धर्म एवं ज्योतिष (ऑर्काइव)
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (16 अक्टूबर 2023)
16 Oct, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष :- कार्य-कुशलता से संतोष, व्यवसायिक वृत्ति में सुधार तथा योजना फलीभूत होगी।
वृष :- मनोवृत्ति संवेदनशील रहे, आशानुकूल सफलता का हर्ष होगा, समय स्थिति का ध्यान रखें।
मिथुन :- मनोबल उत्साहवर्धक रहे, व्यवसायिक क्षमता में वृद्धि, कार्यकुशलता से संतोष होगा।
कर्क :- मनोबल संवेदनशील रहे, भाग्या का सितारा साथ देगा, बिगड़े हुए कार्य अवश्य ही बन जायेंगे।
सिंह :- धन लाभ, आशानुकूल सफलता का हर्ष, कार्य- कुशलता से संतोष एवं व्यापार अनुकूल होगा।
कन्या :- इष्ट-मित्रों से मान-प्रतिष्ठा, प्रभुत्व वृद्धि, समय पर सोचे कार्य पूर्ण होंगे, ध्यान रखें।
तुला :- कुटुम्ब की समस्याओं में धन व्यय होगा, भ्रमणशील स्थति बनी ही रहेगी।
वृश्चिक :- आर्थिक योजना पूर्ण होगी, सफलता के साधन बनेंगे, इष्ट मित्र सुखवर्धक होंगे, कार्य बनेंगे।
धनु :- धन लाभ, अधिकारियों से मेल-मिलाप होगा, कार्य-कुशलता अच्छी रहेगी।
मकर :- कार्य वृत्ति में सुधार होगा, स्थिति पर नियंत्रण रखें, स्त्री-वर्ग से हर्ष-उल्लास अवश्य ही होगा।
कुम्भ :- विशेष कार्य स्थिगित रखें, मानसिक उद्विघ्नता बनेगी, कार्य अवरुद्ध होगा।
मीन :- प्रयास सफल होंगे, इष्ट मित्र सहायक रहेंगे, दैनिक कार्य में उत्तम सफलता अवश्य मिलेगी।
भारत को साल के अंतिम सूर्यग्रहण से वंचित रहना पड़ेगा, शरद पूर्णिमा पर चंद्रग्रहण दिखाई देगा
15 Oct, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सूर्य अस्त होगा तो कुछ देर बाद यह मेक्सिको, मध्य अमेरिका, कोलंबिया, ब्राजील आदि पश्चिमी देशों में वलयाकार सूर्य ग्रहण के रूप में दिखाई देगा। पश्चिमी देशों में यह सूर्य ग्रहण वलयाकार सूर्य ग्रहण होगा।
ग्रहण के बारे में जानकारी देते हुए राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता विज्ञान प्रसारक सारिका घारू ने बताया कि ग्रहण भारतीय समयानुसार 8:33 मिनट 50 सेकंड पर शुरू होगा।
सारिका ने बताया कि ग्रहण 11:29 मिनट 32 सेकेंड पर अपने चरम पर होगा। इसके बाद 2 बजकर 25 मिनट 16 सेकेंड पर इसकी समाप्ति होगी. ग्रहण के समय रात्रि होने के कारण यह घटना भारत में दिखाई नहीं देगी। अक्टूबर महीने में 15 दिनों के अंतराल पर सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण लगने वाला है, जिसमें से चंद्र ग्रहण भारत में देखा जाएगा.
पश्चिमी देशों में होने वाली इस खगोलीय घटना का कुछ हिस्सा दुनिया की 13 फीसदी से ज्यादा आबादी देख सकेगी, जबकि वलयाकार ग्रहण को सिर्फ 0.41 फीसदी आबादी ही देख पाएगी. वलयाकार सूर्य ग्रहण तब होता है जब चंद्रमा सूर्य को पूरी तरह से नहीं ढक पाता क्योंकि वह पृथ्वी से अधिक दूर होता है।
इस स्थिति में चंद्रमा के चारों ओर प्रकाश का एक घेरा बन जाता है। गणितीय अनुमान के अनुसार, 3000 ईस्वी के बाद से पिछले 5 हजार वर्षों में 11898 सूर्य ग्रहण गिने गए हैं, जिनमें से लगभग 35 प्रतिशत आंशिक ग्रहण हैं, 33 प्रतिशत वलयाकार ग्रहण हैं, 27 प्रतिशत पूर्ण सूर्य ग्रहण हैं, और 5 प्रतिशत संकर सूर्य ग्रहण हैं। . अगला सूर्य ग्रहण 8 अप्रैल को पूर्ण सूर्य ग्रहण और 2 अक्टूबर को वलयाकार सूर्य ग्रहण होगा, लेकिन ये भी भारत में दिखाई नहीं देंगे।
भारतीय समयानुसार सूर्य ग्रहण
आंशिक सूर्य ग्रहण रात 08:33:50 बजे शुरू होगा
वार्षिक सूर्य ग्रहण रात 09:40:11 बजे शुरू होता है
अधिकतम सूर्य ग्रहण रात्रि 11:29:32 बजे
वलयाकार सूर्य ग्रहण 01:19:01 AM पर समाप्त होगा
आंशिक सूर्य ग्रहण 02:25:16 AM पर समाप्त होगा
घर में मां दुर्गा की पूजा अर्चना से मिलेगा सुख-समृद्धि और सफलता, जानिए विधि-विधान
15 Oct, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
शारदीय नवरात्रि के इस दौरान सभी लोग अपने घरों में सुख-समृद्धि के लिए मां नवदुर्गा की पूजा करते हैं। आमतौर पर हर घर में देवी मां की मूर्ति नहीं होती, लेकिन आजकल गणेश जी की तरह देवी मां की छोटी मूर्ति स्थापित करने का चलन है।
पंडित का कहना है कि अगर किसी के घर में कोई मूर्ति स्थापित है तो उसकी विधि-विधान से पूजा करें। जिन लोगों के घर में मां नवदुर्गा की स्थापना नहीं होती है। उन लोगों को अपने घर में दीपक जलाना चाहिए और मां नवदुर्गा की फोटो की पूजा करनी चाहिए, जिससे आपके परिवार में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहेगी।
जिन घरों में मानवी दुर्गा की मूर्ति स्थापित नहीं होती है। वे घर और वे परिवार अपने कुल स्वामिनी की पूजा करने के लिए अपने बुजुर्गों के यहां पहुंचते हैं। कुल स्वामी के यहाँ उनकी माँ की पूजा की जाती है। ऐसा करने के साथ-साथ सभी को अपने परिवार में मां नवदुर्गा की पूजा भी करनी चाहिए, ताकि आपके परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहे।
आप दीपक जलाकर पूजा कर सकते हैं
शारदीय नवरात्रि के दौरान भक्त दीपक जलाकर भी पूजा कर सकते हैं। पूजा के लिए दीपक जलाने का महत्व शास्त्रों में भी माना गया है, वहीं मां नवदुर्गा की तस्वीर से भी पूजा की जा सकती है। जिन परिवारों में मां नवदुर्गा की पूजा की पुरानी परंपरा चली आ रही है, वहां के श्रद्धालुओं को भी अपनी परंपरा के अनुसार मां नवदुर्गा की पूजा करनी चाहिए।
उन्होंने मां नवदुर्गा की पूजा के बारे में बताते हुए कहा कि जो भी भक्त घर में पुरानी परंपरा के अनुसार पूजा करते हैं उन्हें अपनी पुरानी परंपरा के अनुसार ही पूजा करनी चाहिए और जिन भक्तों के घर में मां नवदुर्गा की मिट्टी की मूर्ति बनी है उन्हें पूजा की स्थापना नहीं करनी चाहिए. मूर्ति। वह अपने घर में देवी नवदुर्गा की फोटो रखकर और दीपक जलाकर पूजा कर सकते हैं।
कैसे हो ईश्वर की साधना
15 Oct, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
साधक को पहले मन को तैयार करने, शांत एवं स्थिर बनाने की आवश्यकता है. साधना के लिए मन के तैयार होते ही उसमें शांति आती है और बहुत बड़ी समता की स्थापना होती है. साधना के आरंभ में पहले अपने विचार में ज्ञान प्रवाह का अनुभव करना चाहिए.
