठभूमि बनाती हैं।
7. भागमती नदी की शांति
यह मंदिर भागमती नदी के तट पर स्थित है, जो इसकी शांति को और बढ़ाता है। तीर्थयात्री अक्सर मंदिर परिसर में प्रवेश करने से पहले पवित्र नदी में डुबकी लगाते हैं, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इससे आत्मा शुद्ध हो जाती है।
8. वनस्पति और जीव
जयंती देवी शक्तिपीठ के आसपास का क्षेत्र विभिन्न प्रजातियों के पौधों और जानवरों के साथ जैव विविधता से समृद्ध है। आसपास के क्षेत्र में दुर्लभ पक्षियों और अन्य वन्यजीवों को देखना असामान्य बात नहीं है, जो इसे प्रकृति प्रेमियों के लिए स्वर्ग बनाता है।
भक्ति का सार
9. एक आध्यात्मिक वापसी
दैनिक जीवन की भागदौड़ से छुट्टी चाहने वालों के लिए, जयंती देवी शक्तिपीठ एक शांतिपूर्ण विश्राम स्थल प्रदान करता है जहां कोई भी अपने आंतरिक स्व से जुड़ सकता है और सांत्वना पा सकता है।
10. आस्था और विश्वास
मंदिर में आने वाले तीर्थयात्रियों की अटूट आस्था वास्तव में उल्लेखनीय है। यह आध्यात्मिकता की स्थायी शक्ति और परमात्मा में गहरी आस्था का प्रमाण है।
चुनौतियाँ और संरक्षण
11. संरक्षण प्रयास
जैसे-जैसे साइट लोकप्रियता हासिल कर रही है, इसकी प्राकृतिक सुंदरता और पवित्रता बनाए रखने के लिए संरक्षण के प्रयास आवश्यक हैं। स्थानीय अधिकारी और संगठन इस पवित्र स्थान के संरक्षण को सुनिश्चित करने के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं।
12. अभिगम्यता
जयंती देवी शक्तिपीठ का चुनौतीपूर्ण इलाका और दूरस्थ स्थान कुछ यात्रियों के लिए बाधा बन सकता है। हालाँकि, दृढ़ निश्चयी तीर्थयात्री के लिए, यह रोमांच और भक्ति की भावना को बढ़ाता है।
विविधता को अपनाना
13. सभी आस्थाओं के लिए एक स्थान
जबकि मंदिर मुख्य रूप से हिंदू महत्व का है, जयंती देवी शक्तिपीठ एकता और विविधता को बढ़ावा देते हुए अपने आध्यात्मिक माहौल और प्राकृतिक सुंदरता का अनुभव करने के लिए सभी धर्मों के लोगों का स्वागत करता है।
14. सांस्कृतिक आदान-प्रदान
यह साइट एक सांस्कृतिक केंद्र के रूप में भी काम करती है, जहां विभिन्न पृष्ठभूमि के आगंतुक कहानियों, विश्वासों और अनुभवों का आदान-प्रदान करने के लिए एक साथ आते हैं, जिससे वैश्विक समुदाय की भावना को बढ़ावा मिलता है। हिमालय के मध्य में, जयंती देवी शक्तिपीठ आध्यात्मिकता की स्थायी शक्ति और प्रकृति की मनमोहक सुंदरता के प्रमाण के रूप में खड़ा है। यह पवित्र स्थल उन सभी को खोज की यात्रा पर निकलने के लिए आमंत्रित करता है जो सांत्वना, भक्ति और परमात्मा के साथ जुड़ाव चाहते हैं। जैसे-जैसे तीर्थयात्री जयंती देवी के चुनौतीपूर्ण मार्ग को पार करते हैं, उन्हें शांति और ज्ञान की भावना से पुरस्कृत किया जाता है जो सामान्य से परे है, जिससे यह रहस्यमय स्थान नेपाल की आध्यात्मिक विरासत की टेपेस्ट्री में एक सच्चा रत्न बन जाता है।
