धर्म एवं ज्योतिष (ऑर्काइव)
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन (15 अप्रैल 2023)
15 Apr, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- इष्ट मित्र सुखवर्धक होंगे, मनोबल बनायें रखें, विचार हीनता से बचे रहें।
वृष राशि - भाग्य का सितारा प्रबल होगा, इष्ट मित्र सहयोग करेंगे, माता-पिता से सहयोग मिलेगा।
मिथुन राशि - इष्ट मित्रों से परेशानी, अशांति दैनिक कार्यगति बनी रहेगी, ध्यान दें।
कर्क राशि - मान-प्रतिष्ठा, प्रभुत्व वृद्धि होगी, कृषि के कार्य बनेंगे, दैनिक कार्य में वृद्धि हो।
सिंह राशि - कार्यगति अनुकूल हो, सामाजिक कार्यों में प्रभुत्व वृद्धि तथा प्रतिष्ठा बनेगी।
कन्या राशि - कुटुम्ब की परेशानी, चिन्ता व व्याग्रता, मानसिक उद्विघ्नता से बने रहे।
तुल राशि - धन हानि, शरीर कष्ट, मानसिक बेचैन, व्यर्थ भ्रमण तथा विशेष ध्यान दें।
वृश्चिक राशि - इष्ट मित्र सुखवर्धक हो, अधिकारियों का समर्थन फलप्रद अवश्य ही होगा, ध्यान दें।
धनु राशि - कार्य कुशलता से संतोष की प्राप्ति होगी, दैनिक समृद्धि के साधन जुटाएं।
मकर राशि - दैनिक कार्यगति वृत्तियों में सुधार, योजनाएं फलीभूत होंगी, रुके कार्य होंगे।
कुंभ राशि - विशेष कार्य स्थिगित रखें, मानसिक विभ्रम, उद्विघ्नता अवश्य बने।
मीन राशि - कार्य विफलता, प्रयास करने पर सफलता मिले, कार्य रुकेंगे, ध्यान दें।
सुख समृद्धि का प्रतीक है मूंगे की माला
14 Apr, 2023 07:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
वास्तु के अनुसार रत्नों का अपना महत्व रहता है और ये हमारे जीवन में बड़ बदलावा लाते हैं। इसी में से एक रत्न मूंगा सुख समृद्धि का प्रतीक होता है। इसी प्रकार मूंगे की माला पहनने से गणपति जी, भगवान श्री राम और हनुमान जी की कृपा मिलती है। मूंगे की माला पहनने से सुख समृद्धि बढ़ती है, धन आता है। इस से बीमारी से मुक्ति मिलती है। बिमारियों से लड़ने की क्षमता मिलती है और नकारात्मक या अशुभ शक्तियां परेशान नहीं करती हैं। मूंगे की माला से जाप भी किया जा सकता है।
कौन पहन सकता है
अगर याद्दाश्त कमज़ोर हो, पढ़ाई में बच्चे कमज़ोर हो, बच्चे कहना ना मानते हो, कुंडली में बुद्धि का ग्रह बुध कमज़ोर हो, ज्ञान का ग्रह गुरु कमज़ोर हो तो मूंगे की माला जरुर पहने। मूंगे माला पहनने से मंगल ग्रह बलवान होते हैं लेकिन माला धारण करने से पहले इस माला की हनुमान मंदिर में पूजा जरूर करा लें।
मूंगे की माला आत्मविश्वास को बढ़ाती है-
मूंगे की माला से हनुमान जी और श्री राम के मन्त्रों का जाप कर सकते हैं।
अगर सुहागिन स्त्री मूंगे की माला पहने तो उनके पति की सेहत ठीक रहती है।
उनका हर संकट दूर होता है और भगवान हनुमान जी हरदम पूरे परिवार की रक्षा करते हैं।
मूंगे की माला कब पहनें
तुलसी की माला मूंगे की लकड़ी से लाल धागे में बनाई जाती है।
इसे मंगलवार को धारण करना चाहिए।
धारण करने से पहले हनुमान जी, शिव जी और श्री राम जी की पूजा करनी चाहिए।
मूंगे की माला पहनने से नजर नहीं लगती और सभी प्रकार के सुख की प्राप्ति होती है।
इसे गंगाजल से धोकर, धूप दीप दिखाकर पहनें।
मूंगे की माला पहनकर मास-मदिरा का सेवन नहीं कर सकते हैं और ना ही झूठ बोल सकते हैं।
शनि पर्वत निभाता है अहम भूमिका
14 Apr, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हस्तारेखा से हर मनुष्य के बारे में काफी कुछ जाना जा सकता है। इसमें देखा गया है कि यदि शनि पर्वत पर त्रिकोण जैसी आकृति हो तो मनुष्य गुप्तविधाओं में रुचि, विज्ञान, अनुसंधान, ज्योतिष, तंत्र-मंत्र सम्मोहन आदि में गहन रुचि रखता है और इस विषय का ज्ञाता होता है। इस पर्वत पर मंदिर का चिन्ह भी हो तो मनुष्य प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के पद तक पहुंचता है। यह चिन्ह राजयोग कारक माना जाता है। यह चिन्ह जिस किसी की हथेलियों के पर्वत पर उत्पन्न होते हैं, वह किसी भी उम्र में ही मनुष्य को लाखों-करोड़ों का स्वामी बना देते हैं। यदि इस पर्वत पर त्रिशूल जैसी आकृतियां हो तो वह मनुष्य एका-एक सन्यासी बन जाता है। यह वैराग्य सूचक चिन्ह है। वहीं अगर शनि पर्वत अत्यधिक विकसित होता है तो मनुष्य आत्महत्या तक कर लेता है। अगर यह पर्वत बहुत विकसित पाया जाता है और साधारणत: पीलापन लिए होता है तो हालात बेहद विपरीत होते हैं। इस प्रकार के लोगों की हथेली और चमडी भी पीली होती है और स्वभाव में चिडचिड़ापन झलकता है। ऐस में मनुष्य अपराधी भी बन सकता है। यह पर्वत अनुकूल स्थिति में सुरक्षा, संपत्ति, प्रभाव, बल पद-प्रतिष्ठा और व्यवसाय प्रदान करता है, परंतु विपरीत गति होने पर इन समस्त सुख साधन नष्ट करके घोर कष्टदायक रूप धारण कर लेता है।
स्वयं में भगवान श्रीराम के दर्शन करते हैं रामनामी