यह अनुभव ईश्वर की प्रेरणा के रूप में चित्त के भीतर करना चाहिए. यह प्रेरणात्मक ज्ञान भीतर के गुरु रूप से साधक को अपने आप ही सबकुछ दिखा-सुना देगा. क्या करना चाहिए, किसमें कमी है, क्या नहीं करना चाहिए, से सारी बातें वह स्वयं ही कहना आरंभ कर देगा.
चिंताएं मनुष्य को कुछ नहीं करने देतीं, अत: साधक का कर्त्तव्य है कि वह खुद को समस्त चिंताओं से मुक्त कर ले. मन और बुद्धि को चिंताओं से खाली कर लेने पर एक स्तब्ध प्रसन्न भाव आता है. मन के स्थिर और शांत होने पर ही सत्य का प्रकाश होता है और भगवान अपने आप प्रकाशमान हो जाते हैं, यानी उनका प्रकाश साधक को दिखने लगता है.
भक्ति-गंगा
बुद्धिं देहि यशो देहि कवित्वं देहि देहि मे ।
मूढत्वं च हरेद्देवि त्राहि मां शरणागतम् ॥
अर्थात् : हे देवि! आप मुझे बुद्धि दें, कीर्ति दें, कवित्वशक्ति दें और मेरी मूढ़ता का नाश करें. आप मुझ शरणागत की रक्षा करें.
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (15 अक्टूबर 2023)
15 Oct, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष :- भाग्य का सितारा साथ देगा, इष्ट मित्र सहयोगी होंगे, रुके कार्य अवश्य ही बन जायेंगे।
वृष :- इष्ट मित्र सुखवर्धक हों, मनोबल बनाये रखें, उत्साह हीनता से हानि अवश्य ही होगी।
मिथुन :- इष्ट मित्रों से परेशानी, कष्ट व अशांति, दैनिक कार्यगति में अनुकूलता अवश्य ही बनेगी।
कर्क :- मान-प्रतिष्ठा, प्रभुत्व वृद्धि, स्त्री-वर्ग से हर्ष-उल्लास, समृद्धि के साधन अवश्य जुटायें।
सिंह :- कार्यगति अनुकूल हो, सामाजिक कार्यों में प्रभुत्व वृद्धि के साधन अवश्य जुटायें।
कन्या :- कुटुम्ब की परेशानी, चिन्ता, व्यग्रता तथा उद्विघ्नता से बचिये, कार्य अवरोध संभव है।
तुला :- धन हानि, शरीर कष्ट, मानसिक बेचैनी, व्यर्थ भ्रमण, धन का व्यय संभावित होगा।
वृश्चिक :- इष्ट मित्र सुखवर्धक हों, अधिकारियों का समर्थन फलप्रद अवश्य ही होगा।
धनु :- कार्यकुशलता से संतोष, दैनिक समृद्धि के साधन बनेंगे, समय का ध्यान रखें।
मकर :- दैनिक कार्यगति में सुधार, योजना फलीभूत होंगी, रुके कार्य अवश्य ही बन जायेंगे।
कुम्भ :- विशेष कार्य स्थगित रखें, दैनिक मानसिक विभ्रम किन्तु उद्विघ्नता से बचिये।
मीन :- कार्य विफलत्व, प्रयत्न करने पर भी सफलता दिखायी ने देवे, कार्य अवरोध होगा।
शांति के दूत और लोकनायक महाराजा अग्रसेन की जयंती
14 Oct, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को महाराजा अग्रसेन का जन्म हुआ था, अत: इस तिथि को अग्रसेन जयंती के रूप में मनाया जाता है। प्रतिवर्ष आश्विन मास में आने वाली नवरात्रि के प्रथम दिवस को ही अग्रसेन महाराज जयंती के रूप में मनाया जाता हैं।
वर्ष 2023 में यह तिथि रविवार, 15 अक्टूबर को पड़ रही है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार उनका जन्म आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को हुआ था तथा वे हरियाणा के अग्रोहा शहर में एक राजा थे। उन्हें भगवान श्री कृष्ण के समकालीन माना जाता है।
आइए जानते हैं महाराजा अग्रेसन के बारे में-
परिचय: अग्रवाल शिरोमणि महाराजा अग्रसेन का स्मरण करना गंगा जी में स्नान करने के समान ही कहा गया है। परम प्रतापी महाराजा अग्रसेन का जन्म आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को हुआ था, इसी दिन से शारदीय नवरात्रि पर्व का आरंभ हुआ था, और इसी दिन को अग्रसेन जयंती के रूप में मनाया जाता है। आज भी इतिहास में महाराज अग्रसेन धार्मिक, सहिष्णु, समाजवाद के प्रेरक महापुरुष के रूप में उल्लेखित हैं।
उनका जन्म लगभग पांच हजार वर्ष पूर्व प्रतापनगर के सूर्यवंशी क्षत्रिय राजा वल्लभ के यहां हुआ था। वे बचपन से ही मेधावी एवं अपार तेजस्वी थे। राज्य में बसने की इच्छा रखने वाले हर आगंतुक को, राज्य का हर नागरिक जिसे मकान बनाने के लिए ईंट, व्यापार करने के लिए एक मुद्रा दिए जाने की राजाज्ञा महाराजा अग्रसेन ने दी थी।
विवाह: पिता की आज्ञा से महाराजा अग्रसेन नागराज कुमुट की कन्या 'माधवी' के स्वयंवर में गए। वहां अनेक वीर योद्धा राजा, महाराजा, देवता आदि सभा में उपस्थित थे। सुंदर राजकुमारी माधवी ने उपस्थित जनसमुदाय में से युवराज अग्रसेन के गले में वरमाला डालकर उनका वरण किया।
इसे देवराज इंद्र ने अपना अपमान समझा और वे महाराजा अग्रसेन से कुपित हो गए। जिससे उनके राज्य में सूखा पड़ गया। जनता में त्राहि-त्राहि मच गई। प्रजा के कष्ट निवारण के लिए राजा अग्रसेन ने अपने आराध्य देव शिव की उपासना की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिव जी ने अग्रसेन को वरदान दिया तथा प्रतापगढ़ में सुख-समृद्धि एवं खुशहाली लौटाई।
महालक्ष्मी की कृपा: महाराजा अग्रसेन ने धन-संपदा और वैभव के लिए महालक्ष्मी की आराधना करके उन्हें प्रसन्न किया। महालक्ष्मी जी ने उनको समस्त सिद्धियां, धन-वैभव प्राप्त करने का आशीर्वाद दिया और कहा कि तप को त्याग कर गृहस्थ जीवन का पालन करो, अपने वंश को आगे बढ़ाओ। तुम्हारा यही वंश कालांतर में तुम्हारे नाम से जाना जाएगा।