बहुला देवी मंदिर की वो मान्यताएं जिससे अनजान है कई लोग
10 Oct, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
भारत के पश्चिम बंगाल के मध्य में स्थित एक शांत जिला बर्धमान न केवल अपने हरे-भरे परिदृश्य और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिए बल्कि अपनी गहरी आध्यात्मिक जड़ों के लिए भी जाना जाता है।
इस आध्यात्मिक टेपेस्ट्री के केंद्र में पूज्य बहुला देवी हैं, एक देवी जो पीढ़ियों से आस्था और भक्ति की संरक्षक रही हैं।
बर्धमान में एक झलक
पश्चिम बंगाल के दक्षिणी भाग में स्थित बर्धमान विविध परंपराओं और आध्यात्मिकता की भूमि है। यह क्षेत्र अपने ऐतिहासिक महत्व और आध्यात्मिक प्रमुखता के कारण हमेशा अपने निवासियों के दिलों में एक विशेष स्थान रखता है।
बहुला देवी की विरासत
बर्धमान में पूजे जाने वाले असंख्य देवताओं में से, बहुला देवी कृपा और सुरक्षा के अवतार के रूप में प्रतिष्ठित हैं। आइए इस पूजनीय देवी की विरासत के बारे में गहराई से जानें।
बहुला देवी की उत्पत्ति
बहुला देवी का इतिहास लोककथाओं और भक्ति से जुड़ा हुआ है। स्थानीय किंवदंतियों के अनुसार, बहुला देवी को हिंदू देवी पार्वती का एक रूप माना जाता है। उसका नाम, "बहुला," का अर्थ है "वह जो बहुतायत प्रदान करती है।"
पवित्र मंदिर
बहुला देवी की पूजा का केंद्र बहुला देवी मंदिर है, एक पवित्र मंदिर जो निकट और दूर से तीर्थयात्रियों और भक्तों को आकर्षित करता है। मंदिर की वास्तुकला अपने आप में एक चमत्कार है, जिसमें जटिल नक्काशी और आश्चर्यजनक कलाकृतियाँ हैं जो भक्ति और आध्यात्मिकता की कहानियाँ बताती हैं।
त्यौहार एवं उत्सव
वार्षिक बहुला अष्टमी उत्सव के दौरान बर्धमान जीवंत हो उठता है, जिसे बड़े उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है। यह त्योहार बहुला देवी और भगवान बिष्णु के दिव्य विवाह की याद दिलाता है। तीर्थयात्री भव्य समारोहों में भाग लेने के लिए मंदिर में इकट्ठा होते हैं, जिसमें रंगीन जुलूस, भक्ति गीत और पारंपरिक नृत्य शामिल होते हैं।
बहुला देवी: सुरक्षा का प्रतीक
बहुला देवी को बर्धमान की रक्षक के रूप में पूजा जाता है। उनके भक्तों का मानना है कि वह उन्हें विपत्तियों से बचाती हैं और उनके जीवन में समृद्धि लाती हैं। जरूरत के समय लोग अक्सर मार्गदर्शन और सांत्वना के लिए उनकी ओर रुख करते हैं।
आस्था का महत्व
बहुला देवी की पूजा किसी विशेष समुदाय या जाति तक सीमित नहीं है। उनकी दिव्य उपस्थिति विविध पृष्ठभूमि के लोगों को आस्था के समान सूत्र में जोड़ती है। बर्धमान में आस्था सिर्फ एक विश्वास नहीं है; यह भी जीने का एक तरीका है।
सामुदायिक बंधन
बहुला देवी की पूजा से समुदाय और एकजुटता की भावना को बढ़ावा मिलता है। तीर्थयात्री और निवासी त्योहार मनाने और धर्मार्थ गतिविधियों में शामिल होने के लिए एक साथ आते हैं, जिससे भाईचारे के बंधन मजबूत होते हैं।