14 Apr, 2023 06:15 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
कहते हैं यदि ईश्वर तो हृदय में बसते हैं। शायद यही वजह है कि रामनामी समाज किसी मंदिर में जाने की बजाए भगवान श्रीराम के दर्शन खुद में ही करते हैं। यहां हर किसी में बस राम ही रचे-बसे नजर आते हैं। तो आइए जानते हैं कि कौन हैं ये लोग और क्यों इन्होंने क्यों मर्यादा पुरुषोत्तम को अपने तन-मन में बसाया है।
ऐसे बनी परंपरा
छत्तीसगढ़ के ‘जमगाहन गांव’ में तकरीबन सौ बरस पहले निम्न वर्ग के तबके को जब मंदिर जाने से मना किया गया। तो उन्होंने प्रभु की पूजा का एक नया ही मार्ग खोज निकाला। सभी ने अपने शरीर पर राम नाम को गुदवाना शुरू कर दिया। पहले यह उपेक्षा के चलते शुरू किया गया था लेकिन बाद में यह परंपरा बन गई। आज भी लोग सहर्ष इसका निर्वहन कर रहे हैं।
राम नाम से बन गए रामनामी
राम का नाम इस तरह से खुद पर लिखवाने के चलते जमगाहनगांव के इस निम्न तबके की परिभाषा ही बदल गई। अब इन्हें रामनामी समाज के नाम से जाना जाता है। पूरे देश में इन्हें इसी विशेष समाज के नाम से जाना-पहचाना जाता है।
जय श्री राम का करते हैं संबोधन
बरसों पहले मंदिर जाने से रोके गए रामनामी समाज के लोग मूर्ति पूजा करते ही नहीं। वह बस अपने शरीर पर रामनाम गुदवाते हैं। इसके अलावा राम का नाम गुदवा लेने के बाद इस समाज के लोग मदिरा को हाथ तक नहीं लगाते। साथ ही नियमित रूप से राम नाम के मंत्र का जाप करते हैं। दैनिक अभिवादन में जय श्री राम का संबोधन ही प्रयोग करते हैं।
रामनामियों की श्रेणी
रामनामियों की अपनी ही एक श्रेणी हैं। इसमें शरीर के अलग-अलग भागों और पूरे शरीर पर राम नाम लिखवाने वालों को अलग-अलग श्रेणी में रखा जाता है। इसमें जो शरीर के किसी एक भाग पर राम नाम लिखवाते हैं, उन्हें रामनामी कहते हैं। यदि माथे पर राम का नाम गुदवाया हो तो उसे शिरोमणि रामनामी कहते हैं। इसके अलावा अगर पूरे माथे पर ही राम का नाम गुदवाया हो तो उसे सर्वांग रामनामी कहते हैं। वहीं जो पूरे शरीर पर राम का नाम गुदवा लेता है उसे नखशिख रामनामी कहते हैं।
यहां है भगवान परशुराम का तप स्थल
14 Apr, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
झारखंड के गुमला जिले में भगवान परशुराम का तप स्थल है। यह जगह रांची से करीब 150 किमी दूर है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान परशुराम ने यहां शिव की घोर उपासना की थी। यहीं उन्होंने अपने परशु यानी फरसे को धरती पर रख दिया था। इस फरसे की ऊपरी आकृति कुछ त्रिशूल से मिलती-जुलती है। यही वजह है कि यहां श्रद्धालु इस फरसे की पूजा के लिए आते है। वहीं शिव शंकर के इस मंदिर को टांगीनाथ धाम के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि टांगीनाथ धाम में साक्षात भगवान शिव निवास करते हैं।
त्रिशूल को पूजते हैं
लोग शिवरात्रि के अवसर पर ही श्रद्धालु टांगीनाथ के दर्शन के लिए आते हैं। यहां स्थित एक मंदिर में भोलेनाथ शाश्वत रूप में हैं। स्थानीय आदिवासी ही यहां के पुजारी है और इनका कहना है कि यह मंदिर अत्यंत प्राचीन है। मान्यता है महर्षि परशुराम ने यहीं अपने परशु यानी फरसे को रख दिया था। स्थानीय लोग इसे त्रिशूल के रूप में भी पूजते हैं। आश्चर्य की बात ये है कि इसमें कभी जंग नहीं लगता। खुले आसमान के नीचे धूप, छांव, बरसात- का कोई असर इस त्रिशूल पर नहीं पड़ता है।
पौराणिक महत्व
त्रेता युग में जब भगवान श्रीराम ने जनकपुर में आयोजित सीता माता के स्वयंवर में शिव जी का धनुष तोड़ा तो वहां पहुंचे भगवान परशुराम काफी क्रोधित हो गए। इस दौरान लक्ष्मण से उनकी लंबी बहस हुई और इसी बीच जब परशुराम को पता चला कि भगवान श्रीराम स्वयं नारायण ही हैं तो उन्हें बड़ी आत्मग्लानि हुई। वह पश्चाताप करने के लिए घने जंगलों के बीच एक पर्वत श्रृंखला में आ गए। यहां वे भगवान शिव की स्थापना कर आराधना करने लगे।
शनिदेव से भी जुड़ी है गाथा
टांगीनाथ धाम का प्राचीन मंदिर रखरखाव के अभाव में ढह चुका है और पूरा इलाका खंडहर में तब्दील हो गया है लेकिन आज भी इस पहाड़ी में प्राचीन शिवलिंग बिखरे पड़े हैं। यहां मौजूद कलाकृतियां- नक्काशियां और यहां की बनावट देवकाल की कहानी बयां करती हैं। साथ ही कई ऐसे स्रोत हैं, जो त्रेता युग में ले जाते हैं। वैसे एक कहानी और भी है। कहते हैं कि शिव इस क्षेत्र के पुरातन जातियों से संबंधित थे। शनिदेव के किसी अपराध के लिए शिव ने त्रिशूल फेंक कर वार किया तो वह इस पहाड़ी की चोटी पर आ धंसा। उसका अग्र भाग जमीन के ऊपर रह गया जबकि त्रिशूल जमीन के नीचे कितना गड़ा है, यह कोई नहीं जानता।
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन (14 अप्रैल 2023)