इसी आशीर्वाद के साथ कोलपुर के नागराजाओं से अपने संबंध स्थापित करने को कहा जिससे राज्य शक्तिशाली हो सके। वहां के नागराज महिस्थ ने अपनी कन्या सुंदरावती का विवाह महाराज अग्रसेन के साथ कर दिया। उनके 18 पुत्र थे। उन्होंने 18 यज्ञ किए थे। यज्ञों में पशुबलि दी जाती थी। 17 यज्ञ पूर्ण हो चुके थे।
जिस समय 18वें यज्ञ में जीवित पशुओं की बलि दी जा रही थी, महाराजा अग्रसेन को उस दृश्य को देखकर घृणा उत्पन्न हो गई। उन्होंने यज्ञ को बीच में ही रोक दिया और कहा कि भविष्य में मेरे राज्य का कोई भी व्यक्ति यज्ञ में पशुबलि नहीं देगा, न पशु को मारेगा, न मांस खाएगा और राज्य का हर व्यक्ति प्राणीमात्र की रक्षा करेगा। इस घटना से प्रभावित होकर उन्होंने क्षत्रिय धर्म को अपना लिया।
महान कार्य: महाराजा अग्रसेन की राजधानी अग्रोहा थी। उनके शासन में अनुशासन का पालन होता था। जनता निष्ठापूर्वक स्वतंत्रता के साथ अपने कर्तव्य का निर्वाह करती थी। महाराज अग्रसेन ने 108 वर्षों तक राज्य किया। उन्होंने जिन जीवन मूल्यों को ग्रहण किया उनमें परंपरा एवं प्रयोग का संतुलित सामंजस्य दिखाई देता है।
महाराजा अग्रसेन के आदर्श: उन्होंने एक ओर हिन्दू धर्म ग्रथों में वैश्य वर्ण के लिए निर्देशित कर्मक्षेत्र को स्वीकार किया और दूसरी ओर देशकाल के परिप्रेक्ष्य में नए आदर्श स्थापित किए। उनके जीवन के मूल रूप से तीन आदर्श थे- लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था, आर्थिक समरूपता एवं सामाजिक समानता।
महाराजा अग्रसेन समानता पर आधारित आर्थिक नीति को अपनाने वाले संसार के प्रथम सम्राट थे। इतना ही नहीं उन्होंने देश में कई स्थानों पर अस्पताल, स्कूल, बावड़ी, धर्मशालाएं आदि बनवाईं। यहीं महाराजा अग्रसेन के जीवन मूल्यों का आधार हैं और यह जीवन मूल्य मानव आस्था के प्रतीक हैं। एक निश्चित आयु प्राप्त करने के बाद कुलदेवी महालक्ष्मी से परामर्श पर वे आग्रेय गणराज्य का शासन अपने ज्येष्ठ पुत्र विभु के हाथों में सौंप कर तपस्या करने चले गए।
अग्रसेन जयंती पर क्या करें:
- इस दिन हरियाणा के अग्रोहा शहर में विशेष तैयारी करके शहर को सजाया जाता है, हरियाणा में गांव-गांव तथा शहरों में महाराजा अग्रसेन की भक्ति यात्रा निकाली जाती है।
- श्रद्धालु इस दिन को खास बनाने के लिए विशेष तैयारी करते हैं।
- आश्विन शुक्ल प्रतिपदा के दिन पवित्र नदियों में स्नान किया जाता हैं।
- भारतभर में इस शोभा यात्राएं निकाली जाती है तथा उनके परिवार के सदस्यों के चित्रों तथा अवशेषों को शामिल किया जाता है।
- इस दिन लंगर का आयोजन किया जाता है।
- अग्रवाल समुदाय के सदस्य इस दिन उनके भक्तों को प्रसाद वितरण करते हैं।
इस तरह महान, शांति के दूत, कर्मयोगी, लोकनायक महाराजा अग्रसेन की जयंती मनाई जाती है।
दुर्भाग्य बढ़ाता है पितृ दोष, इससे निपटने के लिए जरूर करें ये आसान उपाय
14 Oct, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म में साल के 15 दिन पूर्वजों को समर्पित होते हैं जिसे पितृपक्ष के नाम से जाना जाता है इस दौरान लोग अपने मृत परिजनों को याद कर उनका श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करते हैं मान्यता है कि ऐसा करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।
इस साल पितृपक्ष का आरंभ 29 सितंबर यानी पूर्णिमा तिथि पर हुआ था और समापन कल यानी 14 अक्टूबर को सर्व पितृ अमावस्या पर हो जाएगा।
पितृपक्ष के 15 दिनों को श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान के अलावा पितृदोष से मुक्ति के लिए भी उत्तम माना जाता है। ऐसे में अगर आप पितृपक्ष से पीड़ित है जिसके कारण आपको कई सारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा हैं तो ऐसे में आप कुछ उपायों को करके पितृदोष से मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं साथ ही दुर्भाग्य भी सौभाग्य में बदल जाएगा तो आज हम आपको दीपक के आसान उपाय बता रहे हैं।
पितृदोष से मुक्ति के आसान उपाय-
पितृपक्ष के दिनों में घी का दीपक जलाना बेहद शुभ माना जाता है। ऐसे में अगर आप घर के ईशान कोण में घी का दीपक जलाते हैं तो इससे पितर तृप्त होकर आशीर्वाद प्रदान करते हैं जिससे जातक की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है। इसके अलावा आप सर्व पितृ अमावस्या के दिन अश्वत्थ वृक्ष के नीचे घी का दीपक जला सकते हैं इससे पितर प्रसन्न हो जाते हैं।
मान्यता है कि यहां दीपक जलाने से मृत पूर्वजों की आत्माओं को शांति मिलती है। ज्योतिष अनुसार पितृपक्ष के दिनों के साथ ही अगर अन्य दिनों में भी रोजाना रसोई में एक दीपक जलाया जाए तो इससे पितर प्रसन्न हो जाते हैं और परिवार को सुख शांति व परिपूर्ण रहने का आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
शारदीय नवरात्रि में राशि अनुसार अपनाएं ये उपाय, घर में आएगी सुख-समृद्धि
14 Oct, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
शारदीय नवरात्रि से मन में उमंग तथा उल्लास की वृद्धि होती है. दुनिया में सारी शक्ति नारी या स्त्री स्वरूप के पास ही है इसलिए नवरात्रि में देवी की आराधना ही की जाती है तथा देवी शक्ति का एक स्वरूप कहलाती है, इसलिए इसे शक्ति नवरात्रि भी कहा जाता है.