आध्यात्मिक पर्यटन
बर्धमान ने एक आध्यात्मिक पर्यटन स्थल के रूप में पहचान हासिल कर ली है, जो न केवल शांति की तलाश करने वाले पर्यटकों को आकर्षित करता है, बल्कि अपनी आस्था के साथ गहरा संबंध भी तलाशता है। आध्यात्मिक यात्रा पर निकले लोगों को बहुला देवी का मंदिर जरूर देखना चाहिए।
बर्धमान की आध्यात्मिक विरासत का संरक्षण
तेजी से बदलती दुनिया में बर्धमान की आध्यात्मिक विरासत का संरक्षण अत्यंत महत्वपूर्ण है। मंदिर और उसके आसपास के रखरखाव को सुनिश्चित करने के लिए स्थानीय प्रशासन और धार्मिक अधिकारी मिलकर काम करते हैं।
संरक्षण के प्रयासों
बहुला देवी मंदिर के वास्तुशिल्प चमत्कारों और ऐतिहासिक कलाकृतियों को संरक्षित करने के प्रयास चल रहे हैं। इसमें मंदिर के समृद्ध इतिहास का नियमित रखरखाव, जीर्णोद्धार और दस्तावेज़ीकरण शामिल है।
सांस्कृतिक जागरूकता को बढ़ावा देना
स्थानीय स्कूल और सांस्कृतिक संगठन सक्रिय रूप से बर्धमान की आध्यात्मिक विरासत के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देते हैं। इसमें जिले की परंपराओं के प्रति सराहना को बढ़ावा देने के उद्देश्य से शैक्षिक कार्यक्रम, सांस्कृतिक कार्यक्रम और कार्यशालाएं शामिल हैं। बर्धमान के हृदय में बहुला देवी आस्था, एकता और सुरक्षा का एक स्थायी प्रतीक बनी हुई हैं। उनका मंदिर उस गहन आध्यात्मिकता के प्रमाण के रूप में खड़ा है जो इस क्षेत्र में सदियों से पनप रही है। जैसे-जैसे दुनिया विकसित हो रही है, बहुला देवी की विरासत बर्धमान के लोगों को प्रेरित और मार्गदर्शन करती रहती है, इस आकर्षक जिले को परिभाषित करने वाली आध्यात्मिक टेपेस्ट्री को संरक्षित करती है।
क्यों पड़ा था छिन्नमस्तिका देवी मंदिर का ये नाम
10 Oct, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
भारत के झारखंड के मध्य में एक पवित्र मंदिर स्थित है जो दूर-दूर से भक्तों और आध्यात्मिक जिज्ञासुओं को आकर्षित करता है। यह मनमोहक स्थान छिन्नमस्तिका देवी का घर है, जो एक शक्तिशाली और रहस्यमय देवी है, जो हिंदू पौराणिक कथाओं में एक अद्वितीय स्थान रखती है।
इस लेख में, हम छिन्नमस्तिका देवी की मनोरम दुनिया में उतरते हैं, उनकी किंवदंतियों, महत्व और उनके भक्तों पर उनके गहरे प्रभाव की खोज करते हैं।
छिन्नमस्तिका देवी की पौराणिक कथा
प्रत्येक दिव्य इकाई की एक कहानी है, और छिन्नमस्तिका देवी कोई अपवाद नहीं हैं। उनकी कथा रहस्य और प्रतीकवाद की एक ऐसी टेपेस्ट्री है जिसने पीढ़ियों को आकर्षित किया है।
स्वयं का सिर काटने वाली देवी
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, छिन्नमस्तिका देवी को एक ऐसी देवी के रूप में दर्शाया गया है जो अपना सिर काट देती है, अपने कटे हुए सिर को एक हाथ में रखती है जबकि उसकी दो सहेलियां उसकी गर्दन से बहते खून को पीती हैं। यह आकर्षक छवि अहंकार के त्याग और स्वयं के उत्थान का प्रतीक है, जो आध्यात्मिकता के प्रमुख पहलू हैं।