14 Apr, 2023 12:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- धन लाभ, योजना फलीभूत होंगी, कार्य कुशलता से संतोष अवश्य होगा, ध्यान दें।
वृष राशि - मनोबल संवेदनशील हो, आशानुकूल सफलता का योग होगा तथा अवश्य ही ध्यान दें।
मिथुन राशि - मनोबल उत्साहवर्धक हो, आशानुकूल सफलता का हर्ष होगा, ध्यान दें।
कर्क राशि - मनोवृत्ति संवेदनशील हो, आशानुकूल सफलता का हर्ष अवश्य होगा, ध्यान दें।
सिंह राशि - धन-लाभ होगा, आशानुकूल सफलता प्राप्त होगी, ध्यान दें कार्य बनेंग।
कन्या राशि - इष्ट मित्र से मान-प्रतिष्ठा, प्रभुत्व वृद्धि, समय पर सोचे कार्य अवश्य पूर्ण होंगे।
तुल राशि - कुटुम्ब की समस्याओं से धन का व्यर्थ व्यय होगा, मानसिक उद्विघ्नता बनेगी।
वृश्चिक राशि - आर्थिक योजना पूर्ण होंगी, सफलता के साधन बनें, इष्ट मित्र सुखवर्धक होंगे।
धनु राशि - धन लाभ होगा, अधिकारियों से मेल-मिलाप संभव है, हर्ष अवश्य ही बनेगा।
मकर राशि - कार्य क्षमता में सुधार होगा, स्थिति नियंत्रण में रखें, स्त्री वर्ग से हर्ष-उल्लास होगा।
कुंभ राशि - विशेष कार्य स्थिगित रखें, मानसिक विभ्रम, उद्विघ्नता अवश्य ही बनेगी।
मीन राशि - प्रयत्न सफल हों, इष्ट मित्र होंगे, दैनिक कार्यगति में अनुकूलता अवश्य ही बनेगी।
कब मनाई जाएगी बैसाखी 13 या 14 अप्रैल को, क्यों मनाते हैं ये उत्सव? जानें इसका इतिहास
13 Apr, 2023 07:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
उज्जैन. सिक्ख धर्म में कई त्योहार मनाए जाते हैं। बैसाखी भी इनमें से एक है। ये त्योहार हर साल 13 या 14 अप्रैल को मनाया जाता है। (Kab Hai Baisakhi 2023) इस बार ये उत्सव 14 अप्रैल, शुक्रवार को मनाया जाएगा।
बैसाखी उत्सव वैसे तो पूरे देश में मनाया जाता है, लेकिन पंजाब और इसके आस-पास के क्षेत्रों में इसकी रौनक देखते ही बनती है। बैसाखी का पर्व क्यों मनाया जाता है, इसके पीछे एक नहीं कई कारण है। आगे जानिए बैसाखी से जुड़ी खास बातें.
फसल पकने की खुशी में मनाते हैं बैसाखी (Kyo Manate Hai Vaishakhi)
बैसाखी उत्सव मनाने के पीछे कई कारण है, उनमें से एक खेती-किसानी से जुड़ा है। पंजाब में इस मौके पर फसल पककर तैयार हो जाती है। जिसे देखकर किसान बहुत खुश होती है। इसी खुशी में वह नाच-गाकर उत्सव मनाता है। इसे ही बैसाखी कहते हैं। नई फसल के लिए भगवान को धन्यवाद दिया जाता है। बैसाखी पर लोग नए कपड़े पहनते हैं, एक दूसरे को बधाई एवं शुभकामनाएं देते हैं और खुशियां मनाते हैं।
पंजाबी नववर्ष का आरंभ होता है इस दिन से (Punjabi New Year 2023)
दुनिया के हर धर्म और पंथ का अपना-अपना अलग कैलेंडर होता है। उसी तरह सिक्खों के कैलेंडर को नानकशाही कैलेंडर कहा जाता है। मान्यता के अनुसार, साल 1699 में बैसाखी पर सिक्खों के 10वें और अंतिम गुरु गोबिंद सिंह ने पवित्र खालसा पंथ की स्थापना की थी। तभी से ये दिन सिक्खों के नव वर्ष के तौर पर मनाया जाता है।
इसी दिन हुई थी खालसा पंथ की स्थापना
बैसाखी से जुड़ी एक खास बात ये भी है कि साल 1699 में इसी दिन सिक्खों के दसवें गुरु गोविंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। उस समय मुगलों का आतंक लगातार बढ़ रहा था। हिंदुओं और सिक्खों पर अत्याचार किए जा रहे थे, जिसे रोकने के लिए खालसा पंथ बनाया गया। खालसा पंथ का उद्देश्य हिंदुओं की रक्षा करना और अन्य धर्मों के अन्याय को रोकना था।
सूर्य गोचर का चार राशियों को होगा नुकसान, इनको संभलकर रहने की जरूरत
13 Apr, 2023 06:45 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
Sun Transit April: नवग्रहों के राजा सूर्य 14 अप्रैल 2023 को राशि परिवर्तन करेंगे. सूर्य इस दिन मीन राशि छोड़कर मेष राशि में प्रवेश करेंगे. सूर्य देव यहां 15 मई 2023 तक भ्रमण करेंगे.
इसके बाद वृषभ राशि में प्रवेश करेंगे. इसका चार राशि के जातकों को बेहद नुकसान होने वाला है, आइये इसके बारे में जानते हैं पं. उमाशंकर मिश्र से.
आइये जानते हैं कि सूर्य के राशि परिवर्तन का किसे होगा नुकसान
वृषभ राशि: पं. उमाशंकर मिश्र के मुताबिक सूर्य वृष राशि के बारहवें भाव में 14 अप्रैल को गोचर करने जा रहे हैं, यह स्थिति वृष राशि के जातकों के लिए ठीक नहीं है. ज्योतिषाचार्य पं. उमाशंकर मिश्र का कहना है कि इससे वृष राशि के जातक का मन अशांत होगा, उनका कामकाज में मन नहीं लगेगा. वाद- विवाद हो सकता है.
कन्या राशि: मेष संक्रांति पर सूर्य का मेष राशि में प्रवेश, कन्या राशि के जातकों के लिए सामान्य रहेगा. इस दौरान कन्या राशि के जातकों को अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखने की जरूरत है. पं. उमाशंकर के अनुसार मेष राशि में सूर्य के रहने की अवधि में आपको वाहन चलाने में सावधानी रखनी होगी. सूर्य गोचर की एक महीने की अवधि में आपका खर्च बढ़ सकता है.