नवरात्रि के 9 दिनों में देवी के अलग अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है, जिसे नवदुर्गा का स्वरूप कहा जाता है. इस बार शारदीय नवरात्रि 15 अक्टूबर से आरंभ होने जा रही है तथा समापन 24 अक्टूबर को होगा और 10वें दिन दशहरा मनाया जाता है. ऐसे में ज्योतिष शास्त्र में दुर्गा जी को प्रसन्न करने का विशेष उपाय बताया गया है. मान्यता है कि शारदीय नवरात्रि में इन उपायों को करने से मनुष्य पाप रहित हो जाता है तथा जीवन की सारी परेशानियां समाप्त हो जाती है. आइए आपको बताते है शारदीय नवरात्रि में इन 12 राशियों को कौन- कौन से उपाय करने चाहिए.
मेष राशि- मेष राशि का स्वामी मंगल ग्रह को माना गया है. यदि आप नवरात्रि में 9 दिनों तक सिद्धिकुंजिकस्तोत्र का पाठ करते है तो माता आपको मकान, जमीन या वाहन सम्बंधित सुख पा सकते है. इसके साथ ही आप शारदीय नवरात्रि के नौ दिनों तक किसी असहाय लोगों की सहायता करते है तो आपके ऊपर माता रानी की कृपा हमेशा बनी रहेगी.
वृष राशि - वृष राशि का स्वामी शुक्र ग्रह को माना गया है. आप नवरात्रि में 9 दिनों तक सप्तश्लोकी दुर्गा का पाठ करते है तो माता की विशेष कृपा आप पर बनी रहेगी. वित्तीय स्थिति बहुत बेहतर होगी. इसके साथ ही आप माता के नाम का जप निरन्तर करते रहें. ऐसा करने से आपको जीवन में कभी भी कोई बड़ी बीमारियों का सामना नहीं करना पड़ेगा.
मिथुन राशि- मिथुन राशि का स्वामी बुध ग्रह को माना गया है. आप नवरात्रि में दुर्गासप्तशती का पाठ करते है तो माता रानी आप पर प्रसन्न रहेगी. इसके साथ ही आपको जमीन या मकान व वाहन सुख प्राप्त होगा. आपके जीवन से सभी तरह के अनिष्ट का नाश हो जाता है तथा परिवार में सुख-समृद्धि आती है. इसके साथ ही चिंताओं, क्लेश, शत्रु बाधा से मुक्ति प्राप्त होगी.
कर्क राशि- कर्क का स्वामी चंद्रमा को माना गया है. आप नवरात्रि में माता की उपासना के साथ- साथ शिव उपासना भी करें. ऐसा करने से माता रानी आपको साहसी तथा पराक्रमी बनने का वरदान देगी. इसके साथ ही जातक को आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त होती है. धन में कभी भी कमी नहीं आती है. परिवार में खुशियां बनी रहती है.
सिंह राशि का स्वामी सूर्य देव को माना गया है. यदि आप शारदीय नवरात्रि में नौ दिनों तक सिद्धिकुंजिकस्तोत्र का पाठ करते है तो संतान को करियर में सफलता मिलेगी. धन की प्राप्ति होगी. इसके साथ आपको श्री रामचरितमानस का सम्पूर्ण पाठ करनी चाहिए, जिसके आपके जीवन में माता रानी के साथ- साथ प्रभु श्री राम की कृपा आपके ऊपर बनी रहेगी.
कन्या राशि का स्वामी बुध ग्रह होता है. आप पूरे नवरात्रि में प्रतिदिन दुर्गासप्तशती एवं अरण्यकाण्ड का पाठ करने से आपके जीवन से सभी तरह के कलह का नाश हो जायेगा. इसके साथ ही छात्रों को विदेश यात्रा करने का अवसर भी प्राप्त हो सकता है और छात्रों को नौकरी में कामयाबी प्राप्त होगी.
तुला राशि का स्वामी शुक्र ग्रह को माना गया है. तुला राशि के लोगों को इस नवरात्रि में सप्तश्लोकी दुर्गा का 8 बार पाठ करना चाहिए. ऐसा करने से आपके जीवन में धन तथा सुख समृद्धि ' में वृद्धि आएगी. इसके साथ ही समस्त अमंगलों का नाश होता है. माता की कृपा से सुख-शातिं, यश-कीर्ति, धन-धान्य, आरोग्य, बल-बुद्धि की प्राप्ति होगी.
वृश्चिक राशि का स्वामी मंगल ग्रह को माना गया है. आप नवरात्रि में दुर्गासप्तशती एवं श्री रामचरितमानस का पाठ करें. इस उपाय को करने से साधक को मानसिक तथा शारीरिक सुख प्राप्त होगा. कोर्ट-कचहरी आदि से जुड़े मामलों में विजय प्राप्ति का वरदान प्राप्त होगा. इसके साथ ही शत्रु बाधा भी दूर होती है.
धनु राशि का स्वामी बृहस्पति ग्रह को बताया गया है. आप इस नवरात्रि में दुर्गासप्तशती का सम्पूर्ण पाठ करें. ऐसा करने से आपको धन की प्राप्ति के साथ- साथ कोई बड़ा पुरस्कार मिलेगा. मकान व वाहन सुख की प्राप्ति होगी. इसके साथ ही आप सिद्धिकुंजिकस्तोत्र व सप्तश्लोकी दुर्गा का भी पाठ करें, जिससे आपके जीवन में सुख समृद्धि आएगी.
मकर राशि का स्वामी शनि है. मकर राशि के लोगों के लिए 4, व 8 के अंक भाग्यशाली होते हैं. मकर राशि के व्यक्ति अति महत्वाकांक्षी होते हैं. यह सम्मान और सफलता प्राप्त करने के लिए निरंतर कार्य कर सकते हैं. शनिदेव का प्रिय रंग काला और नीला है. ऐसे में इस राशि के लोगों को नीले रंग के फूलों से मां दुर्गा की पूजा करनी चाहिए.
कुम्भ राशि का स्वामी शनि ग्रह को माना गया है. आप शारदीय नवरात्रि में राम रक्षा स्तोत्र का पाठ एवं माता के नाम का 100 बार जप करते है तो आपकी संतान को नौकरी में कामयाबी प्राप्त होगी. धन की प्राप्ति होगी. इसके साथ ही आपके जीवन में सभी तरह की विपत्तियों से रक्षा होगी. आप भय व कष्टों से मुक्ति प्राप्त होगी.