अहंकार का हत्यारा
छिन्नमस्तिका देवी को अक्सर साहस और निडरता के अवतार के रूप में देखा जाता है। स्वयं का सिर काटने का उसका कार्य किसी के अहंकार और इच्छाओं से ऊपर उठने की क्षमता को दर्शाता है, जो आत्मज्ञान और आत्म-प्राप्ति के मार्ग पर एक महत्वपूर्ण कदम है।
छिन्नमस्तिका देवी का महत्व
परिवर्तन की देवी
छिन्नमस्तिका देवी परिवर्तन की देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं। उनके उपासकों का मानना है कि उनका आशीर्वाद प्राप्त करके, वे गहन व्यक्तिगत परिवर्तनों से गुजर सकते हैं, अपने पुराने स्वभाव को त्याग सकते हैं और मजबूत, अधिक प्रबुद्ध व्यक्ति के रूप में उभर सकते हैं।
कमज़ोरों का रक्षक
झारखंड में, जहां उनकी विशेष रूप से पूजा की जाती है, छिन्नमस्तिका देवी को कमजोर और हाशिए पर रहने वाले लोगों के संरक्षक के रूप में देखा जाता है। कई लोग जरूरत के समय सुरक्षा और मार्गदर्शन के लिए उनकी ओर रुख करते हैं।
रहस्यमय मंदिर
छिन्नमस्ता मंदिर
झारखंड में छिन्नमस्ता मंदिर इस देवी की भक्ति का केंद्र है। यहां, तीर्थयात्री और आगंतुक छिन्नमस्तिका देवी की विस्मयकारी छवि देख सकते हैं और विभिन्न अनुष्ठानों और समारोहों में भाग ले सकते हैं।
वार्षिक छिन्नमस्ता महोत्सव
मंदिर के कैलेंडर का एक मुख्य आकर्षण वार्षिक छिन्नमस्ता उत्सव है। यह भव्य उत्सव हजारों भक्तों को आकर्षित करता है जो देवी का सम्मान करने और उनका आशीर्वाद लेने आते हैं। यह त्यौहार रंगों, संगीत और भक्ति का दंगल है।
आधुनिक समय में छिन्नमस्तिका देवी
एक कालातीत प्रासंगिकता
सदियां बीत जाने के बावजूद छिन्नमस्तिका देवी का आकर्षण कम नहीं हुआ है। तेजी से भागती दुनिया में, निस्वार्थता और परिवर्तन का उनका संदेश कई लोगों को प्रभावित करता है, जिससे उनकी पूजा स्थायी और प्रासंगिक हो जाती है।
सशक्तिकरण का प्रतीक
छिन्नमस्तिका देवी उन महिलाओं के बीच भी एक विशेष स्थान रखती हैं जो उन्हें सशक्तिकरण के प्रतीक के रूप में देखती हैं। उनकी निडर छवि उन्हें सामाजिक बाधाओं से मुक्त होने और अपने सच्चे स्वरूप को अपनाने के लिए प्रेरित करती है। भारत के झारखंड की स्वयंभू देवी छिन्नमस्तिका देवी, आध्यात्मिक ज्ञान और परिवर्तन चाहने वालों के दिल और दिमाग को मोहित करती रहती हैं। उनकी कथा, मंदिर और त्योहार मानव यात्रा में भक्ति और निस्वार्थता की स्थायी शक्ति के प्रमाण के रूप में खड़े हैं।
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (10 अक्टूबर 2023)
10 Oct, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष :- व्यवसायिक क्षमता अनुकूल है, किसी तनाव में विवादग्रस्त होने से बचें।
वृष :- स्त्री-वर्ग से भोग-ऐश्वर्य की प्राप्ति तथा कार्य संतोषप्रद होगा, ध्यान रखें।