मकर राशि: सूर्य का राशि परिवर्तन कर मेष राशि में प्रवेश करना मकर राशि वालों की चिंता का सबब बनेगा. 14 अप्रैल को हो रहा सूर्य का राशि परिवर्तन एक महीने की अवधि में 15 मई तक मकर राशि वालों के सुख में कमी करेगा. माता को लेकर कष्ट हो सकता है, जरूरी कामकाज अभी ना करें तो अच्छा.
मीन राशि: सूर्य अप्रैल में हो रहे गोचर की अवधि में मीन राशि के द्वितीय भाव में प्रवेश करेगा, इस राशि के जातक के लिए इस दौरान समय सामान्य रहेगा. सेहत का ध्यान रखने की जरूरत है, वाहन चलाने में सावधानी रखने की जरूरत है. विरोधी पक्ष मजबूत हो सकता है, जरूरी कार्य सोच समझकर करें.
गुरुवार को करें श्री विष्णु का ये प्रिय पाठ, सुख, संपन्नता और सफलता का मिलेगा आशीर्वाद
13 Apr, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्म में भगवान विष्णु को इस संसार का पालनहार और धन की देवी माता लक्ष्मी के प्रिय यानी उनके पति के तौर पर जाना जाता है। ऐसे में श्री हरि की कृपा जिस जातक पर भी हो जाती है उसके जीवन से सभी समस्याओं का अंत हो जाता है।
ऐसे में हर कोई भगवान की कृपा पाने के लिए गुरुवार के दिन उनकी विधिवत पूजा और व्रत करता है।
लेकिन इस दिन पूजा पाठ के साथ अगर विष्णु सहस्रनाम का संपूर्ण पाठ पूरे मन से किया जाए तो सुख,संपन्नता और सफलता का आशीर्वाद मिलता है और साधक पर भगवान विष्णु के साथ साथ माता लक्ष्मी की कृपा भी बरसती है। तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं, ये चमत्कारी पाठ।
विष्णु सहस्रनाम-
॥ हरिः ॐ ॥
विश्वं विष्णुर्वषट्कारो भूतभव्यभवत्प्रभुः।
भूतकृद्भूतभृद्भावो भूतात्मा भूतभावनः॥१॥
पूतात्मा परमात्मा च मुक्तानां परमा गतिः।
अव्ययः पुरुषः साक्षी क्षेत्रज्ञोऽक्षर एव च॥२॥
योगो योगविदां नेता प्रधानपुरुषेश्वरः।
नारसिंहवपुः श्रीमान् केशवः पुरुषोत्तमः॥३॥
सर्वः शर्वः शिवः स्थाणुर्भूतादिर्निधिरव्ययः।
संभवो भावनो भर्ता प्रभवः प्रभुरीश्वरः॥४॥
स्वयंभूः शम्भुरादित्यः पुष्कराक्षो महास्वनः।
अनादिनिधनो धाता विधाता धातुरुत्तमः॥५॥
अप्रमेयो हृषीकेशः पद्मनाभोऽमरप्रभुः।
विश्वकर्मा मनुस्त्वष्टा स्थविष्ठः स्थविरो ध्रुवः॥६॥
अग्राह्यः शाश्वतः कृष्णो लोहिताक्षः प्रतर्दनः।
प्रभूतस्त्रिककुब्धाम पवित्रं मङ्गलं परम्॥७॥
ईशानः प्राणदः प्राणो ज्येष्ठः श्रेष्ठः प्रजापतिः।
हिरण्यगर्भो भूगर्भो माधवो मधुसूदनः॥८॥
ईश्वरो विक्रमी धन्वी मेधावी विक्रमः क्रमः।
अनुत्तमो दुराधर्षः कृतज्ञः कृतिरात्मवान्॥९॥
सुरेशः शरणं शर्म विश्वरेताः प्रजाभवः।
अहः संवत्सरो व्यालः प्रत्ययः सर्वदर्शनः॥१०॥
अजः सर्वेश्वरः सिद्धः सिद्धिः सर्वादिरच्युतः।
वृषाकपिरमेयात्मा सर्वयोगविनिःसृतः॥११॥
वसुर्वसुमनाः सत्यः समात्माऽसम्मितः समः।
अमोघः पुण्डरीकाक्षो वृषकर्मा वृषाकृतिः॥१२॥
रुद्रो बहुशिरा बभ्रुर्विश्वयोनिः शुचिश्रवाः।
अमृतः शाश्वत स्थाणुर्वरारोहो महातपाः॥१३॥
सर्वगः सर्वविद्भानुर्विष्वक्सेनो जनार्दनः।
वेदो वेदविदव्यङ्गो वेदाङ्गो वेदवित् कविः॥१४॥
लोकाध्यक्षः सुराध्यक्षो धर्माध्यक्षः कृताकृतः।
चतुरात्मा चतुर्व्यूहश्चतुर्दंष्ट्रश्चतुर्भुजः॥१५॥
भ्राजिष्णुर्भोजनं भोक्ता सहिष्णुर्जगदादिजः।
अनघो विजयो जेता विश्वयोनिः पुनर्वसुः॥१६॥
उपेन्द्रो वामनः प्रांशुरमोघः शुचिरूर्जितः।
अतीन्द्रः संग्रहः सर्गो धृतात्मा नियमो यमः॥१७॥
वेद्यो वैद्यः सदायोगी वीरहा माधवो मधुः।
अतीन्द्रियो महामायो महोत्साहो महाबलः॥१८॥
महाबुद्धिर्महावीर्यो महाशक्तिर्महाद्युतिः।
अनिर्देश्यवपुः श्रीमानमेयात्मा महाद्रिधृक्॥१९॥
महेष्वासो महीभर्ता श्रीनिवासः सतां गतिः।
अनिरुद्धः सुरानन्दो गोविन्दो गोविदां पतिः॥२०॥
मरीचिर्दमनो हंसः सुपर्णो भुजगोत्तमः।
हिरण्यनाभः सुतपाः पद्मनाभः प्रजापतिः॥२१॥
अमृत्युः सर्वदृक् सिंहः सन्धाता सन्धिमान् स्थिरः।
अजो दुर्मर्षणः शास्ता विश्रुतात्मा सुरारिहा॥२२॥
गुरुर्गुरुतमो धाम सत्यः सत्यपराक्रमः।
निमिषोऽनिमिषः स्रग्वी वाचस्पतिरुदारधीः॥२३॥
अग्रणीर्ग्रामणीः श्रीमान् न्यायो नेता समीरणः।
सहस्रमूर्धा विश्वात्मा सहस्राक्षः सहस्रपात्॥२४॥
आवर्तनो निवृत्तात्मा संवृतः संप्रमर्दनः।
अहः संवर्तको वह्निरनिलो धरणीधरः॥२५॥
सुप्रसादः प्रसन्नात्मा विश्वधृग्विश्वभुग्विभुः।