मीन राशि का स्वामी गुरु ग्रह को माना गया है. अगर आप पूरे नवरात्रि में दुर्गासप्तशती का पाठ करते है तो आपके जीवन में माता रानी की कृपा बनी रहेगी. इसके साथ ही आपको सुख समृद्धि एवं वाहन सुख प्राप्त होगा. यदि आप व्यापार करने तो आपको उसमे लाभ होगी.
नए कार और बाइक की पूजा घर पर कैसे करें? जानिए वाहन पूजन की पूरी विधि
14 Oct, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हम भारतीय जब भी कोई नया वाहन चाहे वो कार हो या फिर बाइक या फिर साइकिल ही क्यों ना हो घर लाने पर सबसे पहले उसकी पूजा की जाती है. आज हम आपको उसी पूजन की विधि के बारे में बताने जा रहे हैं ताकि आपके नए वाहन और आपके साथ कोई विघ्न बाधा ना हो.
नये वाहन के पूजन के बाद ही वाहन चलाना चाहिए
हिन्दू मान्यता के अनुसार अगर आप कोई नया वाहन खरीदते हैं तो उसका पूजन अवश्य करना चाहिए. नये वाहन के पूजन के बाद ही वाहन चलाना चाहिए. अगर आप ऐसा करते हैं तो इसे शुभ माना जाता है. शास्त्रों में वाहन पूजा के कई नियम और विधि बताए गए हैं. अगर नया वाहन घर में लाने के बाद विध-विधान से वाहन की पूजा की जाए तो इससे कई प्रकार के अरिष्ठ कम होते हैं और वाहन द्वारा नुकसान या वाहन कष्ट की संभावना खत्म हो जाती है.
वाहन पूजा के लिए किन-किन सामग्रियों की जरूरत होती है
नए वाहन की पूजा के लिए कर्पूर, नारियल, फूलमाला, अक्षत, जल का कलश, गुड़ या मिठाई, कलावा, सिंदूर घी मिश्रित सामग्री, मिठाई, गंगा जल का होना आवश्यक है. मान्यताओं के मुताबिक घर में नए वाहन के प्रवेश से पहले जमीन पर म के पत्ते से तीन बार गंगा जल छिड़के. अगर घर में गंगा जल नहीं है तो ताजा जल का इस्तेमाल करें. जल का छिड़काव करने के बाद वाहन पर सिन्दूर व धी के तेल के मिश्रण से स्वस्तिक का निशान बना दें. स्वास्तिक शुभता का प्रतीक माना जाता है.
वाहन पर स्वास्तिक के निशान का महत्व
स्वस्तिक का निशान बनाने के बाद वाहन को फूलमाला पहनाएं और वाहन पर तीन बार कलावा लपेट दें. ज्योतिषियों का मानना है कि कलावा रक्षासूत्र होता है, जो हमारे वाहन की रक्षा करता है. शास्त्रों में स्वस्तिक का बहुत महत्व बताया गया है. इसे वाहन पर लगाने को शुभ माना जाता है. पंडितों का कहना है कि स्वस्तिक का निशान बनाने से सकारात्मक ऊर्जा आती है. कहा जाता है कि स्वस्तिक का निशान बनाने से यात्रा में किसी प्रकार का व्यवधान नहीं आता.
वाहन पूजा की विधि
घर के बाहर वाहन की कर्पूर से आरती करें और कर्पूर की राख से वाहन पर तिलक लगा दें. राख का तिलक वाहन को नजरदोष से बचाता है. इसके बाद कलश में रखे जल को दाएं-बाएं डाले दें. कहा जाता है कि ऐसा करने से वाहन के लिए स्वागत का भाव प्रदर्शित होता है. अब अपने वाहन पर मिठाई रख दें और पूजा के बाद इस मिठाई को गाय को खिला दें.
वाहन पूजा में नारियल का महत्व
वहीं पूजा के अंतिम चरण में नारियल लेकर वाहन के चारों ओर सात बार चक्कर लगाएं और नारियल को वाहन के सामने फोड़े. ध्यान रहे जब भी वाहन को पहली बार स्टार्ट करें तो वाहन को इसी के ऊपर से चलाएं. अगर हो सके तो वाहन के लिए पीली कौड़ी लें और इसे काले धोगे में पिरो लें. बुधवार के दिन काले धागे वाली कौड़ी को अपने वाहन पर लटका दें. ज्योतिषियों का कहना है कि ऐसा करने से वाहन की रक्षा होती है.
राशिफल: जानिए, कैसा रहेगा आपका आज का दिन (14 अक्टूबर 2023)
14 Oct, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष :- कार्यकुशलता एवं समृद्धि के योग फलप्रद हों तथा उत्साह से कार्य बनेंगे, धैर्य से कार्य करें।
वृष :- कार्य तत्परता से लाभ होगा एवं इष्ट मित्र सुखवर्धक होंगे, रुके कार्य तत्काल बना लेवे।
मिथुन :- व्यवसायिक क्षमता में वृद्धि, कार्यकुशलता से संतोष, बिगड़े कार्य शनै: शनै: बन जायेंगे।
कर्क :- धन सोच-समझकर व्यय करें अन्यथा हानि की संभावना होगी, मानसिक विभ्रम, भय-क्लेश होगा।
सिंह :- समय अनुकूल नहीं, विशेष कार्य स्थिगित रखें, लेनदेन के मामले में हानि हो सकती है।
कन्या :- मानसिक विभ्रम के कारण किसी विभ्रम में फंस सकते हैं, सतर्कता से कार्य अवश्य करें।
तुला :- भाग्य का सितारा प्रबल हो, बिगड़े कार्य अवश्य बनेंगे, कार्यकुशलता से संतोष होगा।
वृश्चिक :- कार्यकुशलता से संतोष, कार्य योजना फलीभूत होगी, सफलता के साधन अवश्य जुटायें।
धनु :- धन लाभ, सफलता के साधन जुटायें, आशानुकूल सफलता का हर्ष होगा, ध्यान अवश्य रखें।
मकर :- आरोप-प्रत्यारोप व क्लेश सम्भव, धन लाभ आशानुकूल, सफलता का हर्ष होगा।
कुम्भ :- इष्ट मित्र सुखवर्धक होंगे, स्त्री शरीर कष्ट, चिन्ता व असमंजस से बचकर चलें।
मीन :- इष्ट मित्र सहायक रहें, दैनिक कार्य में अनुकूलता बनेगी, ध्यान रखकर कार्य करें उत्तम होगा।
मासिक शिवरात्रि आज, बन रहें शुभ योग, बस करें ये काम, बरसेगी भोलेनाथ की कृपा
13 Oct, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्म में कुछ तिथियों को विशेष माना जाता है। हर महीने की तरह कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी भी भगवान शिव को समर्पित है। इस दिन मासिक शिवरात्रि का व्रत रखा जाता है।
आज श्राद्ध पक्ष में आने वाली मासिक शिवरात्रि है। आश्विन मास की मासिक शिवरात्रि पितृ पक्ष में ही आती है और इस बार कुछ विशेष योग बनने से इसका महत्व और भी बढ़ गया है। मासिक शिवरात्रि पर भगवान शिव की विधि-विधान से पूजा करने से जीवन में सुख-समृद्धि आएगी। महादेव सभी दुख और कष्ट दूर करेंगे.