मिथुन :- सामाजिक कार्यों में मान-प्रतिष्ठा, प्रभुत्व-वृद्धि, कार्यकुशलता से संतोष होगा।
कर्क :- कार्यकुशलता से संतोष एवं नवीन योजना फलप्रद हो, रुके कार्य बन ही जायेंगे।
सिंह :- मान-प्रतिष्ठा, प्रभुत्च वृद्धि किन्तु अधिकारियों की उपेक्षा से कार्य हानि अवश्य होगी।
कन्या :- दैनिक कार्यों में सुधार, तत्परता से रुके कार्य निपटा लेवें, चिन्तामुक्त होंगे।
तुला :- तनाव, अशांति व कष्ट, घटनाग्रस्त होने से बचें, रुके कार्य निपटा लेवें, कार्य बनेंगे।
वृश्चिक :- स्त्री-शरीर सुख, मनोबल उत्साहवर्धक होगा, विरोध होगा, ध्यान अवश्य रखें।
धनु :- स्वभाव में उद्विघ्नता, क्लेश, मन अशांति से बचें, कार्य अवरोध अवश्य होगा।
मकर :- सफलता के साधन जुटायें, मनोबल उत्साहवर्धक होगा, समय का ध्यान अवश्य रखें।
कुम्भ :- विशेष कार्य स्थिगित रखें, मानसिक-विभ्रम व उद्विघ्नता से आप अवश्य बचेंगे।
मीन :- किसी तनाव व क्लेश से बचें, मानसिक उद्विघ्नता बनेगी, परेशानी होगी, ध्यान दें।
हरसिद्धि माता मंदिर से जुड़ी रोचक बातें जो मोह लेती है हर किसी का दिल
9 Oct, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मध्य प्रदेश, भारत - भारत के मध्य में स्थित, उज्जैन शहर अपनी प्राचीन सड़कों के भीतर आध्यात्मिक महत्व का खजाना रखता है। अपने कई पवित्र स्थलों के बीच, हरसिद्धि माता का मंदिर आस्था, इतिहास और भक्ति के प्रतीक के रूप में चमकता है।
इस लेख में, हम हरसिद्धि माता मंदिर की मनोरम किंवदंती, समृद्ध इतिहास और स्थायी आकर्षण का पता लगाने के लिए एक यात्रा शुरू करेंगे।
हरसिद्धि माता की दिव्य आभा
प्रचुरता और समृद्धि की देवी को समर्पित हरसिद्धि माता मंदिर, उज्जैन में एक प्रतिष्ठित तीर्थ स्थल है। ऐसा माना जाता है कि इस पवित्र स्थान के दर्शन करने से आशीर्वाद मिलता है और भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। आइए हरसिद्धि माता की मनमोहक दुनिया के बारे में गहराई से जानें।
हरसिद्धि माता की पौराणिक कथा
हर मंदिर की एक कहानी होती है और हरसिद्धि माता भी अपवाद नहीं है। किंवदंती है कि इस मंदिर की स्थापना भगवान कृष्ण के पोते अनिरुद्ध ने की थी, जिन्होंने इसे देवी हरसिद्धि के सम्मान में बनवाया था। सदियों की भक्ति और इतिहास का साक्षी यह मंदिर समय की कसौटी पर खरा उतरा है।
स्थापत्य भव्यता
मंदिर की वास्तुकला भारत की समृद्ध विरासत का प्रमाण है। इसकी जटिल डिजाइन और आकर्षक मूर्तियां प्राचीन भारतीय कारीगरों की कलात्मकता को प्रदर्शित करती हैं। कलात्मक विवरण से सुसज्जित मंदिर का शिखर हर आगंतुक का ध्यान अपनी ओर खींचता है।
एक आध्यात्मिक केंद्र
हरसिद्धि माता मंदिर सिर्फ एक पूजा स्थल नहीं है; यह एक आध्यात्मिक केंद्र है जो सकारात्मकता और शांति प्रसारित करता है। दुनिया भर से भक्त यहां आशीर्वाद लेने, प्रसाद चढ़ाने और सांत्वना पाने के लिए आते हैं।
शानदार समारोह
नवरात्रि महोत्सव