सत्कर्ता सत्कृतः साधुर्जह्नुर्नारायणो नरः॥२६॥
असंख्येयोऽप्रमेयात्मा विशिष्टः शिष्टकृच्छुचिः।
सिद्धार्थः सिद्धसंकल्पः सिद्धिदः सिद्धिसाधनः॥२७॥
वृषाही वृषभो विष्णुर्वृषपर्वा वृषोदरः।
वर्धनो वर्धमानश्च विविक्तः श्रुतिसागरः॥२८॥
सुभुजो दुर्धरो वाग्मी महेन्द्रो वसुदो वसुः।
नैकरूपो बृहद्रूपः शिपिविष्टः प्रकाशनः॥२९॥
ओजस्तेजोद्युतिधरः प्रकाशात्मा प्रतापनः।
ऋद्धः स्पष्टाक्षरो मन्त्रश्चन्द्रांशुर्भास्करद्युतिः॥३०॥
अमृतांशूद्भवो भानुः शशबिन्दुः सुरेश्वरः।
औषधं जगतः सेतुः सत्यधर्मपराक्रमः॥३१॥
भूतभव्यभवन्नाथः पवनः पावनोऽनलः।
कामहा कामकृत्कान्तः कामः कामप्रदः प्रभुः॥३२॥
युगादिकृद्युगावर्तो नैकमायो महाशनः।
अदृश्यो व्यक्तरूपश्च सहस्रजिदनन्तजित्॥३३॥
इष्टोऽविशिष्टः शिष्टेष्टः शिखण्डी नहुषो वृषः।
क्रोधहा क्रोधकृत्कर्ता विश्वबाहुर्महीधरः॥३४॥
अच्युतः प्रथितः प्राणः प्राणदो वासवानुजः।
अपांनिधिरधिष्ठानमप्रमत्तः प्रतिष्ठितः॥३५॥
स्कन्दः स्कन्दधरो धुर्यो वरदो वायुवाहनः।
वासुदेवो बृहद्भानुरादिदेवः पुरन्दरः॥३६॥
अशोकस्तारणस्तारः शूरः शौरिर्जनेश्वरः।
अनुकूलः शतावर्तः पद्मी पद्मनिभेक्षणः॥३७॥
पद्मनाभोऽरविन्दाक्षः पद्मगर्भः शरीरभृत्।
महर्द्धिरृद्धो वृद्धात्मा महाक्षो गरुडध्वजः॥३८॥
अतुलः शरभो भीमः समयज्ञो हविर्हरिः।
सर्वलक्षणलक्षण्यो लक्ष्मीवान् समितिञ्जयः॥३९॥
विक्षरो रोहितो मार्गो हेतुर्दामोदरः सहः।
महीधरो महाभागो वेगवानमिताशनः॥४०॥
उद्भवः क्षोभणो देवः श्रीगर्भः परमेश्वरः।
करणं कारणं कर्ता विकर्ता गहनो गुहः॥४१॥
व्यवसायो व्यवस्थानः संस्थानः स्थानदो ध्रुवः।
परर्द्धिः परमस्पष्टस्तुष्टः पुष्टः शुभेक्षणः॥४२॥
रामो विरामो विरजो (विरतो) मार्गो नेयो नयोऽनयः।
वीरः शक्तिमतां श्रेष्ठो धर्मो धर्मविदुत्तमः॥४३॥
वैकुण्ठः पुरुषः प्राणः प्राणदः प्रणवः पृथुः।
हिरण्यगर्भः शत्रुघ्नो व्याप्तो वायुरधोक्षजः॥४४॥
ऋतुः सुदर्शनः कालः परमेष्ठी परिग्रहः।
उग्रः संवत्सरो दक्षो विश्रामो विश्वदक्षिणः॥४५॥
विस्तारः स्थावरस्थाणुः प्रमाणं बीजमव्ययम्।
अर्थोऽनर्थो महाकोशो महाभोगो महाधनः॥४६॥
अनिर्विण्णः स्थविष्ठोऽभूर्धर्मयूपो महामखः।
नक्षत्रनेमिर्नक्षत्री क्षमः क्षामः समीहनः॥४७॥
यज्ञ इज्यो महेज्यश्च क्रतुः सत्रं सतां गतिः।
सर्वदर्शी विमुक्तात्मा सर्वज्ञो ज्ञानमुत्तमम्॥४८॥
सुव्रतः सुमुखः सूक्ष्मः सुघोषः सुखदः सुहृत्।
मनोहरो जितक्रोधो वीरबाहुर्विदारणः॥४९॥
स्वापनः स्ववशो व्यापी नैकात्मा नैककर्मकृत्।
वत्सरो वत्सलो वत्सी रत्नगर्भो धनेश्वरः॥५०॥
धर्मगुब्धर्मकृद्धर्मी सदसत्क्षरमक्षरम्।
अविज्ञाता सहस्रांशुर्विधाता कृतलक्षणः॥५१॥
गभस्तिनेमिः सत्त्वस्थः सिंहो भूतमहेश्वरः।
आदिदेवो महादेवो देवेशो देवभृद्गुरुः॥५२॥
उत्तरो गोपतिर्गोप्ता ज्ञानगम्यः पुरातनः।
शरीरभूतभृद्भोक्ता कपीन्द्रो भूरिदक्षिणः॥५३॥
सोमपोऽमृतपः सोमः पुरुजित्पुरुसत्तमः।
विनयो जयः सत्यसंधो दाशार्हः सात्त्वतांपतिः॥५४॥
जीवो विनयिता साक्षी मुकुन्दोऽमितविक्रमः।
अम्भोनिधिरनन्तात्मा महोदधिशयोऽन्तकः॥५५॥
अजो महार्हः स्वाभाव्यो जितामित्रः प्रमोदनः।
आनन्दो नन्दनो नन्दः सत्यधर्मा त्रिविक्रमः॥५६॥
महर्षिः कपिलाचार्यः कृतज्ञो मेदिनीपतिः।
त्रिपदस्त्रिदशाध्यक्षो महाशृङ्गः कृतान्तकृत्॥५७॥
महावराहो गोविन्दः सुषेणः कनकाङ्गदी।
गुह्यो गभीरो गहनो गुप्तश्चक्रगदाधरः॥५८॥
वेधाः स्वाङ्गोऽजितः कृष्णो दृढः संकर्षणोऽच्युतः।
वरुणो वारुणो वृक्षः पुष्कराक्षो महामनाः॥५९॥
भगवान् भगहाऽऽनन्दी वनमाली हलायुधः।
आदित्यो ज्योतिरादित्यः सहिष्णुर्गतिसत्तमः॥६०॥
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन (13 अप्रैल 2023)
13 Apr, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- आशानुकूल सफलता से संतोष होगा, सफलता के साधन अवश्य ही बनेंगे।
वृष राशि - समय अराम में बीते, व्यवसायिक क्षमताओं का ध्यान अवश्य रखें, ध्यान दें।
मिथुन राशि - अधिकारियों का समर्थन फलप्रद होगा किन्तु दुष्ट मित्रों से परेशानी बनेगी।
कर्क राशि - इष्ट मित्र सुखवर्धक हों, कुटुम्ब की समस्याएं सुलझेंगी, धैर्य से कार्य निपटायें।
सिंह राशि - प्रतिष्ठा वृद्धि एवं बड़े लोगों से मेल-मिलाप हर्षप्रद होगा, ध्यान दें।