आज मासिक शिवरात्रि पर शुभ योग है
पंचांग के अनुसार आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि आज 12 अक्टूबर गुरुवार को शाम 07:54 बजे शुरू होगी और 13 अक्टूबर, शुक्रवार को रात 09:51 बजे तक रहेगी. चूंकि मासिक शिवरात्रि व्रत की पूजा रात में की जाती है, इसलिए यह व्रत आज 12 अक्टूबर, गुरुवार को मनाया जाएगा। आज पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र के कारण गद और उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र नाम के दो शुभ योग बन रहे हैं। इसके अलावा शुक्ल योग और ब्रह्म योग भी बन रहा है।
मासिक शिवरात्रि पूजा विधि
मासिक शिवरात्रि के दिन सुबह जल्दी स्नान कर लें। यदि संभव हो तो व्रत रखें और व्रत और पूजा का संकल्प लें। अगर आप पूरे दिन उपवास नहीं कर सकते तो फल खाएं। फिर रात में शुभ मुहूर्त में शुद्ध घी का दीपक जलाएं और फिर पंचामृत और शुद्ध जल से शिवलिंग का अभिषेक करें। भगवान शिव को अबीर, गुलाल, रोली, बिल्वपत्र, धतूरा, भांग, केला आदि चढ़ाएं। पूजा के अंत में आरती करें. ऐसा करने से भगवान शिव भक्तों की हर मनोकामना पूरी करते हैं।
भगवान शिव की आरती
जय शिव ओमकारा ओम जय शिव ओमकारा।
ब्रह्मा विष्णु सदैव शिव का अर्ध-आंशिक रूप हैं। ॐ जय शिव ओमकारा।
एकानन चतुरानन पंचानन राजे।
बैल वाहन से सुशोभित हंसानान गरुड़ासन।
, ॐ जय शिव ओंकारा ॥
दो भुजाएँ, चार चतुर्भुज, दस भुजाएँ, अति सोहे।
त्रिगुण रूपनिरक्त त्रिभुवन जन मोहे॥
, ॐ जय शिव ओंकारा ॥
अक्षमाला बनमाला रूण्डमाला धारी।
चन्दन मृगमद सोहै भले ही शशिधारी॥
, ॐ जय शिव ओंकारा ॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बागम्बर अंगे।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे।
, ॐ जय शिव ओंकारा ॥
कर के मध्य में कमण्डलु चक्र त्रिशूल धारक।
संसार का रचयिता, संसार का रचयिता, संसार का संहारक।
, ॐ जय शिव ओंकारा ॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव उदासीनता को जानते हैं।
ये तीनों स्वभावतः एक समान हैं।
, ॐ जय शिव ओंकारा ॥
विश्वनाथ नंदी ब्रह्मचारी काशी में रहते हैं।
दैनिक सुख और वैभव का मोह बहुत भारी है।
, ॐ जय शिव ओंकारा ॥
त्रिगुण शिवजी की आरती जिसे कोई भी मनुष्य गा सकता है।
शिवानंद स्वामी कहते हैं कि व्यक्ति को मनोवांछित फल मिलना चाहिए।
, ॐ जय शिव ओंकारा ॥
नवरात्रि शुरू होने से पहले निपटा लें ये काम, देर हो गई तो पछताएंगे
13 Oct, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
इस साल शारदीय नवरात्रि 15 अक्टूबर से शुरू हो रही है. नवरात्रि के 9 दिनों में मां दुर्गा के 9 रूपों की पूजा की जाती है। इसके साथ ही कलश स्थापित करने के बाद अखंड ज्योति भी जलाई जाती है।
शारदीय नवरात्रि का त्योहार आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाता है। नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा की विधिवत पूजा और हवन जरूरी है। इसके लिए कई चीजों की जरूरत होती है. ऐसे में बेहतर होगा कि आप नवरात्रि शुरू होने से पहले ही हवन-पूजा की सारी सामग्री जुटा लें.
नवरात्रि पूजा सामग्री
नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना की जाती है। इसके लिए मिट्टी या तांबे-पीतल का कलश रखा जाता है। इसके अलावा माता रानी, शंख, सिन्दूर, रोली, मौली, कपूर, धूप, लाल फूल या माला, साबुत सुपारी, हल्दी की गांठ, पात्र, आसन, चौकी, पंचमेवा, जायफल, जावित्री, कमलगट्टा, नैवेद्य, बताशा, पूजा करें। शहद, चीनी, नारियल, गंगाजल आदि की आवश्यकता होती है। साथ ही मां के श्रृंगार के बिना नवरात्रि में मां दुर्गा की पूजा अधूरी होती है. तो माँ के मेकअप का सामान भी ले आना.
कलश पर पंच पल्लव रखें
स्थापना में कलश पर कुछ पेड़ों की पत्तियां रखनी जरूरी होती हैं। इस पत्ते को कलश पर रखना बहुत शुभ माना जाता है। हिंदू धर्म में इन 5 पत्तों को बहुत शुभ माना जाता है। ये पांच पल्लव पीपल, गूलर, अशोक, आम और बरगद के पेड़ों की पत्तियां हैं। फिर इस पंच पल्लवो के ऊपर एक नारियल रखा जाता है। यदि यह पत्ता उपलब्ध न हो तो आम के पत्ते का उपयोग किया जा सकता है। -नवरात्रि पूजा में घटस्थापना पर जौ बोया जाता है, इसे बहुत शुभ माना जाता है। इसलिए पहले से ही जौ लाकर घर में रख लें।
हवन सामग्री
नवरात्रि के दौरान पूरे नौ दिनों तक हवन करने का एक और महत्व है। इसके लिए हवन कुंड, आम की लकड़ी, काले तिल, कुमकुम, अक्षत, जौ, धूप, पंचमेवा, घी, लोबान, एक जोड़ा लौंग, गुग्गल, कमल गट्टा, सुपारी, कपूर ले आएं। हवन में आहुति देने के लिए भोजन की भी व्यवस्था करें
नवरात्रि से पहले लगेगा सूर्य ग्रहण, जानिए ग्रहण से जुड़ी धार्मिक मान्यताएं
13 Oct, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
शारदीय नवरात्रि से ठीक एक दिन पहले साल का आखिरी सूर्य ग्रहण लग रहा है. इस ग्रहण का तीन राशियों पर शुभ प्रभाव पड़ेगा। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जानिए सूर्य ग्रहण के दौरान किन तीन राशियों को विशेष लाभ मिलेगा और किसकी किस्मत चमक जाएगी।
नवरात्रि से पहले लगेगा ग्रहण
साल का आखिरी सूर्य ग्रहण शारदीय नवरात्रि से एक दिन पहले 14 अक्टूबर को लगने वाला है। इसका प्रभाव रात 8:34 बजे से रात 2:25 बजे तक रहेगा. यह ग्रहण कन्या राशि और चित्रा नक्षत्र में लगने जा रहा है.