हरसिद्धि माता मंदिर में सबसे अधिक मनाए जाने वाले त्योहारों में से एक है नवरात्रि। नौ रातों का यह उत्सव एक भव्य आयोजन है, जिसमें रंग-बिरंगे जुलूस, संगीत, नृत्य और विस्तृत अनुष्ठान होते हैं। उत्सव में भाग लेने और देवी का आशीर्वाद लेने के लिए भक्त बड़ी संख्या में इकट्ठा होते हैं।
विशेष आरती
मंदिर में दैनिक आरती (रोशनी की रस्म) एक मंत्रमुग्ध कर देने वाला दृश्य है। मंदिर घंटियों की आवाज, भजन और धूप की सुगंध से जीवंत हो उठता है। यह उपस्थित सभी लोगों के लिए गहरे आध्यात्मिक जुड़ाव का क्षण है।
तीर्थयात्रा और अनुष्ठान
अनुष्ठान और प्रसाद
भक्त अपनी भक्ति के प्रतीक के रूप में देवी को विभिन्न वस्तुएँ चढ़ाते हैं, जैसे नारियल, सिन्दूर और फूल। माना जाता है कि ये प्रसाद समृद्धि लाते हैं और किसी के जीवन से बाधाएं दूर करते हैं।
तीर्थयात्रा का महत्व |
हरसिद्धि माता मंदिर की यात्रा को हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण तीर्थ माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस पवित्र स्थान पर जाने से व्यक्ति आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त कर सकता है और एक पूर्ण जीवन के लिए देवी का आशीर्वाद मांग सकता है।
आधुनिक सुविधाएं और पहुंच
नवीनीकरण एवं रखरखाव
मंदिर अधिकारी हरसिद्धि माता मंदिर के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को संरक्षित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। नियमित रखरखाव और नवीकरण कार्य यह सुनिश्चित करते हैं कि मंदिर अपनी प्राचीन स्थिति में बना रहे।
आसान पहुंच
उज्जैन के मध्य में स्थित, हरसिद्धि माता मंदिर तक सड़क, रेल और हवाई मार्ग द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है। अच्छी तरह से जुड़ा हुआ शहर यह सुनिश्चित करता है कि देश के सभी हिस्सों से श्रद्धालु आसानी से यहां आ सकें।
कालातीत अपील
धर्म से परे
हरसिद्धि माता मंदिर धार्मिक सीमाओं से परे है। यह सभी धर्मों और पृष्ठभूमि के लोगों का स्वागत करता है, आगंतुकों के बीच एकता और सद्भाव की भावना को बढ़ावा देता है।
एक आध्यात्मिक मरूद्यान
तेजी से भागती दुनिया में, हरसिद्धि माता मंदिर एक शांत मुक्ति प्रदान करता है। यह एक ऐसी जगह है जहां समय धीमा हो जाता है, और कोई भी व्यक्ति प्राचीन आध्यात्मिकता के बीच अपने आंतरिक स्व से जुड़ सकता है। भारत के मध्य प्रदेश के उज्जैन में हरसिद्धि माता मंदिर, भारत की समृद्ध आध्यात्मिक विरासत के प्रमाण के रूप में खड़ा है। इसकी किंवदंतियाँ, अनुष्ठान और स्थापत्य सुंदरता लाखों लोगों के दिलों को मोहित करती रहती है। इस दिव्य निवास का दर्शन करना केवल एक यात्रा नहीं है; यह एक ऐसा अनुभव है जो आत्मा पर स्थायी प्रभाव छोड़ता है। हरसिद्धि माता मंदिर की दिव्य आभा का अन्वेषण करें, और इसके शाश्वत आकर्षण को अपनी आध्यात्मिक यात्रा को समृद्ध बनाएं।