कन्या राशि - संघर्ष में सफलता से संतोष, व्यवसायिक क्षमताओं में अनुकूलता से लाभ होगा।
तुल राशि - मान-प्रतिष्ठा, प्रभुत्व में वृद्धि, कार्यक्षमता बढ़े, समाज में प्रतिष्ठा के योग बनेंगे।
वृश्चिक राशि - सामाजिक कार्यों में सुधार होगा, कार्यगति में सुधार तथा चिंताएं कम होंगी।
धनु राशि - अचानक कोई शुभ समाचार मिलेगा, कार्यगति में सुधार होगा, कार्य बनने के योग।
मकर राशि - स्थिति यथावत रहे, समय पर सोचे कार्य पूर्ण हेंगे, कार्यों में सुधार होगा।
कुंभ राशि - इष्ट मित्र सुखवर्धक होंगे, शरीर कष्ट, चिंतन, असमंजस की स्थिति बनेगी।
मीन राशि - इष्ट मित्र सहायक रहेंगे, दैनिक कार्यगति में अनुकूलता बनी ही रहेगी, ध्यान दें।
14 अप्रैल को खत्म होगा खरमास
12 Apr, 2023 07:41 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
भोपाल । 14 अप्रैल को मेष संक्रांति है। इस सूर्य मीन से मेष राशि में प्रवेश करेगा और खरमास खत्म हो जाएगा। खरमास खत्म होने से विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन जैसे मांगलिक कार्यों पर लगी रोक हट जाएगी। अब इन शुभ कामों के लिए मुहूर्त मिल सकेंगे। मेष संक्रांति पर नदी स्नान के साथ ही दान-पुण्य करने की परंपरा है। इस पर्व पर सूर्य देव को जल चढ़ाना चाहिए और विशेष पूजा करनी चाहिए।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, सूर्य एक राशि में करीब एक महीना रुकता हैं। जिस दिन ये ग्रह एक राशि छोड़कर दूसरी राशि में प्रवेश करता है, उस दिन संक्रांति पर्व मनाया जाता है। शुक्रवार को सूर्य मेष राशि में प्रवेश करेगा, इस कारण इसे मेष संक्रांति कहा जाता है। ये राशि परिवर्तन अप्रैल में होता है। सूर्य 14 अप्रैल से 15 मई तक मेष राशि में ही रहेगा।
मेष संक्रांति पर कर सकते हैं ये शुभ काम
मेष संक्रांति पर्व पर पवित्र नदियों में स्नान करने की परंपरा है। जो लोग नदी में स्नान नहीं कर पा रहे हैं, उन्हें घर पर ही पानी में थोड़ा सा गंगाजल मिलाकर स्नान करना चाहिए। स्नान के बाद घर सूर्य देव को तांबे के लोटे से जल चढ़ाना चाहिए। जल चढ़ाते समय ऊँ सूर्याय नम: मंत्र का जप करें। इसके बाद सूर्य देव की विशेष पूजा करें। सूर्य देव के लिए गुड़ का दान करें। संक्रांति पर स्नान के बाद पितरों के लिए श्राद्ध, तर्पण आदि शुभ काम भी करना चाहिए। दोपहर में गाय के गोबर से बना कंडा (उपला) जलाएं और जब उससे धुआं निकलना बंद हो जाए, तब उस पर पितरों का ध्यान करते हुए गुड़-घी अर्पित करें। हथेली में जल लेकर अंगूठे की ओर पितरों को जल अर्पित करें। इस दिन स्नान के बाद पूजा-पाठ करें और फिर जरूरतमंद लोगों को खाना खिलाएं। धन, अनाज, कपड़े, जूते-चप्पल, छाता, गुड़, गेहूं दान करें। जिन लोगों की कुंडली में सूर्य की स्थिति ठीक नहीं है, उन्हें संक्रांति पर सूर्य देव के लिए पूजा-पाठ जरूर करना चाहिए। सूर्य नौ ग्रहों का राजा है और इस वजह से सूर्य देव की कृपा से कुंडली के कई दोष शांत हो सकते हैं और कार्यों में आ रही बाधाएं दूर हो सकती हैं।
नागदोष से मुक्ति के लिए प्रसिद्ध है ये मंदिर, दर्शन मात्र से मिलता है छुटकारा
12 Apr, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
सनातन धर्म में देवी देवताओं की आराधना व पूजा पाठ के अलावा उनके पवित्र स्थलों को भी विशेष महत्व दिया जाता है। हमारे देश में वैसे तो कई ऐसे मंदिर है जो अपने आप में अद्भुत और अलौकिक माने जाते है।
लेकिन आज हम आपने इस लेख में नागेश्वर महादेव मंदिर के बारे में आपको बता रहे है। यह पवित्र मंदिर 12 ज्योतिर्लिंग में से एक माना जाता है। जिसे द्वारका के नागेश्वर महादेव मंदिर के नाम से दुनिया भर में जाना जाता है। यह मंदिर गुजरात के द्वारका धाम के 17 किलोमीटर के बाहरी क्षेत्र में स्थित है।
ज्योतिष अनुसार जिन जातकों की कुंडली में नाग, कालसर्पदोष होता है वे लोग इस मंदिर में दर्शन के लिए जरूर आए। मान्यता है कि इस मंदिर में दर्शन व अलग अलग धातुओं से बने नाग नागिन अर्पित करने से नागदोष व कालसर्प दोष से रहात मिल जाता है तो आज हम आपको इसी पवित्र मंदिर के बारे में जानकारी प्रदान कर रहे है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार नागेश्वर को पृथ्वी का प्रथम ज्योतिर्लिंग माना जाता है। इस पवित्र स्थल पर जो भी भक्त अपनी परेशानी व समस्या लेकर आता है भगवान दारुकावने नागेशं जिन्हें नागों का भगवान माना जाता है। वे भक्तों की हर परेशानी को दूर कर देते है।