इन लोगों पर ग्रहण का असर देखने को मिलेगा
साल के इस आखिरी ग्रहण के ठीक एक दिन बाद शारदीय नवरात्रि शुरू हो रही है, इसका सीधा असर 12 राशियों पर पड़ने वाला है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस ग्रहण का प्रभाव 12 राशियों पर पड़ेगा, लेकिन उनमें से 3 राशियों पर इस सूर्य ग्रहण का सीधा लाभकारी प्रभाव पड़ेगा। दरअसल, सूर्य ग्रहण इन तीन राशि के जातकों के लिए काफी सकारात्मक उम्मीदें लेकर आने वाला है। आइए जानते हैं सूर्य ग्रहण किस राशि के लिए लाभकारी साबित हो रहा है!
मिथुन राशि
मिथुन राशि के लिए सूर्य ग्रहण बेहद लाभकारी साबित होने वाला है। मिथुन राशि के जातकों को भाग्य का साथ मिल सकता है। इसके अलावा इन्हें आर्थिक लाभ और करियर या बिजनेस में तरक्की मिल सकती है। मिथुन राशि के जातकों को अचानक धन लाभ हो सकता है।
सूर्य राशि सिंह
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य ग्रहण सिंह राशि के लिए लाभकारी साबित होगा। वहीं करियर से जुड़े लोगों के लिए प्रगति देखने को मिल सकती है। कारोबारी लोगों को व्यापार में कोई लाभदायक सौदा मिलने की उम्मीद है। सूर्य ग्रहण से सिंह राशि के जातकों की किस्मत चमकेगी।
तुला
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, अक्टूबर का सूर्य ग्रहण तुला राशि वालों के लिए विशेष आशीर्वाद पाने का शुभ महीना माना जा सकता है। इन लोगों को विभिन्न क्षेत्रों में सफलता मिलने की उम्मीद होती है। साथ ही अगर कोई काम बाकी है तो वह भी जल्दी पूरा हो जाएगा। इसके अलावा अक्टूबर के महीने में तुला राशि के जातकों को कई सकारात्मक खबरें मिलने की उम्मीद है।
क्यों मनाते हैं पितृविसर्जन अमावस्या, इस साल की तिथि, समय, अनुष्ठान और महत्व
13 Oct, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
पितृविसर्जन अमावस्या, जिसे सर्वपितृ अमावस्या, पितृ मोक्ष अमावस्या या पितृ अमावस्या के नाम से भी जानते है. यह एक हिंदू परंपरा है जो 'पितरों' या पूर्वजों को समर्पित है. दक्षिण भारत में प्रचलित अमावस्यांत कैलेंडर के अनुसार, यह 'भाद्रपद' महीने की अमावस्या (अमावस्या दिन) को मनाया जाता है.
उत्तर भारत में जहां पूर्णिमांत कैलेंडर का उपयोग किया जाता है. यह 'अश्विन' महीने के दौरान और ग्रेगोरियन कैलेंडर में सितंबर-अक्टूबर के महीनों में मनाया जाता हैै. महालया अमावस्या 15 दिवसीय श्राद्ध अनुष्ठान का अंतिम दिन होता है.
14 अक्टूबर, दिन शनिवार को मनाया जाएगा महालया अमावस्या
शनिवार 14 अक्टूबर को मनाया जाएगा पितृविसर्जन अमावस्या. पितृविसर्जन अमावस्या पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त करने और शांतिपूर्ण और समृद्ध जीवन के लिए मनाया जाता हैं. इसे पितृ पक्ष के आखिरी दिन मनाया जाता है जिसे 'पूर्वजों का पखवाड़ा' भी कहा जाता है. यह दिन पितरों को आदर और सम्मान देने के उद्देश्य से अत्यधिक श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है. बंगाल में इसे 'महालय ' के रूप में मनाया जाता है जो भव्य
समारोह की शुरुआत का प्रतीक है. तो वही तेलंगाना राज्य में बथुकम्मा उत्सव की शुरुआत का प्रतीक है.
ऐसे की जाती है महालया अमावस्या की पूरी रश्में
इस दिन, उन मृत परिवार के सदस्यों के लिए तर्पण और श्राद्ध अनुष्ठान किया जाता है जिनकी मृत्यु 'चतुर्दशी', 'अमावस्या' या 'पूर्णिमा' तिथि पर हुई हो. पितृ मोक्ष अमावस्या के दिन, व्रतकर्ता जल्दी उठते हैं और सुबह की रस्मों को पूरा करते है. वे इस दिन पीले वस्त्र पहनते हैं और ब्राह्मण को अपने घर पर आमंत्रित करते हैं. श्राद्ध समारोह परिवार के सबसे बड़े पुरुष द्वारा मनाया जाता है. जैसे ही ब्राह्मण आते है, अनुष्ठान का पर्यवेक्षक उनका पैर धोता है और उन्हें बैठने के लिए एक साफ जगह प्रदान कराता है. देव पक्ष के ब्राह्मण पूर्व दिशा की ओर अपना मुख करके बैठते हैं, जबकि पितृ पक्ष और मातृ पक्ष के ब्राह्मण उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठते हैं.
महालया अमावस्या पर 'पितरों' की धूप, दीया और फूलों से पूजा की जाती है. पितरों को प्रसन्न करने के लिए जल और जौ का मिश्रण भी अर्पित किया जाता है. दाहिने कंधे पर एक पवित्र धागा पहना जाता है और एक पट्टी दान में दी जाती है. इस आयोजन के लिए विशेष भोजन तैयार किया जाता है और पूजा अनुष्ठान पूरा करने के बाद ब्राह्मणों को दिया जाता है. जिस फर्श पर ब्राह्मण बैठते हैं उस पर भी तिल छिड़के जाते हैं.
यह दिन पूर्वजों के सम्मान में मनाया जाता है और परिवार के सदस्य उनकी याद में यह दिन बिताते हैं. पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए मंत्रों का जाप किया जाता है. इस दिन लोग अपने पूर्वजों को धन्यवाद देते हैं जिन्होंने उनके जीवन में योगदान दिया है. वे अपने पूर्वजों से माफ़ी भी मांगते हैं और प्रार्थना करते हैं कि उनकी आत्मा को शांति मिले.
महालया अमावस्या 2023: इस समय का रखना होगा खास ध्यान
सूर्योदय 14 अक्टूबर, प्रातः 6:27 बजे
सूर्यास्त 14 अक्टूबर, शाम 5:58 बजे
अमावस्या तिथि का समय 13 अक्टूबर, रात्रि 09:51 - 14 अक्टूबर, रात्रि 11:25 बजे
अपराहन काल 14 अक्टूबर, रात्रि 01:22 बजे - रात्रि 03:40 बजे
कुतुप मुहूर्त 14 अक्टूबर, सुबह 11:49 बजे - दोपहर 12:36 बजे
रोहिना मुहूर्त 14 अक्टूबर, दोपहर 12:36 - 01:22 बजे
जानें क्यों मनाया जाता है महालया अमावस्या
महालया अमावस्या के अनुष्ठान आशीर्वाद, कल्याण और समृद्धि प्राप्त करने के लिए किए जाते हैं. इस अनुष्ठान को करने वाले को भगवान यम का भी आशीर्वाद मिलता है और उनके परिवार को सभी बुराइयों से बचाया जाता है.
हिंदू धर्मग्रंथों में यह बताया गया है कि यदि कोई व्यक्ति पहले 15 दिनों के दौरान अपने पूर्वजों का श्राद्ध नहीं कर पाता है या मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं है, तो उनकी ओर से 'तर्पण' 'सर्वपितृ मोक्ष' के दिन किया जा सकता है. हिन्दू धर्म में ऐसा माना जाता है कि महालया अमावस्या के दिन पितर और पूर्वज अपने घर आते हैं और यदि उनकी ओर से उनका श्राद्ध कर्म नहीं किया जाता है, तो वे अप्रसन्न होकर लौट जाते हैं.
ज्योतिष शास्त्र में भी बताया गया है कि यदि पूर्वज कोई गलती करते हैं तो इसका असर उनकी संतान की कुंडली में 'पितृ दोष' के रूप में दिखता है. परिणामस्वरूप वे अपने जीवन में बुरे अनुभवों से पीड़ित होते हैं. इन पूर्वजों की आत्माओं को मोक्ष नहीं मिलता और इसलिए वे शांति की तलाश में भटकते रहते हैं. हालांकि महालया अमावस्या पर श्राद्ध कर्म करने से इस 'पितृ दोष' को दूर किया जा सकता है और मृत आत्मा को मोक्ष भी मिलता है. बदले में पूर्वज उनके परिवार को आशीर्वाद भी देते हैं और उन्हें जीवन में सभी खुशियाँ प्रदान करते हैं.
सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या इसलिए मानी जाती है महत्वपूर्ण
12 Oct, 2023 07:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
आश्विन मास वर्ष के सभी 12 मासों में खास माना जाता है। इस मास की अमावस्या तिथि तो और भी महत्वपूर्ण मानी जाती है। इसकी सबसे बड़ी वजह है पितृ पक्ष में इस अमावस्या का होना। इस साल पितृपक्ष अमावस्या 14 अक्टूबर को है।
क्या है सर्वपितृ अमावस्या
पितृपक्ष का आरंभ भाद्रपद पूर्णिमा से हो जाता है। आश्विन माह का प्रथम पखवाड़ा जो कि माह का कृष्ण पक्ष भी होता है पितृपक्ष के रूप में जाना जाता है। इन दिनों में हिंदू धर्म के अनुयायि अपने दिवंगत पूर्वजों का स्मरण करते हैं। उन्हें याद करते हैं, उनके प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं। उनकी आत्मा की शांति के लिये स्नान, दान, तर्पण आदि किया जाता है। पूर्वज़ों के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के कारण ही इन दिनों को श्राद्ध भी कहा जाता है। वहीं कभी-कभी जाने-अंजाने हम उन तिथियों को भूल जाते हैं जिन तिथियों को हमारे प्रियजन हमें छोड़ कर चले जाते हैं। ऐसे में अपने पितरों का अलग-अलग श्राद्ध करने की बजाय सभी पितरों के लिये एक ही दिन श्राद्ध करने का विधान बताया गया है। इसके लिये कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि अमावस्या का महत्व बताया गया है। समस्त पितरों का इस अमावस्या को श्राद्ध किये जाने को लेकर ही इस तिथि को सर्वपितृ अमावस्या कहा जाता है।
सर्वपितृ अमावस्या का महत्व
सबसे अहम तो यह तिथि इसीलिये है क्योंकि इस दिन सभी पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है। वहीं इस अमावस्या को श्राद्ध करने के पिछे मान्यता है कि इस दिन पितरों के नाम की धूप देने से मानसिक व शारीरिक तौर पर तो संतुष्टि या कहें शांति प्राप्त होती ही है लेकिन साथ ही घर में भी सुख-समृद्धि आयी रहती है। सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं। हालांकि प्रत्येक मास की अमावस्या तिथि को पिंडदान किया जा सकता है लेकिन आश्विन अमावस्या विशेष रूप से शुभ फलदायी मानी जाती है। पितृ अमावस्या होने के कारण इसे पितृ विसर्जनी अमावस्या या महालया भी कहा जाता है। मान्यता यह भी है कि इस अमावस्या को पितृ अपने प्रियजनों के द्वार पर श्राद्धादि की इच्छा लेकर आते हैं। यदि उन्हें पिंडदान न मिले तो शाप देकर चले जाते हैं जिसके फलस्वरूप घरेलू कलह बढ़ जाती है व सुख-समृद्धि में कमी आने लगती है और कार्य भी बिगड़ने लगते हैं। इसलिये श्राद्ध कर्म अवश्य करना चाहिये।
पितृ अमावस्या को श्राद्ध करने की विधि
सर्वपितृ अमावस्या को प्रात: स्नानादि के पश्चात गायत्री मंत्र का जाप करते हुए सूर्यदेव को जल अर्पित करना चाहिये। इसके पश्चात घर में श्राद्ध के लिये बनाये गये भोजन से पंचबलि अर्थात गाय, कुत्ते, कौए, देव एवं चीटिंयों के लिये भोजन का अंश निकालकर उन्हें देना चाहिये। इसके पश्चात श्रद्धापूर्वक पितरों से मंगल की कामना करनी चाहिये। ब्राह्मण या किसी गरीब जरूरतमंद को भोजन करवाना चाहिये व सामर्थ्य अनुसार दान दक्षिणा भी देनी चाहिये। संध्या के समय अपनी क्षमता अनुसार दो, पांच अथवा सोलह दीप भी प्रज्जवलित करने चाहियें।
कुछ ऐसे सामान्य उपाय भी हैं जिनके करने से आप अपने पितृगणों को संतुष्ट कर सकते हैं।
आइए जानते हैं कि पितृ मोक्ष अमावस्या वाले दिन पितरों की तृप्ति के लिए कौन से उपाय किए जाने चाहिए।
पितृ मोक्ष अमावस्या वाले दिन प्रात:काल पीपल के पेड़ के नीचे अपने पितरों के निमित्त घर का बना मिष्ठान व पीने योग्य शुद्ध जल की मटकी रखकर धूप-दीप जलाएं।
अपने पितरों के निमित्त गाय को हरी पालक खिलाएं।
प्रात:काल तर्पण अवश्य करें।
किसी मंदिर में या ब्राह्मण को आमान्य दान अवश्य करें।
पितरों के निमित्त चांदी का दान अवश्य करें।
सूर्यास्त के पश्चात घर की छत पर दक्षिणाभिमुख होकर अपने पितरों के निमित्त दीपक रखें।
पितरों के निमित्त जरूरतमंदों को यथायोग्य दान अवश्य दें।