भगवान शिव की गर्दन पर जो नाग चारों ओर से लिपटा है उसे ही नागों का देवता यानी दारुकावने नागेशं कहा गया है। यह दर्शन पूजन से भक्तों की हर परेशानी व दुख का हल हो जाता है साथ ही कुंडली में व्याप्त काल सर्प दोष भी दूर हो जाता है।
राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन (12 अप्रैल 2023)
12 Apr, 2023 06:00 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
मेष राशि :- विरोधियों से तनाव, क्लेश, कष्ट, धन का व्यय, समय की हानि होगी।
वृष राशि - आर्थिक योजना फलीभूत हों, स्त्री वर्ग से सुख, कार्य में सुधार होगा।
मिथुन राशि - स्वभाव में क्रोध व अशांति से विवादग्रस्त, व्यवसायिक क्षमता बढ़ेगी।
कर्क राशि - बिगड़े हुए कार्य बनेंगे, योजना फलीभूत हों, मनोवृत्ति संवेदनशील बनेंगी।
सिंह राशि - इष्ट मित्रों सुखवर्धक होंगे, तनाव व आरोप से क्लेश एवं अशांति होगी।
कन्या राशि - कुछ बाधाएं व विलम्ब संभव हैं, मानसिक तनाव उद्विघ्नता रहेगी।
तुल राशि - धन हानि, शरीर कष्ट, मानसिक क्लेश बढ़ेगा, व्यर्थ भ्रमण तथा धन का व्यय होगा।
वृश्चिक राशि - आर्थिक योजनापूर्ण होंगी, सफलता के साधन बनेंगे, कुशलता से संतोष होगा।
धनु राशि - दैनिक समृद्धि के साधन बनेंगे, अचानक कोई शुभ समाचार प्राप्त होगा।
मकर राशि - व्यवसायिक समृद्धि के साधन जुटाएं, स्त्री वर्ग से सुख, बेचैनी, कार्य होंगे।
कुंभ राशि - भाग्य का सितारा साथ देगा, बिगड़े हुए कार्य बनेंगे, कार्य में विशेष सफलता मिलेगी।
मीन राशि - कार्य विफल हों, प्रयत्नशीलता करने पर ही सफलता प्राप्त होगी, ध्यान दें।
बैसाखी कब है? सिख नव वर्ष के रूप में मनाये जाने वाले इस खास दिन का इतिहास, महत्व जानें
11 Apr, 2023 06:30 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
Baisakhi 2023: बैसाखी को 'वैसाखी' या 'बसोआ' के नाम से भी जाना जाता है और आमतौर पर वैशाख महीने के पहले दिन मनाया जाता है. बैसाखी मुख्य रूप से उत्तरी भारत में मनाई जाती है, जो वसंत की फसल के मौसम की शुरुआत का प्रतीक है.द्रिक पंचांग के अनुसार, 14 अप्रैल को, जब देश भर में बैसाखी मनाई जाएगी, वैशाखी संक्रांति उसी दिन दोपहर 03:12 बजे होने की उम्मीद है.
बैसाखी खालसा के गठन का प्रतीक
भले ही बैसाखी पूरे देश में मनाई जाती है लेकिन यह मुख्य रूप से पंजाब के सिखों द्वारा मनाये जाने वाला उत्सव है. यह खालसा के गठन का प्रतीक है जो 1699 में वैसाखी के दिन हुआ था और दसवें और अंतिम सिख गुरु, गुरु गोबिंद सिंह द्वारा स्थापित किया गया था. इस दिन, गुरु गोबिंद सिंह ने सभी जातियों के बीच के भेद को समाप्त कर दिया और सभी मनुष्यों को समान घोषित किया. गुरु ग्रंथ साहिब को द्रिक पंचांग के अनुसार, शाश्वत मार्गदर्शक और सिख धर्म की पवित्र पुस्तक घोषित किया गया.
बैसाखी को सिख नव वर्ष के रूप में सेलिब्रेट किया जाता है
बैसाखी को सिख नव वर्ष या पंजाबी नव वर्ष के रूप में भी मनाया जाता है. इसे हिंदू सौर कैलेंडर के आधार पर हिंदुओं के लिए सौर नव वर्ष भी माना जाता है. इसे वैसाखी भी कहा जाता है. गुरुद्वारों में विशेष प्रार्थनाओं का आयोजन किया जाता है. बैसाखी मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हिंदुओं द्वारा मनाई जाती है. पश्चिम बंगाल में, इसे "नबा बर्शा" या बंगाली नव वर्ष के रूप में मनाया जाता है.
बैसाखी में लोग फसल के चारों ओर ढोल की थाप पर नाचते हैं
चूंकि बैसाखी एक फसल उत्सव भी है और रबी फसलों की कटाई के समय का प्रतीक है, किसान अपने परिवारों के साथ अपने खेतों में इकट्ठा होते हैं और फसल के चारों ओर ढोल की थाप पर नाचते हुए इसे मनाते हैं. बैसाखी या वैशाखी, संस्कृत भाषा से लिया गया एक शब्द है, जिसका अर्थ अप्रैल-मई के अनुरूप हिंदू चंद्र वर्ष का एक महीना है, जिसे कुछ राज्यों में नए साल की शुरुआत के रूप में माना जाता है.
क्षेत्रीय बैसाखी समारोह
ज्योतिषीय रूप से, बैसाखी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह मेष संक्रांति के साथ शुरू होती है, जो ओडिशा में पान संक्रांति, पश्चिम बंगाल में पोहेला बोइशाख, असम और मणिपुर में बोहाग बिहू, केरल में विशु और तमिलनाडु में पुथंडु जैसे कई क्षेत्रीय त्योहारों के साथ मेल खाती है. इसे ओडिशा में पाना संक्रांति के रूप में मनाया जाता है, जहां भक्त भगवान शिव, हनुमान या देवी शक्ति की पूजा करते हैं. वे तीर्थ यात्रा के दौरान पवित्र नदियों में स्नान करते हैं. सामाजिक उत्सव होते हैं और आम के गूदे से तैयार "पना" नामक एक विशेष पेय इस विशेष दिन पर लोगों द्वारा सेवन किया जाता है.
पश्चिम बंगाल में पोहेला बोइशाख
पश्चिम बंगाल में इसे पोहेला बोइशाख कहा जाता है. इस दिन भक्त चालू वर्ष में अच्छी फसल के लिए दैवीय शक्तियों का धन्यवाद करते हैं और आने वाले वर्ष में अधिक प्रचुरता के लिए भगवान से प्रार्थना करते हैं और उनका आह्वान करते हैं. लोग अपने घरों के आंगन को चावल और पानी के पेस्ट से बनी रंगीन 'रंगोली' से सजाते हैं जिसे 'अल्पोना' कहा जाता है. बंगाल के साथ-साथ यह त्रिपुरा राज्य के कुछ हिस्सों में भी मनाया जाता है. इसे असम में बोहाग बिहू कहा जाता है, और इसे साल में तीन बार मनाया जाता है जो खेती के अलग-अलग चक्रों को दर्शाता है. लोग इस अवसर को चिह्नित करने के लिए मंगशो, चिरा और पिठा जैसे व्यंजन तैयार करते हैं. केरल में 'विशु' मलयालम नव वर्ष की शुरुआत को दर्शाता है. लोग 'दीया' जलाकर और पटाखे फोड़ कर जश्न मनाते हैं. पुथुंडु या तमिल नव वर्ष भी इसी दिन पड़ता है और लोग इस शुभ दिन से एक रात पहले भगवान को नकद, सोने और चांदी के आभूषणों को सुपारी और फलों के साथ चढ़ाते हैं. ऐसा माना जाता है कि इन अनुष्ठानों का पालन करने से वर्ष के शेष समय में समृद्धि और खुशी आती है.
बैसाखी अनुष्ठान और उत्सव
बैसाखी के दिन भक्त जल्दी उठते हैं, स्नान के बाद नए कपड़े पहनते हैं और विशेष प्रार्थना करने के लिए खूबसूरती से सजाए गए गुरुद्वारों में इकट्ठा होते हैं. प्रार्थना के बाद, वहां एकत्रित सभी लोगों को "कड़ा प्रसाद" नामक एक विशेष मिठाई वितरित की जाती है. इस व्यंजन को प्रसाद के रूप में चढ़ाने के लिए शुद्ध घी, चीनी और गेहूं के आटे का उपयोग करके तैयार किया जाता है. दोपहर के आसपास एक 'लंगर' का आयोजन किया जाता है, जहां अमीर या गरीब सभी वर्गों के लोगों को भक्तों द्वारा सामूहिक रूप से तैयार भोजन मुफ्त में दिया जाता है. युवा पुरुष और महिलाएं 'भांगड़ा' और 'गिद्दा' जैसे पारंपरिक नृत्य करते हैं. मक्की दी रोटी, सरसों का साग, पनीर टिक्का, आलू की सब्जी, पूरी, सब्जी पकोड़े समेत विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाये जाते हैं.
अक्षय तृतीया पर करें ये अचूक उपाय, पैसों से लबालब भरा रहेगा घर
11 Apr, 2023 06:16 AM IST | GRAMINBHARATTV.IN
हिंदू धर्म में वैसे तो कई सारे पर्व त्योहार मनाए जाते हैं और सभी का अपना महत्व भी होता है। लेकिन अक्षय तृतीया बेहद ही खास मानी जाती है। पंचांग के अनुसार हर साल वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को अक्षय तृतीया का पावन पर्व मनाया जाता है जो कि इस बार 22 अप्रैल को पड़ रहा है। इस दिन बिना मुहूर्त देखे किसी भी शुभ कार्य को पूर्ण किया जा सकता है। ये दिन बेहद खास माना जाता है। इस दिन को खरीदारी के लिए भी उत्तम माना गया है। अक्षय तृतीया के दिन माता लक्ष्मी और श्री हरि की पूजा करने उत्तम फलों की प्राप्ति होती है। इस दिन पूजा पाठ और व्रत के साथ साथ अगर कुछ उपायों को भी किया जाए तो धन प्राप्ति के योग बनने लगते है और जातक तेजी से धनवान हो जाता है। तो आज हम आपको कुछ उपाय बता रहे हैं।
अक्षय तृतीया पर करें ये उपाय-
अक्षय तृतीया का दिन माता लक्ष्मी की आराधना के लिए उत्तम माना जाता है। ऐसे में इस दिन देवी मां की विधिवत पूजा करने से सुख समृद्धि आती है और धन की आवक भी बढ़ जाती है। इसके अलावा अक्षय तृतीया के दिन महालक्ष्मी की पूजा करके माता को गुलाब जरूर अर्पित करें साथ ही खीर का भोग भी लगाएं। ऐसा करने से मां शीघ्र प्रसन्न होकर कृपा बरसाती है। इस दिन देवी मां को स्फटिक की माला अर्पित करें इससे धन समृद्धि बढ़ती है। धार्मिक तौर पर अक्षय तृतीया के दिन अगर सोने चांदी की वस्तुएं खरीदी जाए सदा घर धन धान्य से भरा रहता है और कर्ज से भी मुक्ति मिलती है।